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सितंबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अमीर चन्द वैश्य

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पहली बार पर वरिष्ठ आलोचक अमीर चन्द्र वैश्य हर महीने एक कृति की समीक्षा प्रस्तुत कर रहे हैं। इसी क्रम में इस बार प्रस्तुत है आलोचक भरत प्रसाद की आलोचना पुस्तक 'सृजन की इक्कीसवीं सदी।'  वैश्वानरी चिन्तन एवं चिन्ताएँ     मेरे सामने एक महत्वपूर्ण पुस्तक है ‘सृजन की 21 वीं सदी’.  लेखक हैं उदीयमान कवि-कहानीकार और आलोचक भरत प्रसाद। समसामयिक विषयों पर विचारपूर्ण आलेख भी लिखते हैं अपने निरन्तर अध्ययन-अनुशीलन और लेखन से वह हिन्दी-संसार में अपनी अलग पहचान भी बना चुके हैं। साहित्यिक पत्रिकाओं में उनके सर्वेक्षात्मक आलेख प्रकाशित होते रहे हैं। उनके आलेख उनकी अध्ययनशीलता और आलोचनात्मक शक्ति का प्रमाण प्रस्तुत हैं।     ‘सृजन की 21 वीं सदी’ में भरत प्रसाद के बीस आलेख संकलित हैं। वर्तमान सदी के प्रथम दशक में लिखित संकलित आलेख तीन भागों में विभक्त हैं। ‘साहित्य की परिधि’ भाग में ग्यारह आलेख संकलित हैं। ‘सृजन के अतिरिक्त’ भाग में साहित्येतर विषयों पर छः विचारपूर्ण आलेख। और ‘पूर्वोत्तर का भारत’ में तीन ज्ञानवर्धक आलेख।     भरत प्रसाद के जा...

भालचन्द्र जोशी

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भालचंद्र जोशी हमारे समय के सुपरिचित कहानीकार हैं। भाल चन्द्र जी ने अपनी कहानियों में उन साहसिक विषयों को उठाने का जोखिम मोल लिया है जिससे आमतौर पर कहानीकार बचते रहे हैं। 'चरसा' इनकी ऐसी ही एक कहानी है जिसमें अछूत  जाति के युवक किशन ने अपने ही गाँव की ब्राहमण युवती सविता से प्रेम करने का दुस्साहस किया है। इस प्रेम कहानी के जरिये भाल चन्द्र जी हमारे सामाजिक धारणाओं की उधेड़ बुन करते हुए अन्ततः वहाँ ला खडा करते हैं जो हमें एकबारगी हिकारत से भर देता है। तो आईए पढ़ते हैं भालचंद्र जी की यह कहानी।          चरसा     दफ्तर से निकल कर वह चौड़ी भीड़ भरी सड़क पर आया तो उसका मन खिन्न था। भीड़ से बच कर वह पैदल चलता हुआ सड़क किनारे की इमारतों को अकारण घूरने लगा। सड़क का रास्ता तय करके वह अपने मुहल्ले की गली में दाखिल हुआ। कुछेक बूढ़े शाम होने से पहले ही ओटलों पर आ बैठे हैं। उसने गरदन झुकाई और आगे बढ़ गया। आभिजात्य मकानों की एक लम्बी कतार के बीच से गुजरते हुए उसने सोचा, आज भी केशव का फोन नहीं आया। हालांकि केशव को उसके दफ्तर का फोन नम्बर और घर क...