अवन्तिका प्रसाद राय की लघु कथाएं

 

अवन्तिका प्रसाद राय 


संगत का मनुष्य के जीवन पर गहरा असर पड़ता है। खासकर बाल मन तो संगत के असर से निर्मित ही होता है। तुलसी दास ने लिखा भी है : 'एक घड़ी आधो घड़ी, आधो में पुनि आध। तुलसी संगत साध की, कटै कोटि अपराध।।' हमारे समाज में स्त्रियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे चुपचाप अपना काम करें। दिक्कत भी हो तो उफ्फ तक न करें। बोलने वाली स्त्रियों पर तमाम तरह की तोहमत लगाई जाती है। बहरहाल समय बदलने के साथ स्त्रियों में भी अच्छी खासी चेतना आई है। अब वे भी मुखर होने लगी हैं। उनकी संगत का बच्चों पर भी असर पड़ता है। जिन घरों की स्त्रियां चुपचाप सब सुनती सहती रहती हैं, उनके बच्चे अक्सर दब्बू किस्म के होते हैं। अवन्तिका प्रसाद राय जीवन को सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकित करते हुए रचनारत हैं। इसी की परिणति हैं उनकी लघु कथाएं। पिछले महीने हमने इन लघु कथाओं की पहली किश्त प्रस्तुत किया था। अबकी बार दूसरी किश्त प्रस्तुत कर रहे हैं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं अवन्तिका प्रसाद राय की कुछ लघु कथाएं।



अवन्तिका प्रसाद राय की लघु कथाएं 



सीता और गीता 


सीता और गीता बचपन की दो सहेलियां थीं। दोनों की शादी एक ही गांव में हुई थी। सीता अत्यन्त पतिव्रता स्त्री थी। उसका पति थोड़ा बिगड़ैल था। कारण कि किसी महकमे में हाकिम था। सीता रात-दिन अपने पति के सेवा-टहल में लगी रहती थी। बस यह समझिए कि वह हंसता तो हंसती, वह रोता तो रोती, उसी की नींद जागती और उसी की नींद सोती। गांव वाले उसे गऊ कहते. सीता अक्सर अपने पति के गुस्से का शिकार भी हो जाती। तो साहेबान, सीता बिल्कुल सीता थी …. अपने पति के चरण-चिन्हों पर चलने वाली।

   

गीता उसके उलट थी। पति को अपने इशारों पर नचाने वाली।. दिन भर सज-संवर कर गांव-गांव घूमती रहती। जहां सीता से कोई कुछ भी बोल देता था वहीं गीता से कुछ भी बोलने में लोगों को पसीना आता था, दो-चार बार सोचना पड़ता था। गीता का पति किसान था फिर भी गीता की धमक सीता से ज्यादा थी. जहां सीता रात दिन अपने काम में जी जान से जुटी रहती वहीं गीता का काम उसके घर वाले मिल-बांट कर करते। गीता के व्यक्तित्व में तीखापन था और पर-पुरुषों को उसका यह तीखापन बहुत आकर्षित करता था सो गीता अपने मुरीदों से हंस-बोल कर अपना दो–चार काम भी करा लेती। उससे झटका खाए लोगों की संख्या भी बड़ी मात्रा में थी।


सीता और गीता के बच्चे बड़े हो गये। जहां सीता के बच्चे बहुत कुछ जप्त कर जाते वहीं गीता के बच्चे तीखा प्रतिवाद करते। गीता के बच्चों की अपने गोल में हनक थी। यह सब देख सीता के बच्चे मन ही मन बहुत घुटते रहते। एक दिन गांव में एक महात्मा पधारे। सीता और गीता का परिवार उनसे मिलने गया। महात्मा जी ने आखिर में गीता के बच्चों को ढेर सारे फूल दिए जबकि सीता के बच्चों को उन्होंने फूल के कांटे दिए। सीता का परिवार आज तक इसके पीछे के कारण को नहीं समझ पाया।





शिक्षा 

  

