इसाबेल एलेंदे के लोकप्रिय उपन्यास "डॉटर ऑफ फॉर्च्यून" का यादवेन्द्र द्वारा अनुदित एक अंश।


इसाबेल एलेंदे



78 वर्षीय लैटिन अमेरिकी लेखक इसाबेल एलेंदे को यूँ तो अमेरिका में रहते हुए दो दशक से ज्यादा  हो गए पर वे अब भी अपने को पूरी तरह चिली का लेखक मानती हैं ... वे शुरू से ले कर अब तक अपनी मातृभाषा स्पैनिश में लिखती रही हैं जिनकी दो दर्जन  कृतियों के  विश्व की चालीस  से ज्यादा बड़ी भाषाओँ में अनुवाद प्रकाशित हैं। उनकी किताबों की बिक्री का आँकड़ा सात करोड़ को पार कर गया है - पिछले कई वर्षों में उन्हें साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए नामित भी किया गया। गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ के बाद जादुई यथार्थवाद की वे सबसे समर्थ सशक्त पुरोधा मानी जाती हैं जिनकी कृतियों में लैटिन अमेरिका की ज़मीनी राजनीति, रहस्य रोमांच और रोमांस का भरपूर अंश होता है। 


चिली के संभ्रांत राजनैतिक परिवार में जन्मी इसाबेल एलेंदे ने अपना करियर एक पत्रकार के रूप में शुरू किया और आत्मकथात्मक शैली में पहला उपन्यास "हॉउस ऑफ़ द स्पिरिट्स" लिखा जिसने उन्हें अचानक साहित्यिक आकाश का सितारा बना दिया। वैसे पेशे के तौर पर वे पत्रकारिता करती रहीं। देश के पहले निर्वाचित वामपंथी राष्ट्रपति सल्वाडोर एलेंदे उनके निकट परिवारी थे और जब सैनिक तख्ता पलट में उनकी हत्या कर दी गयी तो जान बचाने के लिए उन्हें परिवार सहित देश छोड़ कर बाहर जाना पड़ा - वेनेजुएला, बोलीविया और लेबनान होते हुए वे अंततः अमेरिका जा कर बस गयीं। लैटिन अमेरिकी राजनीति से तो उनका सक्रिय सम्पर्क बना ही रहा साथ साथ अमेरिका की राजनीति  में डोनाल्ड ट्रंप के उदय पर उनकी बहुचर्चित बड़ी तीखी प्रतिक्रिया सामने आयी थी। 




किसी भी देश या समाज में ऐसे नायक होते हैं जिन पर वह देश और समाज गर्व ही नहीं करता बल्कि पीढ़ियाँ उनसे सबक लेती हैं। ऐसे ही एक नायक हैं जोआकिन एंदिएता। एंदिएता को मैक्सिको और अन्य इंडियन बहुल समाजों में आज भी अपने जंगल, जमीन और संपदा की आज़ादी के लिए लड़ने वाले एक लोक नायक का दर्जा हासिल है। वे न सिर्फ इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं बल्कि साहित्यकारों के  लिए भी ऐसे नायक हैं जिनको ले कर कविताएँ, कहानियाँ और उपन्यास तक लिखे गए।इसाबेल एलेंदे ने जोआकिन एंदिएता के किरदार को अपने अत्यन्त लोकप्रिय उपन्यास "डॉटर ऑफ फॉर्च्यून" में उसी तरह  फिर से पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है। इसी उपन्यास के एक अंश का उम्दा अनुवाद किया है यादवेन्द्र जी ने। आज पहली बार पर प्रस्तुत है इसाबेल एलेंदे के लोकप्रिय उपन्यास "डॉटर ऑफ फॉर्च्यून" का एक अंश।



इनाम उस सिर पर जिसे वे पहचानते तक नहीं

(भारत सहित हर देश के इतिहास में ऐसे नायक भरे पड़े हैं)



इसाबेल एलेंदे के लोकप्रिय उपन्यास डॉटर ऑफ़ फार्च्यून का एक अंश



हिंदी अनुवाद - यादवेन्द्र



19वीं शताब्दी के मध्य तक मैक्सिकी अधिपत्य वाले कैलिफोर्निया स्टेट को अमेरिका ने तरह-तरह के हथकंडे अपना कर और मैक्सिको को सैनिक युद्ध में हरा कर अपने कब्जे में कर लिया। पर मैक्सिको के मूल वासी इंडियन समाज ने इस आधिपत्य को आसानी से स्वीकार नहीं किया और सालों तक अपने अपने तरह के छोटे प्रयासों से आक्रांता अमेरिकियों को मारते काटते रहे... अमेरिकी सैनिकों ने भी मैक्सिकी नौजवानों को देखते ही पकड़ लेने, यातना देने और मार डालने की हिंसक नीति जारी रखी। यह ऐतिहासिक दस्तावेजों में दर्ज है कि अमेरिकी सरकार ने जोआकिन नाम के पांच बागियों (अपनी सरकारी शब्दावली में उन्हें बैंडिट कहते थे) को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का फरमान जारी किया। 25 जुलाई 1853 को इनमें से पहला बागी जोआकिन एंदिएता पकड़ा गया, उसकी लाश को कई दिनों तक प्रमुख चौराहे पर लटका कर सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए रखा गया और बाद में उसकी गर्दन काट कर अल्कोहल में डुबो कर एक गैलरी में रख दिया गया। 1906 के भूकम्प में यह गैलरी ध्वस्त हो गई पर अब भी जोआकिन एंदिएता को मैक्सिको और अन्य इंडियन बहुल समाजों में अपने जंगल, जमीन और संपदा की आज़ादी के लिए लड़ने वाले एक लोक नायक का दर्जा हासिल है - कुछ अध्येताओं ने लिखा है कि यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले की आर्काइव में जोआकिन एंदिएता से संबंधित विपुल सामग्री उपलब्ध है।


