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यहूदा अमीचाई की पांच कविताएँ

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  Yehuda Amichai जन कवि येहुदा अमीचाई  ‎(3 मई 1924 - 22 सितंबर 2000) एक इज़राइली कवि और लेखक थे, जो आधुनिक समय में बोलचाल की हिब्रू में लिखने वाले पहले लोगों में से एक थे। रोज़मर्रा की ज़िंदगी, प्रेम और मृत्यु के कवि, येहुदा अमीचाई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे प्रसिद्ध इज़राइली कवि हैं। उनकी पुस्तकों का चीनी और जापानी सहित बीस से अधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया है। अमीचाई मानते थे कि कविता में सामान्य जीवन प्रतिबिंबित होना चाहिए। जैसा कि उन्होंने एक बार कहा था, "मैं भी मृतकों के बीच रह रहा हूँ।" उन्होंने अपना अंतिम नाम बदल कर "अमीचाई" रख लिया, जिसका अर्थ है "मेरा राष्ट्र जीवित है।" इनकी कविताओं में इजरायल का जीवन और वहां की वे विडम्बनाएं हैं जो प्रायः अदेखी रह जाती हैं। यहूदा अमीचाई की कविताओं का भावप्रवण हिन्दी अनुवाद किया है कवि विनोद दास ने। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं यहूदा अमीचाई की पांच कविताएँ। यहूदा अमीचाई की पांच कविताएँ   हिन्दी अनुवाद : विनोद दास    (1) मेरा हुलिया मेरा हुलिया उस यहूदी पिता सा है  जो बाज़ार से घर अपनी पीठ पर एक बोरा लादे हुए...

देवेश पथ सारिया का आलेख 'मानसिक स्वास्थ्य के इर्द-गिर्द'

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  देवेश पथ सारिया हमारे समाज में आज भी कई ऐसी रूढ़ियां और मान्यताएं हैं जो सच न होने के बावजूद अपनी बनावटी वास्तविकता के साथ जन समुदाय में प्रचलित हैं। मानसिक स्वास्थ्य की समस्या ऐसी ही है। ऐसे व्यक्ति को हमारे समाज द्वारा तुरन्त पागल घोषित कर दिया जाता है। लोग उस व्यक्ति का मजाक उड़ाने लगते हैं। उसके बारे में ऊलजलूल बातें शुरू हो जाती हैं। जबकि होना यह चाहिए कि ऐसे व्यक्ति के साथ समाज सहानुभूति के साथ पेश आए। कवि देवेश पथ सारिया उचित ही लिखते हैं कि "अगर ठीक से जाँच कराएँ तो अधिकांश भारतीय मेडिकल मानकों के अनुसार किसी न किसी मानसिक समस्या का शिकार निकलेंगे। हमारे समाज में परिवार और स्कूल में ही ठीक से बच्चों से व्यवहार नहीं किया जाता। इसके साथ ही जिस बेतरतीबी से यहाँ वैवाहिक रिश्ते तय किए जाते हैं, प्रायः वैवाहिक जीवन भी कोई बहुत सुखद नहीं होता। इस सब का परिणाम यह होता है कि हर व्यक्ति बहुत सारे ट्रॉमा ले कर घूम रहा होता है। यौन अपराध भी एक बहुत बड़ी जनसंख्या को ऐसा नासूर दे देते हैं जो ताउम्र बना रहता है। आमतौर पर बचपन में होने वाले इन अपराधों में कोई करीबी रिश्तेदार गुनहगार होत...

फ़िलिस्तीन की समकालीन कविताएँ

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  जीवन से बड़ा कुछ भी नहीं होता। न कोई राष्ट्र, न कोई धर्म, न कोई भाषा, न कोई वर्ग। इन सबका अस्तित्व मानव के होने से ही है। यह अलग बात है कि मानव जाति का इतिहास वस्तुतः युद्धों के इतिहास के रूप में ही दिखाई पड़ता है। युद्ध में जान माल की व्यापक क्षति होती है। लेकिन उस ज़िद का क्या किया जा सकता है जो अपने को सर्वोपरि मानती रही है। गज़ा आज इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। इस युद्ध के मूल में  वे यहूदी हैं जो बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में जाति और नस्ल आधारित हिंसा के सबसे बड़े शिकार रहे है किंतु ऐसा लगता है कि इस हिंसा और अत्याचार से उन्होंने कोई भी सबक नहीं लिया। अब वे स्वयं हिंसा और नस्लभेद को बढ़ावा देने वालों की पंक्ति में सबसे आगे खड़े दिखने लगे हैं। श्रीविलास सिंह ने कुछ फिलिस्तीनी कवियों की कविताओं का अनुवाद किया है। इन कविताओं में फिलिस्तीनियों की कथा व्यथा वर्णित है। इससे हम यह समझ सकते हैं कि युद्ध क्षेत्र के लोगों की प्राथमिकताएं कुछ अलग किस्म की ही होती हैं। इन कविताओं को पढ़ते हुए रोंगटे खड़े हो जाते हैं।  चयन, अनुवाद और प्रस्तुति के साथ साथ इन कविताओं की उम्द...

सुभाष राय का आलेख 'आंडाल, एक विलक्षण कवि'

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  सुभाष राय मध्य काल में भक्ति काव्य का अपना विशिष्ट स्थान है। इन संतों के काव्य में मूलतः भक्ति की प्रमुखता है। कहा जा सकता है कि यह काव्य भक्ति भावना से पूरी तरह आप्लावित है। लेकिन आंडाल के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। सुभाष राय लिखते हैं 'आंडाल इसी चैतन्य भूमि पर खड़ी हो कर सारी दुनिया से स्वयं को एकमेक महसूस करती हैं। उन्हें एक महान संत के रूप में स्वीकार किया गया और प्रायः यह समझा गया कि संत होने से ही उनका कवि होना संभव हुआ होगा। यह पूरा सच नहीं है। उनकी काव्य प्रतिभा भक्ति के अधीन नहीं है। वह अपना स्वातंत्र्य प्रमाणित करती है। कई बार उनके कवि के आगे उनका भक्त पराजित दिखता है, विष्णु भी नतमस्तक नजर आता है।' सुभाष राय इन दिनों आंडाल पर विशिष्ट शोध कार्य में जुटे हुए हैं। इसके पूर्व अक्क महादेवी पर उनकी एक शोधपरक किताब प्रकाशित हो चुकी है। हाल ही में 'पक्षधर' का 38वें अंक में उनका एक महत्त्वपूर्ण आलेख   'आंडाल, एक विलक्षण कवि'  प्रकाशित हुआ है। आज पहली बार पर हम इस आलेख को प्रस्तुत कर रहे हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  सुभाष राय का आलेख ...