आज़म रहनवर्द ज़रयाब की अफगान कहानी पतंगबाज़, हिंदी अनुवाद : श्रीविलास सिंह
श्रीविलास सिंह |
कहानी किसी भी विषय पर हो सकती है। लेकिन महत्त्व इस बात का होता है कि उसका जिन्दगी से जुड़ाव किस तरह का है। पतंगबाजी सामान्य तौर पर एक ऐसा हुनर है जिसे हम अपने यहाँ के आसमानों में आमतौर पर देख सकते हैं। लेकिन इस हुनर में कथा का महीन तत्त्व तलाशने का हुनर जमीन से जुड़ा रचनाकार ही कर सकता है। विश्व के कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण रचनाकारों की रचना को सामने लाने का उम्दा काम किया है, जो हिन्दी में अनुवादित नहीं हैं। आज पहली बार पर प्रस्तुत है आज़म रहनवर्द ज़रयाब की कहानी पतंगबाज़। ज़रयाब की कहानी का अंग्रेजी अनुवाद ख़लील ए. अरब ने किया है। इसका हिन्दी अनुवाद किया है श्रीविलास सिंह ने।
पतंगबाज़
आज़म रहनवर्द ज़रयाब
(अफगान कहानी )
अंग्रेजी अनुवाद : ख़लील ए. अरब
हिंदी अनुवाद : श्रीविलास सिंह
मैं एक पतंगबाज़ हूँ। जहाँ तक मैं स्मरण कर सकता हूँ, मैंने पतगों और मांझे (तार) का काम किया है। मैं बसंत और गर्मियों भर पतझड़ के आगमन की उत्कंठा से प्रतीक्षा करता हूँ। मैं सभी तरह के मांझों को बहुत से अलग अलग रंगों में रंग सकता हूँ : आसमानी, गुलाबी, धानी, सफेद और बहुरंगी। निश्चय ही ये सभी रंग अलग अलग समय पर प्रयोग के लिए अच्छे होते हैं। उदाहरण के लिए, जब आकाश में काले घने बादल हों तब सफ़ेद मांझा बेहतर काम करता है। जब बादल हल्के हों तब धानी रंग औरों से बढ़िया होता है। और जब आसमान साफ हो तब आसमानी रंग सबसे अच्छा होता है क्योंकि डोर तब दिखाई नहीं पड़ती और चरखी वाले बच्चों से (जो पतंग काटना चाहते हैं) बच जाती है।
मेरे समूचे पड़ोस में बच्चे मुझे जानते हैं और मेरा विरोधी बनने के डर से, मेरी इज्जत करते हैं । कभी कभार वे आ कर मुझसे सलाह भी लेते हैं।
मैं एक पतंगबाज़ हूँ और मेरे पास एक पतंगबाज की सी तेज दृष्टि है। जब दो पतंगें एक दूसरे के बहुत करीब ‘लड़ने’ के कगार पर होती हैं तो मैं एक नज़र में बता सकता हूँ कि कौन सी पतंग लड़ाई जीतेगी और कौन सी कट जाएगी। जब कोई करीबी लड़ाई हो रही होती है, बच्चे अपनी छतों पर चढ़ जाते हैं और मेरा नाम चिल्लाते है :
“याकूब, तुम्हारी समझ से कौन सी जीतेगी ?”
