गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज़ की कहानी 'संत'


गेब्रियल गार्सिया मार्खेज़


गेब्रियल गार्सिया मार्खेज़ (6 मार्च 1927–17 अप्रैल 2014) कोलॉम्बियाई लेखक थे जिन्हें 1982 में नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। मार्खेज़ को 20वीं शताब्दी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण लेखकों में से एक माना जाता है। वे अपने जादुई यथार्थवाद की शैली के लिए खास तौर पर जाने जाते हैं। वामपंथी विचारधारा की ओर झुकाव के कारण उन पर अमेरिका और कोलम्बिया सरकारों द्वारा देश में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उनका प्रथम कहानी-संग्रह 'लीफ स्टार्म एंड अदर स्टोरीज' 1955 में प्रकाशित हुआ। 'नो वन नाइट्', 'टु द कर्नल एंड अदर स्टोरीज' और 'आइज़ ऑफ ए डॉग' श्रेष्ठ कहानी संग्रह है। उनके उपन्यास 'सौ साल का एकांत' (वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सालीच्यूड) को 1982 में नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। 17 अप्रैल 2014 को 87 वर्ष की उम्र में मैक्सिको नगर में उनका निधन हो गया।

मार्खेज़ ने लेखन की तकनीकें काफ्का, मिखाइल बुल्गाकोफ, एर्नेस्ट हेमिंग्वे, वर्जीनिया वुल्फ और जेम्स जॉयस जैसे लेखकों से हासिल की थीं। दोस्तोएव्स्की, मार्क ट्वेन और एडगर एलन पो का असर भी उन पर रहा है। डॉन क्विजोट का आख्यान उनका एक सबक है। साइमन बोलीवर उनके कथानकों के महानायकों में दिखते रहते हैं। मार्खेज़ के लेखन का सबसे बड़ा खजाना है उनकी स्मृतियां, बचपन की स्मृतियां, जहां उनका ननिहाल है। नाना-नानी हैं, मां है, मौसियां हैं, आयाएं और दाइयां हैं। एक पूरा कस्बा है। लोग हैं और दोस्त हैं। कवि प्रतुल जोशी ने उनकी कहानी सन्त का उम्दा हिन्दी रूपांतरण किया है। यह कहानी उस मार्गारितो दुआर्ते की है जो अपनी मृत बेटी को सन्त घोषित कराने के लिए अपना वतन कोलंबिया छोड़ कर रोम आ जाता है लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद उसे सफलता नहीं मिल पाती। कहानी की बुनावट कसी हुई है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज़ की मूल स्पैनिश कहानी The Saint का अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद। 



'संत'


गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज़

(अनुवादक-प्रतुल जोशी)


मैंने बाईस साल बाद मार्गारितो दुआर्ते को त्रास्तेवेरे की एक संकरी एकांत सड़क पर देखा, तो सहसा उसे पहचान नहीं पाया, क्योंकि वह अटक अटक कर स्पेनिश भाषा बोल रहा था और पुराने ज़माने का कोई रोमवासी लग रहा था। उसके सिर के बाल सफ़ेद हो चुके थे और काफ़ी कम रह गये थे। जब वह पहली बार रोम आया था, शोक मनाने के लिए पहने जाने वाले वस्त्रों था और हाव-भाव से बड़ा धीर गंभीर कोलंबियाई बुद्धिजीवी लगता था। अब उसमें वैसा कुछ नहीं रह गया था। लेकिन अपनी बातचीत के दौरान मैंने धीरे-धीरे उसे उस कपट-जाल से बाहर निकाल लिया, जो बीते हुए वर्षों ने उसके ऊपर डाल दिया था और यह मुझे वैसा ही लगने लगा जैसा वह पहले थाः रहस्यमय, अविश्वसनीय और किसी संगतराश की तरह दृढ निश्चयी। अपने पुराने दिनों के एक चायघर में, कॉफ़ी के दूसरे प्याले से पहले, मैंने साहस करके वह प्रश्न उससे पूछ ही लिया, जो मुझे भीतर से कुतर रहा था।


"संत का क्या हुआ?"


"संत वहीं हैं।" 


उसने उत्तर दिया, "प्रतीक्षा में।"


उसके उत्तर की मानवीय गुरुता को मैं और गायक राफेल रिबेरो सिल्वा ही समझ सकते थे। उसके नाटक को हम इतनी अच्छी तरह जानते थे कि मैं वर्षों यह सोचता रहा कि मार्गारितो दुआर्ते एक ऐसा चरित्र है, जो एक लेखक की तलाश में है। हम उपन्यासकार जीवन भर ऐसे चरित्र की तलाश में रहते हैं, जो हमारी तलाश में हो। मगर मैंने उसे कभी इजाज़त नहीं दी कि वह मुझे पा सके, क्योंकि उसकी कहानी का अंत मुझे अकल्पनीय लगता था।


वह उस खिले हुए वसंत में रोम आया था, जब बारहवें पोप पायस पर हिचकियों का ऐसा दौरा पड़ा था कि उनकी उस बीमारी को न तो आधुनिक चिकित्सक दूर कर पा रहे थे और न ही झाड़-फूंक करने वाले ओझा-गुनिया। वह पहली बार कोलम्बिया की एंडीज़ पर्वतमालाओं में बसे अपने गाँव तोलिमा से जुदा हुआ था और यह तथ्य इतना प्रत्यक्ष था कि उसके सोने के तरीक़े तक में दिखायी देता था। एक सुबह वह हमारे वाणिज्यिक दूतावास पर नमूदार हुआ। उसके हाथ में देवदार की लकड़ी से बनी, पॉलिश से चमचमाती और वायलिन के बक्से के आकार-प्रकार वाली एक पेटी थी। उसने राजदूत को अपने आने का जो कारण बताया, उसे सुन कर राजदूत चकित रह गये। उन्होंने अपने देशवासी गायक राफेल रिबेरो सिल्वा को फोन कर के उसके रहने की व्यवस्था उस वासे में करने को कहा, जहाँ हम दोनों रहते थे। इस तरह मार्गारितो दुआर्ते से मेरी पहली मुलाक़ात हुई।


मार्गारितो दुआर्ते ने प्राइमरी स्कूल से आगे पढ़ाई नहीं की थी, लेकिन अक्षरों से उसे बड़ा मोह था और छपी हुई कोई भी चीज़ हाथ लग जाने पर वह बड़े चाव से उसे पढ़ डालता था, इसलिए वह काफी व्यापक शिक्षा पा गया था। अठारह साल की उम्र में, जब वह गांव में क्लर्क था, उसने एक ख़ूबसूरत लड़की से शादी की, जिसने पहली संतान के रूप में एक बेटी को जन्म दिया। बेटी को जन्म देने के कुछ ही दिन बाद वह महिला चल बसी। फिर बेटी भी, जो अपनी माँ से ज़्यादा सुंदर थी, सात साल की उम्र में एक तेज़ बुख़ार के कारण मर गई। लेकिन मार्गारितो दुआर्ते की वास्तविक कहानी उसके रोम आने के छह महीने पहले शुरू हुई थी, जब एक बांध के निर्माण के चलते उसके गाँव के क़ब्रिस्तान को स्थानांतरित करने की बात आयी। 


