हरेराम समीप की भूमिका आलेख 'जन-सरोकारों से लैस : डी. एम. मिश्र के शेर'
साहित्य का ध्येय होता है समाज की विसंगतियों को सामने लाना। इस तरह रचनाकार प्रायः सत्ता के सामने खड़ा हो कर एक सवालिया की तरह नजर आता है। जाहिर सी बात है यह काम वह सत्ता से दूर रह कर ही कर सकता है। अंग्रेजी काल में तमाम ऐसी रचनाएं सामने आईं जिसमें सत्ता के प्रति आक्रोश व्यक्त किया गया था। इसीलिए उन्हें जब्त कर लिया गया। यह काम आज भी जारी है। सत्ता के लिए सबसे बड़ा डर ये रचनाकार ही पैदा करते हैं। डी एम मिश्र की गजलों की किताब की अपनी भूमिका में हरे राम समीप लिखते हैं : 'अपने समय की संवेदना को काव्य-संवेदना में तब्दील कर इन शेरों में ढाला है। इनके शेर समाज, राजनीति और व्यवस्था के इर्द-गिर्द घूमते हैं। इनके शेरों के केंद्र में आम जनता का जीवन और उसकी संघर्ष-चेतना साफ दिखाई देती है। इन शेरों में किसान, मजदूर तथा वंचित समाज का दर्द पूरी शिद्दत से व्यक्त हुआ है। ग्राम्य-जीवन की दारुण स्थिति पर यहां कमाल के शेर आए हैं। इन शेरों में ग्राम्य-जीवन के प्रश्न, उसकी तकलीफें और संघर्ष का आँखों देखा हाल बयान किया गया है। उन्होंने अपने शेरों को भाषाई जटिलता से सदैव दूर रखा है। उर्दू व...