फिर मैं पतंगों की ओर देखूंगा, थोड़ा सा सोचूंगा, हर चीज का हिसाब लगाऊंगा फिर जवाब दूंगा :
“वह गहरे लाल रंग वाली जीतेगी।” और फिर एक क्षण बाद ठीक ऐसा ही होता है।
मेरे पूरे पड़ोस में मेरा एक ही प्रतिद्वंदी है और वह है हामिद तोतला। मैं स्वीकार करूँगा कि यह तुतलाने वाला लड़का मुझसे किसी तरह कम नहीं है। वह मांझे पर शीशे का लेप मुझसे कम बढ़िया नहीं लगाता, न ही मुझसे कम पतंगबाज़ी के गुर जानता है। चूँकि हम दोनों की शक्ति एक सी है, हम आपस में शांति से रहते हैं और एक दूसरे से पतंग लड़ाने से बचने का पूरा प्रयत्न करते हैं।
अच्छा, तो मैं एक पतंगबाज़ हूँ और तमाम अन्य लोगों की भांति, एक पतंगबाज़ के पास भी एक दिलचस्प कहानी होती है, एक दो चीजें जो उसके साथ घटित हुई होती हैं। एक दिलचस्प बात मेरे साथ भी चार साल पूर्व घटित हुई थी।
एक अपराह्न, किसी ने मेरे घर के दरवाजे पर दस्तक दी। जब मैंने जा कर दरवाजा खोला तो मेरी मुलाकात हरे रंग का बुर्का पहने एक लड़की से हुई, जिसने जल्दबाजी भरी आवाज में मुझसे पूछा :
“क्या तुम याक़ूब हो?”
उसी जल्दबाजी भरी आवाज में उसने बोलना जारी रखा :
“मैं तुम्हारी नयी पड़ोसन हूँ। हम इस इलाक़े में हाल ही में आये हैं। मेरा छोटा भाई बीमार है। उसने तुम्हारे बारे में सुन रखा है। उसने डोर के तीन लच्छे भेजे हैं और पूछा है कि क्या उसके लिए तुम उन पर शीशे का लेप चढ़ा सकते हो। क्या तुम ऐसा करोगे?
उसकी आवाज बहुत मधुर थी और वह मुझे बहुत अच्छी लगी। अब मैं उसके बुर्के की जाली के पीछे से उसकी आँखें देख सकता था। उसकी आँखें काली और चमकदार थी। उसकी नाक और माथा सफ़ेद थे। मुझे लगा मानों वह काली आँखों वाली सफ़ेद पतंग हो। अपनी दुबली छरहरी देह के कारण वह जितनी लंबी वास्तव में थी उससे अधिक लग रही थी। मैं सम्मोहित सा हो गया।
“तुम ऐसा करोगे कि नहीं?”
मैंने अपने को व्यवस्थित किया और घबड़ाहट में जवाब दिया :
“हाँ, मैं कर दूंगा, मैं कर दूंगा।”
उसका सफ़ेद और सुन्दर हाथ जो समुद्रफेन सा लग रहा था, बुर्के के नीचे से बाहर आया और उसने मुझे डोर के तीन लच्छे दिए। उसके नाख़ून बहुत लाल थे, और लाल मूंगे के रंग के लग रहे थे मैंने डोर के लच्छे ले लिए।
“ये कब तैयार हो जायेंगे ?”
“परसों,” मैंने जवाब दिया। वह जाने ही वाली थी जब मैंने उससे पूछा :
“इन्हें किस रंग से रंगूं?”
उसने अपना चेहरा घुमाया और कहा :
“क्या ये बहुलंगी हो सकते हैं?”
मैंने उससे फिर पूछा :
“क्या तुम कह रही हो कि इन्हें बहुरंगी कर दूँ ?”
वह मुंह दबा कर हलके से मीठी हँसी हँसी और कहा :
“हाँ, मैं इस शब्द का उच्चारण ठीक से नहीं कर पाती। जब मैं छोटी बच्ची थी तब से ही मैं इसका गलत उच्चारण करती हूँ, अलविदा।”
वह चली गयी और जब तक मैंने उसे दोबारा नहीं देखा, उसका आखिरी वाक्य मेरे कानों में झनकता रहा - “जब मैं बच्ची थी तब से ही मैं इसका उच्चारण बहुलंगी करती हूँ, अलविदा।”
उन दो दिनों के दौरान, उसकी सफ़ेद नाक और माथा और उसकी काली और चमकदार आँखें, जो काली गहरी आँखों वाली सफ़ेद पतंग जैसी दिखती थी, मेरे मस्तिष्क से दूर ही नहीं जा रही थी। एक प्रकार की अज्ञात सी ख़ुशी बार-बार मेरे ह्रदय में गुदगुदी कर रही थी, और मैं बार बार फुसफुसाना चाहता था, “मेरी नयी पड़ोसन”।
और जब मैंने अपनी माँ को देखा तो मैं चिल्लाया :
“हमारे नए पड़ोसी कितने शानदार हैं !”