मार्गारितो ने उस क्षेत्र के अन्य निवासियों की भाँति अपने मृतकों के कंकालों को नये कब्रिस्तान में ले जाने के लिए खोदा। उसकी पत्नी ख़ाक में बदल चुकी थी। लेकिन पत्नी की क़ब्र के पास वाली क़ब्र में उसकी बेटी ग्यारह साल बाद भी ज्यों की त्यों थी। इतना ही नहीं, लोगों ने जब उसके ताबूत का ढक्कन खोला, तो उसमें से उन ताज़े गुलाबों की ख़ुशबू आ रही थी, जिनके साथ उस लड़की को दफ़नाया गया था। लेकिन सबसे ज़्यादा आश्चर्यचकित करने वाली बात यह थी कि लड़की का शरीर बिल्कुल भारहीन था।


इस चमत्कार की ख़बर ज़ोर-शोर से फैली और उससे आकर्षित हो कर उत्सुकता के मारे सैकड़ों लोग गाँव में आने लगे। लड़की के शव का अक्षय रहना इस बात का असंदिग्ध प्रमाण था कि वह साधारण मनुष्य नहीं, बल्कि संत थी। किसी को इसमें संदेह नहीं था। यहाँ तक कि उस प्रदेश का बिशप भी इस बात से सहमत हो गया कि इस चमत्कारी लड़की को वेटिकन भेज कर उसके संत होने का निर्णय करा लेना चाहिए। अतः लोगों ने सार्वजनिक रूप से चंदा जमा किया, ताकि मार्गारितो दुआर्ते रोम की यात्रा कर सके और वहाँ जा कर एक ऐसे उद्देश्य के लिए लड़ाई लड़ सके, जो अब केवल उसका अपना नहीं था, या उसके गाँव तक ही सीमित नहीं रह गया था, बल्कि एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गया था।


पेरिओली के शांत इलाके में स्थित उस वासे में, जहाँ हम रहा करते थे, मार्गारितो दुआर्ते ने अपनी कहानी सुनाने के बाद उस सुंदर पेटी का ताला खोला और उसका ढक्कन ऊपर उठाया। इस प्रकार गायक रिबेरो सिल्वा और मैं उस चमत्कार के प्रत्यक्षदर्शी बने। वह कहीं से भी दुनिया के बहुत सारे संग्रहालयों में रखे दिखायी देने वाले सूखे मुरझाये प्राचीन शवों जैसी नहीं लग रही थी, बल्कि एक लम्बे समय तक ज़मीन के अंदर रहने के के बावजूद दुल्हन की तरह सजी हुई एक छोटी सी लड़की लग रही थी, जो मानो अभी सो रही हो। उसकी त्वचा चिकनी तथा ऊष्मायुक्त और उसकी खुली हुई स्वच्छ आँखें ऐसा असहनीय प्रभाव पैदा करती थीं, जैसे वे मृत्यु के पार से हमें देख रही हों। उसके साटन के कपड़े और सिर पर पहनाये गये ताज की कृत्रिम नारंगी कलियां तो वक्त की मार नहीं झेल पायीं थीं, लेकिन गुलाब के जो फूल उसके हाथों में रखे गये थे, ये अभी तक ताज़े थे। और यह बात भी वस्तुतः सच थी कि उसमें कोई भार नहीं था, क्योंकि पेटी में से शव को बाहर निकाल लेने पर भी पेटी के वज़न में कोई फ़र्क नहीं आया था।


मार्गारितो दुआर्ते ने रोम पहुंचने के दूसरे दिन से ही अपनी बेटी को संत घोषित कराने के काम को अंजाम देना शुरू कर दिया था। पहले उसने यह काम कूटनीतिक लोगों की मदद से किया, जो दयालु तो थे, पर कार्यकुशल नहीं थे। फिर जब उसने देखा कि वेटिकन ने उसके मार्ग में अनगिनत बाधाएं खड़ी कर रखी हैं तो वह अपने दिमाग में आने वाली हर रणनीति के मुताबिक काम करने लगा। वह जो भी क़दम उठाने जा रहा होता, उसके बारे में हमेशा चुप्पी साधे रहता। मगर हम जानते थे कि वह कोशिशें तो कई तरह की कर रहा है, पर उनसे कुछ भी होने वाला नहीं है। वह जितने भी धार्मिक समागमों और लोकोपकारी संस्थानों का पता लगा सका, उन्हें अपनी राम कहानी सुनाता रहा और वे उसे ध्यान से मगर आश्चर्यचकित हुए बिना सुनते भी रहे, उन्होंने इस मामले में तुरंत क़दम उठाने के वादे भी किये, लेकिन किया कुछ भी नहीं। बात यह थी कि वह समय इस काम के लिए अनुकूल नहीं था। पोप के ऊपर हिचकियों का दौरा पड़ा हुआ था और जब तक पोप अपनी इस बीमारी से उबर न जायें, तब तक के लिए उनसे सम्बन्धित वे सभी कार्य, जिन पर उनकी पावन मुहर का लगना जरूरी था, स्थगित कर दिये गये थे। लेकिन पोप की हिचकियां थीं कि बन्द होने में भी नहीं आ रही थीं। उन पर न तो आधुनिक औषधियों का कोई असर हो रहा था और न ही तरह-तरह के उन जादुई उपचारों का, जो सारी दुनिया से उनके लिए भेजे जा रहे थे।

 

आख़िरकार जुलाई के महीने में बारहवें पोप पायस अपनी बीमारी से उबरे और गर्मी की छुट्टियां बिताने के लिए कास्टेल गांडोल्फो1 चले गये। मार्गारितो पोप की पहली साप्ताहिक सभा में अपनी बेटी के शव के साथ वहां जा पहुँचा। उसे उम्मीद थी कि वह पोप से यह निर्णय करा सकेगा कि उसकी बेटी संत है। पोप भीतरी आँगन की एक बालकनी में प्रकट हुए जो इतनी नीची थी कि मार्गारितो उनके चमकदार नाख़ुन देख सकता था और उनके द्वारा इस्तेमाल किये गये इत्र की महक सूंघ सकता था। मार्गारितो को उम्मीद थी कि पोप हर देश से उनके दर्शन करने आये श्रद्धालुओं के बीच घूमेंगे। लेकिन पोप ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने एक ही वक्तव्य छह भाषाओं में दोहराया और सबको एक सामान्य आशीर्वाद दे कर चले गये।




मार्गारितो का मामला टलता ही जा रहा था। आख़िरकार उसने स्वयं ही कुछ करने का निश्चय किया और राज्य सचिवालय को लगभग साठ पृष्ठ लम्बा पत्र लिख कर दे आया। लेकिन उसे उस पत्र का कोई उत्तर नहीं मिला। इसका अंदाज़ा उसे पहले से ही था, क्योंकि जिस अधिकारी ने उसके हस्तलिखित पत्र को तमाम ज़रूरी औपचारिकताओं का पालन करते हुए प्राप्त किया था उसने मृत बालिका पर एक सरकारी नजर डालने की कृपा करने के अलावा कुछ नहीं किया था और समीप से गुज़रते हुए क्लकों ने भी उसे देख कर उसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी थी। उनमें से एक ने मार्गारितो को बताया कि पिछले साल दुनिया के विभिन्न हिस्सों से उन्हें आठ सौ से ज्यादा पत्र मिले हैं, जिनमें दफ़नाये जा चुके शवों के ज्यों के त्यों बने रहने के आधार पर मृतकों को संत घोषित किये जाने का अनुरोध किया गया है। आख़िरकार मार्गारितो ने अनुरोध किया कि उसकी बेटी के शव की भारहीनता की जाँच कर ली जाये। अधिकारी ने उसके अनुरोध पर शव की जाँच तो की, लेकिन उसे भारहीन मानने से इनकार कर दिया। उसने कहा, "अवश्य ही यह एक सामूहिक सम्मोहन का मामला है।"