एक गुरू थे। आश्रम में अपने कुछ शिष्यों को शिक्षा दिया करते थे। शिक्षा देने का उनका ढंग अत्यन्त निराला था। वह बोल कर कुछ भी नहीं बताते थे। 


गुरू जी की दिनचर्या के नियम अत्यंत कठिन थे पर शिष्य उन नियमों से मुक्त रह सकते थे अर्थात वह उन नियमों के पालन हेतु कोई सख्ती नहीं करते। 


अधिकांशतः किशोरावस्था में बालक उनके आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने आते। वह प्रायः छात्रों के सामने कुछ अबूझ क्रियाएं किया करते। मसलन, फल खाते समय वह उसे ध्यानपूर्वक मुदित हो देखा करते। कभी-कभी नासिका के पास भी ले जाते और चर्वण करते समय उनकी आंखें मुंद जातीं। किसी भोजपत्र को पढ़ते-पढ़ते वह रुक जाते और तत्समय ही ध्यान करने लगते। स्नानगृह में स्नान करते समय जल गिरने की कोई आवाज नहीं आती। जानवरों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया शेष गृहस्थजनों से अलग रहती। वन में भ्रमण करते करते अकस्मात किसी वृक्ष के पास दीर्घावधि तक रुके रहते, तरह-तरह से उसका निरीक्षण करते और कभी कभी किसी पादप, वृक्ष या लता का कोई हिस्सा ले आश्रम वापस आते और तत्समय ही अपने ताड़पत्रों को खोल कुछ पढ़ने लग जाते।

 

उक्त क्रियाओं को देख छात्र आपस में कई दिवस वार्तालाप करते और उन्हें अपने अपने ढंग से सीखते। पटु शिष्य उन क्रियाओं के रहस्य की तह तक जाने की कोशिश करते। 

    

शिष्यों के उस नए समूह में उनका एक प्रिय शिष्य था, वागीश। वह भी अन्य शिष्यों की तरह किशोर वय में ही शिक्षा ग्रहण करने आया। उसकी शिक्षा अल्पावधि में ही पूरी हुई जान कर गुरू जी ने उसे अंतिम साक्षात्कार हेतु बुलाया। गुरू जी ने उससे पूछा कि उसने उनके आश्रम में क्या सीखा। वागीश ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया; खाना, पीना, नहाना, धोना, उठना, बैठना, बात करना, आदि आदि। गुरू जी ने प्रतिप्रश्न किया, यही तो तुम करते थे आश्रम आने से पूर्व! वागीश बोला, गुरुवर अब मैं बोधपूर्वक खाऊँगा, बोधपूर्वक पान करूँगा, बोधपूर्वक स्नान एवं अनुवर्ती क्रियाएँ करूँगा। गुरू जी ने शिक्षा पूरी हुई जान कर अपने उस अपूर्व पटु शिष्य को आश्रम से विदा कर दिया।





जन्नत की चाभी 


साधारण परिवार का है वह लड़का। पिता एक साधारण नौकरीपेशा और मां गृहणी। एक अति साधारण स्कूल से पढ़ा लिखा और अव्वल की योग्यता के बावजूद तमाम वजूहात से कम अंक हासिल कर इंटरमीडिएट पास। जब विश्वविद्यालय में दाख़िल हुआ पढ़ाई को ले कर थोड़ा बहुत गम्भीर हुआ। यूनिवर्सिटी में जो बच्चे उसके दोस्त बने। उनमें कुछ तो अपनी पढ़ाई को लेकर बेहद संजीदा कुछ बेपरवाह।


वहाँ उस लड़के का जो घेरा बना उनमें चाय पान वालों से ले कर सेठों रईसों, गुण्डे मवालियों और तमाम आलिम और फाजिल शुमार थे। उसका दावा है कि वह जिंदगी की पढ़ाई जितनी प्रोफेसरान से नहीं कर पाया उससे कहीं बहुत बहुत ज़्यादा सड़क पर रह कर करने में सफल हुआ। यह बात दीगर है कि वह सड़क वालों से प्रोफेसरान से हासिल पढ़ाई के तईं तबादला खयाल करता और प्रोफेसरान से सड़क के हासिल तजुर्बे के तईं।


