कुँअर रवीन्द्र







परिचय
:
चित्रकार, कवि
पिता
:
श्री रविरंजन सिंह
जन्म
:
15 जून 1957, रीवा (मध्यप्रदेश)
प्रदर्शनी
:
·      रायपुर (छत्तीसगढ़) - 1976 (एकल)
·      ब्यौहारी (मध्यप्रदेश) - 1983 (एकल)
·      शहडोल (मध्यप्रदेश) - 1983 (समूह)
·      विधानसभा सभागार, भोपाल (मध्यप्रदेश) -1985 (एकल)
·      मध्यप्रदेश कला परिषद्, कला वीथिका, भोपाल (मध्यप्रदेश) - 1986 (एकल)
·      "दंगा और दंगे के बाद", हिंदी भवन, भोपाल (मध्यप्रदेश) - 1993 (एकल)
·      विवेकानंद सभागार, बेतूल (मध्यप्रदेश) - 1995 (एकल)
·      "रंग जो छूट गया था", संस्कृति भवन कला वीथिका, रायपुर (छत्तीसगढ़) - 2012 (एकल)
प्रकाशन
:








:

:


आजकल, आकल्प, आकंठ, आकलन, अक्सर, अक्षत, अक्षरा, अर्चना, असुविधा, भाषासेतु, धर्मयुग, दिनमान, गवाह, गुंजन, हंस, जनपथ, काव्या, कहानीकार, कल के लिए, कला समय, कला प्रयोजन, कारखाना, कथाबिम्ब, कथादेश, कथानक, खनन भारती, कीर्ति, मधुमती, मध्यांतर, मगहर, नवभारत टाइम्स, नवनीत, नई कहानियां, ऒर, पहल, परिकथा, परिंदे, पथ, प्रगतिशील, प्रेरणा, पुरुष, सारिका, सारिका टाइम्स, सदभावना दर्पण, सखी, साक्षात्कार, समावर्तन, समय, संबोधन, समकालीन जनगाथा, समकालीन जनमत, समयांतर, संकेत, सर्वनाम, साहित्य अमृत, शिराजा, शुरुआत, सृजन से, संडे मेल, उत्तर प्रदेश, उत्तरा, वागर्थ, वर्तमान साहित्य, वसुंधरा, वसुधा के साथ देश की व्यावसायिक-अव्यवसायिक पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों के मुखपृष्ठों पर अब तक 17,000 (सत्रह हजार) रेखांकन व चित्र प्रकाशित।
समकालीन कविताओं के  पोस्टरों की कई प्रदर्शनियां आयोजित

मध्यांतर ,कथा बिम्ब , आजकल , कृति ओर , आकंठ,उत्तर प्रदेश , पहले पहल , मधुमती, काव्या आदि पत्रिकाओं, दैनिक जागरण,देशबंधु, दैनिक भास्कर,नवभारत दैनिकों  में कवितायेँ प्रकाशित व् आकाशवाणी से प्रसारित

सम्मान
:
·      सृजन सम्मान, मध्यप्रदेश-1995
·      कला रत्न, बिहार-1997
सम्प्रति
:
  छत्तीसगढ़ विधानसभा सचिवालय में कार्यरत




कुँवर रवीन्द्र मूलतः एक चित्रकार हैं. चित्रकार के साथ-साथ कवि भी. दोनों विधाओं में दोनों का अतिक्रमण स्पष्ट तौर पर देखा और महसूस किया जा सकता है. रवीन्द्र को मालूम है कि  ये जो ऊँचाई है उस पर सिर्फ चील या बाज ही रहा करते हैं. परिंदे भी वृक्षों की टहनियों और पत्तियों के बीच में ही अपना बसेरा बनाते हैं.
यानी जीवन तो धरती से जुड़-कर ही संभव है. ऊँचाई के साथ सामंजस्य बना पाना बड़ी टेढ़ी खीर है. यह ऊँचाई  कहीं-न-कहीं हममें अहमकपना भर देती है जिससे हमारा नजरिया संकीर्ण हो जाता है. कुछ इसी भाव-भूमि की कविताओं के साथ आज पढ़िए चित्र-कवि कुंवर रवींद्र की कला-रचनाएँ.       


एक
आग है उनके पास
फिर भी वे लड़ रहे हैं
अँधेरे के खिलाफ
सूरज की प्रतीक्षा किये बिना

आग है
उनके पास
फिर भी वे
ठिठुरते हुए ठण्ड से
सुलग रहे हैं
धुन्धुआते हुए
अपने ही रक्त की गर्माहट से
वे मरे भी नहीं है
क्योकि आs s s ग है
उनके पास



दो
 
चट्टानों के बीच से बूंदों का टपकना
साबित करता है
कभी तो बर्फ पिघली होगी

रेत में निशान
अब भी बाकी हैं
कभी तो इस नदी में
पानी बहा होगा

इन दरख्तों में
कभी कोपलें भी फूटती थीं
जो अब ठूँठ का बस
पर्यायवाची रह गया है

परिंदे भी ठूंठों पर
घरौंदे नहीं बनाते
ठूंठों के शिखर पर
सिर्फ चील या बाज़ ही बसा करते हैं .....