अपने ख़ाली समय में, और गर्मियों के ख़ुश्क रविवारों को, मार्गारितो अपने कमरे में ही रहता और ऐसी कोई भी किताब पढ़ता रहता, जो उसे अपने उद्देश्य के लिए प्रासंगिक मालूम होती। हर महीने के अंत में, अपनी ही पहल पर, वह एक कापी में अपने ख़र्चों का विस्तृत हिसाब लिखा करता, ताकि वह अपने गाँव के उन लोगों को, जिन्होंने चंदा दे कर उसे रोम भेजा था, अब तक के ख़र्च का एकदम ठीक और पूरा ब्यौरा भेज सके। उसकी लिखावट किसी सीनियर क्लर्क के उत्कृष्ट सुलेख जैसी थी। वर्ष पूरा होते-होते वह रोम के भूगोल से इस तरह परिचित हो गया, मानो वहीं पैदा हुआ हो, वह ऐसी धाराप्रवाह तथा सारगर्भित इतालवी बोलने लगा, जैसी वह अपनी कोलंबियाई स्पेनिश बोलता था, और उसे इस बात की अच्छी-ख़ासी जानकारी भी हो गई कि किसी को संत घोषित कराने के लिए किन-किन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। लेकिन उसे शोक प्रकट करने वाली अपनी पोशाक, अपनी बंडी और न्यायाधीशों का सा अपना हैट बदलने में इससे कहीं ज़्यादा वक़्त लगा। ये चीजें उस समय के रोम में उन गुप्त संस्थाओं की ख़ास पहचान मानी जाती थी, जो अपने उद्देश्य कभी नहीं बताती थीं।


वह सबेरे सबेरे संत वाली पेटी के साथ निकल पड़ता और कभी-कभी रात को बहुत देर से लौटता बेहद थका हुआ और उदास, लेकिन हमेशा रोशनी की एक चमक के साथ, जो उसे अगले दिन के लिए नये साहस से भर देती।


"संत अपने समय में जीते हैं।" वह कहा करता।


मैं रोम पहली बार आया था और एक्सपेरिमेंटल फिल्म सेंटर में अध्ययन कर रहा था। मैंने उसकी मानसिक वेदना को अविस्मरणीय सघनता के साथ जिया था। हमारा वासा वास्तव में एक आधुनिक अपार्टमेंट था, जो विला बोर्गीज़ पार्क और चिड़ियाघर से कुछ ही दूरी स्थित था। उसके दो कमरों में मकान मालकिन स्वयं रहती थी और चार कमरे उसने विदेशी छात्रों को किराये पर उठा रखे थे। हम उसे बेला मारिया कह कर बुलाते थे। वह अपनी प्रौढ़ावस्था में भी सुन्दर थी, लेकिन तुनकमिज़ाज थी और इस पवित्र नियम का हमेशा पालन करती थी कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कमरे का पूरा बादशाह होता है। मगर वासे की रोज़मर्रा ज़िंदगी का बोझ वास्तव में उसकी बड़ी बहन मौसी एंतोनिएत्ता उठाती थी, जो बिना पंखों वाले देवदूत की तरह अपनी बाल्टी और झाडू लिये अपार्टमेंट में दिन भर इधर से उधर घूमती रहती और संगमरमर के फ़र्श को जितना संभव था, उससे भी ज़्यादा चमकाती रहती। उसी ने हम लोगों को छोटी चिड़ियाँ खाना सिखाया था, जिन्हें उसका पति बार्तोलिनो पकड लाया करता था। बार्तोलिनो को यह बुरी लत युद्ध के दौरान लगी थी। और अंततः जब मार्गारितो, बेला मारिया के मकान में रहने का खर्च उठाने में असमर्थ हो गया था, मौसी एंतोनिएत्ता उसे अपने घर ले गयी थी। उसके घर में बेला मारिया का सा कोई नियम-कानून नहीं चलता था और यह बात मार्गारितो के स्वभाव के सबसे ज्यादा अनुकूल थी।


उस अपार्टमेंट में हमें हर समय कोई न कोई चीज़ चकित करती रहती थी। यहाँ तक कि सुबह सबेरे हम लोगों को नींद विला बोर्गीज़ चिड़ियाघर के शेर की डरावनी दहाड़ सुन कर टूटा करती। गायक रिबेरो सिल्या ने यह विशेषाधिकार प्राप्त कर रखा था कि सुबह जल्दी उठ कर जब वह गाने का रियाज़ करेगा, तो कोई रोमवासी उस पर आपत्ति नहीं करेगा। वह छह बजे उठता, औषधियुक्त बर्फीले पानी से नहाता, शैतान की सी अपनी दाढ़ी और भौंहों को संवारता और रंगीन चेक वाला अपना ऊनी गाउन पहन कर, चीनी रेशम का स्कार्फ बाँध कर, अपना पसंदीदा सेंट शरीर पर छिड़क कर पूरी तरह तैयार हो जाने के बाद ही गाने का अभ्यास करने बैठता और तन-मन से उसमें डूब जाता। जाड़े के दिनों में भी। जब तारे आसमान में अभी भी टिमटिमा रहे होते, वह अपने कमरे की खिड़की पूरी तरह खोल देता और गाना शुरू कर देता। पहले वह महान प्रेमगीतों की तानें एक-एक करके धीरे-धीरे छेड़ता और फिर पूरे जोश में आ कर एकदम गला खोल कर गाने लगता। रोज़ाना का यह क्रम था कि जब उसका गाना सबसे ऊँचे सुर पर पहुँचता, विला बोर्गीज़ का शेर धरती को दहला देने वाली अपनी दहाड़ से उसको जवाब देता।


"अरे बेटा, तुम तो संत मार्क के अवतार हो।" मौसी एंतोनिएत्ता सचमुच चकित हो कर कह उठतीं, "एक वही थे, जो शेरों से बात कर सकते थे।"


लेकिन एक दिन उसके गाने का जवाब शेर की दहाड़ ने नहीं दिया। उसने ऑथेलो से एक युगल प्रेमगीत गाना शुरू किया "मध्यरात्रि में है इतना अंधकार, कि इस अंधकार में है हर दुख समाप्त।" और हमने सुना कि नीचे आँगन में से एक ऊँचा किंतु मधुर स्त्री-स्वर उत्तर दे रहा है। रिवेरो गाता रहा और दोनों आवाज़ों ने पूरा टुकड़ा गाया, जिसे सुन कर सारे पड़ोसी खुश हुए। उन सबने अप्रतिरोध्य प्रेम की इस प्रचंड धारा से अपने घरों को पवित्र करने के लिए अपनी खिड़कियां खोल दीं। रिबेरो को जब पता चला कि गायन में उसका साथ देने वाली उसकी अदृश्य डेस्डिमोना2 और कोई नहीं, बल्कि महान गायिका मारिया कैनिगलियां हैं, तो वह लगभग बेहोश हो गया।


