सुमन कुमार सिंह

                               (सुमन कुमार सिंह)


भोजपुरी कवि रामजियावन दास बावला पर प्रस्तुत है सुमन कुमार सिंह का भोजपुरी में दूसरा आलेख



लोकानुरागी कवि रामजियावन दास बावला





अब त इहे कहे के परी कि ‘ एगो कवि रहलन!’ हँ ऽऽ अब बावला जी के बारे में इहे कहल जाई।
 1 मई, 2012 के उहाँ के निधन भ गइल।

मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश निवासी रामजियावन दास बावला जी भोजपुरी के वरिष्ठ कवि रहीं। उहाँ के कविताई चर-चरवाही आ श्रद्धा-भक्ति के बीच से हो के पनपल रहे। पढ़ल-लिखल ना रहीं, बाकिर गृहस्थ जीवन आ कृषि संस्कृति के जवन सूझ-बूझ उहाँ के भीतर बसल रहे,  उहे पा के उहाँ के कविताई स्नेह लुटावत रहे। उहाँ के जतने लोक के रहीं , ओतने प्रकृति के आ आम आदमी के। उनका कविता गीत के एके संग्रह हो पाइल रहे जवना के नाम रहे ‘गीत लोक’। एह गीत लोक के भूमिका वरिष्ठ साहित्यकार विद्यानिवास मिश्र लिखले रहलन।

बावला जी एक लेखा से सहज-साधारन भक्ति-भाव के कवि रहलन। उ भक्ति-भाव, जवना में लोक संस्कृति के आदर्श रचल-बसल बा। जहँवा राम माने उठतो राम - सुततो राम होला। जेकरा जपे खातिर ध्यान-जोग के कवनो जरूरत ना परे। बावला जी एही लोक परम्परा में एगो भक्त कवि रहलन। उहाँ के भीतर कोल-भील आ बनवासी समाज के अनुभूति रचल-बसल रहे। उनुका खातिर राम, भगवान से अधिका आम आदिमी के रूप में रहलन। तबे त ‘राम-बनवास’ पर लिखल उनुका रचला में सगरे से धकियावल एगो अइसन अदिमी नजर आ रहल बा जवना के केहु पुछवइया नइखे। जबकी ओही अदिमी से चारो-ओरे अँजोर बा। बावला जी ओह आदमी के पुछनिहार बन के खाड़ होखत नजर आवऽताड़े –

‘‘कौना रे नगरिया में अँजोरिया नाहीं भावे, बबुआ बोलता ना
केई रे दिहले तोहके बनवास, बबुआ बोलतऽना।’’

बावला जी के कविताई के सरोकार दूर-दूर तक फैलल नइखे लउकत। काँहे कि ओह मे देश -दुनिया के बड़-बड़ बात नइखे लउकत। बाकिर एगो रचनाकार के जवन जमीनी सरोकार होखे के चाहीं ओकरा ले बावला जी एकदम भीतर ले जुड़ल लउकत बाड़े। उनकर अपना गाँव-घर, खेत-खरिहान, डीह-डिहुवार से लेके पंच-सरपंच आ कोर्ट कचहरी के काराधारा आ बदलत मिजाज पर नजर बा। एह सब के एके साथे कइगो भाव में नमन कइले बाड़े –

‘‘गाँव घर खेत खरिहान के नमन बाटै, नमन सिवान के नमन घूर धार के
ताल खाल नदी नार पोखरा इनार कुल, नमन करीला बाबा डीह-डिहुवार के।
नाद कोना चरनी दुवार के दलान के भी, नमन कहार के नमन चौकीदार के।
पंच सरपंच परधान के नमन बाटै, नमन बा टी0 बी0 नमन चित्रहार के।।
ब्लाक के नमन ताक झाँक के नमन बाटै, नमन विकास वाले रोजी रोजगार के।
सींचपाल, लेखपाल आदि के नमन बाटै, नमन बा बिजुरी के बिल सरकार के।
फीस के नमन न्यायधीष के नमन बाटै नमन बा डोलीवाले पिछिला कहार के।
थाने के नमन जेल खाने के नमन बाटै नमन दिवान के नमन थानेदार के।।
(‘नमन बाटै’ कविता से)

बावला जी के नमन करे के इ तरीका चकित कर रहल बा। उ ओह हर चीज के नमन कर रहल बाड़े जवना से जिनिगी के कार-बार चलेला। हो सकेला कि एह सबके नमन करे के अलग-अलग भाव होई, बाकिर इ डोलीवाला पिछिला कहार के ह ? कोर्ट चलावे वाला न्यायाधीश, थाना के थानादार, पंचाइत के परधान- इ सभे मिल के देश आ समाज के चला रहल बा। बाकिर एह सबके ढोये वाली डोली में लागल कहारन में जवन सबसे पीछे लागल हाँफ रहल बा, लागता कि बावला जी बोझ से दबल ओह पिछिला आदिमी के ओर इशारा कर रहल बाड़े जवन हमनी के समाज के डोली ढो रहल बा। इहे कवि के खासियत बा। एह राज व्यवस्था के पहचाने के आ एकर पोल खोले के कोशिश कई जगे लउकऽता । उ अपना ‘बात’ कविता में कह रहल बाड़े कि-

‘‘मीठी-मीठी बतिया में घतिया छिपल बाटै, जतिया क पतिया क होत बा लड़ाई।
कुल्हियै इनरवा में भंगिया घोराइ गइले मनई से मनई करैला निठुराई।
दागि-दागि पेटवा चपेटवा सहत जात दिनवा गरीब क न भेंटले - भेंटाई।
उँचकी अटरिया के ओर सब निरखैला निचवां न ताकैला धँसल जाले खाई।।’’

एह अनैतिक बदलाव के बात प आपन चिंता सुनवला के बाद एही कविता मे आगे बता रहल बाड़े कि कइसे इ व्यवस्था बदल रहल बिया जवना के कवनो मतलब नइखे!