 

तीन
बच्चे,
मुंह अँधेरे जब सो रहे होते हैं
माँ की छाती/पेट से चिपके
तब वे निकलते हैं
हाँ वे बच्चे निकलते है
ममियों की तरह सूखे
लत्तों में लिपटे नंगे पाँव
हवेली के पीछे कूड़े में
रात के जश्न की बची
सामग्रियों के ढेर पर
पॉलीथिन के टुकड़े बीनने
और कुछ
अघाएपन की गंध के साथ
अधखाई रोटियों के टुकड़े ढूँढने

तब हवेलियों की छत पर
खाया पचाते
मोटापा कम कर रहा सेठ
उन्हें हिकारत से देखते हुए
दुत्कारता है
जैसे वे बच्चे
उसकी तिजोरी से निकाल रहे हों
हराम की कमाई
 


चार

शहर है कि पसरता जा रहा है
हमारी आँखों में
हमारे सपनों में

अपरिचित होते जा रहे हैं

परिचित चहरे
सांसें पड़ने लगीं हैं कम

दस मंजिल ऊँची खिड़कियों से

लोगों को दिखते नहीं
जमीन पर हम

शहर है कि पसरता जा रहा है

तुम कहते हो
छोडो न अपनी ज़मीन









संपर्क-

एफ-६, पी. डब्लू.डी. कालोनी 
(सूर्या अपार्टमेन्ट के सामने )
कटोरातालाब 
रायपुर 
छतीसगढ़ ४९२००१





ई-मेल:kunwarravindra@gmail.com


      k.ravindrasingh@yahoo.com

ब्लॉग:kunwarravindra.blogspot.com
kunwarravindra.blogspot.com











टिप्पणियाँ

  1. चारों रचनाएँ बेजोड़ हैं . दूसरी कविता खासतौर से . बहुत -बहुत बधाई .
    -नित्यानन्द गायेन

    जवाब देंहटाएं
  2. कुंवर रवींद्र की चित्रकला देखते हुए और उनकी कवितायेँ पढते हुए लगता है जैसे खुद मैंने अभी तक कुछ लिखा हे नहीं. बहुत बढ़ायी मित्र

    जवाब देंहटाएं
  3. रवींद्र जी चित्र तो अच्छा बनाते ही हैं,
    कविताएँ भी उससे कम अच्छी नहीं हैं।
    भाषा में अच्छे चित्र की कविताई के लिए
    रवींद्र जी को बहुत बधाई और शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आद. पाण्डेय जी आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है

      हटाएं
  4. रवींद्र जी की कविताएं चित्रकला की ही तरह शब्‍दचित्र रचती हैं, जिनमें संवेदनाएं कुछ और घनीभूत होकर हमारे लिए एक नये संसार को निरंतर खोलती चली जाती हैं। बधाई और शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्‍छी और सशक्‍त कविताएं । मेरी हार्दिक बधई ।

    जवाब देंहटाएं
  6. साथी संतोष चतुर्वेदी का आभार जो इस योग्य समझ मान दिया

    जवाब देंहटाएं
  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  8. चित्रकार रविंदर के पास अपने चित्रों में मनुष्य के जीवन संघर्ष और परिवेश के प्रति लगातार संवेदनशील बने रहने की अनेको रंग गाथाएं हैं .यहाँ इन कविताओं में भी वे आकांक्षाओं ' छोडो ना अपनी जमीन 'और विडम्बनाओ' अपरिचित होते जा रहे हैं चहरे ' के द्वंदों के बीच जुझारू मनुष्य ' अँधेरे के खिलाफ सूरज के प्रतीक्षा किए बिना ' अपने 'रक्त की गर्माहट ' में हर तरह की जड़ता के विरुद्ध चलायमान'चट्टानों के बीच से बूंदों का टपकना ' की चाक्षुक गाथा में सद्रश्य है. सजग कवि समाज में वर्ग की दो फांक परिवेश को अच्छी तरह पहचानता है और अपने शब्द ध्वनि में अपना तीखा विरोध दर्ज कर 'मोटाप कम कर रहा सेठ \उन्हें हिकारत से देखते हुए दुत्कारता है' शोषित की तरफ अपनी तरफदारी व्यक्त करता है . इन दिनों रविन्द्र भाई के चित्रों के साथ उनके कवि रूप का भी आस्वाद करने को मिल रहा है हम सब के लिए सुखद स्थिति है ... इनके लिए उनको धन्यवाद और बधाई .. साथ ही संतोष का आभार जो उनका यह एक साथ हम सब के सामने प्रस्तुत किया .

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मार्कण्डेय की कहानी 'दूध और दवा'।

प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन (1936) में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण

शैलेश मटियानी पर देवेन्द्र मेवाड़ी का संस्मरण 'पुण्य स्मरण : शैलेश मटियानी'