मुझे लगता है कि इस घटना ने मार्गारितो दुआर्ते को उस मकान के जीवन में शामिल होने के लिए एक न्यायसंगत कारण प्रदान किया। तब से वह हम सबके साथ एक ही मेज़ पर बैठने लगा, जबकि पहले वह रसोईघर में बैठा करता था, जहाँ मौसी एंतोनिएत्ता लगभग हर दिन छोटी चिड़िया का बड़ी कुशलता से सिझाया गया मांस उसे खिलाने की कृपा किया करती। जब हम भोजन कर चुकते, बेला मारिया हमें इतालवी स्वर विज्ञान सिखाने के लिए दैनिक अख़बारों को बोल बोल कर पढ़ा करती और ख़बरों पर चुटकियां लेते हुए ऐसी अजब-ग़ज़ब टिप्पणियां करतीं कि हमारी ज़िंदगी ख़ुशगवार हो जाती।


एक दिन संत के संदर्भ में उसने हमें बताया कि सिसली द्वीप के पालेरमो नगर में एक बहुत बड़ा संग्रहालय है, जिसमें पुरुषों, स्त्रियों, बच्चों और बहुत सारे पादरियों के भी ऐसे अक्षय शव रखे हुए हैं, जो बरसों से ज्यों के त्यों हैं और कभी भी ख़राब होने वाले नहीं हैं। वे सारे शव कैप्रचिन संप्रदाय के एक ही क़ब्रिस्तान से खोद कर निकाले गये हैं। इस ख़बर ने मार्गारितो को इतना परेशान किया कि जब तक हम लोग पालेरमो नहीं गये, वह एक क्षण भी चैन से नहीं रह सका। लेकिन उन अज्ञात शवों की उत्पीड़नकारी क़तारों पर एक उचटती-सी नज़र डाल लेना ही उसे एक सांत्वनादायक निर्णय पर पहुंचने के लिए काफी था।

 

'ये उस तरह के नहीं है।" उसने कहा, "आप इन्हें देखते ही कह सकते हैं कि ये लोग मर चुके हैं।"


अगस्त की गर्मियों में दोपहर के भोजन के बाद रोम अपनी जड़िमा में डूब जाता। अपराह्न में सूरज आसमान के बीचों बीच स्थिर हो जाता और दो बजे की नीरवता में पानी की आवाज़ के सिवा, जो रोम की प्राकृतिक आवाज़ है। कुछ भी सुनायी न पड़ता। लेकिन सात बजते न बजते खिड़कियां पूरी तरह खोल दी जातीं, ताकि बहना शुरू कर चुकी ठंडी हवा को भीतर बुलाया जा सके और भडभड़ाती मोटरसाइकिलों, रबूज़े बेचने वालों की ऊँची आवाज़ों और छतों पर फूलों के बीच गाये जाते प्यार के गीतों के शोर में एक प्रफुल्लित भीड़, ज़िंदा रहने के एकमात्र प्रयोजन के साथ सड़कों पर उतर पड़ती।


गायक रिबेरो और मैं दोपहर में आराम नहीं करते थे। वह अपने वेस्पा स्कूटर पर मुझे पीछे बिठा कर बाहर निकल पड़ता और हम विला बोर्गीज़ के पार्क में सैकड़ों साल पुराने चंपा के पेड़ों के नीचे मंडराती ग्रीष्मकालीन कमसिन वेश्याओं के लिए आइसक्रीम और चॉकलेट ले जाते, जो भरी दुपहरी में भी न सोने वाले सैलानियों की ताक में रहतीं। वे उन दिनों की ज़्यादातर इतालवी औरतों की तरह सुंदर, ग़रीब और स्नेहिल होतीं। नीले मलमल के, गुलाबी पॉपलीन के या हरे लिनेन के कपड़े पहने रहती और उन छातों की मदद से ख़ुद को धूप से बचाती, जो हाल के युद्ध में गोलियों की बौछार से छलनी हो चुके थे। उनके साथ रहना एक मानवीय सुख होता, क्योंकि वे हमारे लिए अपने धंधे के उसूलों को नज़रअंदाज़ कर देतीं और एक अच्छा ग्राहक खो देने की क़ीमत पर भी हमारे साथ कोने में बने बार में बैठ कर काफी पीते हुए बतियाने या हमारे साथ घोड़ागाड़ी में बैठ कर पार्क के राजपथों में घूमने की अय्याशी कर लेतीं, या गद्दी से उतार दिये गये उन राजाओं और उनकी उदास रानियों के क़िस्से सुना कर हमें दया से भर देतीं, जो शाम के समय पार्क के राजपथों पर घुड़सवारी करने के लिए निकलते थे। कभी-कभी हमें उनके दुभाषिये का काम भी करना पड़ता था, जब कोई भटका हुआ विदेशी उनसे रास्ता पूछता और वे उसकी भाषा न जानने के कारण उसे रास्ता न बता पातीं।


लेकिन हम मार्गारितो दुआर्ते को विला बोर्गीज़ में उनके कारण नहीं ले गये थे। हम उसे वहाँ का शेर दिखाना चाहते थे। शेर किसी पिंजरे में नहीं, बल्कि मुक्त अवस्था में, एक गहरी खाई के बीच बने रेतीले द्वीप पर रहता था। ज्यों ही खाई के दूरवर्ती छोर पर खड़े हम लोगों को उसने देखा, वह इस कदर उत्तेजित हो कर दहाड़ने लगा कि उसका रखवाला भी चकित हो गया। पार्क में घूमने आये लोग भी आश्चर्यचकित हो कर वहीं आ जुटे। गायक रिबेरो ने सुबह के गाने के रियाज़ के वक़्त की सी सबसे ऊँची आवाज़ में गा कर, जिसे सुन कर शेर दहाड़ा करता था, अपनी पहचान कराने की कोशिश की। लेकिन शेर ने उसको कोई तवज्जो नहीं दी। ऐसा लग रहा था कि वह कोई भेदभाव किये बिना हम सब पर दहाड़ रहा है, लेकिन उसका रखवाला जानता था कि वह केवल मार्गारितो के लिए दहाड़ रहा था। यह सच था। मार्गारितो जिधर भी बढ़ता, शेर भी उधर ही बढ़ता और ज्यों ही मार्गारितो उसकी नज़रों से ओझल होता, वह दहाड़ना बंद कर देता। उसका रखवाला कोई मामूली आदमी नहीं था। उसने सिएना विश्वविद्यालय से क्लासिकल साहित्य में डॉक्टरेट ले रखी थी। उसने सोचा कि मार्गारितो उस दिन अन्य शेरों के साथ रहा होगा और अपने साथ उनकी गंध लिये होगा, जिसके कारण वह शेर दहाड़ रहा है। उसका ऐसा सोचना सही नहीं था, लेकिन वह उसके सिवा कोई और कारण सोच ही नहीं पा रहा था। उसने कहा, "जो भी हो, ये दहाड़ें सहानुभूति की हैं, लड़ाई की नहीं।"