तो जनाब इस तरह उस लड़के ने पढ़ाई और जिंदगी के तमाम तजुर्बे हासिल किए। पर अब इस दिलचस्प लड़के की जिंदगी का वह दिलचस्प और खौफनाक मोड़ सामने आएगा जब किसी की भी जिंदगी से जज़्बाती तौर पर जुड़ जाने वाला यह बेहद प्यारा शख़्स निहायत दुनियादार और प्रेक्टिकल हो गया।


हुआ यह कि उम्र की उस दहलीज़ पर जब सपनों के सतरंगी पंखों पर सवार हो चाँद सितारों को छू लेने की ख्वाहिश जवान होने लगती है और जिंदगी में एक अदद माशूका की दरकार होती है जिसके ख़्वाब उसके ख़्वाबों से मेल खाएं, उसकी जिंदगी में भी एक ऐसी ही लड़की दाखिल हुई। फिर क्या था दोनों के पैर जमीन पर नहीं पड़ते। दो-तीन साल ही बीते जब ज़माने ने इसे लैला-मजनू, शीरी-फरहाद और हीर-रांझा का नाम दे डाला। पत्थरों, तलवारों और तमाम हथियारों से, मोहब्बत से तकरीबन महरूम बस्तियों ने, इस जोड़े का भी इस्तकबाल किया। ऐसे ही एक घरेलू हमले में वह लड़की खुदा को प्यारी हो गयी और पीछे बच गया तड़पता वह जज़्बाती शख़्स।


वर्षों वह अपने कमरे से बाहर नहीं निकला और जब निकला तो पूरी तरह बदले हुए इंसान की शक़्ल में। वह इस दुनिया से बहुत ठंढे दिमाग से बदला लेने की ख्वाहिश पाले हुआ था। पहले उसे हर जगह अच्छाई और रोशनी का समंदर बहता दिखता था जबकि अब वह इस दुनिया को अंधेरे में डूबा हुआ और नापाक महसूस करता। हर चीज़ के अंधियारे की तरफ़ देखता और मानीखेज चीज में भी मीन-मेख निकाल देता। इस तरह वह अंधेरे की ताकतों के करीब होता चला गया। पर्स में अपनी महबूबा की तस्वीर लिए बदले की भावना से वह जिंदगी बिताने लगा।


पर कहानी इतनी ही नहीं है ज़नाब, अभी तो उस लड़के की उस फरिश्ते जैसे इंसान से मुलाक़ात ही नहीं हुई जिसने उसके नज़रिए को उसके पहले के पोजीशन पर बदले रूप में ला खड़ा किया। उस फरिश्ते से इंसान का नाम राजू था। राजू चाय वाला। ऐसा ही कुछ उसके साथ भी हुआ था कुछ दूसरी शक़्ल में। उसकी माशूका की जिंदगी भी एक कमरे के अंदर तबाह हो ख़त्म हो गयी थी। वह एक निम्नमध्यवर्गीय परिवार का शख़्स था पर जाने किस हालात में राजधानी के इस बेहद पॉश इलाके में चाय बेचने को मजबूर हुआ। राजू उम्दा चाय बनाता और चाय के साथ गर्म समोसे तलता। पैसा, माल के हिसाब से ही रखता। वह तरह तरह के लोगों की तरह-तरह की बातों को सुनता और गुनता। इसी में खोया हुआ वह जिंदगी के तमाम गम ग़लत करता। बहुत कम और असरदार बोलता। 


एक दिन वह लड़का उसकी दुकान पर चाय की चुस्कियां ले रहा था। राजू ने तुरत भांप लिया की वह नया बन्दा है। लड़के ने चाय पीते और समोसे खाते क़ीमत जाननी चाही। फिर ऊंची आवाज में बोल पड़ा, 'इतनी कम कीमत और इतना उम्दा माल। तुम्हारा क्या ही फ़ायदा होता होगा?' 


