रामजी तिवारी की पुस्तक का अंश 'वियतनाम युद्ध और हालीवुड मायोपिया'।
फ़िल्में केवल हमारे मनोरंजन का ही साधन नहीं होतीं बल्कि ये हमारे समय का एक बेहतरीन दस्तावेज भी होती हैं। एक विश्लेषक अपनी सूक्ष्म दृष्टि के द्वारा इन फिल्मों को देख कर उनकी वास्तविकता या दिखावे को समझ और समझा सकता है। वियतनाम युद्ध इतिहास का एक ऐसा ही अध्याय है जिस पर फिल्मकारों ने अनेक फ़िल्में बनाईं। यहाँ यह काबिले-गौर है कि अलग-अलग निर्देशकों द्वारा एक ही विषय वियतनाम युद्ध पर बनायी गयी फिल्मों में उनके काल-स्थान-सोच एवं संस्कृति का स्पष्ट फिल्मांकन दिखाई पड़ता है। आस्कर अवार्ड्स को फिल्मों का सर्वोच्च सम्मान माना जाता है लेकिन यहाँ भी तमाम घालमेल होता है। जाहिरा तौर पर अमरीका में दिए जाने वाले इस सम्मान पर अमरीकी सोच एवं मानसिकता भी शामिल होती है और जो फ़िल्में इस प्रतिमान पर खरा उतरतीं हैं उन्हें ही इस सम्मान से नवाजा जाता है। बाक़ी को इससे महरूम कर दिया जाता है। फिर भी दम-ख़म वाली फ़िल्में बिना किसी पुरस्कार-सम्मान के भी दर्शकों का जो प्यार एवं सम्मान पाती हैं वह सम्म़ानित फ़िल्में हांसिल नहीं कर पातीं...