लेकिन गायक रिबेरो को जिस चीज़ ने सबसे ज़्यादा झकझोरा, वह यह अलौकिक घटना नहीं, बल्कि मार्गारितो का अजीब उलझन भरा व्यवहार था, जो उसने तब किया, जब हम पार्क में लड़कियों से बात करने के लिए रूके थे। रिबेरो ने खाने की मेज़ पर इस बात का ज़िक्र किया और हम सभी मार्गारितो का अकेलापन दूर करने का कोई उपाय करने की बात पर सहमत हुए-गोकि हममें से कुछ लोग उससे सहानुभूति रखते थे और कुछ सिर्फ शरारत करना चाहते थे। हमारी कोमल भावनाओं से विह्वल होकर बेला मारिया ने अपने हाथ, जो नकली पत्थरों वाली अँगूठियों से भरे हुए थे, अपनी छाती पर रख लिये, जो बाइबिल की किसी सठियाई हुई कुल-माता की-सी छाती थी।


'मैं यह काम सिर्फ दया भावना से करूँगी। उसने कहा, 'बाकी मैं उन लोगों को कभी बर्दाश्त नहीं कर सकती, जो बंडी पहनते हैं।"


इस तरह हुआ यह कि रिबेरो अपने वेस्पा पर सवार हो कर दिन के दो बजे विला बोर्गीज़ गया और एक नौजवान छम्मकछल्लो के साथ लौटा, जो उसे मार्गारितो दुआर्ते के साथ एक घंटे का समय अच्छी तरह गुज़ार सकने वाली लडकी के लिहाज़ से सबसे अच्छी लगी थी। उसने अपने शयनकक्ष में ले जा कर लड़की के कपड़े उतारे, उसे सुगंधित साबुन से नहलाया, उसका बदन पोंछा, अपने निजी परफ्यूम से उसे सुवासित किया और दाढ़ी बनाने के बाद लगाये जाने वाले कर्पूरयुक्त पाउडर को उसके पूरे शरीर पर छिड़का। इसके बाद उसने लड़की को पैसे चुकाये अभी तक जो समय बीत चुका था, उसके, और आगे के एक घंटे के भी और क़दम-दर-क़दम समझाया कि उसे क्या करना है।


तब उस नग्न सुंदरी ने, दोपहर की नींद के सपने की भाँति, मायावी से मकान में दबे पाँव चलते हुए पिछवाड़े के शयनकक्ष के दरवाज़े पर जा कर हौले-हौले दो थापें दीं और मार्गारितो दुआर्ते प्रकट हुआ-नंगे पाँव और कमीज़ पहने बिना।


"नमस्ते, नौजवान!" स्कूल में पढ़ने वाली लड़की जैसी आवाज़ और उसी जैसे हाव-भाव के साथ वह बोली। "मुझे गायक ने यहाँ भेजा है।"


मार्गारितो ने बडी गरिमा के साथ इस झटके को झेला और उसके लिए दरवाज़ा पूरा खोल दिया। वह अंदर आकर बिस्तर पर लेट गयी, जबकि मार्गारितो अपनी कमीज़ और जूते पहनने के लिए दौड़ा, ताकि समुचित आदर के साथ उसका स्वागत कर सके। इसके बाद वह उसके समीप एक कुर्सी डाल कर बैठ गया और उससे बातें करने लगा। हक्की बक्की उस लड़की ने उससे जल्दी करने को कहा, क्योंकि उनके पास केवल एक घंटे का समय था। लेकिन मार्गारितो उसका अभिप्राय समझता हुआ सा नहीं लगा।


बाद में उस लड़की ने कहा कि वह जैसे भी चाहता और जितना भी चाहता, उतना वक्त वह उसे दे देती और बदले में एक पैसा न लेती, क्योंकि उससे बेहतर व्यवहार करने वाला व्यक्ति पूरी दुनिया में कहीं भी नहीं हो सकता। मगर उस वक़्त, जब उसकी समझ में नहीं आया कि वह क्या करे, उसने कमरे में चारों तरफ़ नज़र दौड़ायी और फ़ायरप्लेस के समीप वह लकड़ी की पेटी देखी। उसने पूछा, क्या यह सेक्सोफोन है? मार्गारितो ने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन खिड़की पर पड़ा काला परदा हटा दिया, ताकि थोडी रोशनी अंदर आ सके। इसके बाद उसने पेटी उठायी और बिस्तर के पास ले जा कर उसका ढक्कन खोल दिया। लड़की ने कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन उसका मुँह खुला का खुला रह गया। या जैसा कि उसने बाद में हमें बताया, "मेरी तो पिछाड़ी ही जम गयी थी।" वह आतंकित हो कर वहां से भाग खड़ी हुई, हॉल में रास्ता भूल गयी और मौसी एंतोनिएत्ता के कमरे में जा घुसी, जो उस समय मेरे कमरे के लैंप का वल्ब बदलने के लिए आ रही थी। वे दोनों इतना डर गयीं कि वह लड़की गायक रिबेरो के कमरे से तब तक नहीं निकली, जब तक ख़ूब रात नहीं हो गयी।  


मौसी एंतोनिएत्ता को कभी पता नहीं चला कि वास्तव में हुआ क्या था। यह मेरे कमरे में इतनी डरी हुई आयी कि उनके हाथ बुरी तरह काँप रहे थे और वह लैंप का बल्ब नहीं बदल पा रही थी। मैंने उनसे पूछा, क्या गड़बड़ है, तो उसने कहा, "इस मकान में भूत रहते हैं, जो अब दिन-दहाडे दिखने लगे हैं।" उसने मुझे पूरे विश्वास के साथ बताया कि जिस कमरे में गायक रहता है, उसमें युद्ध के दौरान एक जर्मन अधिकारी ने अपनी रखैल का गला काट दिया था। मौसी एंतोनिएत्ता अपने कामकाज के दौरान उस ख़ूबसूरत औरत के भूत को मकान के गलियारों में आते-जाते अक्सर देखा करती थी।


"मैंने अभी-अभी उसे हॉल में एकदम नंगी घूमते हुए देखा है"। उसने कहा, "वह हू-ब-हू वैसी ही थी।"


शरद का आगमन हो चुका था और शहर की दिनचर्या उसके अनुसार ढल चुकी थी। फूलों वाली छतें सूनी हो चुकी थीं। मैं और रिबेरो त्रास्तेवेरे के पुराने अड्‌डों पर जाने लगे थे, जहाँ हम गायन की शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थियों और फ़िल्म स्कूल के मेरे सहपाठियों के साथ रात का खाना खाते। उन लड़कों में सबसे वफ़ादार था लाकीज़ नामक एक बुद्धिमान और मिलनसार यूनानी, जिसमें एकमात्र अवगुण यह था कि वह सामाजिक अन्याय पर बड़े उबाऊ भाषण दिया करता था। सौभाग्य से वहाँ गायक-गायिकाओं द्वारा ओपेराओं के चुने हुए अंश इतने ऊँचे स्वर में गाये जाते कि लाकीज़ के भाषण उसमें डूब जाते और आधी रात के बाद भी पूरा गला खोल कर गाने पर कोई आपत्ति नहीं करता था। बल्कि इसके उलट, देर रात में वहां से गुजरने वाले लोग गायक मंडली में शामिल हो जाते और पड़ोस में रहने वाले लोग अपने घरों की खिड़कियों को खोल कर प्रशंसा में तालियां बजाते।