मारे जाने के अगले साल ही यानी 1854 में पहले इंडियन (चेरोकी) उपन्यासकार कवि के तौर पर प्रतिष्ठित जॉन रोलिंग रिज (जिन्होंने स्वयं कैलिफोर्निया के गोल्ड रश के दौरान खान मजदूर का काम किया था) ने "द लाइफ एंड एडवेंचर ऑफ जॉन मुरीटा" शीर्षक से एक उपन्यास लिखा और उसके बाद के सालों में इस मिथकीय लोक नायक पर न सिर्फ लगभग दर्जन भर किताबें अमेरिका, स्पेन और चीले में लिखी गईं बल्कि नाटक, ओपेरा और फिल्में बनीं - पाब्लो नेरुदा तक ने जोआकिन एंदिएता को केंद्र में रख कर एक प्रसिद्ध कविता लिखी।




इसाबेल एलेंदे ने जोआकिन एंदिएता के किरदार को अपने अत्यन्त लोकप्रिय उपन्यास "डॉटर ऑफ फॉर्च्यून" में उसी तरह  फिर से पुनर्जीवित किया है जैसे महाश्वेता देवी ने आदिवासी नायकों को। यह उपन्यास 1849 में  कैलिफोर्निया में सोने की खदानों की खोज (गोल्ड रश) का रोमांचक आख्यान रचती है जिसमें अमेरिकी प्रभु वर्ग ने जमीन और खदानों के वास्तविक स्वामी इंडियन समुदाय को हथियारों की ताकत से बेदखल कर दिया और विरोध का साहस दिखाने वाले बागियों को डकैत और लुटेरे घोषित कर दिया... उन्होंने इतिहास से भी उन्हें बहिष्कृत करने की भरपूर कोशिश की पर सौभाग्य से यहां वहां उन नायकों के ऐतिहासिक सबूत बचे रहे। इसाबेल एलेंदे के इस उपन्यास के कुछ अंश जिनमें जोआकिन का उल्लेख है यहां प्रस्तुत हैं :




इसाबेल एलेंदे इस उपन्यास में जोआकिन एंदिएता का नाम थोड़ा सा बदल कर जोआकिन मुरिएता रख देती हैं। किताब के शुरू में  ही वे जोआकिन  के व्यक्तित्व के बारे में बताती हैं :

उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में बस इतनी सी बात मालूम होती है कि वह बेहद गरीबी में अपनी मां के साथ रह रहा था और उसके पिता के बारे में जानकारी उजागर नहीं होती... मां के दागदार अतीत के बारे में इशारा जरूर किया गया है। वह खुद अपने जीवन, अतीत और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में कभी किसी को कुछ न बताता।


18 वर्ष की उम्र में ही वह धीर गंभीर, इंटेलेक्चुअल औेर कुदरती नेतृत्व के गुणों से भरपूर नौजवान था। उसकी शख्सियत अपनी फुर्ती और तेज से सबको चौंका देने वाली थी। वह बहुत कम बोलता था और उसे शब्दों से ज्यादा उसे अपने काम (एक्शन) पर भरोसा था और किसी बात के लिए लंबा इंतजार करना उसकी फितरत में शामिल नहीं था - यही और अभी उसका मूल मंत्र था। चीजों के प्रति और राजनीति के प्रति उसके मन में एकदम स्पष्टता थी और अपने विचारों को कार्य रूप में परिणत करने का जज्बा और साहस उसमें कूट-कूट कर भरा हुआ था। अपने विचारों के प्रति एकदम साफ दृष्टि होने के कारण वह  लंबे समय तक निरंतर बहस कर सकता था। बेहद स्वाभिमानी, दृढ़ निश्चयी और बेहद चुभती हुई नजर वाला इंसान था लेकिन  सपने देखते रहने का धैर्य उसमें नहीं था - वह कहा भी करता था कि फेंटेसी के बारे में बात कर समय नष्ट करने का यह समय नहीं है बल्कि उसको आनन फानन में यथार्थ में परिणत करने का समय है। मालिकों के दुर्व्यवहार और दमन के खिलाफ मजदूरों को विद्रोह कर देने का आह्वान करने वाले पोस्टर चिपकाना उसका सुबह सुबह का काम था। किताब की दुकान में घंटों बैठ कर अधिकारों और क्रांतियों की किताबें पढ़ने और उन पर गरमा गरम बहसें करने में उसे महारत हासिल थी।



अपने राजनीतिक  विचारों को ले कर उसके मन में जो स्पष्ट खाका था वह यह था कि मजदूरों गरीबों और बेदखल किए जा रहे इंडियन मूल निवासियों  को संगठित करना चाहिए, वास्तविक किसानों को जमीन उपलब्ध करानी चाहिए, पादरियों के हाथ से सामाजिक राजनीतिक आर्थिक ताकत छीन लेनी चाहिए, गैर बराबरी को बढ़ावा देने वाला संविधान बदल देना चाहिए और देश चलाने के लिए राजनीतिक सत्ता तंत्र में गरीबों की वास्तविक और प्रभावी भागीदारी होनी चाहिए। स्वाभिमानी इतना कि किसी की छोटी से छोटी मदद भी उसे कबूल नहीं थी, यहां तक कि बरसात के दिनों में उसके मित्र जैकब टॉड की दी हुई छतरी भी  नहीं। उसे लगता दूसरे उस पर तरस खा कर ऐसा कर रहे हैं।


(उपन्यास के उद्धृत अंश)