“क्या तुम उन्हें जानते हो ?” मेरी माँ ने सर्द लहजे में पूछा।
“हाँ, मैं उन्हें जानता हूँ,” मैंने जवाब दिया।
उन दो दिनों में मैंने अपनी पूरी विशेषज्ञता लगा दी। मैंने ऐसी कोई चीज नहीं छोड़ी जिसे मैं शीशे के अच्छे लेप के लिए आवश्यक समझता था। आखिर में डोर तैयार हो गयी और वह एक बार फिर आयी। वह वही बुरका पहने हुए थी और उसकी आँखें वैसे ही काली और चमकदार थी। मैंने उसकी सफ़ेद नाक और माथे को एक बार फिर देखा और एक बार फिर उसकी मधुर आवाज सुनी जब उसने कहा :
“क्या तुमने डोर पर लेप लगा दिया ?”
“हाँ, मैंने कर दिया,” मैंने जवाब दिया। और जब मैं उसे डोर की धार दिखा रहा था, मैंने कहा :
“मैंने इन्हें सफ़ेद और आसमानी रंग से रंगा है।”
“ऐसा क्यों? क्या यह अच्छा रंग है?” उसने पूछा।
“यह डोर तब बहुत अच्छी रहेगी जब आसमान में बादल छाये होंगे,” मैंने उत्तर दिया।
जब उसने डोर की तीक्ष्णता देखी, उसने आश्चर्यमिश्रित शोर सा किया। उसने डोर मेरे हाथ से लगभग छीन सी ली और पूछा :
“मुझे कितना भुगतान करना है ?”
बिना उसके प्रश्न का उत्तर दिए, मैंने कहा :
“यह चरखी जो तुम पकड़े हुए हो शीशम की बनी है, उत्तर भारत की शीशम। यह एकदम फौलाद की तरह मजबूत है। यदि यह छत पर से भी गिर जाये तो टूटेगी नहीं।
उसने मेरी बात बीच में ही काट दी और पहले दिन की मुलाकात की तरह की ही खिसियायी सी आवाज में पूछा।:
“मैं कितना भुगतान करूँ ?”
इस प्रश्न को सुन कर मेरे समूचे बदन में एक तरह की शर्मिंदगी सी दौड़ गयी। अंततः मैंने उत्तर दिया :
“तुम क्या कह रही हो, मैं अपने पड़ोसी से पैसे कैसे ले सकता हूँ ?”
“इसका मतलब है तुम कोई पैसा नहीं लोगे?” उसने पूछा।
मैंने अपना सिर हिलाया। उसने सिर से पैर तक मेरा परीक्षण किया और फिर पहले दिन की भांति, मुंह दबा कर मधुर हँसी हँसी और कहा :
“अच्छा, फिर अलविदा।”
वह चली गयी। ख़ुशी ने मेरे ह्रदय को इस बार और भी अधिक गुदगुदाया।
“हमारी नयी पड़ोसन, ” मैं फुसफुसाया। और मैं घर के भीतर चला गया, मेरी माँ एक बार फिर मिली और मैंने फिर कहा :
“हमारे नए पड़ोसी कितने शानदार हैं !”
उसने इस बार कुछ और ठंडेपन से और अरुचि से पूछा :
“क्या तुम उन्हें जानते हो ?”