एक रात, जब हम गा रहे थे, मार्गारितो दबे पाँव अंदर आया, ताकि हमारे गायन में व्यवधान न हो। वह अपने साथ संत वाली पेटी लिये हुआ था। उसे वह लेटरानो में सान गियोवानी के उस पादरी को दिखाने ले गया था, जो धार्मिक मामलों में एक प्रभावशाली व्यक्ति था। लेकिन लौटने पर उसे पेटी को वासे में छोड़ आने का समय नहीं मिला था। मैंने कनखी से उसकी एक झलक तब देखी, जब वह एक खाली मेज़ पर बैठ रहा था और पेटी को मेज़ के नीचे रख रहा था। वह वहां तब तक बैठा रहा, जब तक हमारा गाना पूरा नहीं हो गया। आधी रात के बाद, जैसा कि हमेशा होता था, जब रेस्तरां खाली होने लगा, हमने कई मेज़ें खींच कर मिला लीं और सब एक साथ बैठ गये, जिनमें गाने वाले भी थे और फ़िल्मों पर बात करने वाले हम जैसे लोग भी और हमारे सारे दोस्त भी। उनमें मार्गारितो दुआर्ते भी था, जिसे वहाँ सब लोग एक ऐसे ख़ामोश और उदास कोलंबियाई के रूप में जान गये थे, जिसका जीवन एक रहस्य था। लाकीज़ उसके साथ की पेटी देख कर कुछ समझ नहीं पाया और उसने मार्गारितो से पूछा, क्या आप वायलिन बजाते हैं? मुझे लगा, मुझसे असावधानीवश एक ऐसी भूल हो गयी है, जिसको सुधारना अब मुश्किल है। मेरी ही तरह रिबेरो भी परेशान हो गया और स्थिति को सँभाल नहीं पाया। हम दोनों कुछ नहीं बोल सके, तो मार्गारितो ने ही लाकीज़ के प्रश्न का उत्तर दिया और परम स्वाभाविकता के साथ कहा, "यह वायलिन नहीं है। ये संत हैं।"


उसने पेटी मेज़ पर रखी, उसका ताला खोला और ढक्कन ऊपर उठा दिया। सम्मोहन का एक अंधड़-सा आया, जिसने रेस्तरां को हिला दिया। दूसरे ग्राहक, वेटर, यहाँ तक कि ख़ून के धब्बों वाले एप्रन पहने रसोईघर में काम करने वाले कर्मचारी भी अचरज के साथ इस चमत्कार को देखने के लिए इक‌ट्ठे हो गये। उनमें से कुछ ने अपने ऊपर क्रॉस बनाते हुए दुआ माँगी। रसोईघर में काम करने वाली एक औरत तो बुख़ार की सी हालत मे बेतरह काँपती हुई घुटनों के बल बैठ गयी और दोनों हाथ कस कर जोड़े चुपचाप प्रार्थना करने लगी। और फिर जब प्रारम्भिक उत्तेजना का दौर समाप्त हो गया, हम चिल्ला-चिल्ला कर इस बात पर बहस करने लगे कि हमारे जमाने में संतई कितनी कम हो गयी है। लाकीज़ स्वभावतः सबसे ज्यादा आमूल परिवर्तनवादी रहा। अंततः उस बहस में से एकमात्र स्पष्ट विचार यह निकल कर आया कि वह संत के बारे में एक आलोचनात्मक फ़िल्म बनाना चाहता है। उसने कहा, "मुझे पूरा विश्वास है कि बूढ़ा सीज़र इस विषय को कभी भी हाथ से न जाने देगा।"


वह सीज़र जावात्तिनी के बारे में बात कर रहा था, जिन्होने हमें प्लॉट का विकास करना और पटकथा लिखना सिखाया था। जावात्तिनी फिल्मों के इतिहास में एक महान शख़्सियत थे और केवल वही एक अध्यापक थे, जो कक्षा के बाहर भी हमारे साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाये रखते थे। उन्होंने हमें शिल्प की शिक्षा ही नहीं दी थी, जीवन को एक भिन्न तरीक़े से देखना भी सिखाया था। वे प्लॉट ईजाद करने की मशीन थे। प्लॉट उनके भीतर से अनायास निकल पड़ते, लगभग उनकी इच्छा के विपरीत, और जब वे उन्हें बोल-बोल कर सोच रहे होते, तो हमेशा ही उन्हें किसी और की मदद चाहिए होती थी, जो उन प्लॉटों को बीच हवा में पकड़ ले। उनका उत्साह तभी मंद पड़ता, जब वे उन प्लॉटों को पूरा कर चुकते। वे कहा करते थे, "कितनी बुरी बात है कि इन्हें फिल्माना पड़ेगा।" क्योंकि वे सोचते थे कि परदे पर आने के बाद प्लॉट अपना मौलिक जादू बहुत कुछ खो देंगे। वे अपने विचारों को विषयवार व्यवस्थित कर के कार्डों पर लिख लेते थे और उन कार्डों को पिन लगा कर दीवार पर टांग दिया करते थे। इस तरह के कार्ड उनके पास इतने अधिक थे कि उनके मकान का एक पूरा कमरा ही उनसे भर गया था।




अगले शनिवार हम मार्गारितो दुआर्ते को जावात्तिनी से मिलाने ले गये। जावात्तिनी में जीवन के प्रति इतनी उत्कृष्ट उत्सुकता थी कि वे हमें अपने घर के दरवाज़े पर हमारी प्रतीक्षा करते हुए मिले। टेलीफोन पर हमने जो आइडिया उन्हें दिया था, उसमें उनकी इतनी ज़बर्दस्त रुचि थी कि वे उत्सुकता से मरे जा रहे थे। स्वभाव से वे मिलनसार आदमी थे, लेकिन उस दिन उन्होंने अभिवादन भी नहीं किया, बल्कि मार्गारितो को सीधे उस मेज़ पर ले गये, जो उन्होंने पहले से तैयार कर रखी थी। उन्होंने पेटी स्वयं अपने हाथों से खोली। तभी कुछ ऐसा हुआ, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे। हमने सोचा था कि पेटी में संत को देखते ही वे उछल पड़ेंगे, लेकिन हुआ इसके ठीक विपरीत। ऐसा लगा, जैसे उन्हें अचानक मानसिक पक्षाघात हो गया हो।


"क्याऽऽऽऽ!" वे भयभीत हो कर फुसफुसाये।


उन्होंने दो-तीन मिनट तक चुपचाप संत को देखा, ख़ुद ही पेटी को बंद कर के मार्गारितो को सौंपा और एक भी शब्द बोले बिना उसे दरवाज़े की तरफ़ ऐसे ले गये, जैसे वह बच्चा हो और अभी चलना सीख ही रहा हो। उन्होंने मार्गारितो के कंधे पर कुछ थपकियाँ दे कर उसे विदा करते हुए कहा, 'धन्यवाद, मेरे बेटे, बहुत-बहुत धन्यवाद। ईश्वर तुम्हारी लड़ाई में तुम्हारे साथ रहे।" दरवाज़ा बंद करने के बाद वे हमारी तरफ मुड़े और उन्होंने अपना फ़ैसला सुनाया, फ़िल्मों के लिए यह चीज़ बिल्कुल बेकार है। कोई भी इस पर विश्वास नहीं करेगा।"