जैकब फ्रीमोंट जोआकिन मुरिएता के बारे में जितनी खबरें जो किस्से छापता था वे किसी लोकप्रिय उपन्यास के लिए बखूबी कच्चा माल बन सकते थे। उसने लिखा कि शुरू में जोआकिन मुरिएता बेहद सीधा सच्चा और ईमानदार बंदा था। वह स्टेनिस्लास में एक लड़की के साथ आराम और चैन से जीवन व्यतीत कर रहा था  जिसके साथ उसका शादी करने का घर बसाने का इरादा था। जब उसकी समृद्धि का पता अमेरिकी लोगों को चला तो कुछ ने गिरोह बना कर उसके घर पर हमला किया, उसका जमा किया हुआ सोना लूट लिया, बुरी तरह उसकी पिटाई की और उसकी आँखों  के सामने ही उसकी प्रेमिका का बलात्कार भी किया। इसके बाद उन दोनों अभागों के पास वहाँ  से भाग जाने के सिवा कोई उपाय नहीं बचा था - भविष्य के बवालों से बचने की नीयत से उन्होंने सोने की खदानों से दूर उत्तर की तरफ की राह पकड़ी। उधर जा कर उन्होंने जंगलों से घिरे जमीन के एक  टुकड़े को समतल किया और पास बहती एक नदी से जल ले कर नए सिरे से खेती-बाड़ी शुरू की – फ़्रीमोंट ने अख़बार में लिखा कि मवाली अमेरिकियों को जैसे ही इसका पता चला उन्होंने वहाँ  पहुँच कर उनका वह आशियाना भी उजाड़ डाला। एक बार फिर से सब कुछ लुट जाने के बाद उन दोनों के सामने  नए सिरे से जीवन शुरू करने की चुनौती सामने आ खड़ी हुई। इस हादसे के कुछ दिनों के बाद मुरिएता  कलावेरास में  कहीं ताश खेलता देखा गया जबकि उसकी प्रेमिका अपने मायके सोनोरा में शादी की तैयारियों में व्यस्त थी। यह जोआकिन की किस्मत में लिखा था कि वह जीवन भर किसी न किसी परेशानी में उलझा रहेगा ... सुकून उसके माथे पर लिखा ही नहीं था। कई बार उसके ऊपर  घोड़े चुराने के आरोप लगाए गए, बीच चौराहों पर अमेरिकियों ने पेड़ में बॉध कर उस पर कोड़े बरसाए। किसी स्वाभिमानी लैटिनो के लिए सबके सामने इस तरह की पिटाई, बेइज्जती और अत्याचार बर्दाश्त करना संभव नहीं था सो हर बार ऐसी किसी घटना के बाद उसके दिल से कोमलता की तपिश थोड़ी थोड़ी लुप्त होती जाती रही।



कुछ दिनों बाद एक गोरे की लाश बीच सड़क पर टुकड़ों टुकड़ों में कटी हुई दिखाई दी, लग रहा था जैसे मुरब्बा बनाने के लिए किसी मुर्गे को बोटी बोटी काटा गया हो - जब इधर-उधर बिखरे तमाम टुकड़ों को मिला कर एक साथ जोड़ा गया तो पता चला कि यह वही व्यक्ति था जो मुरिएता को घोड़ा चुराने का आरोप लगा कर वहशियाना ढंग से पीटने और जलील करने के जुर्म में शामिल था। अगले कुछ दिनों में उन सभी अमेरिकियों का जो उसको पीटने अपमानित करने के काम में शामिल थे यही हस्र देखने को मिला। जैकब फ्रीमोंट ने अख़बार में लिखा कि जालिमों के देश में इस तरह की नृशंसता  पहले कभी देखने में नहीं आई। देखते देखते जोआकिन मुरिएता एक  दुर्दांत डकैत बन कर सब तरफ छा गया। उसका गिरोह मवेशी और घोड़े उठा लेता, बग्घियों को अगवा कर लूट लेता, खान मजदूरों पर उनके ठिकानों पर जा कर और राह चलते मुसाफिरों पर हमले करता, सिपाहियों को ठेंगे पर रखता, जहाँ कोई बेखबर अमेरिकी हत्थे चढ़ जाए उसकी गर्दन काट डालता.... और कानून की धज्जियाँ उड़ाता हुआ यह गिरोह अभी यहाँ तो अभी वहाँ घूमता हुआ दहशत का माहौल बनाता रहता।



हालत यह हो गई कि जिस जुर्म या ज्यादती के गुनहगारों का पता न चलता उसे बगैर आगा पीछा देखे मुरिएता के मत्थे मढ़ दिया जाता। वह सारा इलाका ऐसा था जो महीनों तक किसी भगोड़े को अपने आवरण में छुपाए रख सकता था... जंगल, तालाब, नदियाँ  लंबे समय तक किसी को भी भोजन और सुरक्षित आश्रय प्रदान कर सकती थीं। जंगली घास इतनी ऊँची और घनी थी कि कोई घुड़सवार बगैर किसी निशानदेही के वहाँ जब तक चाहे  छुपा रह सकता था... बगैर किसी की नजर में आए आने जाने के लिए संकरे पहाड़ी रास्ते थे और खोजबीन करते किसी को मार कर ठिकाने लगाने के लिए गहरी अंधेरी कंदराएँ। यदि किसी अपराधी का पीछा करते उधर कोई चला जाए तो या तो बीच में रास्ता भटक जाना या फिर कहीं मर मरा जाना निश्चित था। जैकब फ्रीमोंट  अपने चमकदार शब्दों की लफ्फाजी में इन दुर्गम बीहड़ों का ऐसे प्रयोग करता जैसे प्रत्यक्षदर्शी बन कर लिख रहा हो... पर  खबरों के केंद्र में रहने वाले के नामघटना की तारीख और घटनास्थल के बारे में जानने की दरकार किसी को नहीं थी।


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एलिजा ने जितनी चीजें जोआकिन मुरिएता के बारे में छपी हुई देखीं  वह सब सँभाल  कर रखी थीं  -  कतरनों के रूप में और अपनी स्मृति में भी.... जैसे बचपन में सुनी मिस रोज़ की कविताएँ   उसे आज भी जबानी याद थीं हालॉकि उन कविताओं में उस डाकू की माशूका का जब  जिक्र आता उसको वह अनदेखा करने की कोशिश करती, उधर से ऑंखें मूँद  लेती। ताओ चिएन से वह कहती : "ऐसी लड़कियों की चर्चा अखबार वाले बिक्री बढ़ाने के लिए अनायास ही करते रहते हैं, उन्हें मालूम है पाठक रोमांस से खिंचे चले आते हैं।"


