कैलाश झा किंकर
कैलाश झा किंकर की ग़ज़लें
भूलिए वाकया जो हुआ सो हुआ
सोचिए कुछ नया जो हुआ सो हुआ।
लोग मिलते विछुड़ते रहेंगे सदा
छोड़िए मर्शिया जो हुआ सो हुआ।
फिक्र में इस कदर मत गलें रात दिन
भूलिए हर रिया जो हुआ सो हुआ।
जो दिया वो लिया आपका क्या गया
मत जलाएँ जिया जो हुआ सो हुआ।
वक्त ही मर्ज है वक्त ही है दवा
सब्र कर साथिया जो हुआ सो हुआ।
2
जिन्दगी के रंग हैं कई
ढूँढ़िए उमंग हैं कई।
आपकी उड़ान देखकर
आज भी तो दंग हैं कई।
वो जो ग़म में मुस्कुरा रहा
उसके साथ-संग हैं कई।
अश्क में खुशी के बीज हैं
फिर भी इससे तंग हैं कई।
जिस तरह से चाहते, जिएँ
जीने के भी ढंग हैं कई।
3
दीवार मत उठा देना
दूरी नहीं बढ़ा देना।
आसान रास्तों को तुम
मुश्किल नहीं बना देना।
बढ़ जाएगी अदावत यह
शोलों को मत हवा देना।
मुश्किल से नींद आई है
उसको नहीं जगा देना,
होते ही शाम तू ‘किंकर’
दीया जरा जला देना।
4
घर-घर चिराग जल जाए
तस्वीर ये बदल जाए।
उम्मीद हो चुकी बूढ़ी
अब रास्ता निकल जाए।
झूठों को देखकर लगता
सूरज न सच का ढल जाए।
ऐसी सजा खता की हो
हर आदमी सँभल जाए।
है कामना यही ‘किंकर’
हर डाल फूल-फल जाए।
5
आ गया चुनाव का समय
फिर से मोल-भाव का समय।
जातिवाद का चढ़ा जुनूं
है नहीं सुझाव का समय।
प्रश्न है विकास का नहीं
यह तो सिर्फ दाव का समय।
लोकतंत्र सोचता है अब
आ गया पड़ाव का समय।
परिचय
कैलाश किंकर का जन्म बिहार के खगड़िया जिले में १२ जनवरी १९६२ ई को हुआ. शिक्षा एम ए, एल एल. बी.
प्रकाशित कृतियाँ- 'सन्देश', 'दरकती जमीन', 'चलो पाठशाला' (सभी कविता संग्रह), 'कोई कोई औरत' (खंड काव्य) 'हम नदी के धार में', 'देख कर हैरान हैं सब', 'जिंदगी के रंग हैं कई' (सभी गजल संग्रह),
देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं और गजलों का प्रकाशन.
संपादन- 'कौशिकी' त्रैमासिक और 'स्वाधीनता सन्देश' (वार्षिकी) का संपादन.
दुष्यंत कुमार के पश्चात हिंदी गजल को एक नया आयाम प्रदान करने में कैलाश किंकर का नाम महत्त्वपूर्ण है. सरल भाषा में तीखी से तीखी बात कह देना किंकर की खासियत है. किंकर एक आम आदमी की ही तरह चुनाव और लोकतंत्र की विडम्बनाओं से भलीभाति परिचित हैं. वे बड़ी साफ़गोई से कहते हैं की मोल भाव का समय आ गया है. जाति पांति के जूनून को उभार कर लोगो को जातीय तौर पर उकसाने का समय है. जिस लोकतंत्र का सपना हमारे पुरखो ने देखा वह हमारा आज का लोक तंत्र तो नहीं ही हो सकता. कहीं न कहीं कुछ न कुछ जरूर गड़बड़ है. जिससे किंकर का कवि मन बरबस ही कह उठता है कि यह लोकतंत्र के पड़ाव का समय है.
एक कवि कि यही तो खासियत होती है कि वह 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' का पक्षधर होता है. किंकर भी घर-घर चिराग जलने के हिमायती है. अभी जो तस्वीर है उसे बदलने के हिमायती हैं. वह पिछला सब कुछ छोड़ कर नया सोचने करने का उद्घोष करते हैं जो हमें आशान्वित करता है एक बेहतर मानव समाज के प्रति.
संपर्क: माँ, कृष्णानगर, खगड़िया- 851204
मोबाइल- ०९४३००४२७१२, ०९१२२९१४५८९
कैलाश किंकर का जन्म बिहार के खगड़िया जिले में १२ जनवरी १९६२ ई को हुआ. शिक्षा एम ए, एल एल. बी.
