अँग्रेज़ी के कवि ऑस्कर वाइल्ड (Oscar Wilde) की कविताएँ, अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय

Oscar Wilde

अँग्रेज़ी के प्रसिद्ध कवि, उपन्यासकार और नाटककार ऑस्कर वाइल्ड (1854-1900) की कविताओं के अनुवाद हिन्दी में नहीं हुए हैं। ऑस्कर वाइल्ड ने शुरू में अपनी जीवनशैली और रचनाओं की वजह से भारी प्रतिष्ठा पाई, वहीं बाद में समलैंगिक हो जाने की वजह से उन्हें ब्रिटिश समाज में भारी पीड़ा, अवसाद और अपमान भी झेलना पड़ा। यहाँ तक कि उन्हें जेल में बन्द कर दिया गया और देश-निकाला दे दिया गया। 

1895 में, जब वे अपनी लेखन-प्रतिष्ठा के शिखर पर थे, ऑस्कर वाइल्ड पर समाज के नैतिक नियमों का उल्लंघन करने के लिए मुक़दमा चलाया गया और उन्हें दो साल के लिए जेल में ठूँस दिया गया। इस घटना का परिणाम यह हुआ कि समाज में उनकी अब तक अर्जित प्रतिष्ठा, मान-सम्मान और सारी उपलब्धियाँ ध्वस्त हो गईं। 
    
जेल से रिहा होने के बाद वे बेहद अकेले पड़ गए और हताशा की हालत में इंगलैण्ड से प्रांस चले गए। लेकिन वे पैसे-पैसे को मोहताज हो गए थे। वहाँ वे अकेले गुमनामी की ज़िन्दगी गुज़ारने लगे। ढाई साल बाद 30 नवम्बर 1900 को पेरिस में ही उनकी मृत्यु हो गई।

’पहली बार’ ने अपने पाठकों के लिए विशेष रूप से इन कविताओं के अनुवाद कराए हैं। मूल अँग्रेज़ी भाषा से इन्हें हिन्दी में पेश कर रहे हैं अनिल जनविजय 
 
 
अँग्रेज़ी के कवि ऑस्कर वाइल्ड (Oscar Wilde) की कविताएँ 
 
 
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय 

 
1. नया जीवन

ज्वार के समय खड़ा था उस शाम मैं समुद्र किनारे
भीग रहा था तेज़ लहरों की बारिश-सी बौछार में
क्षितिज में गहरा रही थी लाली, कर रही थी इशारे
पच्छिम में डूबे दिन, बह रही थी हवा समुद्री क्षार में

चीख़ रहे जलपाखी कें‌..कें.., समुद्र-तट था ख़ाली
हाय... - मैं रोया उस क्षण - कितना दुखी ये जीवन
देगा नहीं कोई मुझे खाने को एक अनाज की बाली
जो पड़ी रह गई उजड़े खेतों में, बदल गया मौसम

घिसकर मेरा जाल पुराना हो गया था बेहद जर्जर
पर बची हुई ताक़त से फेंका, उसे फिर से सागर पर
परेशान था मैं उस समय बेहद, जीवन था बदहाल
क्या करूँ, कैसे जीऊँ, मुँह बाए खड़ा था ये सवाल

और चमत्कार हुआ जैसे फिर, वहाँ पड़ा मुझे दिखाई
लहरों से उभरा, अलबेला इक गोरा हाथ-सा, भाई
फिर भूल गया मैं सब पीड़ाएँ, दुख अतीत का अपना
देख लिया था मैंने जैसे, कोई सुन्दर-सा प्यारा सपना
 
(1881)

 
लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
                  
 
Vita Nuova

I STOOD by the unvintageable sea
  Till the wet waves drenched face and hair with spray,
  The long red fires of the dying day
Burned in the west; the wind piped drearily;

And to the land the clamorous gulls did flee:
  “Alas!” I cried, “my life is full of pain,
  And who can garner fruit or golden grain,
From these waste fields which travail ceaselessly!”

  My nets gaped wide with many a break and flaw
  Nathless I threw them as my final cast
  Into the sea, and waited for the end.
When lo! a sudden glory! and I saw

  The argent splendour of white limbs ascend,
  And in that joy forgot my tortured past.
 