उसके पास एक जर्जर सा नक्शा था जिस पर वह किसी नाविक की सी दृढ़ता के साथ मुरिएता के अभियानों और उसके चले रास्तों को ध्यान से देखती, निशान लगाती... लेकिन उपलब्ध सूचनाएँ  इतनी अस्पष्ट और परस्पर विरोधी होती थीं कि उनके आधार पर कुछ नतीजा निकालना मुमकिन नहीं होता। उसे अक्सर लगता कि ये रास्ते एक दूसरे को इस तरह से काटते हैं कि वह कहाँ  से आए और  किधर गए इसका अंदाजा लगाना असंभव था... नक्शे पर  खींची आड़ी तिरछी रेखाएँ  किसी मकड़ी के जाले सरीखी दिखती थीं जो कहीं पहुँचाना तो दूर और उलझन में डाल देती थीं।

 

जोआकिन एंदि एता का यह चित्र 1850 में चार्ल्स नोन (charles Nohn) ने बनाया/ columbiagazette.com से साभार


शुरू शुरू में वह जोआकिन के किसी खून खराबे वाली वारदात को अंजाम देने की खबर सुन कर बड़ी दृढ़ता से एतराज दर्ज करती थी, उसका मानना था उसका प्रेमी कभी ऐसा कर ही नहीं सकता। बार बार उससे जुड़ी खबरों को पढ़ते हुए उसे लगने लगा कि हो न हो यह मुरीटा  वही आदमी है जिसे वह जानती थीजिसे वह प्रेम करती थी। वह अक्सर अत्याचार और दमन के खिलाफ आवाज उठाता और समाज के दबे कुचले साधनहीन लोगों की भरपूर मदद करता। एलिजा अपने मन को तसल्ली देती कि हो सकता है जोआकिन खुद ऐसा न करता हो और उसके गिरोह के लोग - जैसे तीन उँगलियों वाला जैक - लोगों पर जुल्म ढाते  हों और उसका ठीकरा सरदार के ऊपर फोड़ा जाता हो। लोगों के मन में तीन उँगलियों वाले जैक की छवि ऐसी बन गयी  थी कि वह जुल्म ढाने में किसी हद तक जा सकता है।



छुप छुप कर लिए गए आलिंगनों की  स्मृतियाँ  उसके साथ थीं हालॉकि उसको ले कर अपनी वास्तविक भावनाओं के बारे में एलिजा किसी निष्कर्ष पर पहुँच गई हो ऐसा नहीं था - वह तय नहीं कर पाती कि उसके लिए इतना प्यार था मन में... या कि गर्व का भाव जो उसे मुरिएता से मिलने का इंतजार बेसब्री से करवा रहा था? वह अपने कामकाज में इतनी व्यस्त रहती कि कई बार तो पूरा हफ्ता बीत जाता, कई कई हफ्ते बीत जाते और वह पल भर को भी उसे याद नहीं करती... फिर अचानक वह स्मृतियों में उतर आता और पूरी तरह से उसे गिरफ्त में ले लेता - यहाँ  तक कि उसका शरीर थरथर कांपने लगता।



जब कभी ऐसा होता वह चौंक कर अपने आसपास देखती, भ्रमित होतीउसे समझ नहीं आता कि यह कौन सी जगह है जहाँ  वह आ गई है। पतलून पहने हुए वह यहाँ  चीनियों के बीच क्या कर रही है? इन उलझनों को झाड़ कर बाहर आने में उसे खासी मशक्कत करनी होती.... उसे खुद को याद दिलाना होता कि यह सब वह प्रेम के हठ में कर रही है। वह यहाँ  ताओ चिएन की मदद करने के लिए नहीं आई है बल्कि जोआकिन को ढूँढ़ने आई है... घर बार छोड़ कर इतनी दूर आने का यही मकसद है। एक बार जोआकिन मिल जाए तो आमने सामने वह उसके मुँह पर भले ही कह डाले कि वह अपराधी भगोड़ा है जिसने उसकी जवानी नष्ट कर डाली। पहले भी तीन बार उसने ऐसा करने का निश्चय  किया लेकिन उसमें इतनी इच्छा-शक्ति नहीं थी कि उसको अंजाम दे सके। चौथी बार जब उसने मन में ठानी तो यह बताने ताओ चिएन के सामने गई भी लेकिन शब्द उसके गले में रेत बन कर अटक गए... वह  कुछ बोल नहीं पाई। किस्मत ने उसके साथ जो अनूठा  साथी नत्थी कर  दिया था वह भला उसे कैसे त्याग दे।
"अच्छा बताओ, वह मिल जाए तो तुम क्या करोगी?" ताओ चिएन ने एक बार उससे पूछा था।

"उसे सामने से जब देखूँगी तो समझ जाऊँगी कि मैं उससे अब भी प्यार करती हूँ  या नहीं"
"और इतना ढूँढ़ने  के बाद भी यदि वह न मिला तो?"
"तो फिर मुझे लगता है कि मैं इस संशय के साथ ही शेष जीवन  बिता लूँगी ।"


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नवंबर का अंत होते-होते एलिजा की जिज्ञासा इतनी बढ़ गई कि उसने ताओ चिएन को बताए बिना अखबार के दफ्तर का रुख किया, वह प्रसिद्ध पत्रकार जैकब फ़्रीमोंट से मिल कर पक्की जानकारी लेना चाहती थी। अखबार के दफ्तर में प्रवेश करने के बाद उसे एडिटोरियल रूम में ले जाया गया जहाँ  कागजों के बेतरतीब ढेर के बीच डेस्क पर बैठ कर बहुत सारे पत्रकार सिर झुकाए हुए अपना काम कर रहे थे। संपादक से मिलने के लिए उसे  काँच  की दीवारों वाले छोटे से कमरे में भेज दिया गया। कमरे में जा कर वह काम में पूरी तरह  डूबे हुए यांकी (अमेरिकी) के सामने खड़ी हो गई, समय मिले तो वह उसकी ओर मुखातिब हो। वह मंझोले कद का इंसान था, त्वचा पर झाईयाँ  पड़ी हुई थीं और उसके आसपास मोमबत्ती जलने से पैदा हुई खुशबू तैर रही थी। वह बाएँ  हाथ से अपने कागजों पर लिख रहा था और दाहिने हाथ से सिर थामे हुए था। एलिजा उसके बिल्कुल सामने खड़ी थी फिर भी उसका चेहरा साफ-साफ नहीं देख पा रही थी।



