विश्व लोकधर्मी कवियों की श्रृंखला
विश्व लोकधर्मी कवियों की श्रृंखला
‘पहलीबार' में विश्व के लोकधर्मी कवियों की श्रृखंला पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार दे रहे हैं। इसे हम अपने पाठकों तक पहुँचाने के लिये बहुत दिनों से उत्सुक थे। पर संभव यह अभी हो पा रहा है। विजेंद्र ने हमारे आग्रह पर विश्व के प्रख्यात लोकधर्मी कवियों पर यह श्रृंखला तैयार की है। हमारा विनम्र प्रयास है कि इन विश्व के महान लोकधर्मी कवियों के परिप्रेक्ष्य में हम अपनी लोकधर्मी कविता तथा समाज की बुनावट को समझे- परखें। अपनी कविता से फिर हम विश्व की लोकधर्मी कविता को देखें। इस सहज द्वंद्वमय प्रक्रिया से कदाचित् हम ‘लोक’ की अवधारणा तथा लोकधर्मी कविता के बारे में कुछ सांकेतिक निष्कर्ष निकाल पायें। लोक के बारे में आज भी अनेक विभ्रम हमारे बीच हैं। आचार्य भरत के समय से ‘लोक’ हमारे यहाँ जाना जाता रहा है। फिर भी क्या वजह है कि लोक का सही रूप समझने में हमें विभ्रम परेशान करते हैं। लोक कहते ही हम गाँव की ग्राम्यता या आदिवासियों के नृत्य, गान, कला, रीतिरिवाज, वेशभूषा, तीज-त्यौहार, मेले या उत्सवों की ओर खिचे चले जाते हैं। फिर कहते हैं कि इस ‘रूमानियत’ का आज की वैज्ञानिक संवेदना से क्या रिश्ता! ध्यान दें युक्त बातें लोक का सांस्कृतिक पक्ष ही बताती है। हर जाति के सांस्कृतिक जीवन के साथ उसका संघर्षमूलक जीवन और इतिहास भी होता है। लोक के इस संघर्षमूलक रूप को इतिहास तथा साहित्य दोनों ही दरकिनार करते रहे हैं। ऐसा क्यों हुआ इस पर आगे विचार की जरूरत है। मसलन हमारे मुक्तिसंग्राम के समय भारत के हर प्रांत में आदिवासी साम्राज्यादी क्रूर अँग्रेजों से जमकर मुठभेड़ कर रहे थे। महात्मा गाँधी के साथ भारतीय जनता बलिदान दे रही थी। आदिवासियों में बिरसा मुण्डा, तिलका माँझी, पुंजा भील, केरल में वनवासी किसान, जगदलपुर में विप्लवी आदिवासी आदि। यानि मुक्तिसंग्राम में लोक की निर्णायक भूमिका थी। फिर भी हमने लोक को दरकिनार क्यों किया! यह हमारी बहस का विषय क्यों न हो। दूसरे, लोकतंत्र में हमें लोक की पुनर्व्याख्या करनी चाहिये। आज के वर्ग विभाजित समाज में लोक है। तो प्रभु लोक भी है। सामान्यजन है तो कुलीन जन भी है। ऐसे में कवि को तय करना होगा कि लोकतंत्र में उसकी पक्षधर भूमिका क्या हो! एक प्रकार से आज लोक सर्वहारा का पर्याय बन चुका है। विश्वविख्यात लेखक गोर्की ने कहा था कि लेखक को अपना पक्ष स्पष्ट करना चाहिये कि वह किसके साथ है। इसी बात को मुक्तिबोध ने दोहराया कि हम किसके साथ है यह तय करें। इससे लगता है लोकधर्मी कवि वही है जो जनता- सर्वहारा- के पक्ष में अपनी कविता को खड़ा करता है। इस बात के जीवंत साक्ष्य प्रस्तुत श्रृंखला के कवियों के जीवन तथा उनकी कविता से मिलेंगे। इन कवियों ने कविता को लोक के पक्ष में खड़ा करके न केवल बड़े जोखिम उठाये बल्कि सत्ता द्वारा दी गई क्रूर यातनायें भी सहीं। हिंदी में या अन्य भारतीय भाषाओं में भी ऐसी लोकधर्मी कविता के साक्ष्य विरल हैं। 1857 का स्वाधीनता संग्राम भारतीय क्रांति की पहली अद्वितीय मिसाल है। जैसा कि हम जानते हैं उस क्रांति के संकल्प अभी हम अर्जित कहाँ कर पाये हैं! तो क्रांति की उस अधूरी छूटी प्रक्रिया को अग्रसर करने में आज के कवि की क्या भूमिका हो! हो भी या नहीं! प्रस्तुत कवियों की कविता से यह भी साफ होगा कि लोक किसी गाँव जनपद, क्षेत्र, राज्य या देश से परिसीमित न होकर पूरे विश्व की प्रतिरोधी अभिलक्ष्णा है ।साथ ही लोक का सहज स्वभाव है अपनी मुक्ति के लिये प्रतिरोधपूर्ण संघर्ष करना।
बहरहाल इस श्रृंखला की पहली कड़ी को हम प्रारंभ करते हैं अमरीकी विश्वविख्यात वाल्ट व्हिटमैन से।
(वाल्ट व्हिटमैन)
विजेंद्र
लोकधर्मी कवि वाल्ट
ह्विटमैंन
वाल्ट् ह्विटमैन मेरे वैसे ही प्रिय कवि हैं
जैसे अन्य लेाकधर्मी कवि लोर्का, पाब्लो नेरुदा,
नाज़िम हिकमत, ब्रेख्त तथा माइकोवस्की। इनसे भी अधिक प्रिय है. 1500 साल पुराने चीनी कवि वाइ जुई। मैं काशी हिदू विश्वविद्यालय में स्नातक छात्र
था। कविता पढ़ाने वाले हमारे प्रो0 साहनी ने एक दिन
आधा घंटे तक कक्षा में ह्विटमैंन पर व्याख्यान दिया। मज़े की बात यह कि वह पढ़ा
वर्डस्वर्थ रहे थे। इस महान कवि का कोई प्रसंग न था। सहसा ‘बिलेंकवर्स’ और काव्य लय का
प्रसंग आया। बात पहुँच गई वाल्ट ह्विटमैंन पर। उन्होंने इस कवि की अमर कृति ‘Leaves Of Grass’ पढ़ने का आग्रह भी किया। मुझे याद है उसी दिन शाम को मैंने
बाजार से इस पुस्तक का सस्ता संस्करण खरीदा। इधर उधर से पढ़ कर देखा। बहुत कम समझ
में आया। एक दिन त्रिलोचन से इस महाकवि के बारे में चर्चा की। उन्हें यह पुस्तक भी
दिखाई। उन्होंने छूटते ही कहा कि हर कवि को इस महान कवि के लिये समझ कर पढ़ना चाहिए।
जब जीवन मे व्यवस्थित हो गया तो इस काव्य कृति को ध्यान से समझ समझ कर कई बार पढ़ा।
इस कवि के बारे में जहाँ जो कुछ मिला उसे देखता रहा। प्रो0 चंद्रबली सिंह से इसके बारे में खूब सुना। श्रेष्ठ कविता
के बारे में कहा गया हैं कि पढंने के बाद उसमें बहुत कुछ आगे समझने के लिये छूट
