अनामिका अनु की किताब यारेख़ की रुचि बहुगुणा उनियाल द्वारा की गई समीक्षा 'यारेख : प्रेम की पीठ पर हौले से एक धप्पा'
दुनिया में कौन ऐसा होगा जिसने प्यार नहीं किया होगा। इस रास्ते से प्रायः सभी गुजरते हैं। इस अहसास को प्रायः सभी जीते हैं। कुछ इसे अभिव्यक्त कर पाते हैं जबकि कुछ इसे अपने मन में रखते हुए ही जीवन गुजार देते हैं। किसी का प्रेम भलीभांति फलता फूलता है जबकि किसी का प्रेम परवान ही नहीं चढ़ पाता और वह एकतरफा ही रह जाता है। प्रेम हो और प्रेम पत्र न लिखे जाएं यह असम्भव ही है। दुनिया के तमाम कलाकारों, रचनाकारों ने अपनी प्रेमिकाओं को प्रेम पत्र लिखे, जो पीढ़ियों के लिए एक दस्तावेज की तरह है। प्रेम पुरातन होते हुए भी इतना नूतन है कि कवि आज भी प्रेम कविताएं लिख रहे हैं। कवयित्री अनामिका अनु ने इन प्रेम पत्रों को यारेख नाम से पुस्तकाकार किया है। इस किताब की समीक्षा लिखी है रुचि बहुगुणा उनियाल ने, जो स्वयं भी एक उम्दा कवयित्री हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं अनामिका अनु की किताब यारेख़ की रुचि बहुगुणा उनियाल द्वारा की गई समीक्षा 'यारेख : प्रेम की पीठ पर हौले से एक धप्पा'।
यारेख - प्रेम की पीठ पर हौले से एक धप्पा
रुचि बहुगुणा उनियाल
मैं स्वयं प्रेम लिखती हूँ और प्रेम में हूँ इसलिए इस बात को भलीभाँति जानती हूँ कि प्रेम को शब्दों का लिबास पहनाना कितना दुष्कर उद्यम है। प्रेम करना बड़ा कठिन है उसके लिए हृदय अबोध और शिशुवत होना चाहिए, लेकिन उससे भी अधिक कठिन है किये गये प्रेम को व्यक्त करना। अपने प्रिय को अपनी प्रेमिल भावनाएँ लिख कर बताना और अधिक मुश्किल है लेकिन मैं समझती हूँ कि प्रेम को सहेजे हुए इन प्रेम पत्रों को एक साथ संकलित करना और उन्हें एक पुस्तकाकार देना कितना कठोर परिश्रम का और थका देने वाले कार्य के साथ-साथ इसमें कितने संयम की आवश्यकता है यह शायद कहना जितना सरल है उतना ही उसे करना कठिन।
यारेख ऐसी ही प्रेम पत्रों के संकलन की एक पुस्तक है जिसके सम्पादन की महती भूमिका निभाई है अनामिका अनु जी ने, और यह कहने में मुझे बिलकुल भी संकोच नहीं हो रहा कि जितना आनंद मुझे इन छत्तीस प्रेम पत्रों को पढ़ कर आया उससे कहीं अधिक आनंद की अनुभूति मुझे अनामिका अनु जी का बारह पृष्ठीय सुविस्तृत और सधा हुआ सम्पादकीय पढ़ने में आया।
अनामिका जी का यह सम्पादकीय पढ़ कर इस बात का पता चलता है कि कितने गहन अध्ययन के बाद उन्होंने इस सम्पादकीय को लिखा है, उनके इस सम्पादकीय में उन्होंने कबीर से लेकर विक्टर ह्यूगो और जूलियट तक की प्रेम भावनाओं को उल्लेखनीय ढंग से उद्धृत किया तो पांच हज़ार साल पहले रुक्मिणी के श्री कृष्ण को लिखे पहले प्रेम पत्र का भी उल्लेख करना नहीं भूलीं।
वे नेपोलियन की प्रेमिका लूसी का उल्लेख भी करती हैं तो दाग़ देहलवी के मुन्नी बाई को लिखे प्रेम पत्रों का भी ज़िक्र करना नहीं भूलतीं। जाँ निसार अख़्तर को सफिया के लिखे प्रेम पत्र का यह ज़िक्र भी उन्होंने किया जहाँ सफिया लिखती हैं -
'बाज़ लम्हों में अपनी बाहें तुम्हारे गिर्द हल्का कर के तुमसे इस तरह चिपट जाने की ख़्वाहिश होती है कि तुम चाहो भी तो मुझे छुटा न सको'
फ्रांत्स काफ़्का/पियर-ईव/अर्नेस्ट हेमिंग्वे-मैरी वेल्स /जॉन कीट्स-फेनी ब्राउन /एमीली डिकिन्सन-सुज़ेन गिल्बर्ट /फ्रीडा काहलो-डिगो रीवेरा से ले कर रवींद्र नाथ टैगोर तक न जाने कितने ही उद्धरण दे कर अनामिका अनु जी ने अपने सम्पादकीय को अद्वितीय बना दिया।
अब बात करते हैं इस संकलन में निहित प्रेम पत्रों की, मुझे सबसे सुन्दर और मौलिकता से भरपूर प्रेम पत्र लगा नीलेश रघुवंशी जी का 'पुरानी डायरी में तुम' शीर्षक से कहीं कोई बनावट नहीं, प्रेम पत्र क्या है बस अलग-अगल समय पर लिखी गयी प्रेमिल अभिव्यक्तियों को एक साथ पिरोया गया है जो कि अपने आप में अनूठा लगा मुझे निःसंदेह यह मेरी व्यक्तिगत राय है , फिर यतीश कुमार जी का प्रेम पत्र भी उल्लेखनीय है 'वे सात साल, सात सावन, सात समंदर से ही तो थे' शीर्षक से इस प्रेम पत्र का उल्लेख इसलिए भी आवश्यक है कि लिखने वाले को पता है कि दोनों के मध्य एक अनकही और अनचाही दूरी पैर पसार रही है और उसे बस एक हंसी /एक नज़र /एक पल में ख़त्म किया जा सकता है।
अनामिका अनु |
सुदीप सोहनी जी का प्रेम पत्र भी अच्छा लगा 'आहिस्ता-आहिस्ता पानी टहल रहा है' शीर्षक से, एक प्रेम पत्र जो सचमुच दिल को छू गया वो संजय शेफ़र्ड जी का 'वह स्काई ब्लू रंग की शर्ट', तीन हिस्सों में लिखा यह प्रेम पत्र मुझे बेहतरीन लगा क्योंकि तीनों हिस्से अलग-अगल समय पर लिखे जाने के बावजूद एक साथ मिल कर एक बेहतरीन और सुगठित प्रेम पत्र का रूप ले लेते हैं और अंत में जो लिखा है उन्होंने कि
'आप सोच रहे होंगे कि इतना कुछ तो बता दिया लेकिन लड़की का नाम नहीं बताया। दरअसल, प्रेमिकाओं का नाम होता भी कहाँ जो दर्ज किया जाए। मेरे लिए प्रेम एक स्वतन्त्र अभिव्यक्ति है। नाम बता कर ख़ुद को या फ़िर किसी और को बाँधना नहीं चाहता।'
बस बेहद शानदार!