हालॉकि चारों तरफ मोम की सुगंध बिखरी हुई थी फिर भी जाने क्यों उसके मन में एक धुंधली सी स्मृति कौंध गई। वह थोड़ा सा और उसके करीब बढ़ी ही थी कि सामने कुर्सी पर बैठे संपादक ने अपना सिर ऊपर उठाया। वे दोनों एक दूसरे के इतने करीब थे कि नजर मिलते ही उनकी सहजता गायब हो गई। कई साल बीत जाने के बाद भी एलिजा ने उसकी देह से आती गंध से उसे पहचान लिया.... हालॉकि उसमें बदलाव यह आया था कि अब चश्मा पहनने लगा था, लंबे खत रखने लगा था और अमेरिकन शैली की पोशाक पहनने लगा था। एलिजा को याद आया, उन दिनों कैसे वह मिस रोज़ के हमेशा आगे पीछे लगा डोरे डालता रहता था। वालपरेजो में बुधवार के संगीत के प्रोग्राम में वह बिला नागा शामिल होता। पर इस वक्त एलिजा को जैसे काठ मार गया हो, अब यहाँ  से तो वह कहीं भाग कर जा भी नहीं सकती थी।



"बोलो नौजवान, मैं तुम्हारी क्या खिदमत कर सकता हूँ ?", जैकब ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा... साथ साथ वह अपना चश्मा उतार कर रुमाल से पोंछ भी रहा था।


एलिजा जिन बातों को पहले से सोच कर वहाँ  गई थी वह सब एक झटके से उसके दिमाग से निकल गए - उसका मुँह  खुला का खुला रह गया जैसे हाथ में हैट।


उसने समझ लिया कि जब वह जैकब को पहचान गई तो उसे एलिजा को पहचानने में कितनी देर लगेगी। पर वह था कि  चश्मा फिर से अपनी आँखों  पर लगाया और उसकी ओर देखते हुए अपना प्रश्न एक बार फिर से दोहराया।

"मैं जोआकिन मुरिएता के बारे में कुछ पता करने आई थी...", लगभग हकलाते हुए उसने कहा हालॉकि वह अपनी आवाज़ जितनी धीमी रखना चाहती थी, उतनी रही नहीं बल्कि उससे ऊपर चली गई।

"तुम्हें उस डकैत के बारे में कुछ मालूम है?", उसने चौंकते हुए उससे पूछा।

"न...नहीं, बल्कि इसका उल्टा है। मैं तो यहाँ  उसके बारे में जानकारी लेने आई थी, मैं उससे मिलना चाहती हूँ।"
"तुम्हें देख कर ऐसा लग रहा है जैसे हम पहले मिल चुके हैं.... याद करो, कब और कहाँ  मिले हैं हम।"
"मुझे तो ऐसा नहीं लगता सर"
"क्या तुम चीले से यहाँ  आई हो?"
"जी हाँ"
"कुछ साल पहले तक मैं भी चीले में रहता था, बहुत सुंदर देश है। पर वजह तो बताओ, क्यों मुरिएता से मिलना चाहती हो?"

"मुझे उससे बहुत जरूरी काम है"

"अफसोस, मैं इस मामले में तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाऊँगा। मैं क्या उसके बारे में और उसके पते ठिकाने का किसी को कुछ पता नहीं।"

"पर आप तो उससे मिल चुके हैं, आमने सामने आपकी बात हुई है उससे।"

"हाँ, पर यह तभी मुमकिन हो पाता है जब मुरिएता मुझसे बात करना चाहता है। जब उसे अपने बारे में कोई खबर छपवानी होती है तो वह मुझे संदेश भेजता है। पर वैसा खास भी नहीं है कुछ उस आदमी में... बस उसे अपनी शोहरत की  बहुत भूख  है।"

"आप दोनों जब मिलते हो तो किस भाषा में बात करते हो?"
"मेरी स्पेनिश उसके अंग्रेजी से बहुत अच्छी है।"
"एक बात बताओ सर, जब वह बात करता है तो उसका लहजा (एक्सेंट) चीले वाला होता है या मैक्सिकन होता है?"


"मैंने कहा न कि मैं इस बारे में और ज्यादा बता नहीं सकता... मैं फिर से कहता हूँ  कि तुम जो जानना चाहते हो उसमें तुम्हारी मदद नहीं कर सकता।", यह कहते कहते वह अपनी कुर्सी से खड़ा हो गया, जाहिर था वह बात को उसी बिंदु पर खत्म करना चाहता था... उसके चेहरे पर अब झुंझलाहट भी दिखाई देने लगी थी।



एलिजा समझ गई और नमस्ते कर के वापस जाने को मुड़ी तो जैकब  खड़ा होकर कुछ उलझन भरी नजर से उसे ऑफिस से बाहर निकलते हुए निहारता रहा। उसे लग रहा था कि इस लड़के को उसने पहले कहीं देखा है लेकिन दिमाग पर बहुत जोर डालने के बाद भी वह उसके सुराग नहीं ढूंढ पाया। एलिजा के वहाँ  से चले जाने के कुछ देर बाद जैकब को याद आया कि कैप्टन जॉन सोमर्स ने उसे एलिजा के बारे में बताया था... फिर उसके दिमाग में युवा होती एलिजा की बरसों पुरानी छवियाँ  उभरने लगीं। उसने उस डकैत के नाम को जोआकिन एंदि एता के साथ जोड़ कर देखा और तब उसे समझ आया कि वह उसके बारे में क्यों पूछ रही थी। वह लगभग चीखता हुआ अपने कमरे से निकला और बाहर तक दौड़ता हुआ आया लेकिन तब तक एलिजा वहाँ  से जा चुकी थी... दूर-दूर तक उसका नामोनिशान नहीं था।


