नित्यानंद गायेन




20 अगस्त 1981 को पश्चिम बंगाल के बारुइपुर, दक्षिण चौबीस परगना के शिखरबाली गांव में जन्मे नित्यानंद गायेन की कवितायेँ और लेख सर्वनाम, कृतिओर, समयांतर, हंस, जनसत्ता, अविराम, दुनिया इनदिनों, अलाव, जिन्दा लोग, नई धारा, हिंदी मिलाप, स्वतंत्र वार्ता, छपते–छपते, समकालीन तीसरी दुनिया, अक्षर पर्व, हमारा प्रदेश, कृषि जागरण आदि पत्र–पत्रिकाओं में प्रकाशित
 .
इनका काव्य संग्रह ‘अपने हिस्से का प्रेम’(२०११) में संकल्प प्रकाशन से प्रकाशित. कविता केंद्रित पत्रिका ‘संकेत’ का नौवां अंक इनकी कविताओं पर केंद्रित. इनकी कुछ कविताओं का नेपाली, अंग्रेजी, मैथिली तथा फ्रेंच भाषाओँ में अनुवाद भी हुआ है. फ़िलहाल हैदराबाद के एक निजी संस्थान में अध्यापन एवं स्वतंत्र लेखन.


जो लोग हिंदी कविता के भविष्य का रोना रोते रहते हैं और उसके भविष्य को ले कर चिंतित रहते हैं उन्हें हमारे युवा कवियों की कवितायें जरूर पढ़नी चाहिए. तमाम निराशाओं के बीच भी एक आशा और उम्मीद इन युवाओं में साफ़-साफ़ दिखाई पड़ती है. नित्यानंद गायेन ऐसे ही एक कवि हैं जो हमारे समाज और प्रजातंत्र की विसंगतियों को जानते हैं और साफगोई से अपनी बातें रखते हैं. वे अपने उन प्रगतिशील कवियों की हकीकत भी जानते हैं जो हर वक्त प्रगतिशीलता का राग तो अलापते रहते हैं लेकिन मठाधीशी के जूनून में बाज नहीं आते अपनी सामंती हरकतों से. ऐसे ही कुछ प्रगतिशील कवि आजकल अपनी कविताओं की चोरी को ले कर बहुत फिक्रमंद हैं. अगर आपने सूरज, चाँद, सितारा, माँ, पिता, रोशनी, अन्धेरा किसी की भी कोई बात की तो फिर आपकी खैर नहीं, क्योकि यह सारे शब्द और इनसे सम्बंधित विचार तो वह कवि पहले ही अपने नाम पेटेंट करा चुका है और जाहिर सी बात है आप को उस विषय पर कविता लिखने का कोई अधिकार नहीं. देश की कोई भी घटना ऐसे प्रगतिशील कवि को अपनी समस्या के सामने तुच्छ लगती है.
बहरहाल हमारा यह युवा कवि आज की राजनीति खासकर चुप्पी की राजनीति को भलीभांति जानता-समझता है. चुप्पी के पीछे के जोड़-तोड़, दांव-पेंच और महत्वाकांक्षाओं को जानता है. और अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाते हुए बोल पड़ता है. तो आईये नित्यानंद के बोल को हम उनकी कविताओं के मार्फ़त ही सुनते हैं.  

नित्यानंद गायेन की कवितायें
 
होश में आने से पहले

दर्द,
उत्पीड़न,
गरीबी,
जैसे शब्द नही है उनके शब्दकोश में
ये सब महलों के वासिंदे हैं
फिर भी कभी –कभी
कर लेते हैं बात इन मुद्दों पर
भावावेश में हम भी आ जाते हैं
और हार जाती है
हिम्मत हमारी हर बार 
वे खेलते हैं
हमारी मूर्छित चेतना से
फिर होश में आने से पहले
बदल जाती है उनकी दुनिया
हम रह जाते अवाक..
हमारे कंठ से
नही फुट पाता विद्रोह का एक भी स्वर
ऐसा क्यों ....?


............................................
अपने अहं के साथ खड़े रहे हम

 
उनमे से कोई नही जानता
कहानी हमारे बिछड़ने की
कुछ ने गवाही दी तुम्हारे पक्ष में
कुछ मेरे हमदर्द बने
अपने अहं के साथ
खड़े रहे हम
जैसे नदी के दो किनारे
किसी ने नही की
हमारे मिलन की बात
बस मन ही मन हँसते रहे
हमने भी न लिया फिर विवेक से काम ...