यह हमें चकित करने वाला सबक था। ट्राम से घर लौटते समय हम इसी की चर्चा करते रहे। अगर जावात्तिनी ने ऐसा कहा है, तो यह सच होना ही चाहिए कि यह कहानी बेकार है। मगर वासे पर पहुँचते ही बेला मारिया से हमें ज़रूरी संदेश मिला कि जावात्तिनी ने आज ही रात हमें अपने घर बुलाया है, लेकिन कहा है कि हम मार्गारितो को अपने साथ न लायें।


उस रात हमने अपने उस्ताद को आसमान में उड़ने और सितारों से बात करने की-सी स्थिति में पाया। लाकीज़ अपने साथ दो-तीन सहपाठियों को ले गया था, लेकिन जावात्तिनी ने दरवाज़ा खोला, तो ऐसा लगा, जैसे उन्होंने उन्हें देखा ही नहीं।


"मुझे प्लॉट मिल गया।" वे चिल्लाये, "अगर मार्गारितो चमत्कार कर के दिखाये और लड़की को पुनर्जीवित कर दे, तो पिक्चर तहलका मचा देगी।"


'पिक्चर में या वास्तविक जीवन में?" मैंने पूछा।


उन्हें बुरा लगा, पर अपनी चिढ़ को दबाते हुए उन्होंने कहा, बेवकूफ़ मत बनो। लेकिन तभी हमने उनकी आँखों में एक चमक देखी, जैसे उन्हें एक ज़ोरदार आइडिया मिल गया हो।


"कैसा रहे, अगर वह वास्तविक जीवन में उसे पुनर्जीवित कर दे? वे कल्पना करने लगे और फिर पूरी गंभीरता से उन्होंने जोड़ा, "उसे कोशिश तो करनी ही चाहिए।"

 

लेकिन यह बात एक क्षणिक प्रलोभन से ज़्यादा कुछ नहीं थी। उन्होंने पुनः सूत्र जोड़ा और किसी प्रसन्न पागल की तरह हाथ हिलाते हुए और ऊँची-ऊँची आवाज़ों में फिल्म का प्लॉट बोलते हुए अपने मकान के हर कमरे में चहलक़दमी करने लगे। हम हक्के-बक्के से हो कर सुनते रहे। हमें लगा कि हम उनके शब्दों से बनते उन बिंबों को देख पा रहे हैं, जो मानो फ़ास्फोरस की चमक वाले पक्षियों के झुंड की तरह सारे घर में पागलों की तरह उड़ने के लिए खुले छोड़ दिये गये हों।


ये कह रहे थे, "एक रात जब बीसेक पोप, जिन्होंने मार्गारितो से मिलने से मना कर दिया था. मर चुके हैं, मार्गारितो बूढ़ा हो चुका है और थक चुका है। वह अपने मकान में जाता है, पेटी खोलता है, अपनी मृत बच्ची के चेहरे को पुचकारता है और दुनिया भर की तमाम कोमलता के साथ कहता है- 'मेरी बच्ची, अपने पिता के प्यार की ख़ातिर, उठो और चल पड़ो।"


उन्होंने हम सबकी ओर देखा और विजयी मुद्रा में अपनी बात समाप्त करते हुए कहा, "और वह उठ कर चलने लगती है।"


वे इस प्रतीक्षा में थोड़ा रूके कि हम शायद कुछ कहें, लेकिन हम लोग इतने चकराये हुए थे कि कहने लायक कोई बात हमें सूझी ही नहीं। सिर्फ लाकीज़ ने, यूनानी लाकीज़ ने, हाथ खड़ा किया, जैसे वह स्कूल में पढ़ता हो और बोलने की इजाज़त माँग रहा हो।


"मेरी समस्या यह है कि मुझे इस पर विश्वास नहीं।" उसने कहा, और हमें आश्चर्य हुआ कि यह बात उसने जावात्तिनी से कही, "माफ़ी चाहता हूँ, उस्ताद, लेकिन मैं इस पर विश्वास नहीं करता।"


अब आश्चर्यचकित होने की बारी जावात्तिनी की थी।


"और क्यूं नहीं करते?"


"मैं क्या जानूं?" लाकीज़ ने अत्यंत क्षुब्ध स्वर में कहा, "लेकिन यह असम्भव है।"


"क्याऽऽऽऽ!" उस्ताद ऐसी तेज़ आवाज़ में गरजे कि पूरे आस-पड़ोस में वह आवाज़ सबको ज़रूर सुनायी पड़ी होगी। "स्तालिनवादियों की यही बात मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता। वे यथार्थ में विश्वास नहीं करते।"


अगले पन्द्रह वर्षों तक, जैसा कि मार्गारितो ने स्वयं मुझे बताया, वह संत को कास्टेल गांडोल्फो स्थित पोप के निवास स्थान ले जाता रहा कि शायद कभी उसे संत को प्रदर्शित करने का अवसर मिल जाये। आख़िरकार उसे तेईसवें पोप जॉन को अपनी राम कहानी सुनाने का मौक़ा मिला। सो भी इस तरह कि दयालु पोप लातीनी अमरीका से आये हुए कोई दो सौ तीर्थयात्रियों से मुलाक़ात कर रहे थे और उसने उन लोगों की धक्का-मुक्की के बीच किसी तरह अपनी बात कह डाली थी। मगर पोप को लड़की का शव दिखाने का मौक़ा उसे तब भी नहीं मिल सका, क्योंकि पोप को हत्या के प्रयासों से बचाने के लिए किये गये सुरक्षा प्रबंधों के चलते उसे अपनी बेटी को अन्य यात्रियों के सामान के साथ प्रवेश द्वार पर ही छोड़ देना पड़ा था। पोप उस भीड़ के बीच जितने भी ध्यान से उसकी बात सुन सकते थे, उन्होंने सुनी और उसके गाल पर एक उत्साहवर्द्धक थपकी देते हुए कहा. 'शाबाश, मेरे बेटे। ईश्वर तुम्हारे अध्यवसाय का पुरस्कार तुम्हें देगा।"


लेकिन हँसमुख पोप अल्बिनो लुसियानी के अत्यंत लघु समय में एक बार ज़रूर मार्गारितो को सचमुच लगा कि वह अपने सपने को साकार करने के कगार पर पहुंच गया है। मार्गारितो की कहानी से प्रभावित हो कर पोप के एक रिश्तेदार ने उसके मामले में हस्तक्षेप करने का वादा किया। अब कोई मार्गारितो की बातों पर ज़्यादा ध्यान नहीं देता था। लेकिन दो दिन बाद जब वे लोग वासे में दोपहर का भोजन कर रहे थे, किसी ने टेलीफ़ोन कर के जल्दी-जल्दी बोलते हुए मार्गारितों के लिए यह संदेश दिया कि वह रोम छोड़ कर न जाये, क्योंकि वृहस्पतिवार से पहले किसी भी वक़्त उसे वेटिकन बुलाया जा सकता है, जहाँ एकांत में उसकी बात सुनी जायेगी।