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अमरीकियों की बढ़ती माँग को देखते हुए गवर्नर ने एक आदेश जारी कर कैप्टन हैरी लव और उसके बीस  हथियारबंद लड़ाकों को जोआकिन मुरिएता को तीन  महीने के अंदर पकड़ने का आदेश दिया। इस आदेश के अनुसार हर लड़ाके को डेढ़ सौ डॉलर प्रति माह दिए जाने थे हालॉकि उन्हें अपने लिए घोड़े, हथियार गोला बारूद और खाने पीने का सामान सब कुछ खुद जुगाड़ करना था... इसे देखते हुए यह राशि ज्यादा नहीं बिल्कुल मामूली सी थी। आदेश जारी होने पर उन्हें लगा कि ये काम तो बहुत आसान है और हफ्ते भर में वे यह कर के दिखा देंगे। हाँ , यदि जोआकिन मुरिएता को वे मार पाए तो उसकी गर्दन काट कर लाने के एवज में उन्हें एक  हजार  डॉलर का इनाम भी मिलेगा। जैकब फ्रीमोंट ने अपने अखबार में लिखा कि वे एक ऐसे शख्स की जान के पीछे पड़े हैं जिसे न तो वे पहचानते हैं, न उसके किए अपराधों का कोई ब्यौरा उनके पास है और सबसे बड़ी बात कि उसके ऊपर किसी तरह का कोई मुकदमा नहीं चलाया गया है। दरअसल कैप्टन लव और उसके गिरोह का जो काम था वह किसी लिंचिंग जैसा ही काम था। एलिजा ने इस बारे में जब पढ़ा तो उसके मन में डर और तसल्ली दोनों के  मिश्रित भाव आए  - ऐसा क्यों हुआ, जब वह खुद नहीं समझ पाई तो आखिर किसी को समझाती भी क्या।


वह चाहती थी कि यह गिरोह अपना काम करे लेकिन जोआकिन का कत्ल न करे.... उसे यह भी लगता था कि गवर्नर के इस आदेश के बाद यह गिरोह इस निर्णायक स्थिति में होगा कि अब तक जो जोआकिन अदृश्य था उसको ढूंढ निकालेगा। एक के बाद एक जब इतने सारे महारथियों ने जोआकिन को पकड़ने की कोशिश की लेकिन उनमें से किसी को कोई कामयाबी नहीं मिली तो कैप्टन लव यह कर पाएगा इसमें सब को संदेह था। वैसे भी जोआकिन मुरिएता कोई  मामूली इंसान नहीं था, अपराजेय योद्धा था।



लोगों में वह एक मिथक बन कर  उपस्थित था और उसके बारे में कहा जाता था कि उसे साधारण नहीं बल्कि चांदी के बुलेट से ही मारा जा सकता है क्योंकि इससे पहले सीधे उसके सीने में दो पिस्टल भर गोलियाँ  उतार दी गईं लेकिन वह जिंदा कलाविरास काउंटी में घूमता फिरता रहा, अपना काम पहले की तरह करता रहा।



"यदि यही जानवर तुम्हारा प्रेमी है तो बेहतर है कि तुम्हारी उससे कभी मुलाकात न हो।", ताओ चिएन  ने यह प्रतिक्रिया दी जब एलिजा ने उसे अख़बार की वे कतरनें दिखाई जो पिछले साल भर में समय-समय पर उसने इकट्ठा की थीं।
"मुझे नहीं लगता कि यह वही है!"
"तुम्हें कैसे मालूम?"

सपने में उसने जब भी अपने पूर्व प्रेमी को देखा तो उसके मन में वल्परेजो में आखरी बार प्रेम करते समय  पहने हुए उसके कपड़े ही आते - पुराना घिसा हुआ सूट और जगह-जगह से उधड़ी हुआ शर्ट। वह जब भी  उससे मिलने आता तो उदास और बेचैन दिखाई देता था हालॉकि  उसकी आँखों  में स्थायी  तौर  पर  हरदम एक चमक होती, उसके बदन से साबुन और पसीने की मिली जुली गंध आती। पहुँचते ही वह एलिजा का हाथ पकड़ता और किसी बावले जैसा धाराप्रवाह बोलना शुरू कर देता - उसकी बातचीत का विषय लोकतंत्र और सिर्फ लोकतंत्र होता, कभी कुछ और नहीं।


कभी-कभी वे अलमारियों वाले   कमरे में पर्दों के ढेर पर साथ-साथ लेट जाते, बगैर एक दूसरे को छुए और पूरे पूरे कपड़े पहने हुए - उस कमरे में समुद्र की ओर से आती तेज हवा अलग-अलग स्वरों में बोला करती थी। और हर सपने में यह एक चीज कॉमन थी कि जोआकिन की ललाट पर एक चमकता हुआ सितारा जरूर होता।

"यह बताओ, इससे क्या साबित होता है?", ताओ चिएन ने जानना चाहा।

"देखो, कोई बुरा इंसान ऐसा नहीं हो सकता जिसकी ललाट पर इस तरह की रोशनी चमकती हो।"

"तुम भी क्या बात कर रही हो? यह तो बस सपने में होता है।"

"नहीं, केवल किसी एक सपने में ऐसा हुआ होता हो ऐसा नहीं... बार बार जब भी मैं उसको सपने में देखती हूँ  यही होता है।"

"तब तो मैं कहूँगा कि तुम गलत आदमी की तलाश में यहाँ  वहाँ  इतने दिनों से भटक रही हो।"

"हो सकता है, मैं इनकार नहीं करती....लेकिन इतना जानती हूँ  कि मैंने अपना समय यूँ  ही जाया नहीं किया है।", एलिजा ने बगैर अतिरिक्त सफाई दिए हुए जवाब दिया।


***************

अगले दिन ताओ चिएन ऑफिस जाने से पहले सुबह-सुबह अख़बार खरीदने गया तो उसकी नजर छः कॉलम की हेड लाइन पर पड़ी : "जोआकिन मुरिएता
मारा गया।" अख़बार अपने सीने से चिपकाए वह उल्टे पाँव घर लौट आया  - रास्ते भर यह सोचता रहा कि एलिजा को यह खबर कैसे बतलाए... और जब उसे यह पता चलेगा तो एलिजा की प्रतिक्रिया क्या होगी?