 राजू पहले तो खुल कर हंसा फिर बोला, 'है न फायदा भाईजान, आप जैसे लोग मेरे रोज के मेहमान हैं।'


लड़का बोला, 'ऊँचे पाए के खिलाड़ी लगते हो। पर यहाँ इस जगह तो जो कीमत चाहते मिल जाती।' 


राजू बोला, 'अमीरी तो और छोटा मन बना देती है बरखुरदार।' 


लड़का अपने को बातों का धनी समझता पर इस राजू ने तो जैसे उसे निरुत्तर ही कर रखा हो। '


कुछ देर वह रुका फिर बोला, 'इस तरह तो तुम रात-दिन चाय बनाते ही रह जाओगे। जिंदगी में और भी तो लुत्फ हैं, फिर हाई रेट माल के  भी तो अपने कंज्यूमर हैं। वैसे भी गली का चाय वाला बन कर रहना है तो ठीक ही है।'


राजू तुरंत बोल पड़ा, ' सच्चा इश्क़ तो गलियों से ही आता है, और वैसे भी इस चाय वाले की दुकान में चाह पीने वाले ज्यादा आते हैं और मैंने तो लुत्फ़ के बीच ही आसन जमा लिया है, भाईसाहब।'


राजू की बातें वहां से जाने के बाद भी उस लड़के के जेहन में चलती रहीं। अब वह लड़का, राजू का परमानेंट ग्राहक था और ग्राहक से बढ़ कर दोस्त। वह राजू के पास लगभग रोज आता और वह लम्हा भी आया जब उसने अपनी प्रेमकहानी और उसका अंजाम बताया। राजू ने भी अपनी आपबीती सुनाई फिर जब सब कुछ समझ गया तो बोला, 'भाई आप एक बेहद नेकदिल इंसान हैं। दुनिया में मोहब्बत के साथ नफ़रत कम बेशी हरदम रही है। पर यह दुनिया हरदम दिल वालों से हारी है क्योंकि उन्हीं के पास जन्नत की चाभी होती है। केवल वे ही जन्नत का पता दे सकते हैं।' 


पर वह कहते हैं न जनाब कि ज़ख्म बातों से नहीं भरा करते बल्कि उन्हें समय हौले हौले भरता है। राजू एक बहुत खिलंदड़ी इंसान था और उसके खेल में लड़का खोता चला गया। जब भी उसे फुर्सत मिलती राजू भाई के साथ कोई नई शरारत और नया खेल चालू हो जाता। धीरे-धीरे दोस्तों और खिलंदड़ों का एक नया घेरा बन गया । कह सकते हैं कि राजू चाय वाला अब उस लड़के का नया इश्क़ था। और अरसा बाद दोनों एक नए रूप में दुनिया के सामने आए। दोनों बहुत बड़े धंधे के मालिक थे।






अनाड़ी (लप्रेक)

     

दफ़्तर की आपाधापी में जब वह उस गलियारे से गुजरता आंखें उस लड़की पर ठहर जातीं। उसे देख कर वह अनुमान लगाता कि वह कामरूप प्रदेश की रहने वाली होगी। पर सबसे ज्यादा उसका आकर्षण इस बात से जुड़ा था कि जब भी वह उसे खाली पाता, उसके हाथों में कोई साहित्यिक पुस्तक देखता। 


उसकी एक सहेली थी जो बाजदफ़ा उसे ऑफिस के फोन पर रिंग करती और तत्काल उस लड़की का नाम पुकारती। हर बार वह रांग नम्बर बताता।

    

वर्षों तक उनने उन दफ्तरों में काम किया और उस लड़की और उस लड़के के बीच एक दो बार एक दो शब्दों के सिवा कोई बात न हुई। हाँ, लड़के को प्रतिपल एहसास हुआ कि लड़की उसकी कद्र करती है और लड़का भी उसकी कद्र करने लगा था।

