ए .अयप्पन


   ( चित्र-ए .अयप्पन)


इस पोस्ट के साथ हम एक नया कालम प्रस्तुत कर रहे हैं 'बोली-बानी'. इसके अंतर्गत 
विभिन्न भारतीय भाषाओं के कवियों और उनकी कविताओं का परिचय कराया जाएगा.
मलयालम भाषा के कवि ए. अयप्पन और उनकी कविताओं से हमें रु-ब-रू करा रहे हैं 
हमारे मित्र कवि संतोष अलेक्स.


वरिष्ठ मलयालम कवि । 1947 को केरल में जन्म । बचपन में ही माता पिता का देहांत। 
बडी दीदी की परिवार ने पालन पोषण किया। कुछ समय प्राइवेट कॉलेज में अध्यापन। 
जनयुगम मलयालम दैनिक में फ्रूफ रीडर । कुछ समय तक अक्षरम पत्रिका का संपादन। 
20 काव्य संग्रह प्रकाशित । 1999 में 'वेयिल तिन्नुन्न पक्षी' काव्य संग्रह;'धूप चखनेवाली
 चिडिया' के लिए केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार । 2010 का आशान साहित्य पुरस्कार। 
कविताओं का अनुवाद हिंदी एवं अंग्रेजी भाषाओं में हुआ ।

समकालीन मलयालम कवियों में ए. अयप्पन की विशिष्ट पहचान है. उनकी कविताओं 
की शक्ति उनका एकाकीपन, घुमक्क्ड स्वभाव एवं बेरोजगारी थी .वे कविता में झूठे हलों
का निर्देश नहीं देते. इसलिए उनकी कविताओं में सिद्धांत नहीं केवल अनुभव होते हैं. माता, 
पिता, हरियाली, जंगल, नदी, चिडिया आदि अनेक बातों के माध्यम से वे कविता में एक 
ऐसी दुनिया को रचते हैं जो पाठकों को गहरे चोट पहुंचाती है.

अयप्पन की कविताओं के कहीं भी अनावश्यक विस्तार नहीं होती.उनकी कविता निश्चल है. 
यह किसी थल और काल में बंधा नहीं है . उनकी कविताओं की सबसे बडी विशेषता बिंबो का 
सफल प्रयोग और भाषा है .अयप्पन छोटे छोटे शब्दों का प्रयोग करते हैं जिन्हें 'पेट्रो लैंगवेज' 
कहा जाता है. इसलिए उनकी कविताओं में एक ही शब्द बार बार दिखाई देते हैं . अयप्पन की 
कविताओं में वर्तमान, भविष्य एवं भूतकाल से भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है . अयप्पन की 
कविता बगीचे का पौधा नहीं है, पूजा के फूल नहीं है , वह रास्ते के छोर पर खिलने वाले फूल 
सा स्वाभाविक एवं पार्श्ववर्ती है .


कपोत


मेरे पास
पांच कपोत थे
मैंने इन्हें आखेटक से खरीदा
पिंजरे में बंद कपोत
आंगन में घुल मिल गए
दाना चुगते चुगते
आंगन में तिरछे उडे

एक कपोत एक टहनी से दूसरी पर
एक छत पर
एक घोंसले से दूसरे घोंसले में
और एक मेरे कंधे पर बैठा है

शायद दाना खत्म होने के कारण
एक दिन चारों कपोत
चरों दिशाओं में उड गए

पांचवा कपोत
मेरे दिल में था
उसे शिकारी ने मार डाला


साम


मारगेरेट के मरने पर
तू बहुत रो पडा
मेरी बेटी के पेट में
कैंसर से पीडित शिशु है
उसकी जिंदगी तीन महीने
तक की है
तू उससे विवाह कर


अंधों का दिन


आंखों के वैदय की आंखों की रोश्नी खो गयी
वैदय ग्रंथों की बातों को याद करने लगा
अंधे को दृष्टि दी व
आंख दिखाई देने वाले की दृष्टि खो गयी

अदालत का जमीर खो गया
फिर भी संख्या दोहराई
किसी को छोड दिया, किसी को जेल भेजा
किसी को फांसी दी गयी
परीक्षार्थी पाठ भूल गए
पेपर मूल्यांकन करनेवाला अशिक्षित था
इसलिए उत्तीर्ण अनुत्तीर्ण तथा
अनुत्तीर्ण उत्तीर्ण हो गया

दादा मृत्यु से डरता है
उनके जाने का समय हो गया है
लेकिन ज्योतिषी ने दीर्घायु की घोषणा की

मेरी मंगेतर
सांप जैसी थी
जो भी बीन बजाता वह उस ओर चली जाती


गूंगों का वंश


वह गूंगी है, मित्र भी गूंगे थे
इशारों की भाषा में
उसकी बातचीत स्पष्ट होती है
एक खामोश मुहूर्त में
उसने शादी की एक गूंगे से
जानवर को
जानवरों की भाषा
मनुष्य की भाषा
अर्थ व ध्वनियों की
इनके गूंगे प्यार में
लोहार की भाषा
आलिंगन करते समय
पसीने के कणों का अटटहास
उन्हें सुनाई दी
इनके प्यार की नसों में
कलह की गूंज हैं
विचारणा के समय
न्यायालय क्या करेगा
शादी के बाद नवें महीने में
दोनों ने प्रार्थना की
हमें एक गूंगा बच्चा देना


चित्रकार की चिता


मृत चित्रकार की चिता में
उसके बनाए सारे चिता्रें को
जलाया गया

इंद्रधनुष के चित्र से
सतरंगी आग उठी

आग का चित्र बनाने पर
उसे आग लग गई

आग में
हडिडयों के टूटने पर
उसमें से प्रकृति का रूदन
सुनाई देता था

उसके द्वारा बनायी गयी
नदी, समुद्र, तालाब
रोती मॉं
कुछ भी उस चिता को बुझा नहीं सका




संतोष अलेक्स एक सुपरिचित मलयाली 
एवं हिंदी कवि हैं.  इन्होने मलयाली कविओं
के कुछ बेहतर अनुवाद भी किए हैं.

टिप्पणियाँ

  1. "कपोत", "अंधों का दिन", "गूंगों का वंश", "चित्रकार की चिता" अनूठी कविताएं हैं.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी कवितायें हैं ...और हाँ ...यह सीरीज काफी उपयोगी होगी ...बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. संतोष भाई द्वारा अनुदित पुस्तक की सभी कविताएं मैंने पढ़ी हैं। वे एक अद् भुद कवि हैं। यहां पढ़कर बहुत अच्छा लग रहा है... बधाई....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. dhanyavaad vimalesh ji . vijayanagaram mein sahitya academy ke karyakaram ke dauran aap hi ke kamre mein in kavithaon ko maine pada tha. Yadein taaji ho gayi, is bahane.

      हटाएं

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