मानवेन्द्र
मानवेन्द्र तैंतीस
वर्ष के युवक हैं. जे० जे० कॉलेज, झुमरीतिलैया (झारखण्ड) में कार्यरत हैं. ये
कविता लिखते हैं. इनके पास एक डायरी है जो कविताओं से भरी है.कुछ कविताएँ हैं जो
पूरी हो गई हैं और कुछ अधूरी हैं. इनकी डायरी देख कर मैं हैरान हुआ, खासकर इस बात को
लेकर कि आज के इस भागमभाग वाले दौर में भी एक युवक है जो कविताएँ अपनी डायरी में
चुपचाप दर्ज कर रहा है. अपने आस-पास और देश-दुनिया की गतिविधियों को वह काफी
संजीदगी के साथ न केवल देखता है बल्कि उसे अपनी कविता का विषय भी बनाता है.
मानवेन्द्र से मिलना और उनकी डायरी से गुजरना एक उम्मीद से संवाद करने जैसा है.
आशा और निराशा के द्वन्दव् भी देखे जा
सकतें हैं. कविताओं में सहज अनगढ़ता देखने को मिलती है. मानवेन्द्र की कवितायें,
उम्मीद है कि आगे चलकर जरुर निखरेंगी. कविताएँ अविकल रूप में प्रस्तुत की जा रही
हैं.
.--- बलभद्र.
(इरोम शर्मिला के लिए)
विश्वास ना होता
सम्भव ना लगता
पर कैसे कर रही है
वो असम्भव को!
सांसे ठहर-सी जातीं
खून सिहर-सा जाता
कैसे अड़ी है वो
अकेले लड़ने को!
एक बात
एक लड़की
एक जिद
सब खिलाफ
पर वो अडिग
कोने का राज्य
महत्व ना खास
किसको पड़ी है उसकी
उसका है राज्य
ख्याल है उसको
दृढ़-प्रतिज्ञ है
जो बरदाश्त नहीं, बदलने को.
किसको पड़ी है, ना पड़ी हो
उसके महत्व का है
किसी-को फर्क पड़े, ना पड़े
उसको तो पड़ा है
१२ साल से अनशन!
ना सोचा होगा उसने
कि होगा ऐसा अनशन!
पर देखिए जरा जज्बा
जो ठान लिया सो ठान लिया
जो कर दिया सो कर दिया
नहीं पता पिघला मन किसका
नहीं पता, क्या होगा अंजाम इसका
मैं तो समझा
लड़ना होगा हर को
फर्क पड़ता हो ना हर-को
अपनी बात अपने मुद्दे
अपना दर्द अपनी जज्बात
सुनाना होगा सबको...
सब कुछ आस-पास
नहीं कुछ मेरे पास
घिरा हूँ निराशाओं से
गिरा हूँ आशाओं से
गम में डूबा
हताशा से ऊबा
सोच रहा क्या किया
सोच रहा कैसे जिया
घोर अभाव से जूझ रहा
खुद को सम्भाले
जल-बूझ रहा
सब कागजी ही साबित हुई
अब तक अपनी पीठ अपने
ही थपथपाई
बोर हो चुका
अपनी दशा से
खुद के सन्नाटे से
अंदर ही अंदर शोर हो
चुका...
सम्पर्क-
सहायक- लेखा विभाग,
जे० जे० कॉलेज, झुमरीतिलैया,
कोडरमा, झारखण्ड-825409.
मो०- 09934149300
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 13/09/2013 को
जवाब देंहटाएंआज मुझसे मिल गले इंसानियत रोने लगी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः17 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
बेहद सुंदर ....लिखी गयी ...रचनाएँ
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