लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता की गज़लें

 

लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता


साहित्य हमेशा मनुष्य और मनुष्यता के पक्ष में खड़ा होता है। वह मनुष्यता की बात करता है। आज जब परिस्थितियां लगातार प्रतिकूल होती जा रही हैं; जाति, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र, बोली, भाषा जैसी संस्थाएं जो कभी मनुष्य को मनुष्य बनाने के लिए सृजित की गई थीं, मनुष्यता के ऊपर होती जा रही हैं; आज जब मनुष्यता को लगातार सीमित करने के प्रयास किए जा रहे हैं; ऐसे में साहित्यकार की प्रासंगिकता कुछ अधिक ही बढ़ जाती है। लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता हमारे समय के महत्त्वपूर्ण कवि और गजलकार हैं। बिना किसी शोर-शराबे के उन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। अपनी एक ग़ज़ल में वे 'अपने होने के हक अदा करने की बात' करते हैं। यह पंक्ति जैसे सब कुछ बयां कर देती है। 'होने का हक अदा करना' भला आसान भी कहां होता है। इसके लिए धारा के विपरीत चलने का साहस रखना होता है। इसके लिए सूली पर चढ़ने का जोख़िम लेना होता है।

वसुधैव कुटुंबकम् कहना आज जितना आसान है, उसे सार्थक कर दिखाना उतना ही टेढ़ी खीर। लेकिन रचनाकार तो वही होता है जो धारा के विपरीत चलने का साहस रखत है। निःसंदेह यह साहस हमारे इस गजलकार में दिखाई पड़ता है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता की कुछ नई ग़ज़लें।



लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता की गज़लें 


(1)


थकन राहों की पूछेंगे, मिलेंगे अब कि जो हम

गले लग ख़ूब रोयेंगे, मिलेंगे अब कि जो हम


उदासी चाँद तारों की सदा देती है पल-पल

उन्हीं के पास बैठेंगे, मिलेंगे अब कि जो हम


ग़ज़ल की जो ये दुनिया है, मुहब्बत नाम इसका

इसी से दिल लगायेंगे, मिलेंगे अब कि जो हम


सफ़र आसान हो तो फिर मज़ा चलने में क्या है

ज़रा सा काँटें बो लेंगे, मिलेंगे अब कि जो हम


तुम्हारे पास आते ही अना दम तोड़ती है

तुम्हीं से नेह जोड़ेंगे, मिलेंगे अब कि जो हम


कोई क़िस्सा सुनायेंगे, कोई क़िस्सा सुनेंगे

नदी के तट पे आयेंगे, मिलेंगे अब कि जो हम


हमारी धुन में रहती है, कोई पगली-सी लड़की

उसी की धुन में खोयेंगे, मिलेंगे अब कि जो हम



(2)


न धड़कन हो, न आँसू हो, मगर इंसा रहे ख़ुश

ये सस्ते ख़्वाब आँखों का शरारा ले उड़ेंगे


बहुत से लोग ऐसे भी मिलेंगे देखिएगा,

नज़र में ही रहेंगे और नज़ारा ले उड़ेंगे


जिसे बोना है बोये राह में काँटें हमारे,

मिरे अहबाब काँटों का किनारा ले उड़ेंगे


तरक़्क़ी का तमाशा गाँव में सबको दिखाकर,

ये शहरी लोग आँखों का सितारा ले उड़ेंगे


जो छेड़ेंगे ज़मीं से चाँद तारों को तो वे भी,

हमारी रौनकें सुख चैन सारा ले उड़ेंगे


(3)


अपने पंजे खा रहा है, हँस रहा है ख़ुदकुशी पर

कोई अब रक्खे भला क्योंकर भरोसा आदमी पर


दोस्ती में तय हुआ था, साथ जीना, साथ मरना

दोस्ती रुसवा हुई इक बेहया-सी ज़िंदगी पर


दुश्मनी करते रहें अपनी अना के साथ अक्सर

हमने ये बिजली न गिरने दी कहीं भी दोस्ती पर


है चमकना तो अँधेरे से भी थोड़ा प्यार कीजिए

चाँद रखता है भरोसा आसमाँ की तीरगी पर


पीढ़ियों पर दोष अपना डालते हैं हम भी साहब

जो फ़िदा होते हैं अक्सर रहज़नों की रहज़नी पर


है हमारे पास सब कुछ, बस धड़कता दिल नहीं है

सर धुने जो, छाती पीटे सिसकियों पर, बेबसी पर


आप कहते हैं कि हम क़ातिल हैं सारे शह्र भर के

आपको मालूम क्या, हम जाँ लूटा दें दुश्मनी पर






(4)


कि होना यूँ भी हासिल कर लिया है

तुझे अपने में शामिल कर लिया है


गिराओ बिजलियाँ अब ग़म नहीं है,

बदन को अपने हामिल कर लिया है


सज़ा दो या बरी कर दो कहें क्या

तुम्हें जब हमने आदिल कर लिया है


सहल होता सफ़र जो साथ चलते,

जुदाई को ही मंज़िल कर लिया है


कोई तारा गिरा है टूट कर औ'

ये किसने हाथ बिस्मिल कर लिया है


कोई कश्ती नहीं फिर भी ये ज़ीस्त,

समंदर के मुक़ाबिल कर लिया है


उसे हासिल से मतलब ही कहाँ है,

जिसने ख़ुद को कामिल कर लिया है



(5)


अपने होने का हक़ यूँ अदा कीजिए

कुछ कहा कीजिए, कुछ सुना कीजिए


रोइए मत अगर पास कोई नहीं,

संदली ख़्वाब चंचल बुना कीजिए


है जुदाई ज़रूरी ये भी जानिए

हो मुहब्बत तो थोड़ा सहा कीजिए


आइए पास बैठें, करें बात कुछ

वक़्त की नाव में चढ़ बहा कीजिए


हो तड़प, हो घुटन, सिसकियाँ भी तो हों,

ज़िंदगी कोई ऐसी चुना कीजिए


माँगने की रवायत हो जब अपने लिए,

ग़ैर के हक़ में थोड़ी दुआ कीजिए


हो हवा जब वबा की चली हर तरफ़,

बैठ कर आप भी सिर धुना कीजिए



सम्पर्क


लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता

मो. 6306659027

ई-मेल : lakshman.ahasas@gmail.com

टिप्पणियाँ

  1. सर को पढ़ने से ज्यादा सर को सुनना सुखद हैं..🥰🙏

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  2. हमेशा की तरह बेहतरीन ❤️

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  3. हर बार की तरह इस बार भी बहुत अच्छा लिखा है।

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  4. तरक़्क़ी का तमाशा गाँव में सबको दिखाकर,
    ये शहरी लोग आँखों का सितारा ले उड़ेंगे
    क्या खूब लिखें हैं भैया

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  5. बहुत ख़ूब, उम्दा अशआर । बधाई !

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