जाता है। इसीलिए अंग्रेजी़ के महान विद्रोही कवि शैले ने श्रेष्ठ कविता मे ‘सीमातीत अर्थ’ की बात कही है। जब भी अवसर मिला वाल्ट ह्विटमैंन को पढ़ता
रहा। उसे अपने तथा भारतीय चित्त के बहुत करीब पाया। जब भी मन अवसन्न सा होता है
मैं इसे पढ़ता हूँ। जब-जब पढ़ा इस कवि ने मुझे कविता के लिये प्राणों की ऊर्जा
अर्जित करने के लिये प्रेरित किया। 1980 में मेरा दूसरा काव्य संग्रह, ‘ये आकृतियाँ तुम्हारी’ वाणी से छपा है। उसमें कुछ कवितायें वाल्ट
ह्विटमैन से बहुत प्रभावित हैं। यद्यपि मेरे किसी समीक्षक ने इस बात पर आज तक कुछ
नहीं कहा। पर ये सत्य है। इन कविताओं का स्थापत्य, सरपट दौडती लय, लंबे लंबे वाक्य तथा लीक से हट कर रूपक उक्त कवि की कविता से प्रेरित हैं। पर
यहाँ रूप की प्रेरणा भर है। हर प्रकार से भूमि और बीज मेरे अपने है। ‘Leaves Of Grass’ में एक प्रसिद्ध कविता है ,‘Songs of Myself’। उसकी कुछ पंक्तियाँ हैं-
मेरी जीभ, मेरे रक्त का हरेक अणु
रचा गया है इस
मिट्टी से
इस वायु से
यहाँ पैदा हुआ
अपने माता की कोख से
मेरे दादा परदादा
उनके भी माता
पिता
इसी मिट्टी से जन्मे
है
मैं अब पूरी तरह
स्वस्थ
सैंतीस वर्ष का
आशा स्फूर्त कवि
हूँ
इसी तरह जीने को
अंत तक।
इन पंक्तियों में तीन बातें हमें सबसे ज्यादा
खींचती हैं। एक तो कवि का अपनी धरती से आद्यंत जुड़ाव। दूसरे, जीवन के प्रति गहरी आस्था। तीन, अपनी विरासत से गहरा आत्मिक रिश्ता। इन
पंक्तियाँ की ध्वनि-अनुगूँज-आज भी मेरा पीछा करती हैं। कहा जाता है प्रख्यात
दार्शनिक एमर्सन ने वाल्ट ह्विटमैंन की कृति ‘Leaves Of Grass’ का स्वागत करते हुये दो बातें कही थीं। एक, यह कृति महान काव्य यात्रा का शुभारंभ है। दो,
ऐसे शुभारंभ के पीछे कोई सुदीर्घ पूर्व पीठिका
अवश्य रही होगी। कवि की समूची काव्य यात्रा इन बातों को जैसे साबित करती रही है।
वाल्ट ह्विटमैन मैंनहट्टन के इलाके वाले गाँव
में 31 मार्च, 1819 ई० को जन्मे थे। इस इलाके को वर्तमान न्यूआर्क का वैस्ट हिल
इलाका भी कहते हैं। रोज़ी की कठिनाइयों की वजह से कवि के पिता वाल्टर ह्विटमैंन
मजूरी पर खाती का काम करते थे। यद्यपि उन्होंने अपने खुद का बंज करने की कोशिश की।
पर दुनियादारी की चालाक समझ न होने की वजह से सफल नहीं हुए। सो वह अपने गरीब
परिवार के लिये रोज़ी का कोई ठीक-ठाक प्रबंध नहीं कर पाये। अमरीका के एक दूसरे
ख्यातनाम लेखक मार्क टुइन के पिता भी इसी तरह जीवन में विफल रहे थे। वाल्ट
ह्विटमैंन तथा मार्क टुइन दोनों ने अपने अपने पिताओं की विफलताओं के लिये चालाक,
धोखेबाज़ तथा धूर्त धनी व्यापारियों को कारक
बताया है। वाल्ट ह्विटमैंन ने सामाजिक सरोकारों की चेतना अपने पिता से अर्जित की
है। इसका संकेत वह बाद में अपनी कृति ‘Leaves Of Grass’ में देते भी है। कवि के पिता के ऊपर अमरीकी मुक्ति संग्राम
का बहुत असर था। अमरीका के लोग अंग्रेज़ों के क्रूर शासकों के विरुद्ध संघर्षरत थे।
उस समय वाल्ट ह्विटमैंन मात्र 14वर्ष के थे जब
अमरीका में अंग्रेज़ों से मुक्ति पाने के लिये संघर्ष चल रहा था। यह भी सत्य है कि
कवि के पिता के घर में विद्रोही चेतना का विपुल साहित्य उपलब्ध था। इस सब का प्रभाव
शिशु कवि मन को रच रहा था। कवि का प्रथम कविता संग्रह प्रकाशित होने के बाद उनके
पिता नहीं रहे। कवि अपनी माता को बेहद चाहते थे। उन्होंने बहुत से पत्र अपनी माता
को लिखे हैं। जहाँ-तहाँ कविताओं में भी उल्लेख है। उनकी माँ को एक लड़की का सौंदर्य
अभिभूत किये था। वाल्ट ह्विटमैंन ने अपनी माता के उस सौंदर्यबोध को ध्यान में रख
एक कविता लिखी है। लड़की उनकी माता के पास कोई काम लेने आई थी। उसके सौंदर्य से वह
विमोहित हुई-
जितना डूब कर
उसने (माँ ने) देखा उसे
उतना ही गहरा हुआ
उसका प्यार उसके (लड़की के) लिये
उससे पहले उसने
(माँ ने) कभी नहीं देखा था
इतना अद्भुत
सौंदर्य
इतनी पवित्रता
माँ ने उसे
चूल्हे के पास
बैंच पर बैठने को
कहा
उसके लिये भोजन
बनाया
उसके लिये कोई
काम देने को न था
पर उसने उसे अपनी
चाहत दी
स्मृति भी
* *
* * *
ओ मेरी माँ
तुम कितनी उदास
थी
उसे विदा करते
क्षण
माँ पूरे सप्ताह
उसे याद करती रही
उसकी प्रतीक्षा
भी
अनेक महीनों तक
माँ ने उसे याद
किया
बहुत सी शीत
ऋतुओं में
बहुत से ग्रीष्म दिनों
में।
मुझे लगता है किसी सुंदर व्यक्ति या वस्तु पर
कविता लिखना बहुत सरल है। पर दूसरे के द्वारा सराहे गये सौंदर्य पर कविता लिखना
आसान नहीं। ह्विटमैंन उस कठिन तथा विरल काम को कितनी सहजता से कर पाये है! कुछ दिनों
तक कवि ने स्कूल में पढ़ाई की। पर खराब आर्थिकी की वजह से एक वकील के यहाँ उन्होंने
पत्रक आदि लाने ले जाने का काम किया। बचपन तथा युवा काल में कवि ने जो इलाके घूमे
फिरे उनके सुंदर चित्रों का प्रतिबिंबन कविताओं में आ सका है-
बचपन में देखे
खिले नीलक पुष्प
हिस्सा बने है
मेरे शिशु कवि मन के
इसी तरह घास
सुरंगी प्रभात की
भव्यतायें
सफेद और सुर्ख
त्रिपतिया
और वनचिड़ी का गान
* * *
*
चौथे पाँचवें
महीने की
उगती फसलों के
खेत
मेरे जैविक
हिस्से हैं
शीत में अंकुरित
होती फसल
हल्के पीत वर्णी
अन्न के पौधे
और उद्यान में
खाने योग्य कंद
मूल
फलों की प्रतीक्षा
में
सेब के दरख्त ढके
हुये फूलों से
वनैली रस भरी
सड़क किनारे
मामूली खरपत .......