   

करीब तेईस साल बाद जब वे किसी और गलियारे में एक दूसरे से टकराए तो दोनों की निगाहों में वही कद्र थी। लड़का दुनियादारी समझ चुका था। उसने लड़की को छेड़ा- 'कैसी हैं?'  लड़की मुस्कराई - 'आप कैसे?'  लड़का बोला- 'किंचित सयाना।' अबकी निगाहें मिलीं, लड़की ने कुछ कहा और लड़का उसे देर तक देखता रह गया। फिर हकलाने लगा। लड़की बोली - 'प्रेम में कोई सयाना होता है?'  'अनाड़ी कहीं के!'





आज़ादी

     

एक कमरा था। अद्भुत सजावट से भरा कमरा, पूरी तरह वातानुकूलित। जुलाई का बरसाती मौसम था। बाहर पुरवइया बह रही थी। बाहर की तरफ एक दूसरा कमरा था, मौसम की मार झेलता, कोई सजावट नहीं। जहां पहले कमरे में नाना प्रकार के सुंदर और आरामदेह फर्नीचर थे वहीं दूसरी तरफ दूसरे कमरे में चौकियां और खाट। उस दूसरे कमरे से सटी एक बगिया थी जिसमें चिड़ियां चहचहातीं।


मि. पॉल और उनकी पत्नी में प्रगाढ़ प्रेम था। दोनों काफी उम्रदराज हो चले थे। उन्हें एक पल का विछोह भी काटने को दौड़ता। अक्सर सजावटी कमरे में वे दोनों दुनिया से विलग घण्टों समय बिताते। प्रेम इस कदर था की सोते जागते भी साथ साथ।

   

इधर मिस पॉल चिकित्सक के परामर्श पर दोपहर में एक घण्टे की नींद लेने लगी थीं। सोते-सोते कभी यह समय खिंच कर दो घण्टे या और ज्यादा भी हो जाता। उनके सोते समय भी मि. पॉल उसी कमरे में मोबाइल साइलेंट कर उसपर सर्फ़िंग करते और जिस किसी तरह समय काटते। ऐसी स्थिति में अक्सर उन्हें उलझन और घबराहट महसूस होती। 


तो उस दिन जब बाहर पुरवा बह रही थी और भयानक उमस भरा चिपचिपा मौसम था। मि. पॉल बीबी के सोते समय उसी कमरे में मोबाइल पर सर्फ कर रहे थे, तभी उनका मन विद्रोह कर बैठा और वह हौले से दरवाजा खोल बाहर निकल गए। फिर दूसरे कमरे में जा घुसे। बाहर के कमरे में उन्होंने देखा कि बाग से उड़ती हुई आयी एक चिड़िया अंदर जाल से टकरा घायल अवस्था में चौकी पर पड़ी है। उसके पंख चोटिल हो गए थे। मि. पॉल ने अपने नौकर को आवाज लगा उस चिड़िया की सेवा-पानी करने का आदेश दिया। बहरहाल उस पहले सजे और वातानुकूलित कमरे से यहां आ कर मि. पॉल ने लंबी गहरी सांसें लीं, चहलकदमी की और खाट पर लेट गए। अब वह बाहरी दुनिया के सम्पर्क में आ सकते थे, मतलब जो चाहे वह कर सकते थे, कहीं भी आ जा सकते थे, किसी धुन पर थिरक सकते थे, प्रकाश में कुछ भी पढ़ सकते थे और यह एहसास ही उन्हें सुख देने वाला लगा। तभी उन्होंने देखा की चिड़िया ठीक हो उड़ने के लिए तत्पर है। उन्होंने उसे बाहर लान में ले जा कर जैसे ही छोड़ा वह तत्काल उड़ चली। मि. पॉल सोचने लगे कि यह परिंदा शायद उनसे बेहतर स्थिति में है। वह तो एक ऐसी डोर में उलझे हुए हैं जिसमें उलझने के बाद बिरले ही आज़ाद हो पाते हैं।