कोई भी यह पता नहीं लगा सका कि यह कोई मज़ाक तो नहीं। अलबत्ता मार्गारितो का ख़्याल था कि यह मज़ाक नहीं हो सकता। इसलिए यह सावधान बना रहा। वह मकान से बाहर नहीं निकला। अगर उसे शौचालय भी जाना होता, तो वह घोषणा करता, "मैं बाथरूम जा रहा हूँ।" बेला मारिया, जो अपने बुढ़ापे की शुरूआत के बावजूद अभी तक पुरमज़ाक थी, इस पर आज़ाद औरतों की तरह दिल खोल कर हँसती और चिल्ला कर जवाब देती, "हम जानते हैं, मार्गारितो, क्या पता कब पोप का फ़ोन आ जाये।"


अगले सप्ताह एक दिन बड़े सबेरे मार्गारितो लगभग ढह ही गया, जब अख़बार उसके दरवाज़े के नीचे से कमरे में सरकाया गया और उसने यह सुर्ख़ी पढ़ी कि "पोप नहीं रहे"। एक क्षण के लिए यह भ्रम उसे थामे रहा कि यह कोई पुराना अख़बार है, जो ग़लती से आज डाल दिया गया है, क्योंकि यह विश्वास करना आसान नहीं था कि हर महीने एक पोप मर जाता होगा। लेकिन यह संभव थाः हँसमुख पोप अल्बिनो लुसियानी, जो तैंतीस दिन पहले ही चुने गये थे, रात को नींद में ही चल बसे थे।


मैं मार्गारितो से अपनी पहली मुलाक़ात के बाईस वर्षों बाद रोम लौट कर आया था, और यदि हम अचानक एक-दूसरे से न टकरा गये होते, तो शायद मैंने उसके बारे में कभी सोचा भी न होता। वैसे भी मैं ख़राब मौसम के चलते इतना अवसादग्रस्त था कि किसी और के बारे में सोच ही नहीं सकता था। जड़बुद्धि बना देने वाली गर्म सूप जैसी बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। किसी और समय हीरे की तरह दमकती रोशनी गंदली हो चुकी थी। और वे जगहें, जो कभी मेरी हुआ करती थीं और मेरी स्मृतियों को जीवित रखे हुए थीं, अब मेरे लिए अजनबी हो चुकी थीं। वह इमारत, जो कभी हमारा वास हुआ करती थी. अभी तक वैसी ही थी, लेकिन वहाँ बेला मारिया के बारे में अब कोई कुछ भी नहीं जानता था। गायक रिबेरो सिल्वा ने बीते वर्षों में जो छह अलग-अलग टेलीफ़ोन नम्बर मुझे भेजे थे, उन पर किसी ने मुझे जवाब नहीं दिया था। फ़िल्म वाले नये लोगों के साथ दोपहर के भोजन के समय मैंने अपने उस्ताद को याद किया, तो अचानक मेज़ पर एक ख़ामोशी पसर गयी। उस क्षणिक ख़ामोशी को किसी ने साहस करके यह कहते हुए तोड़ा, 'जावात्तिनी? यह नाम तो कभी नहीं सुना।"


यह सच था कि उसके बारे में किसी ने कुछ भी नहीं सुना था। विला बोर्गीज़ के पेड़ बरसात में बेहाल हो चुके थे, उदास राजकुमारियों की सैर के लिए बने राजपथों को बिना फूलों वाले झाड़-झंखाड़ निगल चुके थे, और बहुत पहले की उन सुंदर लड़कियों की जगह बलिष्ठ उभयलिंगी वेश्याएँ आ गयी थीं, जो औरत हो कर मर्दों वाले और मर्द हो कर औरतों वाले भड़कीले कपड़े पहने रहती थीं। वहाँ के सारे पशु-पक्षी खत्म हो चुके थे। उनमें से केवल वह बूढ़ा शेर बचा था, जो अब खाज और नजले से पीड़ित था और अपने उस द्वीप पर पड़ा रहता था, जिसके चारों तरफ भरा रहने वाला पानी बिल्कुल सूख चुका था। पियाज्जा डि स्पागना पर पुराने रेस्तराओं की जगह प्लास्टिक के नये रेस्तरां बन गये थे, जिनमें अब न कोई गाता था और न कोई प्रेम के लिए मरता था। हमारी स्मृतियों का रोम अब एक प्राचीन रोम बन चुका था, जो सीज़रों के ज़माने के प्राचीन रोम के भीतर कहीं चला गया था। इसके बाद ही त्रास्तेवेरे की एक संकरी सड़क पर एक आवाज़ ने, जो मानो कहीं और से आयी थी, मुझे सिहरा कर रोक लिया था।


"हैलो, कवि।"


यह मार्गारितो था। बूढ़ा और थका-हारा। चार पोप मर चुके थे, अनश्वर रोम में जर्जरता के प्रथम लक्षण दिखायी देने लगे थे और वह अब भी प्रतीक्षारत था।


"मैंने इतना इंतज़ार कर लिया है कि अब निश्चय ही और ज़्यादा नहीं करना पड़ेगा। लगभग चार घंटे के अतीत स्मरण के बाद अलविदा कहते हुए उसने मुझसे कहा, "शायद कुछ ही महीने और।"


वह फ़ौजियों वाले बूट और एक पुरानी घिसी हुई रोमन टोपी पहने अपने पैर घसीटता हुआ सड़क के बीचोंबीच बरसाती पानी से भरे गड्‌ढ़ों की परवाह किये बिना चला जा रहा था, जहाँ रोशनी क्षीण होने लगी थी। अगर पहले कभी लेशमात्र रहा भी हो, तो अब मुझे बिल्कुल संदेह नहीं रहा कि संत कोई और नहीं, मार्गारितो ही था। वह इस बात को समझे बिना ही, अपनी बेटी के अक्षय शव के सहारे, और अपने जीते-जी, बाईस साल तक स्वयं अपने ही संत होने की घोषणा कराने के न्याय संगत उद्देश्य के लिए लड़ता रहा था।


1. कास्टेल गांडोल्फो - कास्टेल गांडोल्फो रोम से 25 किमी (16 मील) दक्षिण-पूर्व में, लाज़ियो के इतालवी क्षेत्र में स्थित एक शहर है जो इटली के खूबसूरत शहरों में से एक है। शहर के अंदरूनी हिस्से में कास्टेल गांडोल्फो का अपोस्टोलिक पैलेस है, जो कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च धार्मिक नेता पोप के ग्रीष्मकालीन निवास और अवकाश स्थल के रूप में प्रख्यात रहा है।


2. डेस्डिमोना - डेस्डिमोना विलियम शेक्सपियर के नाटक ओथेलो की एक पात्र है। शेक्सपियर की डेस्डिमोना एक वेनिस की सुंदरी है जो अपने पिता, (जो वेनिस केसीनेटर को थे) को तब क्रोधित और निराश करती है जब वह एक मूरिश वेनिस सैन्यकर्मी ओथेलो के साथ भाग जाती है। जब उसके पति को वेनिस गणराज्य की सेवा में साइप्रस में तैनात किया जाता है, तो डेस्डिमोना उसके साथ वहाँ जाती है। वहाँ, उसके पति को उसके दूत इयागो द्वारा बहकाया जाता है कि वह व्यभिचारिणी है। नाटक के अंतिम दृश्य में, उसके अलग हुए पति द्वारा उसकी हत्या कर दी जाती है।


(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)






सम्पर्क 


प्रतुल जोशी 

मोबाइल : 08736968446

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