सोमेश पाण्डेय की कविताएं
सोमेश पाण्डेय |
हर शुरुआत एक उत्सुकता से भर देती है। हर अन्त कुछ विषाद भर देता है। यह हम सबके लिए स्वाभाविक है। लेकिन प्रकृति का यही नियम है। चलते रहने का यही तरीका है। सोमेश पांडेय नवोदित कवि हैं। नवोदित होने के चलते ही उनकी कविताओं में एक नवीनता है, ताजगी है। जैसे जैसे वे कविता की राह पर आगे बढ़ेंगे, काव्य चुनौतियों से जूझना सीखेंगे। उनकी कविताएँ पढ़ते हुए यह स्पष्ट होता है कि कवि के पास विषय है। कहने का तरीका भी है। निश्चित रूप से यह कवि दूर का रास्ता तय करेगा। कहीं भी प्रकाशित होने वाली ये उनकी शुरुआती कविताएँ हैं। नए कवि का स्वागत करते हुए आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं सोमेश पाण्डेय की कविताएँ।
सोमेश पाण्डेय की कविताएं
काश मैं रेल होता
चलती है रेल, पटरी पर,
चलती जाती एक ही दिशा में
थकते हैं उसमें बैठे लोग,
क्योंकि वे सिर्फ यात्रा करते हैं
यात्री अपने गंतव्य पर उतर,
अलग दिशाओं में भटकते हैं
लेकिन रेल वापस जाती है,
कुछ और भटके यात्रियों को ले कर,
वापस उल्टी दिशा में
रेल की माँ होती, तो बड़ी खुश होती,
कम से कम वो वापस तो आती है,
जहाँ से वो चलती है घर(!)
काश मैं रेल होता,
दो दिशाएं ही पता होती,
एक रास्ता ही जाना होता,
हज़ारों का बोझ भी उठाता,
पर शायद घर देख पाता,
हर बार वापस आ कर।
तस्वीरों वाला नक्शा
मैंने बनाया दुनिया का फिजिकल मैप
जिसमे रेखाएँ नहीं, तस्वीरें होती हैं
सिर्फ दो रंगों से सुसज्जित –
हरा रंग धरा का
नीला रंग जल का
लग रहा था धरा बोलेगी, जल उद्वेलित होगा
एक नए संसार की तरह,
शांत और सुन्दर
फिर मैंने कई रेखाएँ खींची
कई नए रंग भी बनाए
कुछ राष्ट्रों और राज्यों का निर्माण किया
अब मेरा नक्शा रंग बिरंगा था, विविधताओं से भरा
कहीं सफ़ेद, कुछ पीला, कुछ लाल, कहीं कुछ नारंगी
नक्शा रात में मेज़ पर रख कर,
अपनी रचना से संतुष्ट
गहरी नींद सो गया
सुबह उठ कर सबसे पहले नक़्शे पर नज़र फेरी
सारे रंग सुन्दरता की परिभाषा थे
किन्तु शायद लाल थोड़ा फ़ैल गया था
जहाँ भी लाल था, हर जगह, थोड़ी अधिक जगह लेने की ताक में था
क्या हुआ, पहला ही दिन तो था, रंग तो फैलते ही हैं कभी कभी!
किन्तु इस लालिमा में सुन्दरता नहीं, वीभत्सता अधिक थी
कुछ दिनों में लालिमा बढ़ी, पहले रेखाओं के समीप, फिर पूरे थल में,
फिर जल में भी,
और धीरे धीरे, बाकी सारे रंग फीके हो गए
अंत में,
सिर्फ लहू की तरह गाढ़ा लाल रंग
समस्त नक़्शे की दुनिया को
वीभत्सता की एकता के सूत्र में डुबोये
अहंकार से भरा था
लाल मोती की खोज
गहरे नीले समन्दर में छलाँग लगाई
खूबसूरत लाल मोती की खोज में
मोती कई मिले समंदर में,
गहराई बढ़ती गई, मोती नीले से हरे
हरे से पीले होते गए
विवेक बोला :
“पीला भी कम खूबसूरत नहीं!”
“खतरा भी बढेगा गहराई के साथ!”
मन बोला:
“पीला इतना अच्छा, तो लाल बहुत सुन्दर!”
“खतरा एक बार का, दोबारा नही आना है”
मैं नारंगी मोती ले आया (पीले और लाल के बीच),
मैं बहुत सामान्य मनुष्य हूँ,
अपनी सामान्यता से
खुश भी हूँ
समाप्ति का दुःख
एक अध्याय समाप्त हुआ
मुझे अध्याय समाप्त होने का दुःख हुआ
“काश थोड़ी देर और चलता”
मैंने कविताएँ पढनी शुरू की
हर कविता के ख़त्म होने पर दुःख होने लगा
मैंने कविताओं के मर्म समझने शुरू किए,
फिर हर शब्द की समाप्ति पर
मैं रोने लगा
अब मैं इंसानों से दोबारा मिल रहा हूँ
शायद इन (मुलाकातों की) समाप्ति के दुःख के डर से
मैं इंसानी मर्म थोड़ा बेहतर समझ पाऊं
बुलबुल और मौत
देखो मौत कितनी सुन्दर लग रही है
हर एक पल के साथ होती जा रही
और कमसिन
कुछ चावल के दाने बिखराए थे मैने आँगन मे
धूप के हर जलते अँगारे से पूछता फिर रहा
कहीं दिखी जीवन दिशा?
भर दो चावल मे जीवन
कल धूल के साथ फाँक लूंगा
अब तुम बताओ
हाँ तुम ही
कब आएगी बुलबुल?
देखो मेरा पता न भूल गई हो!
उसे नहीं पता ज्यादा दुनियादारी
बता दो चावल के दाने उसके लिए छोड़ रखे हैं
अपने हिस्से से कुछ ज्यादा ही ले जाए
आ जाओ मेरे हिस्से के चावल खाने सुंदरी,
कुछ ही शेष है अब जो मेरा कह सकता हूँ
एक पतली रस्सी से बँधा सारा रंगमंच
(रस्सी जिसके एक छोर से सिली मेरी पलकें)
बहती धारा मे झूल रहा
धारा तेज होती जा रही, रस्सी पतली
और मैं क्षीण
मेरी आँखों का तेज़ बन कर आ जाओ
मेरी दृष्टि का अंत बन कर आ जाओ
मुक्त कर दो मुझे मेरे अंधकार से
धारा तेज होगी, मगर बहा न पाएगी मंच को,
रस्सी पतली होगी, मगर टूट न पाएगी,
और मैं सिर्फ चावल के दाने फेंकता रह जाऊंगा
आओ रंगमंच मे विलीन कर दो मुझे,
आओ रस्सी तोड़ के धारा में फेंक दो मुझे
आओ सुंदरी
आओ बुलबुल
कि अब थकने लगी हैं आँखें
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स स्व. विजेंद्र जी की हैं।)
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बधाई। पढ़कर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंBahut badhiya prastuti
जवाब देंहटाएंवाह, वाह। बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबधाई व भविष्य में निरंतर उत्कृष्ट सृजन के लिए शुभकामनाएं व आशीर्वाद।
वाह भाई सोमेश जी बहुत सुंदर। शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया 👏👏
जवाब देंहटाएंBohot sundar
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएं👏👏👌👌
जवाब देंहटाएं👏👏👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पाण्डेय जी। जानकर प्रसन्नता हुई कि आप निपुण अभियंता होने के साथ साथ बहुत अच्छे कवि भी हैं।
जवाब देंहटाएंWow these r amazing.... really appreciable 🙌🙌
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