यद्यपि ह्विटमैंन प्रकृति से बराबर उल्लसित रहे हैं। पर इसे
किसी प्रकार कर पलायन नहीं समझना चाहिये। आज की अधिकांश हिंदी कविता प्रकृति विमुख
है। इकहरी भी। ऐसा क्यों है? इस पर गौर करने की जरूरत है। क्या प्रकृति के गहन
सान्निध्य के बिना बड़ी कविता संभव होगी! ह्विटमैन प्रकृति और मनुष्य की
द्वंद्वमयता के कवि हैं। जैसे हमारे यहाँ निराला, नागार्जुन, केदार बाबू तथा
त्रिलोचन। जहाँ कवि पैदा हुये वहाँ खुले विस्तृत मैदान थे। फसलों भरे खेत थे।
पशुओं के बाड़े थे। गाँव के पास में ही पछाड़ खाता समुद्र था। जिस छोटे से गाँव में
कवि पैदा हुए-जहाँ बड़े हुए-वह द्वीप के सर्वोच्च शिखर के बिंदु पर बसा था। वहाँ
से उत्तर तथा दक्षिण में समुद्र झलकता रहता था। 20 साल की उम्र में कवि अपने को पेशेवर पत्रकार मानने लगे थे।
40 साल के होते-होते कवि
लगभग निष्क्रिय हो गये थे। पर 1847 ई० में पुनः सक्रिय हुए। ध्यान रहे यह समय अमरीका में बड़ी उथल
पुथल का था। जब उनका मन गाँव से भर गया तब उन्होंने न्यूयार्क आने का मन बनाया। इस
समय अमरीका की घटनायें भूचाल मचाने वाली थी। यही वह समय है जब बाद में छपी
कवितायें ‘Leaves Of Grass’ में संकलित हुई। यह किसी से छिपा नहीं कि ह्विटमैंन ने अपने पिता की आर्थिक
मदद के लिये एक खाती का पेशा भी अपनाया था। उनके पिता भी यह पेशा कर ही चुके थे।
इस तरह कवि ने अपने को सच्चे ‘सर्वहारा’
के रूप में पेश किया। कवि को न्यूयार्क तथा
ब्रुकलिन की सड़कों पर निरुद्देश घूमने की लत थी। इसी तरह वह जनता के करीब रहते थे।
उसका संघर्ष, उसके अभाव,
उसकी पीड़ाओं को करीब से समझते थे। मार्मिक
घटनाओं को अपनी नोटबुक में लिखते थे । वह मुक्तिकामी विचारों के वातावरण में
लगातार विचरते रहे। नीग्रो दासता के विरुद्ध कविता को खड़ा किया। प्रतिरोध भरे
मुहावरे आविष्कृत किये। आक्रामक शब्दों को सिरजा। एकदम नये लोकधर्मी सौंदयशास्त्र
की रचना की। सबसे प्रमुख बात है उनके कोमल हृदय में अपनी संघर्षशील जनता के प्रति
अपार नेह। श्रमिकों के प्रति गहरा आत्मीय भाव। उन्हे अपने समय के लोगों के साथ मिल
कर गाना तथा उनका संगीत सुनना बेहद पसंद था। उनकी कविताएँ उनके देश में व्याप्त
अशिष्टता, भद्दापन, अश्लीलता, गंदगी, अनर्गल जाहिलपन को बार-बार बेखौफ कहती है।
उन्होंने अपने एक आलेख में बताया है कि बड़े शहरों में आने जाने वाले युवाओं में हर
बीस में से उन्नीस वैश्यालयों से परिचित थे। यह भी कि न्यूयार्क में पेशेवर
हत्यारों, चोरों तथा
लुटेरों की सड़ाँध थी। उनके मर्म को आघात देने वाली मुनाफाखोरों की पूँजी केद्रित
व्यवस्था अमरीका में जड़ें जमा चुकी थी। एक बार ह्विटमैंन ने अपने एक मित्र को
बताया कि उन्होंने ‘नाविकों, मछुआरों, माँझियों, मल्लाहों, मछुआरिनो तथा
बंदरगाह पर माल ढोने वालों’ से कितना कितना
सीखा है। उनकी सोच है कि वे सभी ‘कवि’ हैं। पर
‘संप्रेषणीय भाषा’ में अपने भावोदगार व्यक्त’ नहीं कर सकते थे। यानि कवि होना कोई ईश्वरीय
दिव्य गुण न हो कर सहज साधना
सापेक्ष मानवीय गुण है। इससे पता लगता है
कवि अपनी भाषा तथा कथ्य का खनिज दल कहाँ से उत्खनित कर रहे थे। अपनी नोटबुक में
कवि ने ड्राइवरों, नाविकों, मछुआरों, खेतिहर श्रमियों को ‘उदात्त’ शब्द से अभिहित
किया है। यही वजह है वह धनी पूँजीपतियों तथा खोखले अंहकारी प्रोफैसरों के बीच जाना
पसंद नहीं करते। वह कहते हैं कि अपनी ‘पतलून के सिरे मोड़ कर तथा अपनी कमीज़ की बाहों को उलट के वह सर्वहारा के साथ
घूमना फिरना’ पसंद करेंगे। जब
तब वह ड्राइवरों को शेक्सपियर के स्वगत जोर जोर से पढ़ कर सुनाते रहते। अपने पचास
साल पूरे करते करते कवि ‘ऊपर से भी
सर्वहारा’ दिखने लगे थे। ‘Leaves Of the grass’ में संकलित उनकी प्रख्यात कविता ‘Songs of the Road‘ , (1856 ) की कुछ पंक्तियाँ हैं -
कब क्या -
सहसा मैं
अजनबियों के बीच सीखता हूँ
बैठता हूँ
कब क्या
जब मछुआरे अपने
जाल
किनारे की तरफ
खीचते हैं
जब मैं कुछ देर
मंद-मंद उनके साथ
चलता हूँ
कुछ देर उनके बीच
ठहरता हूँ
किसी मनुष्य या
स्त्री की शुभकामनाएँ
मुझे क्या देती
है
मुक्त भाव से
उन्हें
मैं क्या दे पाता
हूँ।
ह्विटमैंन को शेक्सपियर, वाल्टर स्कौट, तथा डिकिन्स बहुत प्रिय थे। लेकिन गृहयृद्ध के
बाद से उनकी अभिरुचि विश्व के अन्य साहित्यों में भी बढ़ी। कवि को सर्वहारा के
प्रति सहज प्यार के बिना कोई बड़ी कविता संभव नही लगती। वही उनकी कविता का नायक है।
‘लीव्ज़ आफ ग्रास’ के कवि की रुचि रंगमंच और चित्रकला में भी थी।
उनके सौंदर्यबोध के उत्स सर्वहारा के संघर्षशील जीवन से निसृत होते हैं। उनकी
कविता में व्याप्त लय से लगता है कवि की संगीत में भी गहरी रुचि रही होगी। जीवन के
साठ साल होने के शुरू में अमरीका के दक्षिण प्रांत से युद्ध शुरू हो गया था। गृहयुद्ध
भी निकट ही था। कवि मन में काल्पनिक समाजवाद
घुमड़ने लगा था। कवि मानते हैं कि दासता का जो समर्थन करता है वह स्वयं बदजात दास
है।
ह्विटमैंन का नारा था, ‘I do not rank high in market valuation.’ यानि बाज़ार की
दृष्टि से कवि का मान ऊँचा नहीं है। आज के हालात में यह कहन कितनी सार्थक है।
हिंदी के कुछ कवि सिर्फ बाजार भाव की वजह से ही अपना वर्चस्व बनाये हैं। यहाँ
बाज़ार का ध्वनि अर्थ यह भी है कि सत्ता या दरबार के आसपास अपने हित साधने को बेचैन
रहना। ऐसा हर समय होता है। निराला की पंक्तियों से यह बात और साफ होगी-
