देवेश पथ सारिया का आलेख 'मानसिक स्वास्थ्य के इर्द-गिर्द'

 

देवेश पथ सारिया


हमारे समाज में आज भी कई ऐसी रूढ़ियां और मान्यताएं हैं जो सच न होने के बावजूद अपनी बनावटी वास्तविकता के साथ जन समुदाय में प्रचलित हैं। मानसिक स्वास्थ्य की समस्या ऐसी ही है। ऐसे व्यक्ति को हमारे समाज द्वारा तुरन्त पागल घोषित कर दिया जाता है। लोग उस व्यक्ति का मजाक उड़ाने लगते हैं। उसके बारे में ऊलजलूल बातें शुरू हो जाती हैं। जबकि होना यह चाहिए कि ऐसे व्यक्ति के साथ समाज सहानुभूति के साथ पेश आए। कवि देवेश पथ सारिया उचित ही लिखते हैं कि "अगर ठीक से जाँच कराएँ तो अधिकांश भारतीय मेडिकल मानकों के अनुसार किसी न किसी मानसिक समस्या का शिकार निकलेंगे। हमारे समाज में परिवार और स्कूल में ही ठीक से बच्चों से व्यवहार नहीं किया जाता। इसके साथ ही जिस बेतरतीबी से यहाँ वैवाहिक रिश्ते तय किए जाते हैं, प्रायः वैवाहिक जीवन भी कोई बहुत सुखद नहीं होता। इस सब का परिणाम यह होता है कि हर व्यक्ति बहुत सारे ट्रॉमा ले कर घूम रहा होता है। यौन अपराध भी एक बहुत बड़ी जनसंख्या को ऐसा नासूर दे देते हैं जो ताउम्र बना रहता है। आमतौर पर बचपन में होने वाले इन अपराधों में कोई करीबी रिश्तेदार गुनहगार होता है और बच्चा उस उम्र में किसी को बता भी नहीं पाता। बल्कि उसे लगता है कि उसकी ही कोई ग़लती रही होगी। यह अपराध भावना एवं यौन संबंधों के प्रति घृणा उसके मन में घर कर जाती हैं। भविष्य में ये उसके वैवाहिक संबंधों को भी खराब करती हैं। कितने ही तलाक इस वजह से होते हैं।" आमतौर पर साहित्यकार मानसिक समस्या के इस संवेदनशील मुद्दे पर बात करने से बचते हैं। जबकि सही बात तो यह है कि घनीभूत संवेदनाओं के चलते वही इस तरह की मानसिक दिक्कतों के अधिक गिरफ्त में आ जाते हैं। देवेश ने इस मुद्दे पर एक महत्त्वपूर्ण आलेख लिखा है जिसे गम्भीरता से पढ़ा जाना चाहिए। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं देवेश पथ सारिया का आलेख 'मानसिक स्वास्थ्य के इर्द-गिर्द'।



'मानसिक स्वास्थ्य के इर्द-गिर्द'


देवेश पथ सारिया


कुछ दिन पहले मेरे एक मित्र का मैसेज आया था। उसने 'साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार' का नाम ले कर प्रश्न किया था कि क्या यह कोई बड़ा अवार्ड है? मैंने उसे बताया कि यह युवाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कारों में से एक है, इसे कई भारतीय भाषाओं में दिया जाता है। मेरे मित्र ने बताया कि यह अवार्ड (हिंदी के अलावा किसी और भाषा के लिए) जिस लड़की को मिला था (भाषा और वर्ष का नाम नहीं दिया जा रहा है ताकि लड़की की पहचान गोपनीय रह सके), उससे उसकी शादी की बात चल रही है। मेरा ऐसा सुनना था कि मैं उससे मिन्नतें करने लगा कि उस लड़की की कुछ कविताएँ अंग्रेज़ी में अनुवाद करवा कर मुझे भिजवा दे, मैं हिंदी अनुवाद करना चाहता हूँ। मेरे दोस्त ने कहा कि लड़की अनुवाद को ले कर बहुत उत्सुक नहीं है और आखिरकार उसकी कविताएँ मुझ तक नहीं आ पाईं।