‘‘हाथ गोड़ उहै बा कपार देह उहै बाटै अचरज लागैला बदल गई बोलिया।
गाँव गली घर कुल जइसे के तइसे हो राम जाने कइसे बदल गई टोलिया।
हवा पानी उहे बा परानी बदलाव मुँहे धीरे-धीरे होत बा उधार कुल पोलिया।
चान भान धरती अकास कुल उहै बाटै मढ़वा पुरनका बदल गई खोलिया।।’’

एह सबसे अलगे बावला जी के एगो बड़ खासियत इहो बा कि उनुकर मन जहँवा रमत बा उहँवा उ अपना सांस्कृतिक परिवेश के चित्रकारी करत लउकत बाडे। प्रकृति के सिंगार से झिलमिल उ परिवेश मन मोहऽता । एह चित्रकारी में कवि के किसान मन के ठाट लउकऽता। अपना ‘बात’ कविता में एक जगे रोपनी-डोभनी के चर्चा करत कह ऽ ताड़े कि

‘‘ मेड़न पै बिछिलै सरकै पग दाबि चलै देहियाँ बल खाला।
बून परै झमकै बदरी कजरी आँखिया जनु मारत भाला ।
रोपत धान उतान उठै मुड़ि देखैं त चान बेचारा पराला ।
बोलत बा रस बात कबौं कुड़कै भउजी देवरा मुसुकाला ।।’’

इ पढ़ला के बाद हिन्दी के कतने सिंगारिक कवि लोग इयाद आवे लाग ऽ ताड़े। धानके रोपनी शुरू बा। रोपनीहार आ रोपनहारिन के रूप में घरही के लोग लागल-भिड़ल बाड़े. कवि मेड़ पर धीरे-धीर गोड़ दबा के चलत आ तलमलात रोपनहारिन के देख रहल बाडे। एक तरफ करिअई बदरी झमक रहल बिया तऽ दुसरे ओर रोपनहारिन के करिअई आँख भाला अस मन में चुभ रहल बिया। धान रोपत एह रोपनहारिन के अइसन सुघरई बा कि अचानक जे उ आपन मुड़ी उठा के देख लेव त बेचारा चाँद भी भाग चले। रोपनी चल रहल बा आ देवर आ भउजाई हँसत-बोलत एह में भिड़ल बाड़न। इ सँउसे दृश्य किसान जीवन के ओह सभ दुःख तकलीफ प ऽ पर्दा डाल देता जवना में उ कुंहुक रहल बा। सँगोरे-सँवारे आ सिरिज देबे के भाव एह प्रसंग के आपन ताकत बा। बावला जी इहे देखावलो चाहत बानी। बाकि इ कहे मे कवनों हिचक नइखे कि बावला जी के पकड़ सिंगारो प ऽ बड़ा मजबूत बा। इ बात उनका कविता में कई जगे आइल बा।

समकालीन भोजपुरी साहित्य के सहारे जब पहिला बेर हम कवि बावला जी के पढ़नी, अबले उहे परिचय इयाद बा। साल बदलत रहे। सभे अपना-अपना नजदिकी के ‘हैपी न्यू इयर’ के कार्ड भेजत रहे। एह बदलत नया साल प कवि रामजीयावन दास बावला के भी नजर रहे। उ अपना तरफ से नया साल के जवन संदेश रचलें , उ भोजपुरिया पाठकन के आज तक इयाद होई।
हम ओह कविता-संदेश के अपना डायरी में लिख लेले रहीं –

‘‘ बासल बयार ऋतुराज क सनेस देत, गोरकी चननिया क अँचरा-गुलाल हो
खेत-खरिहान में सिवान भरी दाना-दाना,चिरईं के पुतवो ना कतहूँ कँगाल हो
हरियर धनिया चटनिया-टमटरा क, मटरा के छेमिया के गदगर दाल हो
नया-नया भात हो सनेहिया के बात हो, एहि बिधि शुभ-शुभ-शुभ नया साल हो।

त अइसन सनेही कवि होखे खातिर बहुते तप के जरूरत पड़ेला। तप से तपल कवि रहीं बावला जी। उ बहुत बड़-बड़ ग्रन्थ भा कविता संग्रह ना दे पवले हमनी के। खूबे चर्चो में ना रहलें। बाकिर जवने रचलें उ लोक के हो गइल । अब जब-जब नया साल आई हमनी अस बहुते लोग के इयाद आई उनुकर शुभ संदेश । अपना रचनन के सहारे उ हरदम याद आवत रहिहें।



संपर्क:

द्वारा- डा0 टी0 एन0 चौधरी
फ्रेंड्स कॉलोनी, कतिरा,
आरा - भोजपुर
पिन- 802301 (बिहार)


मो0- 8051513170

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