‘पैसे में दो
राष्ट्रीय गीत रच कर उन पर / कुछ लोग बेचते गा गा गर्दभ-मर्दन स्वर’।
निराला बाजार को
दुत्कार रहे थे: कवि ह्विटमैंन की तरह ही। ज्यादातर कवि या समीक्षक अनेक तुच्छ
प्रलोभनों के कारण पेशेवर तथा ‘बाजारू’ बन जाते हैं। विरल होते हैं वे जो काव्य साधना का
कठिन पथ अपना के जीते-मरते हैं। धनिकों के बाज़ार में ह्विटमैंन महान लोकधर्मी साधक
कवि अपने देश की जनता -वहाँ के शोषित सर्वहारा -के पक्ष में सब कुछ दाव पे लगा कर
युद्धरत हैं। इसीलिए वह एक योद्धा कवि हैं। उनकी पुस्तकों की उनके देश में माग
नहीं थी। हाँ जब ‘Leaves
of Grass’ पर वैधानिक अभियोग चलने को
हुआ तब कुछ लोकनिंदक अशिष्टों ने उसे जिज्ञासावश देखने को खरीदा। कवि सदा गरीबी और
अभावों में जी कर ही महाकवि बने हैं। अमरीका और ब्रिटेन के कुछ बुर्जुआ लेखकों ने
कवि के विरुद्ध फिज़ा तैयार की थी। इस सबके बावजूद ‘नार्थ अमेरिकन रिव्यू’ ने ‘Leaves Of Songs’ को उसकी मौलिकता, ताज़गी, सादगी तथा सत्य कथन के लिये महत्वपूर्ण बताया
है। हिंदी में भी जनपक्षधर कवियों को हाशिये पर ढकेला जाता रहा है।
कुछ लोगों को ‘सरलता’ और ‘सहजता’ तथा ‘सादगी’ के बारे में भ्रम हो सकता
है। इन काव्य गुणों का कविता की गहराई तथा संश्लिष्टता से कोई वैर-भाव नहीं है।
कविता में सरलता का अभिप्राय है छायाप्रतीति की पपड़ी को भेद कविता के सार तक आसानी
से पहुँच पाना। सहजता का अर्थ है कविता का पाठक से गहरी आत्मीयता का होना। उसे लगे
कि कविता उसी को जैसे संबोधित है। कवि उससे संवाद कर रहा है। सादगी कविता में शब्द
चमत्कार और वाग्मिता का बिल्कुल उलट है। कविता बिना किसी शब्द चमत्कार के यदि हमें
गहन भावबोध तथा गंभीर चिंतन से समृद्ध करे तो वह समर्थ कविता है। सादगी को लेकर
नेरुदा की तो एक पूरी कविता ही है -‘यही है सादगी’। कहा है,
‘खामोश है ताकत मुझे बताते है पेड़
और गहराई मुझे बताती है जड़ें
और शुद्धता मुझे बताता है आटा
किसी पेड़ ने नहीं कहा मुझ से
मैं ऊँचा हूँ
किसी जड़ ने नहीं कहा मुझ से
मैं ही आती हूँ सबसे अधिक गहराई से
और कभी नहीं कहा रोटी ने
कुछ भी नहीं है रोटी जैसा।’
‘खामोश है ताकत मुझे बताते है पेड़
और गहराई मुझे बताती है जड़ें
और शुद्धता मुझे बताता है आटा
किसी पेड़ ने नहीं कहा मुझ से
मैं ऊँचा हूँ
किसी जड़ ने नहीं कहा मुझ से
मैं ही आती हूँ सबसे अधिक गहराई से
और कभी नहीं कहा रोटी ने
कुछ भी नहीं है रोटी जैसा।’
यहाँ जड़ों से उगे
पेड़ का होना महत्वपूर्ण है। कविता में सरलता भी है। सहजता और सादगी भी। चिंतनप्रधान
भावों की संश्लिष्टता इन सबको एकात्म किये
है। कुछ कवियों में सहजता, सरलता और सादगी हो कर ऐंद्रियता, भावबोध तथा चिंतन की गहनता नहीं होती। नेरुदा तथा व्हिटमैन
की कवितायें इसका प्रीतिकर अपवाद हैं।
प्रख्यात कविता,‘Songs
Of Myself’ में देहाकर्षण को ले कर सुदर प्रसंग है। उनमें अश्लीलता न हो कर सहज मानवीय आकर्षण की चित्रोपम संकेत छवियाँ
है । यहाँ मुझे महाकवि तुलसी की एक पंक्ति याद आती है-
‘सबके हृदय
मदन अभिलाषा/ लता निहारि
नबै तरु साखा।‘
अमरीकी बुर्जुआ
समीक्षकों की तरह हिंदी के कुछ लोगों को ह्विटमैंन की कविता भी ’साधारण सूचना देने वाली’ गद्य कविता लग सकती है। क्योंकि उसमे आत्मप्रलापी सूक्ष्मतम
अमूर्तन तथा शाब्दिक अंतर्मनन के चमत्कार नहीं है। जैसे मैंने हिंदी के किसी कवि
की कहीं कविता पढ़ी थी,
‘मुझ में जड़ें है /जड़ों से निकली जड़ें/ और उनसे निकली सिर्फ
जड़ें ही हैं’।
यहाँ जड़ों को ही
अमूर्त कर चमत्कार पैदा किया गया है। जड़ों से जड़ें निकले। यहाँ तक तो चलो ठीक है।
पर ‘जड़ों’ से सिर्फ ’जड़ें’ ही फूटती रहें तो
वृक्ष के विकास का क्या होगा। यदि ‘जड़ें’ यहाँ प्रतीक हैं किसी खास अभिलक्षणा का तो
संकेत है यथास्थिति का। बीज से जड़ें फूटती है। जब जड़ें फूटती है तो बीज द्विपत्र
हो कर धरती और आकाश दोनों को चुनौती देता है। जड़ें ज्यों-ज्यो पौंड़ती है पत्ते आते
है। शाखें बनती हैं। तना विकसित होता है। शाखों पर फूल खिलते है। फल आते हैं। यह
है प्रकृति और जीवन का द्वंद्वमय विकास क्रम जो जड़ों से जुड़ा हुआ वानस्पतिक रूपक
है। जड़ों से जड़ें ही निकलती रहे यह वानस्पतिक तथा जीवन विकास प्रक्रिया के नियम
विपरीत काव्य तर्क है। प्रकृति के अटल नियमों का विपर्यय हमें काव्य विवेक और
मानवीय तर्क से दूर ले जाता है। यह ठीक नहीं है। पर नयेपन की दौड़ में लोग इससे
जरूर रीझेंगे। ऐसी दूर की कौड़ी लाने को ही हम ‘वाग्मिता’ या ‘शब्द चमत्कार’ या अंग्रेजी में ूपज कहते हैं। इसका अभिप्राय है शब्द
चमत्कार पैदा कर काव्य के ध्वनि-अर्थ का अवमूल्यन करना। एलियट जैसे यथास्थितिवादी
कवि ने भी अपनी प्रख्यात काव्य कृति ‘The Weast Land’में ‘जड़ों’ का खास प्रसंग उठाया हैं। कविता का भाव है -
क्रूरतम है
अप्रैल का महीना
कैसे तो नीलक
पुष्प खिल रहे है
इस पथरीली बंजर
भूमि में
ये कौन सी जड़ें
है
इतनी गहरी
जिन से शाखाएँ
फूटती हैं
यहाँ नोट करने की
बात है अप्रेल ऋतु का आगमन। उसमें नीलक फूलों का खिलना। जड़ों का गहरा होना। जिनसे
शाखाये-प्रशाखाये फूटती हैं। यह विकास प्रक्रिया है। नेरुदा में जड़ें बहुत आती
हैं। पर जड़ों से सिर्फ जड़ें ही नहीं फूटती। उनसे चिली के विशाल वृक्ष उगे हैं।
उनसे पत्तियाँ पुष्ट हुई हैं। उनसे पुराने जंगलों की वर्षा जुड़ी है। पृथ्वी को