तीन महीने तक बगैर दिन-रात देखे और जान की परवाह किए कैलिफोर्निया के जंगल पहाड़ और कंदराओं को छान मारने के बाद  24 जुलाई को पौ फटने से पहले कैप्टन हैरी लव और उसके बीस भाड़े के टट्टुओं ने तुलेर घाटी में पहुँच कर डेरा डाला। वे सब  बुरी तरह से थक चुके थे और भूतों की तरह यहाँ  वहाँ  एक अदृश्य दुश्मन  का पीछा करते करते टूटने लगे थे। मौसम की गर्माहट और मच्छरों ने उनका जीना हराम कर दिया था और नौबत यहां तक आ पहुँची थी कि वे एक दूसरे को इस पूरी दुर्दशा के लिए बुरा भला कहते हुए जिम्मेदार ठहराने लगे थे। उन्हें बार-बार लगता कि जो पैसे उन्हें मिलते हैं उसके एवज में तीन महीनों से कड़ी धूप में बगैर शरीर को पल भर का आराम दिए हुए वे जंगल और पहाड़ में जिस तरह से भटक रहे हैं उसका कोई मतलब नहीं है। शहर में उन्होंने ऐसे पोस्टर देखे जिसमें घोषणा की गई थी  कि डकैत को पकड़ने के लिए एक हजार डॉलर का इनाम रखा गया है। एक नहीं कई ऐसे पोस्टरों पर उन्होंने नीचे हाथ से लिखा हुआ देखा कि "मैं एक हजार  नहीं बल्कि पाँच हजार  डॉलर दूंगा....", इन शब्दों के नीचे जोआकिन मुरिएता  के दस्तखत होते।



जहाँ-जहाँ  भी वे इस तरह के पोस्टर देखते उनको खुद पर शर्मिंदगी महसूस होती, लगता तीन महीने में अब सिर्फ तीन दिन और बाकी हैं और उन्हें जोआकिन का कोई निशान अब तक नहीं मिला। यदि वे खाली हाथ लौटे तो  गवर्नर के एक हजार  डॉलर के इनाम में से एक सेंट भी उनके हाथ नहीं लगेगा....यह  कितनी शर्म की बात होगी। तभी उनकी नजर सात निहत्थे मैक्सिकोवासियों के ऊपर पड़ी जो सुनसान में निश्चिंत हो कर पेड़ों के झुरमुट के नीचे आराम कर रहे थे। उन्हें लगा कि आस छोड़ते छोड़ते किस्मत ने पलटा खाया और उनका शुभ दिन आ गया।



बाद में कैप्टन ने बयान दिया कि वे सातों बहुत अच्छे नफीस कपड़े पहने हुए थे और उनके घोड़े भी खालिस नस्ल के घोड़े थे... यही कारण था कि कैप्टन लव को उन पर शक हुआ और वे उनसे वहाँ  होने के मकसद को ले कर पूछताछ करने लगा। वे जवाब देने के बदले वहाँ  से पलट कर भागने लगे पर कैप्टन लव के आदमियों ने उन्हें चारों और से घेर लिया। उनमें से एक आदमी जो देख कर उनका सरदार लगता था, अपनी धीर गम्भीर चाल से घोड़े की बढ़ता रहा जैसे उसने कुछ सुना ही न हो - उसके पास कोई हथियार नहीं था सिवा एक बड़े से चाकू के, वह भी बेल्ट में पीछे बंधा हुआ। वह घोड़े पर चढ़ने को हुआ कि कैप्टन ने अपनी पिस्तौल निकाल कर उसकी कनपटी से सटा दी... यह सब इतनी फुर्ती से हुआ कि वह घोड़े की जीन में बंधी हुई अपनी बंदूक निकाल नहीं पाया। कैप्टन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि उसके साथ के  मैक्सिकी कुछ दूर जा कर ठगे से इस इंतजार में खड़े रहे कि पल भर की भी दुश्मन की तरफ से गफलत हुई कि वे झपट कर अपने सरदार को मुक्त करा लेंगे। कैप्टन लव के सिपाहियों को भरमाने के लिए वे सभी पीछे मुड़ कर भागने लगे... इधर उनका सरदार अपने अधीर घोड़े को मुश्किल से काबू कर पा रहा था। लगाम जैसे ही उसने थोड़ी ढीली की, घोड़ा सरपट भागा। पल भर भी नहीं बीते कि पीछे से एक गोला आ कर उसके घोड़े की टाँग  में लगा....खून की उलटी करते हुए वह वहीं जमीन पर लुढ़क गया। कैप्टन लव के दावे के अनुसार घोड़े का वह सवार जोआकिन मुरिएता  ही था.... हिरण की सी फुर्ती से वह उतर  कर भागा पर कैप्टन ने पिस्तौल की सभी गोलियाँ  सामने से उसके सीने में उतार दी।



"अब अपनी गोलियाँ  क्यों बर्बाद कर रहे हो? तुम जो करना चाहते थे वह कर लिया।", जमीन पर धराशायी होते हुए उस ने कैप्टन से कहा और देखते-देखते खामोश हो कर लुढ़क गया।



नमक मिर्च लगा कर यह घटना अखबारों में छपी और इसके बाद मेक्सिको से आया कोई भी नागरिक वहाँ  क्या हो रहा है, यह देखने के लिए जिंदा नहीं बचा। कैप्टन हैरी लव ने अपनी तलवार निकाली और उससे एक झटके में जोआकिन मुरिएता का सिर धड़ से अलग कर दिया। उसके सिपाहियों में से किसी ने गौर किया कि मारे गए मेक्सिकियों में से एक की ऊँगलियाँ  कटी हुई हैं सो फौरन यह मान लिया गया कि तीन ऊँगलियों वाला जैक यही होगा।  उन्होंने उसकी गर्दन भी धड़ से अलग कर दी... हाँउसका हाथ काटना भी उन्हें नहीं भूला जिससे कटे हुए सिर के साथ कटी ऊँगली वाला हाथ भी नुमाइश लगा कर लोगों को दिखाया जा सके।