प्रकाशित कृतियाँ- 'सन्देश', 'दरकती जमीन', 'चलो पाठशाला' (सभी कविता संग्रह), 'कोई कोई औरत' (खंड काव्य) 'हम नदी के धार में', 'देख कर हैरान हैं सब', 'जिंदगी के रंग हैं कई' (सभी गजल संग्रह),
देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं और गजलों का प्रकाशन.
संपादन- 'कौशिकी' त्रैमासिक और 'स्वाधीनता सन्देश' (वार्षिकी) का संपादन.
दुष्यंत कुमार के पश्चात हिंदी गजल को एक नया आयाम प्रदान करने में कैलाश किंकर का नाम महत्त्वपूर्ण है. सरल भाषा में तीखी से तीखी बात कह देना किंकर की खासियत है. किंकर एक आम आदमी की ही तरह चुनाव और लोकतंत्र की विडम्बनाओं से भलीभाति परिचित हैं. वे बड़ी साफ़गोई से कहते हैं की मोल भाव का समय आ गया है. जाति पांति के जूनून को उभार कर लोगो को जातीय तौर पर उकसाने का समय है. जिस लोकतंत्र का सपना हमारे पुरखो ने देखा वह हमारा आज का लोक तंत्र तो नहीं ही हो सकता. कहीं न कहीं कुछ न कुछ जरूर गड़बड़ है. जिससे किंकर का कवि मन बरबस ही कह उठता है कि यह लोकतंत्र के पड़ाव का समय है.
एक कवि कि यही तो खासियत होती है कि वह 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' का पक्षधर होता है. किंकर भी घर-घर चिराग जलने के हिमायती है. अभी जो तस्वीर है उसे बदलने के हिमायती हैं. वह पिछला सब कुछ छोड़ कर नया सोचने करने का उद्घोष करते हैं जो हमें आशान्वित करता है एक बेहतर मानव समाज के प्रति.
संपर्क: माँ, कृष्णानगर, खगड़िया- 851204
मोबाइल- ०९४३००४२७१२, ०९१२२९१४५८९
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भूलिए वाकया जो हुआ सो हुआ
सोचिए कुछ नया जो हुआ सो हुआ।
लोग मिलते विछुड़ते रहेंगे सदा
छोड़िए मर्शिया जो हुआ सो हुआ।
फिक्र में इस कदर मत गलें रात दिन
भूलिए हर रिया जो हुआ सो हुआ।
जो दिया वो लिया आपका क्या गया
मत जलाएँ जिया जो हुआ सो हुआ।
वक्त ही मर्ज है वक्त ही है दवा
सब्र कर साथिया जो हुआ सो हुआ।
2
जिन्दगी के रंग हैं कई
ढूँढ़िए उमंग हैं कई।
आपकी उड़ान देखकर
आज भी तो दंग हैं कई।
वो जो ग़म में मुस्कुरा रहा
उसके साथ-संग हैं कई।
अश्क में खुशी के बीज हैं
फिर भी इससे तंग हैं कई।
जिस तरह से चाहते, जिएँ
जीने के भी ढंग हैं कई।
3
दीवार मत उठा देना
दूरी नहीं बढ़ा देना।
आसान रास्तों को तुम
मुश्किल नहीं बना देना।
बढ़ जाएगी अदावत यह
शोलों को मत हवा देना।
मुश्किल से नींद आई है
उसको नहीं जगा देना,
होते ही शाम तू ‘किंकर’
दीया जरा जला देना।
4
घर-घर चिराग जल जाए
तस्वीर ये बदल जाए।
उम्मीद हो चुकी बूढ़ी
अब रास्ता निकल जाए।
झूठों को देखकर लगता
सूरज न सच का ढल जाए।
ऐसी सजा खता की हो
हर आदमी सँभल जाए।
है कामना यही ‘किंकर’
हर डाल फूल-फल जाए।
5
आ गया चुनाव का समय
फिर से मोल-भाव का समय।
जातिवाद का चढ़ा जुनूं
है नहीं सुझाव का समय।
प्रश्न है विकास का नहीं
यह तो सिर्फ दाव का समय।
लोकतंत्र सोचता है अब
आ गया पड़ाव का समय।
Kailash jha kinkar ki ghajlen apne samay aur samaj ka pratibimb hai.achhi hai.suman shekhar
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंVery nice and precious article its really a price worthy campaign against visualizing the actual evil image of our Indian society which has the great contribution in diminishing the glorious history and culture of our nation..
हटाएंI really appreciate the works of Shree Kailash Jha kinkar...
Thanks a lot.......
Shyamal Jha, Katihar
आ गया चुनाव का समय
जवाब देंहटाएंफिर से मोल-भाव का समय।
जातिवाद का चढ़ा जुनूं
है नहीं सुझाव का समय।
BADhiya