अपने पास लाने की चाह छिपी है। उनमें माच्चु पीच्चु के शिखर जीवित है। ह्विटमैंन
में मनुष्य और प्रकृति की संक्रियाएँ बीज और जड़ों से ही प्रस्फुटित होती लगती हैं।
उनकी जड़ों में विकास क्रम औेर अग्रगामी गति लक्ष्य की जा सकती है। नवीनता यदि
हमारे तर्कमय भावबोध को समृद्ध नहीं करती तो वह व्यर्थ है। इसीलिए नेरुदा ने तर्क
रिक्त नवीनता का विरोध किया है। ‘Leaves Of Grass’ के प्रारंभिक संस्करणों का जब बड़ा विरोध हुआ उस
समय इमर्सन तथा लिंकन ने कवि को समर्थन दिया था। यद्यपि बाद में बुर्जुआ संस्कृति
के दबाव में इमर्सन भी हिवट्मैंन की कविताओं को ‘ सूचियों की कविता’ कहने लगे थे। जैसे हिंदी के कुछ मनचले मुंबइया फैशन के समीक्षक नागार्जुन की
कविता को कींच-काँद में सनी ‘सूचनाओं की अशुद्ध
कविता’, त्रिलोचन की कविता को ‘मायालोक की कविता’ केदार बाबू की कविता को ‘राजनीतिक उत्साह की सपाट कविता’ जैसे मुहावरों से अलंकृत करते रहे हैं। ह्विटमैंन हमारे इन
अग्रज कवियों की तरह ही अपनी लोकधर्मिता तथा परिवेशगत स्थानीयता को बराबर कहते
हैं। नेरुदा चिली में अपने स्थान के भूदृश्यों को कभी नहीं भूलते। नाज़िम अपने देश
तुर्की के स्थानीय परिवेश को। उसी तरह नागार्जुन अपनी मिथिला को। केदार बुंदेलखण्ड
को। त्रिलोचन अवध को। ह्विट्मैंन मे मैंनहट्टन बार बार आता है-
मैंनहट्टन के लोगों के बीच
मैंने देखा
तुम्हें
बहुत से श्रमिकों
के बीच एक श्रमी
मैंनहट्टन के
निवासी
लंबी डगें भरते
इल्लिनोइस और इण्डियाना के
घास -मैदानों
को
तेज़ तेज़ पार करते
पश्चिम की तरफ
उछलते कूदते
बड़ी बड़ी झीलों के
किनारे
या पैनसिल्वानिया
में
या ओहियो नदी के
सहारे
बंदरगाहों पर
* * *
मैंने देखा
तुम्हारे चलने का ढंग
देखे तुम्हारे
मांसपेशियाँ उभरे अवयव
तुम नीले वस़्त्र
पहने थे
हाथों में औज़ार
थे
मैं कई बार कह चुका हूँ परिवेशगत स्थानीयता
लोकधर्मिता की प्रमुख खूबी है। सामाजिक यथार्थ का एक जरूरी आयाम। यह कवि को
सामाजिक यथार्थ के करीब लाती है। विश्व की महान कविता का यह एक ऐसा प्रतिबिंबन है
जिसके बिना कविता अपनी बनक रच नहीं पाती। हिंदी में ऐसे अनेक कवि है जिनकी अमूर्त
कविता पढ़ कर हम पता नहीं लगा पाते कि वे जीवन भर किस धरती से अंकुरित होते रहे हैं।
भवभूति ‘उत्तर रामचरितम्’ में राम के द्वारा सीता को उन वृक्षों, लताओं, फूलों, भूदृश्यों को बताते हुए दिखाते हैं जो वनयात्रा करते समय उन्होंने देखे थे। यह
भी कि भूदृश्य तब से अब तक कितने बदल गये हैं। जहाँ जल था वहाँ अब रेतीले पुलिन
हैं। किसी भी कविता में परिवेशगत स्थानीयता उसे प्रीतिकर ही नहीं बनाती। बल्कि
उसके आयामों को समृद्ध कर उसे अर्थवान भी बनाती है। भवभूति की पंक्तियाँ है-
इंगुदीपादप: सोअयं
श्रृंबेरपुरे पुरा ! निषाद पतिना
यत्र स्निग्धेनासीत्समागमा:!!
अर्थात् श्रृंगवेरपुर
में यह वही इंगुदी का वृक्ष है जहा पहले स्नेहयुक्त निषादराज से मिलन हुआ था। वाल्मीकि, व्यास, तथा कालिदास के
बारे में यह बताने की जरूरत नहीं कि वे भारत के कवि है। यही कविता का जातीय तथा
राष्ट्रीय चरित्र है। ’Leaves Of Grass’ को पढ़ते लगता है कि हम अमरीकी श्रमीजनों, किसानों, मछुआरों तथा वहाँ
की सुरम्य तथा ऊबड़-खाबड़ प्रकृति के मध्य घूम फिर रहे हैं। मुझे यह सीखना चाहिए।
पचास के उत्तरार्द्ध में कवि बड़े
आत्मविश्वास के साथ अपनी काव्य प्रतिभा को विकसित करने में लगे हैं। ‘Songs Of Myself’ में एक कविता की पंक्तियाँ हैं -
मैं तुम्ही से
एकात्म रहा हूँ
मुझमें तुम बोलते
हो
मैं हरेक जीवंत स्त्री
पुरुष का
उत्सव मनाने को
ही
स्वयं का उत्सव
मनाता हूँ
मेरी वही वाणी
मुखर होती है
जो उन में बसी है
वही मेरे मुख से
निसृत होती है
अमरीकी बुर्जुआ समीक्षक इसे कवि का ‘अहम्‘ या ‘आत्म रति’ कहने को प्रेरित हुये थे। पर ध्यान रहे युद्ध
पूर्व की कविताओं में कवि एक ऐसे नायक को चित्रित कर रहे हैं जो मनुष्य जीवन से भी ज्यादा विशाल तथा उदात्त है। इससे वह ‘लोकशक्ति की महानता’
को उसकी समग्रता में बताते हैं। ध्यान रहे
निराला अपनी ‘अधिवास’ कविता में कहते है -
मैंने ‘मैं’ शैली अपनाई
यहाँ निराला का ‘मैं- सामूहिक समाज का मैं है। आत्म रति नहीं।
इसीलिए कविता की दूसरी पंक्ति है
देखा दुखी
एक निज भाई
दुख की छाया पड़ी हृदय में मेरे
झट उमड़
वेदना आई
उसके निकट
गया मैं धाय
लगा उसे
गले से
हाय
यदि ‘मैं‘ का अभिप्राय स्वयं निराला
की आत्मरति होता तो वह दुखी जन को न तो देखते। न उसे गले लगाते। ह्विटमैंन ने अपने
लेखों तथा कविताओं में बराबर संकेत दिये हैं कि उनके प्रगीतों की ‘आत्मपरकता’ उनकी बनक को ही नहीं कहती। बल्कि वह समाज की सामूहिकता तथा
उसके संघर्ष को भी कहती है। वह कवि का अहंकार नहीं है। बल्कि उसका जनसमूह में
विसर्जन है। यदि यह उनकी आत्मरति होती तो वह यह न कहते-
मैं शिकारी
कुत्तों द्वारा
फफेड़ा हुआ दास
हूँ
कुत्तों के काटने
पर
दर्द से बेहाल
हूँ
नरक और अवसाद
मुझे दबोचे हैं
दण्डित व्यक्ति
पर जैसे
बार बार कोड़े
पड़ते हैं
मैं बाड़े की शलाकें
कस के पकड़े हूँ
मेरा गाढ़ा खून
छितरा गया है
मेरी खाल पर फैलने
से
वह पतला हो गया
है
मैं पत्थरों और
कटीले खरपतो पर
गिर पड़ा हूँ
घुड़सवार ठिठके
घोड़ों को
चाबुक से पीटते
हैं
उन्हें घसीटते है
मेरे चकराये
कानों में
उनके व्यंग्य
चुभते हैं
मेरे सिर पर
क्रूरता से
डण्डे बरसाते हैं
....
