लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता की ग़ज़लें

लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता

जन्म-तिथि -03.01.1983
जन्म स्थान  : ग्राम - बिशम्भरपुर, पोस्ट - मेहसी, जिला - पूर्वी चंपारण, बिहार 845426

शिक्षा - एम.ए. (हिंदी), पी-एच.डी.,
           
काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
प्रकाशित कृति - 'जिसे वे बचा देखना चाहते हैं' (काव्य संग्रह, 2015)
संप्रति - असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज
           

ग़ज़ल लेखन के क्षेत्र में आज जिन युवाओं ने सक्रिय रहते हुए अपनी अलग पहचान बनाई हैं उनमें लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता का नाम महत्वपूर्ण है। कथ्य हो या शिल्प, दोनों में एक रवानगी दिखायी पड़ती है। अपने एक ग़ज़ल में लक्ष्मण लिखते हैं : 'गुमां   होने  का  अपने  यूं  जताता  है/ किसी तितली को  चुटकी से दबाता है।' कहना न होगा कि हमारा समय ऐसे तमाम व्यक्तित्वों से भरा पड़ा है जिनके लिए व्यवहार और सिद्धान्त दो बिल्कुल अलग अलग बातें हैं। ऐसे लोग दिखते कुछ और होते कुछ और हैं। भ्रम का एक धुंधलका लगातार बना रहता है। रचनाकार की सजग दृष्टि अपने समय और समाज पर है। आज लक्ष्मण जी का जन्मदिन भी है। जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हुए आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता की कुछ नई ग़ज़लें।



लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता की ग़ज़लें

 
1.

न है पानी ही आँखों में, न तो संवेदनाएँ हैं
बड़ी बेजान बासी सी हमारी कल्पनाएँ हैं

उदासी ही उदासी है फ़क़त, हर एक चेहरे पर
सभी के पास अपनी अनकही  सी कुछ कथाएँ हैं

न खुल कर हँस ही पाते हैं, न रो पाते हैं जी भर हम
कहाँ बस में हमारे अब हमारी भावनाएँ हैं

उसे   बाज़ार ने तन्हा  किया  होगाचलो  देखें
तरक़्क़ी के  सफ़र की  ये तो सस्ती  यातनाएँ हैं



2.

कहानी दिल की लिखने का इरादा कर के बैठे हैं
नहीं आसाँ है लेकिन उनसे वादा  कर के बैठे हैं

हमें मालूम है आख़िर हमारा हश्र क्या होगा
सियासी दावँ में ख़ुदको ही प्यादा कर के बैठे हैं

मेरे रंगरेज़ चल तुझको वहाँ  लेकर मैं चलता हूँ
जहां कुछ लोग अब भी दिल को सादा कर के बैठे हैं

सिसकती है, तड़पती है, मुहब्बत उस जगह यारों
जहां पर लोग नफ़रत का इरादा  कर के बैठे हैं

गये हो जब से तुम मुझको अकेला छोड़ कर प्यारे
तुम्हारी याद को अपना लबादा कर के बैठे हैं



3.

गुमां   होने  का  अपने  यूं  जताता  है
किसी तितली को  चुटकी से दबाता है

असर लफ़्ज़ों में रखता है, वो जादू-सा
दिलों  को  बांटता   है  लड़ता है

लिये  फिरता  है  ख़ंजर  आस्तीनों  में
मिलो   तो  प्यार  के  नग्में   सुनाता है

कहानी में  मुझे  रखता तो है लेकिन
मेरे    किरदार  को   बौना   बनाता है

सफ़र  की  धूल  मुट्ठी  में  उठाकर वो
नज़र  सूरज  की आंखों से मिलाता है
 

                   
4.

वक़्त की  नब्ज़ पे पकड़  रखना,
हाथ  में  अपने  ये  हुनर   रखना

ख़्वाब  दिल  में  उतर  के  नाचेंगे,
चाँद की  आंख पर  नज़र  रखना

ज़िंदगी सिलसिला है  भटकन का,
पांव  से  बांधकर  सफ़र    रखना

जिस्म नाज़ुक हो फूल सा  लेकिन,
बात में   अपने  तुम असर  रखना

फिक्र  करना  ज़माने  की  लेकिन,
यार अपनी भी कुछ ख़बर  रखना

स्याह  हो  रात   चाहे  जितनी  भी,
ज़ेह्न में   अपने  तुम  सहर  रखना



5.

इश्क़  हैदर्द  है  वफ़ा  है  यहाँ
अपने  हिस्से  में भी  कारवां  है  यहाँ

दूर  तक  साथ  देता   भला  कौन  है,
हर  मुलाक़ात  इक   हादसा  है  यहाँ

वक़्त की शाख पे फूल फिर  हैं खिलें,
कोई बिछड़ा किसी को  मिला है यहाँ

ख़त पुराना  मगर  हर्फ़ अब  भी नये,
कोई अब  तक  मुझे  ढूंढ़ता  है  यहाँ

रात आँगन में उतरी है वह  गीत लिये,
दिन जिसे  ढूंढ़ कर  थक गया है  यहाँ



सम्पर्क : 

असिस्टेंट प्रोफ़ेसर
हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
प्रयागराज

फोन - 9455107472, 6306659027
ई-मेल - lakshman.ahasas@gmail.com

           


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