   

तब से किसी भी मौसम में मि. पॉल को पत्नी के सोने या व्यस्त रहने पर ज्यादातर उसी दूसरे कमरे और उससे सटी बगिया में समय बिताते देखा जाता।





एक कलाकार की मौत


गल्लू मिस्त्री इलाके का मशहूर राजमिस्त्री था। कालोनी के अधिकांश मकान उसकी कारीगरी की कहानी कहते थे। अच्छे-अच्छे इन्जीनियर उसके मुरीद थे।

     

गल्लू बचपन में कागजों पर बहुत सुन्दर आकृतियां बनाता था। बड़े होने पर पेट की चिन्ता ने उसे मजदूर बना दिया। पर ज्यादा दिनों तक उसे मजदूरी नहीं करनी पड़ी। जल्द ही वह राजमिस्त्री का काम सीख गया और उसके उस्ताद ने उसे करनी पकड़ा दिया। फिर तो गल्लू की कल्पना को पर लग गया। कम जगह को भी वह अपनी कलाकारी से ऐसे सजाता कि लोग वाह-वाह करने लगते। देखते-देखते इलाके में उसकी धाक जम गयी।


पीपीगल्लू एक उम्दा इन्सान भी था। वह औरों की तरह टुच्ची बातों में रस नहीं ले पाता था। पर उसके इर्द-गिर्द ऐसे लोगों की बहुतायत थी। शुरु-शुरु में वह, फुरसत के क्षणों में, पास के एक होटल पर बैठकी किया करता था। उस जमावड़े में इलाके के तमाम छोटे-बड़े लोग शामिल होते थे। सब अपनी-अपनी शान बघारते थे और दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करते थे। निन्दा रस उस बैठकी का प्रमुख रस था। गल्लू कलाकार था और वहां किसी को इन चीजों से कोई लेना-देना नहीं था। वह नयी आकृतियों, नये फैशन आदि पर बात करना चाहता था पर वहां बात करना तो दूर कोई इन पर कुछ सुनना भी नहीं चाहता था। जल्द ही गल्लू ने वहां से किनारा कर लिया।


यूँ तो एक इंसान के बतौर गल्लू के अत्यंत संवेदनशील और उम्दा होने के अनेकों किस्से हैं पर इस एक वाकए से आप इसका अंदाज़ा सहज ही लगा सकते हैं।  एक बार की बात है, गल्लू को एक शानदार इमारत बनाने का काम मिला हुआ था। इमारत की दो मंजिलों का निर्माण हो चुका था और गल्लू तीसरी मंजिल पर मुमटी बनाने में तल्लीन था, तभी नीचे शोरगुल सुन उसका ध्यान भंग हुआ। गल्लू ने छत के किनारे से नीचे की ओर देखा तो उसे माज़रा कुछ-कुछ समझ में आया। कॉलोनी के क्रिकेट खेल रहे कुछ बच्चों को साइड का मेठ जोर-जोर से डांट रहा था और दो बच्चों को मजदूरों ने कस कर पकड़ रखा था। गल्लू दौड़ते हुए सीढ़ियों से नीचे उतरा। दरअसल नीचे की मंजिल पर दीवार में कांच का काम चल रहा था। कांच भी हाईक्वालिटी, बेल्जियम कांच थी। पास के पार्क में क्रिकेट खेल रहे एक बच्चे के शॉट से कांच में दरार आ गयी थी। बकौल मेठ इसकी पूरी कीमत मकान मालिक उससे वसूलेगा और किसी भी कीमत पर रहम नहीं करेगा। मकान मालिक पुलिस महकमे का आला अधिकारी था और उससे अनुनय-विनय करने की हिम्मत गल्लू में भी नहीं थी। मेठ का कहना था कि सारा पैसा बच्चों के घर वालों से वसूला जाएगा। बैटिंग करने वाले बच्चे का चेहरा डर से स्याह पड़ गया था। वह मेठ से प्रार्थना कर कर थक चुका था और उसकी आँखों के आँसू भी सूख चुके थे। कारण यह कि उसके पिता एक खुर्राट ठेकेदार थे और अकारण ही बीबी बच्चों को जब तब पीटा करते थे। गल्लू कॉलोनी के इन इज्जतदार लोगों की असलियत से पूरी तरह वाकिफ़ था और अब अचानक इन बच्चों के बीच ख़ुद को एक बच्चे की तरह महसूस करने लगा। उसने बैट्समैन की पीठ पर भरोसे का एक हाथ रखा और तत्क्षण वह बच्चा गल्लू से लिपट सिसक-सिसक रोने लगा। फिर गल्लू ने मेठ को किनारे ले जा उससे अगले दिन वही बेल्जियम कांच ख़रीद कर ला देने का वादा किया, तब जा कर बच्चों को मुक्ति मिली। गल्लू ने बच्चों को खेल के लिए कॉलोनी के उत्तर तरफ एक दूसरा बड़ा खाली पार्क सुझाया और मन ही मन देर तक मकान मालिक को बद्दुआएं देता हुआ ऊपर चला गया।