बाद में कवि कहते
हैं -
जख्मी आदमी से
मैं उसका हाल
नहीं पूछता
मैं स्वयं जख्मी
हो चुका हूँ ... इन शब्दों में कवि की गहन
त्रासदी के साथ जनता की त्रासदी भी बोलती है। कवि की महानता इसी में है कि वह जिस
पात्र से संवाद करता है वैसा ही वह स्वयं हो जाता है। नीग्रो दास को एक तमाशबीन
सहानुभूतिकर्ता के रूप में न देख वह स्वयं नीग्रो दास का रूप ले लेते हैं। जैसे
शेक्सपियर अपनी अस्मिता त्याग कर पात्र स्वयं ही बन जाते है। जितने पात्र उतने
शेक्सपियर। बर्नार्ड शा ऐसा नहीं कर पाते। इन पंक्तियों में कितना सच है-
जो कोई दूसरे को
अपमानित करता है
वह मुझे ही
अपमानित करता है
जो कुछ भी किसी
के जीवन में घटता है
उसे मैं भी भोगता
हूँ -लोक से इतना गहरा तादात्म्य विरल है। यह तभी संभव है जब कवि अपनी समग्र बनक
का विजर्सन जनता में कर सके। कवि का नीग्रो दासता के विरुद्ध प्रतिरोध उनकी कविता
के स्थापत्य में आद्यंत अनुस्यूत है। उनके काव्य दर्शन का दूसरा पक्ष है मनुष्य
मात्र का सहज गुण। ‘Songs
Of Myself’ कविता में कवि के लिये ‘दूब’ मनुष्य के सहज स्वभाव का किस तरह प्रतीक बनती है-
एक बच्चा अपने
हाथों में दूब भरे
मेरे पास पूछता
आया
यह दूब क्या है
बच्चे के लिये
क्या कहूँ
दूब बच्चा ही है
इसके अलावा मैं
कुछ
नहीं कह सकता
1860 ई० तक आते आते नीग्रो दासता के प्रति कवि का स्वर तीव्रतम हुआ
है। कहते हैं -
जहां स्वतंत्रता
दासता से रक्त नहीं निचोड़ती
वहाँ दासता
निचोड़ती है रक्त स्वतंत्रता से
कई अमरीकी कवियों
ने वैसे नीग्रो दासता के विरुद्ध प्रतिरोध किया है। पर ह्विटमैंन जैसे तीखे,
सशक्त, दिशासूचक तथा आक्रामक
प्रहार किसी अन्य कवि ने नहीं किये। कवि के लिये अमरीका के चोर -उचक्केपन ने, नपुंसकता ने, बेशर्मी ने जैसे मसल डाला है। व्यंग्य से कवि
कहते हैं -
चेहरों और नियमों
को
शब्दार्थों तथा
प्रतिफलों को
होने दो धड़ल्ले
से आपराधिक
*
*
*
*
नरक की परत को
आने दो पास
उस पर चलने को
रात से ज्यादा
दिनों को होने दो
सघन तम
* * * *
स्वतंत्रता किसी
का अधिकार न बने
क्रूरता जितनी हो
सके हो
उन्हें होने दो
क्रूर
उनको संतोष पाने
के लिये
क्या मैं ह्विटमैंन से यह न सीखूँ कि
किसानों, मछुआरों, लकड़हारों, बुनकरों और श्रमिकों की
संकियाओं, कठिन जीवन, उनके अभाव तथा उनकी खुशियाँ भी कविता का कथ्य
बने! ‘Leaves of Grass’ में किसानों की जीवन शैली के विषय में अनेक कविताएँ
हैं-
ओ किसानों की
खुशियों! ....
पौ फटे उनका उठना
और चपलता से काम
पर जुटना
शीत ऋतु की फसल
बोने को
खेतों को जोत कर
कमाना
वसंत में मकई के
लिये
खेत तैयार करना
फलों के बगीचों
को दुरुस्त करना
वृक्षों को
छाँटना - कपटना
ओ तुम मार्गदर्शको
मेरे मार्गदर्शको -कुछ लोग कहेंगे ये मात्र सूचनायें है। इनमें उपदेशपरकता है। विश्व की
कविता को जो थोड़ा बहुत मैंने पढ़ा जाना है उस आधार पर मुझे लगा कि हर बड़ी कविता में
बहुत सारी सूचनायें होती है। उपदेश भी। सवाल है इन्हें कविता में कैसे ढाला जाये। ‘राम की शक्ति पूजा’ का आरंभ ही सूचना से होता है। निराला अपने लोगों को जैसे
स्वगत के द्वारा सूचित करते हैं
रवि हुआ
अस्त: ज्योति के पत्र
पर अमर
रह गया
राम - रावण का अपराजेय समर
आज का ......
या फिर राम सूचित करते हैं अपने साथियों को
या फिर राम सूचित करते हैं अपने साथियों को
अन्याय जिधर,
है शक्ति उधर
किसानों और श्रमिकों के जीवन से जुड़ी
कवितांयें कवि ह्विटमैंन के अवसाद और निराशा को तोड़ती भी हैं । अवसाद और निराशा को
तोड़ने के लिये कवि हर प्रकार के संघर्ष के लिये आह्वान करता हे -
‘Songs of The Open Road‘ कविता में कवि सीधे सीधे युद्ध और विद्रोह के
लिये ललकारते है -
मैं तुम्हें युद्ध के लिये बुलाता हूँ
सक्रिय विद्रोह
हमें फलीभूत हो
मेरे साथ आओ,
आओ
आयुधों से लैस
होकर आओ
जो चलेगा मेरे
साथ
उसे अपने भोजन
में से कुछ बचाना होगा
उसे गरीबी झेलनी
होगी
क्रुद्ध शत्रुओं
का सामना करना होगा
सब कुछ त्याग कर अकेला भी
होना होगा–
इसीलिए कवि
सर्वहारा के साहस - उसके औदात्य और भव्यता की ओर संकेत करते हैं–
बड़े अवरोधों के
विरुद्ध
संघर्ष को उठो
शत्रुओं का सामना
निडरता से करो
पूरी तरह जनता के
साथ हो जाओ
संघर्ष , पीड़ा , कारागृह , प्रचलित घृणा
सबका आमना सामना
देखो
यहाँ अंग्रेजी के
विद्रोही कवि शैले तथा बायरन की कविता याद आती है। शैले की एक कविता है - ‘इंग्लैण्ड की जनता के लिये गीत‘
इंग्लैण्डवासियो-
उन प्रभुओं,
सामंतों के लिये
क्यों जोतते हो
खेत
क्यों बुनते हो
कपड़ा उनके लिये
इतने श्रम और
सजगता से
तुम्हारे तानाशाह
पहनते हैं
भव्य पोशाकें
आखिर क्यों
जन्म से मृत्य तक
उन्हें उगा कर
देते हो अन्न
देते हो वस्तुये
बना कर
अपनी जान दे कर
उनकी सुरक्षा
करते हो
वे एहसान
फरामोश...निकम्मे और नाकारा है
तुम्हारा पसीना
निकालते है
ओह...नहीं,
तुम्हारा खून भी
पीते हैं
ये इंगलैण्ड की
मधुमक्खियाँ
भट्टियों में तपा
कर
क्यों ढालती हैं
निरे हथियार
जंजीरें और चाबुक
ये डंकहीन
निठल्ले आलसी
तुम्हारे कठोर
श्रम की कमाई को
चौपट कर देंगे।
यहाँ शैले, ह्विटमैंन, नागार्जुन तथा केदार बाबू जैसे परस्पर गले मिल रहे हों । 1860 में उन्होंने कविता लिखी, ‘ तुम्हारे लिये ओ स्वतंत्रता’। कहा है कि सारे गीत वह ‘उसी’ के लिये रच रहे हैं
-‘तुम्हारे लिये ये गीत रचता हूँ / काँपती आवाज़ में’।
-‘तुम्हारे लिये ये गीत रचता हूँ / काँपती आवाज़ में’।
‘Leaves of
Grass’ में कवि ने अपने भविष्य
का काव्य मंथन किया है। स्वतंत्रता का क्या रूप हो सकता है। एक ऐसा समाज जहाँ
मनुष्य मनुष्य में किसी तरह का विभेद न हो। एक शोषण मुक्त समाज।
ह्विटमैंन ने कभी विवाह नहीं किया। यह भी सही है
