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प्रज्ञा रावत की कविताएं

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  प्रज्ञा रावत दुनिया के बदलने के साथ साथ लोगों का बर्ताव भी लगातार बदलता चला गया है। लोग अक्सर यह कहते सुने जाते हैं कि अब पहले वाले लोग नहीं रहे। इसके बावजूद आज भी ऐसे लोग हैं जो निष्कपट और निःस्वार्थ भाव से अपना काम करने में लगातार जुटे रहते हैं। विशेषकर स्त्रियां (जिसमें समूची दुनिया की स्त्रियां शामिल हैं) इस दुनिया को सजाने संवारने में आज भी लगी रहती हैं। वे कई बार धोखा खाती हैं। कई बार ठगी जाती हैं। लेकिन कबीर की तर्ज पर कहा जाए तो 'कबीरा आप ठगाइए और न ठगिए कोय' का अनुसरण करती हैं। प्रज्ञा रावत इस स्त्री मन को रेखांकित करते हुए लिखती हैं 'चाहती है ऐसा ही निष्कपट संसार/ जहाँ विश्वास और अपनत्व की बची-खुची/ आस फिर जी उठे/ जी उठे आदमी का मन आदमी के लिए।' जिस समय अविश्वसनीयता अपने चरम पर हो, उस समय ये स्त्रियां जीवन पर विश्वास करती हैं और दुनिया की उम्मीद को अपने इस विश्वास के बूते जिलाए रखती हैं।  प्रज्ञा की पक्षधरता उन आम लोगों के प्रति है जिनके पक्ष में आमतौर पर कोई नहीं होता। जो प्रायः उपेक्षित रहते हैं। अपनी कविता 'ईद मुबारक' में वे लिखती हैं 'जिन्हें...

श्रीराम त्रिपाठी का आलेख 'मूल प्रश्न'

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  श्रीराम त्रिपाठी लेखक के वजूद में पाठक की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। भले ही लेखक स्वांतःसुखाय लिखने का दावा करता है लेकिन उसे मान्यता तो तभी मिलती है जब पाठक उसके लेखन को स्वीकार करता है। पाठक की स्वीकृति के बिना लेखन का कोई मोल नहीं। लेखन का मूल प्रश्न वाकई यही है। श्रीराम त्रिपाठी हमारे समय के गम्भीर आलोचकों में से हैं। उनके आलोचन का तरीका औरों से बिल्कुल अलहदा होता है। लेखक पाठक संबंधों की कड़ियों को एक आलेख के माध्यम से बड़े रुचिकर तरीके से उन्होंने खोलने का प्रयास किया है। यह आलेख एक अरसा पहले अक्तूबर 2002 में 'समय माजरा' पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। लेकिन इसमें उठाई गई बातें आज भी समीचीन हैं।   आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं श्रीराम त्रिपाठी का आलेख  'मूल प्रश्न'। 'मूल प्रश्न' श्रीराम त्रिपाठी “अच्छा तू ही बता, कोई इन्सान कविता-कहानी क्यों लिखता है?... दूसरों की छोड़। अपनी बता। क्यूँ लिखता है तू?” मैं कुछ नहीं समझ पाया। दोस्त के अचानक हुए सवाल से मैं अचकचा गया। दोस्त से हमारी बातचीत तो देश के हालत पर हो रही थी कि अचानक उसका यह सवाल अचकचा देने के लिए का...

नव वर्ष पर हिन्दी कविताएं

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  नव वर्ष पर हिन्दी कविताएं परिवर्तन प्रकृति का नियम है। समय की सुई लगातार टिक  टिक  करते हुए हमेशा आगे ही बढ़ती रहती है। समय कभी पीछे नहीं लौटता। हालात चाहें जैसे भी हों, एक कदम भी पीछे जाना उसे गंवारा नहीं। हां, वह अपने पीछे छोड़ जाता है ढेर सारी यादें। उन यादों के वितान पर हम अपने अतीत की भूली बिसरी यादों को पुनर्निर्मित करने की कोशिश करते हैं। वर्ष 2024 भी दिसम्बर बीतने के साथ अपनी खट्टी मीठी यादों के साथ अब अतीत हो गया। आज से बाकायदा वर्ष 2025 की शुरुआत हो गई। यह मौका होता है खुद को आंकलित करने का। गलतियों को सुधार कर कुछ बेहतर करने का। पहली बार से जुड़े सभी रचनाकारों और पाठकों को नव वर्ष की बधाई एवम शुभकामनाएं। इस अवसर पर हम हिन्दी के पुराने नए कुछ चर्चित कवियों की कविताओं को प्रस्तुत कर रहे हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं नव वर्ष पर केन्द्रित हिन्दी की कुछ कविताएं। हरिवंश राय बच्चन  हरिवंशराय बच्चन की दो कविताएं  आओ, नूतन वर्ष मना लें आओ, नूतन वर्ष मना लें! गृह-विहीन बन वन-प्रयास का तप्त आँसुओं, तप्त श्वास का, एक और युग बीत रहा है, आओ इस पर हर्ष म...