...................................
चुप्पी की भी अपनी राजनीति है 

अन्याय
फिर अन्याय
उस पर भी ख़ामोशी

चुप्पी की भी अपनी राजनीति है
समझ रहे हैं हम

जो खामोश रहे इस दौर में
उतर आये अपने बचाव में

मैं तोड़ रहा हूँ
अपनी ख़ामोशी
अब आपकी बारी है ...



प्रजातंत्र की नंगी तस्वीर

तुम्हारे हाथ उठे जब –जब
आम आदमी के बहाने
हमने देखी खुली आँखों से
प्रजातंत्र की नंगी तस्वीर

लूट हुई, दंगे हुए
बटवारा हुआ इंसानियत का
तुमने सिर्फ वोट बटोरे

फिर तुमने कमल खिलाया
कीचड़ का भी अपमान किया
आग लगाई
बस्तियां जलाई
देश में लहू की धार बहाई
दुहाई तुम्हारी दुहाई तुम्हारी
 


उदारवादी लोग
 
दिल्ली, मुंबई या फिर कोलकाता
यहाँ प्रगतिशील और उदारवादी लोगों की एक बड़ी भीड़ है
ये सभी लेखक या शिक्षक हैं
बहुत सम्मान है इनका, बड़ा नाम है समाज में
इन सबके घरों में कोई न कोई आता है
झाड़ू लगाने, बर्तन मांजने
रात का बचा हुआ खाना
फटे पुराने कपड़े
दान में देते हैं उन्हें
ये सभी उदारवादी लोग
बदले इन गरीब लोगों के बच्चों से
अपनी गाड़ियां धुलवाते हैं
क्रोध में दुत्कारते और गालियाँ भी दे देते हैं अक्सर
यहीं झलकती हैं उन सबकी प्रगतिशीलता ......

तुम्हारे फैलाये बाज़ार में


फैल रहा है
शहर का वजूद
गांव सिकुड़ रहे हैं
सीमेंट की चादर के नीचे
दब रही है मिट्टी की खुशबू
इसी शहर में मजदूर बने
मेरे देश के सुदूर ग्रामीण लोग

सड़ रहा है गेंहूँ
पिज़ा का हो रहा है विस्तार
छोड़ो गेंहुयाँ रंग
गोरा होने का क्रीम लगाओ
खान, बच्चन, तेंदुलकर ......
पानी पर नहीं सोचते
पेप्सी -कोला की
दे रहे हैं सलाह
लस्सी, छांछ में क्या रख्खा है ?
गुड़ नही अब कैड्बेरी है
मेहमानों के स्वागत में

असली और सम्पूर्ण पुरुष बनने के लिए
पहले रेमंड पहनिए
बापू ने तो गुजार दी पूरी जिंदगी
घुटनों तक धोती में ...

भूखे रहो
किन्तु फोन खरीदो
सरकार भी बाँट रही है
गरीबों को लैपटाप
भोजन –पानी और सुरक्षा
अब यहीं सर्च करो

तुम्हारे फैलाये बाज़ार में
रोज लूट रहा है
आम जन

सपने देखना अपराध नही
किन्तु सपने दिखा कर लूटना
बहुत संगीन जुर्म है
और जुर्म निरंतर जारी है
मेरे इस गरीब देश में ....


याद आ गये सुकरात


हमने सदियों तक ईश्वर गुलामी की
कभी भय से
कभी लोभ से
फिर भी पिघला नही उनका दिल
बीमारी में , आपदा में
हर पीड़ा में
मिन्नते की
सदियों बाद मालूम हुआ
वे बहरे हैं हमारे लिए
फूल, माला, फल, दूध
गहने कपड़े
सब चढाए
उनके मंदिर हो गये आलीशान
हम दीन के दीन ही रहे
मठ और सत्ता पर आसीन
दलालों ने कहा
बने रहो सेवक अच्छे फल के लिए
सड़कों के किनारे पड़े मिले हम
बेहाल -बेघर
बड़ी हिम्मत से ललकारा
आज सदियों बाद
कि स्वीकार नही तुम्हारी दासता
एक स्वर में चीख पड़े सभी पाखंडी
मुझे याद आ गये सुकरात


संपर्क-

4-38/2/B, R.P.Dubey Colony,
Serilingampalli, Hyderabad-500019.(A.P.)
Mob-090 308 951 16

मोबाइल-
+91-9030895116
+91-9491870715
ई-मेल: nityanand.gayen@gmail.com







टिप्पणियाँ

  1. बहतरीन कविताएं वाह वाह । एक से एक सुंदर...

