भारत यायावर का संस्मरण 'यारों का यार अनिल जनविजय'।
![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5F_WWLt8Vo71iE0QUEBwXND5sfPoUwCcFZRGVXfPTa7fbvPgW14ff35zZPaw17UC5IUZSjsnrP6vzhaka9u2Xc8NawD1Rc4rQLqakjtsLFf7gLz-5ovcUV2T92YH3ROOHqoxA9p2spEw/s320/FB_IMG_1595915090021.jpg)
साहित्य में मित्रता की तमाम मिसालें हैं। उसमें से एक मिसाल अनिल जनविजय और भारत यायावर की दोस्ती की है। भारत यायावर ने वर्ष 2012 में अपने मित्र अनिल जनविजय पर एक संस्मरण लिखा था। यह संस्मरण इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें तमाम वे बातें भी समाहित हैं, जिनसे मिल कर ही हिन्दी साहित्य का वितान बनता है। कवि, अनुवादक और उम्दा इंसान अनिल जनविजय के जन्मदिन पर उन्हें बधाई देते हुए आज पहली बार पर प्रस्तुत है भारत यायावर का संस्मरण 'यारों का यार अनिल जनविजय'। यारों का यार अनिल जनविजय भारत यायावर अनिल! दोस्त, मित्र, मीत, मितवा! मेरी आत्मा का सहचर! जीवन के पथ पर चलते-चलते अचानक मिला एक भिक्षुक को अमूल्य हीरा। निश्छल - बेलौस - लापरवाह - धुनी - मस्तमौला - रससिद्ध अनिल जनविजय! जब उससे पहली बार मिला, दिल की धड़कनें बढ़ गईं, मेरे रोम-रोम में वह समा गया। क्यों, कैसे? नहीं कह सकता। यह भी नहीं कह सकता कि हमारे बीच में इतना प्रगाढ़ प्रेम कहाँ से आ कर अचानक समा गया? अनिल को बाबा नागार्जुन मुनि जिनविजय कहा करते थे। उन्होंने पहचान लिया था कि उसके भीतर कोई साधु-संन...