लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता की गज़लें

लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता इस बात में कोई संशय नहीं कि हिंदी गज़ल आज अपना एक मुकाम बना चुकी है। दुष्यन्त कुमार ने हिन्दी ग़ज़ल को जिस तरह आम जन जीवन और समस्याओं से जोड़ा वही आगे चल कर उसका मुख्य स्वर ही बन गया। अदम गोंडवी ने अपनी कहन के जरिए इसे और पैना तथा मारक बनाया। आज इस विधा में अनेक गजलकार सक्रिय हैं। लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता ने इन सबमें अपनी अलग जगह बनाई है। लक्ष्मण इस समय की वास्तविकताओं से बखूबी परिचित हैं। खासकर विकास की आज की अधुनातन वास्तविकता से। वे लिखते हैं : 'तरक़्की तो वसूलेगी यूँ क़ीमत आदमी से,/ वो हिस्सा भीड़ का होगा मगर तन्हा मिलेगा/ किसी का चाँद बादल का निवाला हो चलेगा,/ किसी के हिस्से का सूरज यहाँ डूबा मिलेगा।' लक्ष्मण की ये गजलें समाज और जीवन के तमाम पहलुओं को सहज ही व्यक्त करती हैं। हाल ही में लोकभारती प्रकाशन इलाहाबाद से उनका नया गजल संग्रह 'ये किससे बोलता हूँ' प्रकाशित हुआ है। लक्ष्मण प्रसाद गुप्त को बधाई देते हुए आज पहली बार पर हम इसी गजल संग्रह से कुछ गजलें प्रस्तुत कर रहे हैं। लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता की गज़लें 1 पानी पर तस्वीर बनाई पानी की आदम...