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  2. Nityanand jis dunia k wasinde han uske danw pench bhi samghte han.kawitai her samay achhi lage jaroori nahi. Ak jaroori kawita ki derkar bhi rahti ha. Warg charitra ko pahchanti achhi aur samay se samwad karti kawitayen jis me ak yuwa man ki bechaini ha.- Keshav Tiwari

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  3. साहस से भरी कवितायेँ हैं . युवा कविता में बहुत कम कवियों में ऐसा साहस दिखाई देता है . कला के नाम पर एक सुरक्षा कवच ओढ़ लेते हैं अधिकांश कवि लेकिन नित्यानंद को किसी कवच की जरूरत नहीं है .वे किसी भी ऐसे व्यक्ति या संस्था पर हमला करने से नहीं चूकते जो जनता के साथ छल-छद्म करते हैं या उसका शोषण करते हैं.वे चुप्पी की राजनीती को भी अच्छी तरह समझते इसलिए चुप्पी तोड़ने की चुनौती देते हैं .साथ ही जनता से मूर्छित चेतना से बाहर निकलने की सही अपील करते हैं.

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  4. नित्यानंद की कविताओं में जो खरास है, वो सर्दियों में अचानक तापक्रम के ह्रास से पैदा हुई नहीं है, जो अक्सर अकादमिक कविताओं के पक्षधरों के गले में अटक जाती है, कविता किसके लिए लिख रहे है? कौन पढ़ेगा,प्रभावित होगा? इसकी चिंता शायद बहुत कम कवि-कर्म में लगे पेशेवर कवियों को होगा| आजकल पुरस्कार,सम्मान की होड़ लगी है, सीधे-सीधे कोई खतरा मोल नहीं लेता, ना ही सीधे-सीधे कहने की आदत है,कविता में शिल्प और कला के नाम पर पहेलियाँ बुझाना तथा एक खास वर्ग को आकर्षित करना चरम पे है| जन कवि कवि कहलाने /बनने की मंशा लिए कवि आगे तो बढ़ता है पर,आलोचकों और संस्थाओं के आगे झुक-सा जाता है| नित्यानंद अपनी भड़ास बड़े सहजता से सीधे -सीधे कविता के माध्यम से निकाल पाते है,यह बिडम्बना भी है और साकारात्मक संकेत भी|पाठक अपने को आत्मसात कर पाता है,इन कविताओं में | यही उपलब्धि बहुत बड़ी बात होती है, एक युवा कवि के लिए| परम्परा का निर्वाह करते हुए परंपरा से आगे जाने की सार्थक प्रयास कर रहे है,नित्यानंद जी...बधाई!! संतोष जी का बहुत-बहुत आभार|

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  5. Nityanand, I read your poems. You are a brave young poet. This I have conveyed to Santosh. Don't bother for adverse comments if any by the eletists and decadents. Get on with same fervour.
    Vijendra, Jaipur.

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  6. नित्यानंद की ये कवितायें जीवन कला के मोल में, आवश्यक जीवन के रूप में अपने स्वाभाविक तापक्रम में, जीवन के विकास एवं उसको बल देने वाली निरंतरता की कवितायें हैं. इन कविताओं में खून का तापमान मौजूद है. बुद्धिलाल पाल

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  7. कविता के रस गंगा में डूबते ही मोती मिले यह कम होता है लेकिन इनके रचनाओं में अक्सर होता है
    सादर...!

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  8. Khaamoshee todtee kavitain. Kavi ko mubaarkh aur santosh jee ko dhanyavaad... - kamal jeet choudhary ( j and k )

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  9. नित्यानंद कवि तो अच्छे हैं ही, इस पक्ष को सही उभारा है अपनी टिप्पणी में, और मठाधीशी जुनून की ओर भी ठीक ही संकेत दे दिया है. इनसे उम्मीदें हैं.-Mohan Shrotriya

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  10. खरी खरी कवितायेँ !-Misir Arun

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  11. प्रसून पाण्डेय10 जनवरी 2013 को 9:20 pm बजे

    बेहतरीन कवितायेँ ..जो बाजारवादी व्यवस्था के गंगा में तथाकथित उदारवादियों को नंगा करती हैं ...साथ ही जनों का दर्द भी बयां करती हैं ..!!!

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  12. nityanand sahsi kavi hain. Apni baat kahne ke liye darte aur chookte nahin. Achi kavithaeim hain.