थोड़े गर्व के साथ मैंने लगभग चिल्लाते हुए उत्तर दिया :
“हाँ, मैं उन्हें जानता हूँ।”
अगली सुबह, मैं अपनी छत पर था और पतंगों को उड़ते हुए देख रहा था। हामिद तोतला अपनी पतंग उड़ा रहा था, और किसी ने उसे चुनौती नहीं दी थी। उसकी पतंग नीले रंग की तीन फुट की पतंग थी जिसमें सफ़ेद पूंछ थी और वह किसी ड्रैगन की भांति दहाड़ रही थी, हर तरफ आक्रमण करती हुई, कोई किसी तरह का प्रतिरोध नहीं कर पा रहा था। दूसरे सभी पतंगबाज़ उसकी पतंग से दूरी बनाये रखना चाह रहे थे। बहुत से लोगों ने अपनी पतंगें समेट ली थी।
एकाएक मैंने देखा कि मेरे नए पड़ोसी की छत से एक पतंग उड़ाई जा रही थी, तीन फुट की एक सफ़ेद पतंग, एक नीली पूंछ और एक जोड़ी नीली आँखों वाली। मैंने लड़की के बारे में सोचा और उसी ख़ुशी ने फिर मेरे ह्रदय में गुदगुदी की - “हमारी नयी पड़ोसन।”
मैं उनकी छत की ओर दौड़ा। उस की छत पर काले पत्थरों की चाहरदीवारी थी। मैं पतंग उड़ाने वाले को नहीं देख सकता था। मैं नर्वस था। मैं अपने शीशे के लेप की गुणवत्ता देखना चाह रहा था। पतंग ऊपर उठी, ऊँची और ऊँची। एकाएक मैंने उसे सफ़ेद पूंछ वाली नीली पतंग की तरफ तेजी से जाते हुए देखा, वह हामिद तोतला की पतंग की ओर जा रही थी। मेरी देह कंपकपाने लगी। जब तक मैंने, अपनी पूरी ताकत से चिल्ला कर उस दिशा में न जाने की सलाह देनी चाही तब तक बहुत देर हो चुकी थी; दोनों पतंगें आपस में उलझ चुकी थी। फिर मेरे ऊपर एक थकन सी छा गयी और मेरी देह पर शिथिलता सी। मुझे पक्का विश्वास था कि मेरा यह नया पड़ोसी, वह बीमार लड़का, उसकी पतंग तुरंत ही कट जाएगी और धुंए की भांति हवा में अदृश्य हो जाएगी। फिर मैं दोबारा कभी लड़की की आँखों में देख पाने में सक्षम नहीं हो पाउँगा। मैं जानता था कि सिर्फ धारदार मांझा होने मात्र से दूसरे की पतंग नहीं काटी जा सकती, उसके लिए निपुणता की भी आवश्यकता होती है। तकनीक और अनुभव का समिश्रण, जो दोनों ही हामिद तोतला के पास पर्याप्त मात्रा में थे।
मैं अपने विचारों से बाहर तब आया जब दोनों पतंगे बहुत दूर जा चुकी थी। मुझे भान हुआ कि इस लड़ाई में बहुत समय लग रहा था। मेरे भीतर आशा अंकुरित होने लगी जब मुझे महसूस हुआ कि मेरा पड़ोसी एकदम अनुभवहीन नहीं था। मैंने स्वयं से सोचा : “मेरा पडोसी अच्छा पतंगबाज़ है। मुझे नहीं पता उसने अपनी डोर मुझे शीशे का लेप करने के लिए क्यों भेजी थी”।
अब तक दोनों पतंगें बहुत छोटी दिखने लगीं थी। हामिद तोतला की तीन फुट की पतंग एकदम सीधी रेखा में आगे जा रही थी और मेरे पडोसी की पतंग दूर हट रही थी। एकाएक मैंने अपने पड़ोसी को खेल से बाहर होते देखा, उसकी पतंग नीचे और नीचे ही होती जा रही थी मानों बचने के लिए यह दूर किसी छत पर उतरने वाली हो। मैंने अपना हाथ अपने मुंह पर गोल कर के लगाया और चिल्लाया :