कि कवि को सुख सुविधाओं का नितांत अभाव रहा था। उनके पत्रों तथा डायरियों से साफ
साफ पता नहीं लगता कि वह किस किस को प्यार करते थे। उन्होंने अनेक प्रेम प्रगीत
लिखे है। इससे लगता है कि वह किसी न किसी स्त्री को प्यार जरूर करते थे। जैसे आज
तक पता नहीं लग पाया कि शेक्सपियर की, ‘Darklady of The Sonnets’ कौन है जिसके
लिये 150 प्रेम सानेट संबोधित है।
ह्विटमैन कहते है-
चुपके से कहूँगा
मैं तुम्हें
प्यार करता हूँ
अब हमारा मिलन हो
चुका है
हम परस्पर एक
दूसरे को
परख चुके है
हम सुरक्षित हैं
शांति के साथ
समुद्र की तरफ
लौटते है ...मेरी प्रिया
.... यह अबाध समुद्र
हमारा विछोह
करेगा ही
1873ई० के शुरू में ह्विटमैंन
को सुबह सुबह लगा कि उनका बाँया हाथ तथा बाँया पाँव उठ नहीं पा रहे हैं। इन्ही
त्रासद दिनों में कवि ने अपनी माता को खो दिया। इस पक्षाघात के बाद रोज़ी की दृष्टि
से कवि की हालत बहुत दयनीय हो चुकी थी। जिस इमर्सन ने शुरू में कवि को इतना बड़ा
समर्थन दिया वह भी अब किनारा कर चुके थे। दो साल तक किसी प्रतिष्ठित पत्रिका में
उनकी कविताएँ नही छपीं। अमरीका के बड़े प्रकाशकों ने उनके संग्रहों को बड़ी अपमानजनक
टिप्पणियों के साथ वापस कर दिया। उनकी कविता की या तो कटु समीक्षा हुई। या फिर
समीक्षकों ने कपटपूर्ण चुप्पी साध ली। कवि की गाँठ - मुटठी में कुछ न था जिस से
रोज़ी चल सके। 1977 ई० में टामस पेन पर उनके व्याख्यान में दो चार छः लोग ही आये।
अमरीकी समाज में घोर उपेक्षा के बावजूद उनका एक आलेख ‘वैस्ट जर्सी प्रैस’ में छपा। इसका नोटिस इंग्लैण्ड में भरपूर लिया गया। वहाँ के लोगों ने तय किया
कि इस महान अमरीकी अभावग्रस्त कवि के लिये कुछ पैसा एकत्र किया जाये। इस बात ने
अमरीका के समाचार पत्रों को कवि पर प्रहार करने का एक और अवसर दे दिया। ब्रिटेन
में रौजिटी ने कवि की कविताओं को संपादित किया। उन्हे प्रकाशित करा के फ्रांस,
जर्मनी तथा रूस को भिजवाया। कवि को अब अनुभव
हुआ कि अमरीका के बाहर लोगों ने उन्हें बडा कवि मान लिया है। 1882ई० में बोस्टन के
अटौरनी ने कवि को नोटिस दिया कि ‘Leaves of Grass’ एक अश्लील तथा
अनैतिक काव्य कृति है। इस नोटिस ने अमरीकियों के दिमाग में यह बात और पुख्ता कर दी
कि ह्विटमैंन एक अश्लील तथा अनैतिक कवि हैं। पर कवि की कीर्ति दिनों दिन बढ़ती ही
गई। कहा जाता है कि उनकी ‘Songs of Myself’ कविता से मार्क्स अपने लेखों में उद्धरण देने लगे थे। यहाँ तक कि लूनाचर्स्की
जैसे बड़े मार्क्सवादी आलोचक ने उन पर आलेख भी लिखा था। पाब्लो नेरुदा उन्हें बड़े
सम्मान से याद करते हैं। अब कवि की उम्र बहुत हो चुकी थी। 1888 ई० में उनके जीवन के कुछ ही दिन शेष थे। उस समय वह एक बहुत
ही दुर्बल किसान की तरह दिखने लगे थे। उसी समय उन्होंने एक लघु कविता लिखी ‘Helcyon Days’। कविता में उन्होंने एक कवि की तरह अपने जीवन के
बारे में कहा है। कवि छाया प्रतीतियों को भेद कर सार को कह रहे हैं–
सिर्फ सफल प्रेम से ही नहीं
न धन से, न युवा जीवन में
अर्जित मान सम्मान
से
न जय पराजय से
न राजनीति से,
न युद्ध
से....(शांति मिलती है)
जैसे-जैसे जीवन
ढलता है
क्षुब्ध भावावेग
मंद होते है
जैसे सांध्य आकाश
को
ढकते हैं
सुंदर, कुहरिल निःशब्द
सतरंगे इंद्रधनुष
जैसे विनय या
जीवन में भरापन
सुशांति - ये सब
जैसे देह में
घुलने लगते है
ताजा ...मनमोहक
हवा
जैसे पके जीवन की
दीप्ति
फलवान टहनियाँ
परिपक्व निरुद्यम
ऐसे में प्रकृति
की तरह
प्रचुर शांतिमय
क्षण ही
सबसे अधिक
उल्लसित
ध्यानमग्न शांतिमय
हर्ष भरे दिन
होते हैं।
न जाने क्यों याद
आती है निराला की ‘सांध्य काकली’
में संकलित कविता-
पत्रोत्कंठित
जीवन का विष बुझा हुआ है
आशा का प्रदीप
जलता है हृदय कुंज में
युद्धोपरांत के
निर्दय वर्ष कवि को बहुत ही त्रासद थे। ‘Leaves of Grass’ के अभिप्राय को बताते हुये उन्होंने कहा है कि ‘मैं अपनी रुग्णता, गरीबी तथा वृद्धावस्था के बीच इसे (‘Leaves of Grass’) समाप्त करता हूँ’। साथ में यह भी कहा
कि किसी भी सूरत में उन्हों ने क्षण भर को भी अपना लक्ष्यबद्ध कार्य नहीं
त्यागा। कई सालों तक कवि ने अर्ध पक्षाघातिक और बेसहारा जीवन जिया। फिर भी वह गद्य
तथा कवितायें लिखते रहे।
अंतिम दिनों में ह्विटमैंन ने अपने को ‘समाजवादी’ बताया है। कवि का एक महत्वपूर्ण आलेख है, ‘अमरीका में आज कविता-शेक्सपियर -भविष्य’। उसमें उन्होंने अमरीका की लोकविमुख कविता तथा वहाँ के पतनशील सांस्कृतिक जीवन के प्रति गहरा असंतोष व्यक्त किया है। संकेत है कि अमरीका चाहे जितनी भौतिक उन्नति कर ले, जब तक वह उत्कृष्ट लोकधर्मी कलाकृतियाँ, सामान्य जन के हित तथा उच्च नैतिक मानवमूल्य नहीं सहेजता तब तक यह सारा वैभव निष्प्राण और रिक्त रहेगा। उन्होंने भविष्यवाणी की कि एक दिन अमरीका के लोग जागेंगे। जन समुदाय समझेगा कि उसके सच्चे हित कहाँ है। तब वह उनकी अदम्य माग कर सत्ता को दहला देगा।
हम जैसे कवियों को कितनी प्रेरक बात है कि
ठीक अंतिम समय तक ह्विटमैंन ने अपनी निजी ‘अंतर्मन’ की दुनिया में
लौटना नही चाहा। कहते हैं कि कवि की बनक तथा आकृति बेहद आकर्षक थी। कई चित्रकार
तथा मूर्तिशिल्पी उसे अपनी अपनी कलाओं में उतारने को उत्सुक रहे।
कवि ने अपना घर पाने का स्वप्न भी देखा था ।
उन्होंने अंतिम दिनों में काठ का एक छोटा सा घर खरीदा था। कुछ अपने पैसे से। कुछ
कर्ज ले कर। घर एक लेखक के घर जैसा न हो कर किसी रिटायर रेल कर्मचारी या किसी
नाविक अथवा किसी अकुशल मिस्त्री के घर जैसा लगता था। कहते हैं कि जब तक कवि के
पैरों ने साथ दिया तब तक वह घूम फिर लेते थे। वह अंतिम क्षण तक सजग रहे। निडर और
निश्चिंत। उनका देहावसान 26 मार्च,
1892 को हुआ। उषा की अरुणिमा
खस चुकी थी। मंद मंद बूँदा -बाँदी थी। उनका दाँया हाथ उनके सबसे प्रिय साथी होरेस