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  13. फोन पर बात करते वक़्त ही पहली बार निकल लिया था, पूरा पढ़ा, सातों कवितायेँ अनूठी कृतियाँ हैं जो वर्तमान भारत के विभिन्न पहलुओं पर सटीकता के साथ प्रहार करती हैं ! विशेष रूप से चौथी, पांचवी, छठवीं व् सातवीं ध्यान आकर्षित करती है ! बधाई हो इस विशिष्ट उपलब्धि के लिए !-James Nk Harrison

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  14. कुछ लोग कविताएँ बनाते हैं .. कुछ कविताएँ लिखते हैं .. बहुधा ही होते हैं जिन्हें " कविताएँ लिखती हैं " नित्यानानंद गयेन उन बहुधा विरले कवियों में यकीनन हैं जिन्हें कविताएँ खुद लिखवा लेती हैं ..इन रचनाओं मैं वे उन सच्चे लोगों में से लगे जो अपने आस पास की बढ़ती संघाढ़ को सहन नहीं कर पाते .. एक आम इंसान जुगुप्सा जगाने वाली .. हताश करने वाली .. गुस्सा जगाने वाली चीज़ों पर गालियाँ बकता है .. दांत पीसता है .. या फिर चीख पड़ता है ... नित्यानंद की कविताएँ भी यदि ध्यान से पढ़ी जाएँ तो चीखती भी हैं और व्यवस्था का प्रतिकार भी करती हैं .. ये अन्य पाठकों के लिए भले ही कविताएँ हों पर मेरे लिए तो एक आम इंसान का प्रतिकार ही है जो कविताओं की शक्ल में है .. वो भी इसलिए की वे मुंह फेरकर सो नहीं पा रहे .. न ही अपनी आँखें मूँद पा रहे हैं ... साहित्य जगत मैं ऐसे रचनाकार की कभी मौत नहीं होती जो वर्ग संघर्ष देखता है ; सुनता है .. और चुप नहीं रह पाता .. अंत में सलाह बस इतनी की परिवर्तन की आशा तत्काल करने से बड़ी कोई बेवकूफी नहीं इसलिए इन्हें और इनके जैसे साहित्यकारों को परिवर्तन के दौर का इंतज़ार ख़ामोशी से करना चाहिए क्योंकि जो भी इन्हें पढता है वो कसक मैं पद जाता है की साहित्य की ऐसे नयी पौध तत्काल ही शिखर पर क्यूँ नहीं .. एक पाठक के तौर पर ये सलाह है की " साहित्य के बुरे दौर .. यहाँ तक की मौत तक की भविष्यवाणी करने वाले महानुभाव नित्यानंद गयेन जैसे रचनाकारों को पढ़ें और साहित्य के भविष्य को लेकर निश्चिन्त हो जाएँ .

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  15. nityanand ek sahaj rachnakaar hai ....sahajta se samaj ke haalaat .....sahajta se jivan mulyo ki stithi se ru baru kara dene ka hunar .....belaag tarike se sidhe prasn khade karne ka andaaz.....main tod raha hu apni khamoshi ab aapki baari hai...koi bhi kavita prahaar karne ki bhumika nahi banaati apitu seedhe waar karti hai.... prasn karti hai...badhai

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  16. सभी बेहतरीन कवितायें , परिपक्वता कविताओं में नज़र आ रही है

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  17. प्रिय नित्यानंद गायेन का आज जन्मदिन है। जन्मदिन के लिए और इन अच्छी कविताओं के लिए एक साथ बहुत बधाई और शुभकामनाएँ।

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  18. नित्यानंद भईया, ऐसे दौर में जब अच्छी कवितायेँ कमतर होने की बातें चल रही हैं, आपकी कवितायेँ ज़िन्दगी से निकल कर उम्मीद बढाती है, विश्वास दिलाती है साहित्य के भविष्य पर ।

    एक से बढ़कर एक सुदृढ़ एवं परिपक्व रचनाएं ।

    जन्मदिन की बधाई एवं भविष्य के लिए शुभकामनाएं ।

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  19. कविताएँ संप्रेषण में सहज हैं ।बात सीधे-सीधे कह दी गई हैं ।यह कविता का सबसे कठिन शिल्प है ।इसमें ब्यौरों पर देर तक काम करना पड़ता है ।कविता अपने कहन में मजबूत हों तो इस सादगी से बड़ी संभावना जगती है ।

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