अनिल कार्की जी का प्रेम पत्र, अनामिका जी का प्रेम पत्र, तेजी ग्रोवर जी का प्रेम पत्र, त्रिभुवन जी का प्रेम पत्र, ये सभी मुझे बेहद शानदार लगे।
अनिता भारती जी का प्रेम पत्र भी अच्छा लगा और शायद इस लिहाज से भी कि पति को प्रेम पत्र लिखना अब भी हमारे समाज में बड़ा अजीब माना जाता है कि अरे ये तो साथ ही है फिर लिख कर क्या बताना ज़रूरी है? जबकि प्रेम को लिख कर बताना /जताना ही सबसे दुष्कर कार्य है और हम सभी को ऐसा करते रहना चाहिए क्योंकि यही छोटे-छोटे प्रयास जीवन को प्रेम से भर देते हैं।
कुछ पत्र बनावटी भी लगे, यथा आलोक धन्वा जी का प्रेम पत्र, गीताश्री जी का प्रेम पत्र, नन्द भारद्वाज जी का प्रेम पत्र, शैलजा पाठक जी का प्रेम पत्र और मैत्रेयी पुष्पा जी का प्रेम पत्र, सबसे ज्यादा बनावटी लगा अनुज लुगुन जी का प्रेम पत्र क्योंकि उसमें प्रेम से अधिक मुझे आदिवासी समाज की चिंताएं और उनके संघर्ष नज़र आए, हालांकि मैं मानती हूँ कि चिंताओं और संघर्षों में तप कर प्रेम और अधिक दृढ़ता पाता है लेकिन फिर भी यह प्रेम पत्र मुझे बनावटी ही लगा।
पुस्तक के अंत में पृष्ठ संख्या २१३ से पृष्ठ संख्या २३९ तक सभी लेखकों का बहुत सुंदर और रोचक परिचय विवरण दिया गया है जो अपने आप में अनूठा है, परिचय के साथ ही सभी लेखकों की महत्वपूर्ण कृतियाँ /उपलब्धियां व उनकी रुचियों की जानकारी भी दी गई है जो पढ़ना दिलचस्प रहा।
पुस्तक के कवर पेज के पृष्ठ भाग पर अनामिका जी की यह सूक्ष्म रचना भी बहुत रुचिकर लगी-
'तुम लम्बी तान-सा मत आना, तुम श्रुति नाद-सा आना,
तुम भद्रता की थाप लाना, मैं प्रेम की मुद्राएँ,
तुम अकवन फूल लाना, मैं भैरव लाऊँगी,
तुम जावाकुसुम लाना, मैं आ जाऊँगी।'
यहाँ एक बात और कहना चाहूँगी कि अनामिका अनु जी ने जिन प्रेम पत्रों का अनुवाद किया है वे अपने आप में बेहतरीन हैं।
मेरी इस टिप्पणी को एक पाठकीय प्रतिक्रिया ही समझा जाएगा ऐसा विश्वास रखती हूँ क्योंकि मैं कोई समीक्षक नहीं न ही कोई गद्य विशेषज्ञ ही हूँ कि आप मेरी प्रतिक्रिया को समीक्षा की श्रेणी में रखेंगे।
अन्त में मैं इस पुस्तक के लिए अनामिका अनु जी को धन्यवाद देते हुए सभी लेखकों को और इस पुस्तक की सम्पादक अनामिका अनु जी को मंगलकामनाएँ प्रेषित करती हूँ कि एक अनूठा प्रेम पत्रों का संकलन पाठकों के लिए परिश्रम से तैयार किया।
पुस्तक - यारेख
कुल पृष्ठ संख्या - 240
प्रकाशक- पेंगुइन रैंडम हाउस
प्रकाशन वर्ष- 2023
ISBN-9780143460725
मूल्य - 299/ मात्र
रुचि बहुगुणा उनियाल
ऋषिकेश
बहुत सुंदर और सारगर्भित समीक्षा। पाठकों में पढ़ने की उत्सुकता जगाती हुई
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