“इसे घुमाओ मत, स्थिर रखो।”
लेकिन पतंग ढीली से ढीली होती हुई हर क्षण नीचे ही जा रही थी। ऐसा लगा मानों मेरे पड़ोसी ने मेरा चिल्लाना नहीं सुना था। मैंने स्वयं से कहा, “ऐसा लगता है बीमार लड़का बहरा भी है”।
फिर मैं तेजी से दीवार पर चढ़ गया। मैंने पहली छत पार की और अपने पड़ोसी की पत्थर की दीवार पर चढ़ गया मेरी आँखें मेरे नए पड़ोसी की छत पर पड़ीं। मैं अचम्भे से जम सा गया। छत पर मैंने लड़की को खड़े पाया, अपने बाएं हाथ में चरखी और दांये हाथ में डोर पकड़े हुए। उसके बाल खुले हुए थे। वह चिंतित और परेशान लग रही थी। उसकी पीठ मेरी ओर थी, इसलिए मैं चिल्लाया :
“उसे स्थिर रखो !”
“मैं नहीं कर सकती, आओ और खुद करो।”
मैं दीवार से बहुत कोशिश के बाद उतर सका और फिर पतंग को ऊपर खींचा। पतंग धीरे धीरे ऊपर जाने लगी और फिर एकाएक मैंने देखा कि तीन फुट की नीली पतंग गोल गोल घूमती हुई नीचे जा रही थी। छतों पर से एकाएक एक हल्का शोर सा सुनाई पड़ा। लड़की ख़ुशी और आनंद से चिल्लाई :
“मैंने उसे काट दिया।”
फिर वह गोल गोल घूमती हुई नाचने लगी और अपने हाथ ऊपर हवा में उठा कर चीखी :
“जिंदाबाद !”
अहाते में से एक प्रौढ़ महिला चिल्लाई :
“ज़ैनब ! क्या हो रहा है ?”
“माँ, मैंने हामिद तोतला की पतंग काट दी।”
“ओह ! दुष्ट लड़की!” प्रौढ़ महिला ने जवाब दिया।
उस दिन के बाद इस कहानी की खबर पूरे अड़ोस पड़ोस में फ़ैल गयी। हर कोई इस नए लड़के के बारे में बात करता, जिसे किसी ने नहीं देखा था और जिसने हामिद तोतला की पतंग काट दी थी। पहले हर किसी ने कहा:
“उसने हामिद तोतला की पतंग तब काटी जब वे तीन लच्छे डोर बढ़ा चुके थे।
फिर उन्होंने कहा :
“जब वे एक लच्छे डोर बढ़ा चुके थे तब उसने हामिद तोतला की पतंग काटी।"
आखिर में वे सब कसम खाते और कहते :
“ख़ुदा कसम, उसने हामिद की पतंग ऐसे काट दी जैसे चाकू से मक्खन।”
इस घटना के कई दिन बीत चुके थे। एक दिन मैं अपनी छत पर था। मेरी पतंग ऊपर आसमान में इधर उधर उड़ रही थी। एकाएक मैंने एक तीन फुट की सफ़ेद पतंग देखी, बस इस बार पूंछ काली और आँखें भी काली थी और यह पतंग हमारे पडोसी की छत से उड़ाई गयी थी। यह ऊपर जाने लगी और पलक झपकते मैंने इसे अपनी पतंग के बिलकुल पास पाया, मेरी पतंग से लड़ने को उत्सुक। मैं भाग नहीं सकता था क्योंकि इससे मेरी सारी विश्वसनीयता समाप्त हो जाती। मेरी समूची देह में क्रोध की लहर दौड़ गयी और मैं अपने होठों में फुसफुसाया :
“मूर्ख लड़की।”