एक दिन गल्लू को पता चला कि शहर में इंजीनियरों का एक ऐसा क्लब है जहां वे आधुनिक निर्माण कला पर घण्टों चर्चा किया करते हैं। वह बहुत उत्साहित हुआ। जल्दी फल्दी में बिना सोचे-विचारे उसने अपना अब तक का सबसे अच्छा कपड़ा पहन उस क्लब में जाने का निश्चय किया। उसकी बीबी भी आज गल्लू को खुश देख प्रसन्नचित्त थी। उसने गल्लू के लिए मोटी-मोटी रोटियों की पोटली तैयार कर दिया। गल्लू का मन तरंगित था और वह ढूंढते-ढूंढते कब उस क्लब के दरवाजे तक जा पहुंचा इसका उसे ख़ुद अंदाज़ा नहीं आया। जैसे ही उसने अंदर घुसना चाहा एक आधुनिका की निगाहें उस पर पड़ गईं। उसने वॉचमैन को डांटते हुए फरमाया की उसने ऐसे दो कौड़ी के पगलेट कम्बख़्त पर नज़र क्यों नहीं रखी। उसके पतिदेव जो उस शहर के आला दर्ज़े के इंजीनियर माने जाते थे उन्होंने भी नाक भौं सिकोड़ते वॉचमैन को उसकी गलती के लिए कड़ी हिदायत दी कि आगे से ऐसी गलती करने पर उसे तत्काल निकाल बाहर किया जाएगा। तभी एक दो और इंजीनियर आ गए और गल्लू का इरादा जानने के बाद वह गलियारा ठहाकों से गूंज उठा। गल्लू चकराया और इस प्रतिक्रिया पर उसके सारे उत्साह पर ठंडा पानी पड़ गया और धीरे-धीरे मानो उसकी चेतना सुन्न पड़ने लगी। वह भारी मन और अत्यंत बोझिल पांवों के साथ घर की तरफ चल पड़ा।

    

काम के बाद अब गल्लू प्रायः अकेले देखा जाता। इस अकेलेपन से ऊब कर वह नशे की दुनिया में चला गया। देशी दुकान से पव्वा लाता और छान कर पूरी दुनिया को गरियाता। उसे कोई ऐसा नहीं मिलता जो उसकी कलाकारी को और परवान चढ़ाता। उसे अपने आस-पास की दुनिया बेढंगी लगती। वह दिनों-दिन अपने को निहायत अकेला महसूस करता और नये-नये नशे की गिरफ्त में फंसता चला जाता। अब वह धुंआधार बीड़ी भी पीता।

   

एक दिन गल्लू की जीभ पर एक दाना निकल आया। उसने पास के एक डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने कैन्सर होने का शुबहा किया। और इस तरह गल्लू जैसा उम्दा इन्सान इस दुनिया से असमय ही चला गया।



(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)



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मोबाइल : 9454411777



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