(1881)
 

2. चन्द्रमा का पलायन

 
सारी इन्द्रियों पे सुखदाई बेफ़िक्री पसर गई
और, छाई है एक स्वप्निल शान्ति चारों ओर
छायादार धरती पर ख़ामोशी का असर वही
बे-छाया भूमि पर गहरी चुप्पी, न कोई शोर

तीखी गूँज सुनाई देती है, पीड़ा भरे रुदन की
लगे ज्यों कोई उदास अकेला पंछी रो रहा है
ये दुखी आवाज़ है अन्नपुट पक्षी के क्रन्दन की
कुहरीली पहाड़ी पे अपनी प्रिया को टोह रहा है

वहाँ दूर आसमान में झलके हँसिये जैसा चाँद
अचानक छिप गया वो नभ में छा गया अन्धेरा
चेहरा ढक घुस गया यकायक वह किसी माँद
मुख पे कस लिया है उसने पीले घूँघट का घेरा

 
लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
 
 
La Fuite de la Lune

To outer senses there is peace,
A dreamy peace on either hand
Deep silence in the shadowy land,
Deep silence where the shadows cease.

Save for a cry that echoes shrill
From some lone bird disconsolate;
A corncrake calling to its mate;
The answer from the misty hill.

And suddenly the moon withdraws
Her sickle from the lightening skies,
And to her sombre cavern flies,
Wrapped in a veil of yellow gauze. 
 
Oscar Wilde
 
3. छायाएँ

झलक रही थीं सागर में भूरी-सलेटी चित्तियाँ
औ’ उदास बह रही थी वहाँ, धीमी-सुस्त हवा
चाँद उड़ रहा था, जैसे पतझर की सूखी पत्तियाँ
लहरें उठ रही तूफ़ानी, खाड़ी में कर रहीं बलवा

मलिन रेत पर पड़ी हुई थी, एक काली नाव अकेली
बैठा था उस नाव में एक लापरवाह नाविक लड़का
उमग रहा था ख़ुशी से वह, हर्ष कर रहा अठखेली
चेहरे पे उसके, उसका गोरा हाथ झुटपुटे में चमका

जलपाखी मण्डरा रहे थे ऊपर, चीख़ रहे थे कें...कें...
मलिन ऊँची घास उगी थी, सागर के कूल-कगारे
गुजर रहा था एक युवा कमेरा, उस जगह से बेखटके
छायाकृति-सी झलक रही थी, वह जगह, सुबह-सकारे।
 

लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
 
 
Les Silhouettes

 
The sea is flecked with bars of grey,
The dull dead wind is out of tune,
And like a withered leaf the moon
Is blown across the stormy bay.

Etched clear upon the pallid sand
Lies the black boat: a sailor boy
Clambers aboard in careless joy
With laughing face and gleaming hand.

And overhead the curlews cry,
Where through the dusky upland grass
The young brown-throated reapers pass,
Like silhouettes against the sky.  


4. मृत बहन के लिए प्रार्थना-गीत

धीमे-धीमे रक्खो क़दम, वह पास ही लेटी है
बर्फ़ के नीचे
धीरे-धीरे फुसफुसाओ, वह बात तुम्हारी सुनती है
वनफूलों के पीछे

उसके सुनहरे चमकदार बाल
बदरंग हो बन गए हैं चूल
वह जवान गोरी लड़की
अब बन चुकी है धूल

कमलिनी की तरह, बर्फ़-सा रंग था
वह नहीं जानती थी
वह भी औरत है एक
यह तक नहीं पहचानती थी

भारी पत्थर की तरह ताबूत का ढक्कन
उसकी छाती पर पड़ा है
वह शान्ति से सो रही है
औ’ मेरी छाती में इक शूल गड़ा है।
 
शान्ति, शान्ति, वह सुन नहीं सकती
संगीत या भजन
मिट्टी के उस ढेर के नीचे है मेरा भी जीवन
मैं भी हूँ वहाँ दफ़न।
 

लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए 


Tread lightly, she is near
Under the snow,
Speak gently, she can hear
The daisies grow.

All her bright golden hair
Tarnished with rust,
She that was young and fair
Fallen to dust.

Lily-like, white as snow,
She hardly knew
She was a woman, so
Sweetly she grew.

Coffin-board, heavy stone,
Lie on her breast,
I vex my heart alone,
She is at rest.

Peace, peace, she cannot hear
Lyre or sonnet,
All my life's buried here,
Heap earth upon it. 


अनिल जनविजय






सम्पर्क -

ई मेल : aniljanvijay@gmail.com

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मार्कण्डेय की कहानी 'दूध और दवा'

प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन (1936) में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण

शैलेश मटियानी पर देवेन्द्र मेवाड़ी का संस्मरण 'पुण्य स्मरण : शैलेश मटियानी'