लड़ाई छिड़ चुकी थी। मैं जानता था कि जब डोर एक जैसी गुणवत्ता की हो तो अनुभव ही निर्णायक भूमिका निभाता है। इसलिए मैं निश्चित था कि अपने अनुभव से मैं अपने नए पड़ोसी को हरा दूंगा। वह पहले तीन मिनट तक डोर बढाती रही फिर उसने इस तरह लड़ाई की मानों उसे पतंग लड़ाने का बीस वर्षों का अनुभव हो।
हर क्षण क्रोध और भय मेरे ह्रदय में भरता जा रहा था। यहाँ वहाँ छत पर खड़े लड़के अपने माथे पर हथेली रख कर सूरज की रोशनी को आँखों में जाने से बचाते हुए हमारी पतंगों की लड़ाई बहुत रूचि और उत्तेजना से देख रहे थे। मेरा ह्रदय जोर से धड़क रहा था। हमारी पतंगें ढीली होती दूर जा रहीं थी। तेज हवा की अनुपस्थिति में हमारी पतंगें क्षैतिज रूप से आगे बढ़ रही थी। हमारी डोर क्षण प्रतिक्षण नीचे जा रही थी, छतों के पास और पास।
“काफी हो गया -- अपनी पतंग खींचो !” मैं चिल्लाया। कोई उत्तर नहीं। उसकी बजाय मैंने एक लड़की की धूर्त हँसी सुनी। फिर भी मैंने डोर लपेटना और पतंग को ऊपर खींचना शुरू कर दिया। मेरी पतंग धीरे धीरे ऊपर उठने लगी। मैं आशा कर रहा था मेरी पड़ोसन भी अपनी पतंग समेट लेगी किन्तु इसकी बजाय वह अपनी पतंग को ढील देती रही, और फिर वह तेजी से ऊपर उठने लगी। क्रोध में, मैं एक बार फिर चिल्लाया :
“इसे ऊपर खींचो !”
कंपकपाहट भरे क्रोध के बीच, एकाएक मैंने अपनी डोर के तनाव को ढीला होता महसूस किया, और फिर देखने वालों का आकस्मिक शोर उठता हुआ:
“वाह !”
मेरी पतंग कट चुकी थी। मैंने डोर को वैसे ही जाने दिया। मैंने छत को पार किया, पत्थर की दीवार पर चढ़ा, मेरा इरादा लड़की को हर वह गाली देने का था जो मैं जानता था। जब मैं दीवार पर चढ़ गया, तो जो कुछ मैंने देखा उससे मैं एक बार फिर अचंभित रह गया। मेरे पैर जवाब दे रहे थे और मेरा मुंह सूखा हुआ था, मैंने देखा कि हामिद तोतला डोर पकड़े हुए था और लड़की नाच रही थी।
फिर प्रौढ़ महिला की अहाते में से आवाज सुनाई पड़ी :
“जैनब, क्या हो रहा है?”
लड़की एक बार फिर चहारदीवारी पर झुकी और बोली :
“माँ मैंने याक़ूब की पतंग काट दी।”
प्रौढ़ महिला की आवाज फिर सुनाई पड़ी :
“ओह ! दुष्ट लड़की !”
जब कि लड़की के जश्न की ओर ध्यान दिए बिना, धीरे धीरे डोर को लपेटते हुए हामिद तोतला ने कहा :
“जब..... तुम..... तुम्हारा प्रतिद्वंदी अपनी प…. पतंग नीचे खींच रहा हो, उसे नी...... नीचे खींचने दो। तु… तुम अपनी डोर ढीली क...... करती रहो, और फि...फिर इसे खींचो, तेजी से और ते....तेजी से।
*****
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स स्व. विजेंद्र जी की हैं।)
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