बीते दिनों मैंने उस मित्र से पूछा कि क्या रहा। रिश्ता सिरे चढ़ पाया या नहीं? उसने कहा कि लड़की को मानसिक तनाव संबंधी समस्याएं हैं। इसलिए मित्र के परिवार ने रिश्ते के लिए मना कर दिया। यदि उनको इंकार ही करना था तो बात वहाँ तक ले जानी ही नहीं चाहिए थी कि लड़की, लड़के से लंबी बातें करती और भावनात्मक तौर पर जुड़ाव महसूस करने लगती। इस तरह रिश्ता खत्म होने से लड़की को और अधिक मानसिक कष्ट हुआ होगा। यहाँ यह भी ध्यान देने वाली बात है कि लड़की साहित्यिक दुनिया में महत्वपूर्ण दखल रखती है। उसके पास रिश्तो की कमी नहीं होगी लेकिन रिश्ता टूटने का दुख उसे भी हुआ ही होगा। यदि वह भावुक कवयित्री हुई तो शायद एक आम लड़की से ज़्यादा दुख उसे हुआ होगा।


मुझे लगता है कि मानसिक समस्याओं के बारे में अभी भी हमारा समाज पूरी तरह खुला नहीं है। हमारा हिंदी समाज तो इतना विपन्न है कि यहाँ कई लोग psychiatrist को 'पागलों का डॉक्टर' कहते हैं। ज़ेहनी मर्ज़ के रोगी का ज़िक्र होते ही लोगों को लगता है कि अब तो अमुक बंदा हो गया पागल, अब इसकी मुख्यधारा में वापसी की कोई उम्मीद नहीं है। जबकि सच यह है कि इन बीमारियों का इलाज हो सकता है और ये समस्याएँ हमेशा पागलपन ही नहीं होती हैं। अगर ठीक से जाँच कराएँ तो अधिकांश भारतीय मेडिकल मानकों के अनुसार किसी न किसी मानसिक समस्या का शिकार निकलेंगे। हमारे समाज में परिवार और स्कूल में ही ठीक से बच्चों से व्यवहार नहीं किया जाता। इसके साथ ही जिस बेतरतीबी से यहाँ वैवाहिक रिश्ते तय किए जाते हैं, प्रायः वैवाहिक जीवन भी कोई बहुत सुखद नहीं होता। इस सब का परिणाम यह होता है कि हर व्यक्ति बहुत सारे ट्रॉमा ले कर घूम रहा होता है। यौन अपराध भी एक बहुत बड़ी जनसंख्या को ऐसा नासूर दे देते हैं जो ताउम्र बना रहता है। आमतौर पर बचपन में होने वाले इन अपराधों में कोई करीबी रिश्तेदार गुनहगार होता है और बच्चा उस उम्र में किसी को बता भी नहीं पाता। बल्कि उसे लगता है कि उसकी ही कोई ग़लती रही होगी। यह अपराध भावना एवं यौन संबंधों के प्रति घृणा उसके मन में घर कर जाती हैं। भविष्य में ये उसके वैवाहिक संबंधों को भी खराब करती हैं। कितने ही तलाक इस वजह से होते हैं।


यदि किसी को गुस्सा बहुत आता है तो यह भी एक प्रकार का मानसिक असंतुलन ही है। जो माता-पिता और अध्यापक बच्चों को बहुत मारते हैं, वे भी मानसिक विकारों से ग्रस्त हैं। बार-बार हाथ धोना, चीज़ों को हठी होने की हद तक एक निश्चित क्रम या विन्यास में जमा कर रखना और ऐसा न होने पर विचलित हो जाना मानसिक बीमारियों के लक्षण हैं। 'संगत' पर एक वरिष्ठ कवि का साक्षात्कार सुनते हुए मुझे यह लगा कि किशोरावस्था से ही एक आध्यात्मिक आदर्शवाद से संपृक्ति ने उनमें अपराध बोध और हीन भावना का विकास किया जिसके परिणामस्वरुप वे आज भी अपनी कविताओं को ले कर बहुत आश्वस्त नहीं हैं। दवाओं की न सही लेकिन काउंसलिंग की जरूरत उनको भी है। वैसे दवाओं की जरूरत है या नहीं, यह ठीक-ठीक डॉक्टर ही बता सकता है, मैं नहीं। यहाँ हमें psychiatrist और psychologist के बीच इस मोटे अंतर को समझ लेना चाहिए कि psychiatrist मनोरोग के लिए दवाई देते हैं जबकि psychologist मरीज से बात कर के उनके अवचेतन की गहराई तक पहुँचते हैं और काउंसलिंग व विविध प्रकार की थेरेपी द्वारा उपचार करने का प्रयास करते हैं। रोग की गंभीरता के अनुसार इनमें से किसी एक या दोनों की ज़रूरत पड़ती है।


