संतोष चतुर्वेदी के संग्रह 'दक्खिन का भी अपना पूरब होता है' पर आचार्य उमाशंकर सिंह परमार की समीक्षा
आज उमाशंकर सिंह परमार का जन्मदिन है । आज के दिन उन्होंने पहली बार पर लगाने के लिए एक समीक्षा भेजी जो मेरे ही नवीनतम संग्रह पर है । शुरूआती एक-दो पोस्टों के बाद आम तौर पर अपने ही ब्लॉग पर मैं अपनी कविताएँ और समीक्षा देने से बचता रहा हूँ. लेकिन आज उमाशंकर के आग्रह को टाल नहीं पाया । उमाशंकर को जन्मदिन की बधाईयाँ देते हुए हम यह कामना करते हैं कि उनकी रचनात्मकता इसी तरह बनी रहे और आगे भी हमें उनके और बेहतर आलेख पढने को मिले । तो आईए पढ़ते हैं उमाशंकर की यह समीक्षा ' दक्खिन का भी अपना पूरब होता है : नव उदारवादी व्यवस्था के खिलाफ प्रतिरोध का स्वर' दक्खिन का भी अपना पूरब होता है : नव उदारवादी व्यवस्था के खिलाफ प्रतिरोध का स्वर उमाशंकर सिंह परमार संतोष कुमार चतुर्वेदी समकालीन कवियों में एक सुपरिचित नाम है। उनका पहला काव्य संग्रह ‘पहली बार’ ज्ञानपीठ प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था और अब दूसरा काब्य संग्रह दक्खिन का भी अपना पूरब होता है साहित्य भण्डार प्रकाशन इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित हुआ। अपने संग्रह ‘पहली बार’ से ही वे अपनी अपनी अलग छाप लेकर आय...