बीस सिपाहियों का जत्था  नजदीक के शहर की ओर सरपट दौड़ता हुआ भागा। रास्ते में इतनी गर्मी थी कि तीन ऊँगलियों वाले  जैक का ढेर सारी गोलियों से बुरी तरह छलनी हो चुका सिर सड़ने लगा और दुर्गन्ध परेशान करने लगी  सो उन्होंने बीच रास्ते ही उसे सड़क किनारे फेंक दिया।



कटे सिर की सड़ांध और मक्खियों की भिनभिनाहट ने कैप्टन हैरी लव को यह महसूस करा दिया कि मुरिएता  के सिर को सड़ने से बचाने का कोई उपाय तुरत नहीं किया तो सैन फ्रांसिस्को तक इसे ले कर पहुँचने के बारे में भूल जाए... लेकिन लाश को सैनफ्रांसिस्को ले जाए बगैर उसे इनाम की राशि मिलेगी कैसे? सो उसने आनन फानन में जिन के बड़े से जार में मुरिएता के कटे हुए सिर को डुबो दिया जिससे वे और सड़ने से बच जाए। 


सैन  फ्रांसिस्को पहुँचने पर कैप्टन का एक हीरो की तरह स्वागत किया गया - आखिर उसने कैलिफोर्निया को इतिहास के सबसे दुर्दांत अपराधी से मुक्त जो कराया था।



लेकिन जैकब फ्रीमोंट को सारे मामले में कहीं कुछ षड्यंत्र की  बू आ रही थी  क्योंकि चीजें बहुत साफ और पारदर्शी नहीं थीं। जैसे सबसे बड़ा सवाल तो यही था कि कैप्टन लव और उसके लड़ाके जैसा वर्णन कर रहे हैं क्या वही सच था... या उसमें कुछ लीपापोती कुछ जोड़ घटाव किया गया था? और शक का दूसरा मुद्दा यह था कि तीन महीनों तक जिस जोआकिन को पकड़ने के लिए वे जंगल पहाड़ एक किए हुए थे और सफलता दूर दूर तक नजर नहीं आ रही थी वह इनाम की अवधि बीतने के महज तीन दिन पहले इतने नाटकीय ढंग से सात मैक्सिकियों को एक साथ पकड़ कर उन्होंने पूरी कर दी। और तो और उस शहर में या उस इलाके में कोई भी ऐसा एक इंसान नहीं था जो दरअसल जोआकिन मुरिएता  को पहचान सके। फ्रीमोंट स्वयं कथित रूप से जोआकिन के कटे हुए सिर को नजदीक से देखने गया लेकिन वह भी पक्के तौर पर नहीं बता पाया कि जिस डाकू को वह जानता पहचानता था यह उसी का सिर है.... हालॉकि उसने स्वीकार किया कि कुछ कुछ समानता लग रही है।



जोआकिन मुरिएता का कटा हुआ सिर और उसके साथी तीन ऊँगली वाले जैक का कटा हुआ हाथ कई हफ्तों तक सैन फ्रांसिस्को में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए रखे गए, उसके बाद उन्हें एक विजय जुलूस के साथ कैलिफोर्निया के विभिन्न हिस्सों में लोगों को दिखाने के लिए ले जाया गया। हर जगह इस इनामी स्मृति चिह्न को देखने की होड़ लगी रही... लंबी-लंबी कतारों में लोग आते और नजदीक से निहारने की कोशिश करते।



नुमाइश के लिए रखी इन चीजों को देखने सबसे पहले जो लोग पहुँचे एलिजा उनमें शामिल थी - ताओ चिएन भी उसके साथ साथ गया, वह इस परीक्षा की घड़ी में उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहता था। उसने सुबह जब यह खबर अखबार में पढ़ी तो आश्चर्यजनक रूप से शांत दिखाई दे रही थी। देर तक धूप में लाइन लगा कर खड़े रहने के बाद उनकी बारी  आई और वे हॉल में अंदर घुसे। अंदर प्रवेश करते हुए एलिजा ने ताओ चिएन की ऊँगलियाँ  कस कर पकड़ लीं पर ऊपरी तौर पर बगैर किसी घबराहट  के पूरा विश्वास दिखाते हुए उसने अंदर कदम रखे। उसके पूरे कपड़े बेतरह बह रहे पसीने से गीले हो गए थे और हड्डियाँ  अंदर से थर थर काँप रही थीं लेकिन बाहरी तौर पर वह  भरसक शांत और स्थिर दिखने की कोशिश करती रही । हॉल क्या  बल्कि वह लगभग अंधेरा सा एक कमरा था जिसके बीचों बीच दिख रही एक कब्र के चारों ओर  मरियल सी पीली रोशनी बिखेरती  मोमबत्तियाँ  जल रही थी। दीवारों पर काली चादर डाली हुई थी और एक कोने में पियानो पर कोई मातमी धुन बजा रहा था जिसमें रस्म अदायगी ज्यादा थी, भावनाएँ  बिल्कुल नहीं। एक टेबल पर  शीशे के दो जार रखे थे जिन्हें ताबूत की तरह रखा गया था। पास पहुँच कर एलिजा ने अपनी आँखें बंद कर लीं और ताओ के ऊपर छोड़ दिया कि वह आगे बढ़ कर उसे साथ साथ ले चले - उसके दिल की धड़कनें पियानो से उठती मातमी धुनों के बीच डूबती गुम होती जा रही थीं। और सामने पहुँच कर उसके दिल ने सचमुच धड़कना बंद कर दिया। उसे अपनी ऊँगलियों पर अपने दोस्त की ऊँगलियों की पकड़ मजबूत होती महसूस हुईं... अपना मुँह पूरा खोल कर उसने भरपूर साँस भरी और कस कर मूँदी हुई आँखें एक झटके से खोल दीं। बिल्कुल पास रखे जार में निष्चेष्ट पड़े सिर को पल भर को निहारा  और हड़बड़ी में हॉल से बाहर निकल गई।

"क्या वही था?"

"अब मैं आज़ाद हो गई!", ताओ की हथेली पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए उसने बस इतना कहा।


(संकलन और अनुवाद : यादवेन्द्र)




यादवेन्द्र





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