ट्राबैल के हाथ में था। चिकित्सक आश्चर्यचकित थे कि आखिर कवि इतने दिन जी कैसे
लिये। कदाचित महान कवि की अटूट जिजीविषा से ही यह संभव हुआ होगा। उनके निधन के बाद
भी अमरीका के बुर्जुआ प्रैस ने उनकी कविता पर बहुत ही भद्दी टिप्पणी की थी। कहा
गया कि उनकी कविता में जानी पूछी अभद्रता है। वह अश्लील है। अनैतिक भी। उनकी पूरी
कविता में एक पंक्ति भी ऐसी नहीं है जिसे उत्कृष्ट काव्य कहा जा सके। इससे हम
जानें कि किसी भी देश की बुर्जुआ सत्ता लोकधर्मी कवि तथा के प्रति कितना क्रूर
व्यवहार कर सकती है। ह्विटमैंन एक प्रसिद्ध कविता है ‘ कवि’। उन्होंने कवि
के रूप में कुछ कहना चाहा है। उसकी कुछ पंक्तियों से अपनी बात खत्म करता हूँ -
यहाँ ‘ध्वज’ या ‘पताका‘ कवि के महान ,उत्कृष्ट, संघर्षमय तथा बड़े
मानवीय लक्ष्य का प्रतीक है। कवि के लिये
वही है सर्वस्व -
वही है सर्वस्व -
मेरे अवयव,
मेरी रगें फेलती चौड़ाती है
मेरी कहन
मेरा काव्य कथ्य
साफ है
रात के गर्भ से
इतना चौड़ा ध्वज
लहराता है
मैं अपने पन पै
अटल हूँ
लक्ष्य के लिये
अटूट
तुम्हारे (ध्वज) लिये ही
गाता हूँ
ओ ध्वज -
तुम्हारे वैभव के
सामने
धन मिट्टी है
फसल से फटका अन्न
पौष्टिक भोजन
उपभोग्य वस्तुओं
से अटे गोदाम
जहाज़ों से उतरता
विदेशी माल
ध्वज के सामने सब
फींके है
ये जलयान
संकेत के लिये
लगाई गई पताका
क्या होगा पाल या
भाप से
चलने वाले इन
जहाज़ों का
अच्छे से अच्छे
जहाज़ कुछ नहीं है
तुमहारे वैभव के
सामने
नही भाते मुझे
माल लाते ले जाते
जहाज़
न धन न व्यापार
न अद्यतन मशीने
न गतिमय वाहन
न आय
तुम्हारे सिवा
कुछ नहीं भाता मुझे
यहाँ आगे देखता
हूँ तुम्हें
सिर्फ तुम्हें
...... अपना भविष्य
ओ शौर्यमय जलयान
संकेत पताका
तुम ही हो सब कुछ
मेरे लिये
हवा में फड़फड़ाती
ध्वज।
--0--
(नोटः-कविताओं का
शब्दानुवाद नहीं किया गया है। वह संभव नहीं लगा। मैंने कवि के भावों को समझ कर ही
कुछ खास कविताओं की पंक्तियाँ का भावानुवाद किया है। इसे अनुवाद न कह कर ‘अनुवाक’ भी कह सकते हैं ।
मेरे प्रिय युवा
कवि संतोष ने मेरी ‘वाल्ट ह्विटमैंन
की याद में’ कविता जब पढ़ी तो
मुझ से इस कवि पर आलेख तैयार करने को भी कहा। मुझे प्रसन्नता है मैं एक ऐसे महान
लोकधर्मी कवि पर लिख पाया जिसे मैं हर समय अपनी धरती के करीब पाता हूँ। यह प्रयास
बहुत ही प्रारंभिक है। अधूरा भी। इस महान कवि के बारे में आखिर कितना भर एक आलेख
में बताया जा सकता है। मेरा यत्न रहा है हम उस महान अमरीकी कवि की संघर्षपूर्ण
काव्य यात्रा को जाने जो अपने ही देश के लोगों द्वारा निर्वासित, अपमानित तथा उपेक्षित रह कर भी विश्व-वंद्य कवि
बन पाया। बड़े तथा अडिग लक्ष्य को लेकर चलने वाले कवियों को यह सब सामान्य है। मैंने
कई बार कहा है कवि कर्म अत्यंत कठिन कर्म है। पर अंतिम साँस तक कवि की तरह जी कर
कविता को साधना कठिनतम होता है। वाल्ट ह्विटमैंन ने काव्य रचना ही नही की वह एक
सच्चे तथा योद्धा कवि की तरह अंतिम क्षण तक जिये भी।)
विजेन्द्र जी वरिष्ठ कवि एवं जानी-मानी लघु पत्रिका 'कृति ओर' के संस्थापक
सम्पादक हैं। 1956 से हिंदी कविता लेखन में सक्रिय विजेन्द्र जी की अब तक
20 से अधिक पुस्तकें आ चुकी हैं जिनमें कविता के अलावा नाटक एवं डायरी भी
शामिल हैं। विजेन्द्र जी द्वारा किया गया नव्यतम प्रयोग 'आधी रात के रंग'
जिसमें कवि की पेंटिंग्स और उन पर लिखी गयी कवितायें शामिल हैं, अभी बहुत
चर्चा में रही है। कविता लेखन के साथ-साथ आजकल पेंटिंग्स बनाने में भी काफी
सक्रिय हैं।
(आलेख में दी गयी सारी पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
(आलेख में दी गयी सारी पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
मो0-
9928242515
ई-मेल: poetvijendra@gmail.com
बेहतरीन ......एक लोकधर्मी कवि ही दूसरे लोकधर्मी कवि पर इतनी गहराई से लिख सकता है ......संतोष भाई का आभार की उनके प्रयासों से यह आलेख पढ़ने को मिला.
जवाब देंहटाएंअमरीका का मस्त योगी वाल्ट व्हिटमैन! बढ़िया मूल्यांकन.. विश्व क्लासिक की इस प्रस्तुति पर बधाइयाँ..
जवाब देंहटाएंPahalee baar ka pata agraj raajkishor raajan jee se mila tha pichle chaar maheene se niymat paathak hun. Vijendra jee ka yeh aalekh unkee apnee vichaardhaaraa aur aalochya kavi dono ke saath nyaaya kartaa hai.lekhak aur bloger se anek apekshaon tathaa aashaa sahit kamal jeet choudhary ka haardik dhanyavaad.
जवाब देंहटाएंब्लॉगों की दुनिया में यह श्रृंखला मील का पत्थर साबित होगी | इतनी गंभीरता से विजेंद्र जी ने यह काम किया है , वह हमारी पीढ़ी के लिए किसी उपहार से कम नहीं है | जब हम किसी कवि को उसके मूल से देखते और समझते हैं , तब शायद उसकी कविता के साथ भी हम अधिक न्याय कर पाते हैं , और प्रकारांतर से अपने समय को भी ठीक-ठीक तरीके से पहचान पाते हैं | इस लेख में विजेंद्र जी ने उस पूरी प्रक्रिया को उद्घाटित किया है , जिसने व्हिटमैन को इस मुकाम तक पहुँचाया | आगे की कड़ियों का भी हमें बेसब्री से इन्तजार रहेगा ...| फिलहाल 'पहली बार' का शुक्रिया और हम सबके अग्रज विजेंद्र जी का दिल से आभार |
जवाब देंहटाएंविजेन्द्र जी हमेशा कुछ हट कर ही करते हैं . इस वरिष्ठ कवि -आलोचक की यही खासियत है . बहुत उपयोगी पोस्ट शोध हेतु संग्रहणीय भी . आभार संतोष जी .
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंसराहनीय पहल, उत्कृष्ट संयोजन , अवश्य पढ़े जाने लायक सामग्री | आभार
जवाब देंहटाएंwalt witman ka isse badiya prasthuthi hindi mein nahin ho sakta. Vijendraji aur santosh bhai ko nek karya ke liye sadhuwaad.
जवाब देंहटाएं