मैं अधिकतर मौकों पर अंतर्मुखी बना रहता हूँ और ज्यादा लोगों से खुल कर बात नहीं करता। लेकिन जिन लोगों के साथ मैं सहज हूँ, उनके सामने मैं बहुत-बहुत बात कर सकता हूँ। यह मेरा अपना स्वभाव है। मैं दूसरों के स्वभाव को लेकर उनसे शिकायत नहीं करता कि भाई आप क्यों हर किसी से मुँहफट हो कर मिलते हैं। इसलिए मैं उम्मीद करता हूँ कि मुझे भी मेरे नैसर्गिक रूप में स्वीकार कर लिया जाए। हालांकि दुनिया में ऐसा होता नहीं है। दुनिया का गणित इतना आसान नहीं है।


मुझे एंजायटी और पैनिक अटैक की समस्या रही है। मैंने वर्षों तक इन बीमारियों के कारण होने वाली जटिलताओं का सामना किया है। मैं किसी समझदार व्यक्ति से (जो पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं है) अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुल कर बात कर सकता हूँ। मैं इसे लेकर शर्मिंदा नहीं हूँ।


पिछले दिनों एक वाकया हुआ। अप्रैल में एक व्यक्ति से मेरी फेसबुक पर खटपट हुई और उसने मुझे ब्लॉक करने के बाद पोस्ट लिखा। फेसबुक पर ऐसा होता है, यह अपेक्षित था। दिक़्क़त यहाँ आती है कि उसने अन्य बातों के साथ मेरे बारे में यह भी जोड़ दिया कि मैं मानसिक रोगी हूँ, पागल हूँ। यही व्यक्ति भूतकाल में मुझे अपना बेटा कहा करता था। हालांकि मैंने कभी उसे बाप की जगह नहीं दी। मैं वह जगह किसी को देता ही नहीं। मैं साहित्यिक दुनिया में दीदी, भैया, चाचा, नाना बनाने में यकीन नहीं रखता भले ही कोई सामने से ऐसे किसी रिश्ते का प्रस्ताव रखे। यदि मैं किसी को 'दादा' कहता पाया जाऊं तो वह इसलिए है कि उन्होंने मेरे 'सर' संबोधन को नकार दिया होगा। मेरे जीवन में सबसे ऊपर की श्रेणी जिस पर आप पहुँच सकते हैं, वह एक भरोसेमंद दोस्त की है। और यक़ीन रखिए, मेरे यहाँ आपके मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य का मज़ाक़ नहीं उड़ाया जाएगा। मैं जानता हूँ कि बीमार होना क्या होता है और मैं संवेदनाशून्य मनुष्य नहीं हूँ।



परिचय 


देवेश पथ सारिया 


प्रकाशित पुस्तकें :

कविता संकलन : नूह की नाव (2022)।

कहानी संग्रह : स्टिंकी टोफू (2025) ।

कथेतर गद्य : छोटी आँखों की पुतलियों में (2022)

अन्य भाषाओं में अनुवाद/प्रकाशन : 

कविताओं का अनुवाद अंग्रेज़ी, स्पेनिश, मंदारिन, रूसी, बांग्ला, मराठी, पंजाबी और राजस्थानी भाषा-बोलियों में हो चुका है। इन अनुवादों का प्रकाशन एन ला मास्मेदुला, लिबर्टी टाइम्स, लिटरेरी ताइवान, ली पोएट्री, मे प्यान, पोयमामे, यूनाइटेड डेली न्यूज़, स्पिल वर्ड्स, बैटर दैन स्टारबक्स, गुलमोहर क्वार्टरली, बाँग्ला कोबिता, इराबोती, कथेसर, सेतु अंग्रेज़ी, प्रतिमान पंजाबी और भरत वाक्य मराठी पत्र-पत्रिकाओं में हुआ है। A Toast to Winter Solstice (अंग्रेज़ी अनुवाद: शिवम तोमर, 2023) शीर्षक से एक अंग्रेज़ी कविता संकलन प्रकाशित।


पुरस्कार/सम्मान : भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (2023)।


विशेष :

1. ताइवान के संस्कृति मंत्रालय की योजना के अंतर्गत 'फॉरमोसा टीवी' पर कविता पाठ (2022)।

2. काओशोंग वर्ल्ड पोएट्री फेस्टिवल (2023) में शिरकत।

3. रज़ा न्यास के 'आज कविता' कार्यक्रम में कविता पाठ (अप्रैल 2025)

सम्पादन : गोल चक्कर वेब पत्रिका



मोबाइल : 9784972672 


ईमेल: deveshpath@gmail.com







टिप्पणियाँ

  1. भारतीय समाज में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर ज़रूरी जागरुकता नहीं है।
    ये लेख इस ओर ध्यान आकृष्ट कराता है। मनुष्य का व्यक्तित्व अवचेतन मन से संचालित होता है, अतः अब समय है सचेत होने का।

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