गोपाल प्रधान का आलेख ‘पूंजी’ का यूरोप में प्रसार

 



 

 

 पूंजी कार्ल मार्क्स द्वारा लिखा गया युगांतकारी ग्रंथ है। इस ग्रंथ को शुरुआत में आलोचनाओं का सामना करना पडा। प्रतिभा से ईर्ष्या कोई नयी बात नहीं। बहरहाल मार्क्स द्वारा रचित इस ग्रंथ में वह बात थी जिससे शीघ्र ही इस ग्रंथ को लोकप्रियता मिलनी शुरु हो गयी। बैक्स ने तो न केवल यह माना किपूंजीइससदी की सबसे महत्व की किताबों में से एक है’, बल्कि मार्क्स की शैली की भी प्रशंसा की और उसकी तुलना इसकेआकर्षण और उमंग’, इसकेहास्यऔर इसकीसर्वाधिक अमूर्त सिद्धांतों की अत्यंत बोधगम्य प्रस्तुतिके लिए शापेनहावर से की। मार्चेलो मुस्तो की किताब मार्क्स के आखिरी दिन का प्रवाहपूर्ण अनुवाद किया है प्रख्यात मार्क्सवादी आलोचक गोपाल प्रधान ने। इस किताब का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय हम पहली बार के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। तो आइए आज पहली बार पर पढते हैं गोपाल प्रधान का आलेख पूंजी का यूरोप में प्रसार


 

 

गोपाल प्रधान 

 

 

बुजुर्ग की मकबूलियत

 

पूंजी का यूरोप में प्रसार

 

1881 में मार्क्स अंतर्राष्ट्रीय मजदूर आंदोलन के लिए अब भी वैसे सैद्धांतिक संदर्भ नहीं बने थे जिस तरह का संदर्भ वे बीसवीं सदी में बनने वाले थे। 1848 की क्रांतियों की पराजय के बाद बहुत कम राजनीतिक नेता या बुद्धिजीवी उनसे जुड़े रह गए थे। उसके अगले दशक में भी हालात में कोई खास सुधार नहीं आया था।

 

 

कार्ल मार्क्स

 

इंटरनेशनल के विकास और पेरिस कम्यून की यूरोपव्यापी अनुगूंज ने तस्वीर बदल दी थी और उनका नाम फैल गया तथा उनके लेखन का ठीक ठाक प्रसार होने लगा।कैपिटलका प्रसार जर्मनी में शुरू हुआ (वहां 1873 में एक नया संस्करण छपा था), रूस (जहां 1872 में इसका अनुवाद छपा) और फ़्रांस (जहां 1872 से 1875 के बीच टुकड़ों में इसका प्रकाशन हुआ) में भी इसकी बिक्री होने लगी। बहरहाल इन जगहों पर भी मार्क्स के विचारों को समकालिक अन्य समाजवादियों के विचारों के साथ अल्पमत में रहते हुए होड़ करनी पड़ती थी।

 

Pierre Joseph Proudhon

 

जर्मनी में मार्क्स से जुड़ी सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर पार्टी (SDAP) और फ़र्दिनान्द लासाल द्वारा स्थापित जनरल एसोसिएशन आफ़ जर्मन वर्कर्स (ADAV) ने गोथा विलय कांग्रेस के जरिए 1875 में एक ऐसा कार्यक्रम अपनाया जिस पर लासाल के अधिक मजबूत निशान थे। फ़्रांस और बेल्जियम में मजदूर वर्ग के भीतर पियरे-जोसेफ प्रूधों के विचार अधिक प्रभावी थे और मार्क्स के विचारों से प्रेरित समूह संख्या-बल या राजनीतिक पहलकदमी के लिहाजन अगस्त ब्लांकी से प्रभावित समूहों के मुकाबले कुछ खास अधिक थे। रूस में एक खास जटिलता यह थी कि पूंजीवादी उत्पादन पद्धति की मार्क्सी आलोचना को पिछड़े समाजार्थिक और राजनीतिक माहौल में पढ़ा और व्याख्यायित किया जा रहा था जो पूंजीवादी विकास के पश्चिम यूरोपीय माडल से खासा अलग था। दूसरी ओर ब्रिटेन में मार्क्स लगभग अज्ञात बने हुए थे[1] तथा इटली, स्पेन और स्विट्ज़रलैंड में उनकी रचनाओं के पाठक मुश्किल से मिलते थे क्योंकि वहां 1870 दशक में मिखाइल बाकुनिन का असर गहरा था। अटलांटिक सागर के दूसरे किनारे अमेरिका में बहुत कम लोगों ने उनके बारे में सुना भी था।

 

Mikhail Bakunin

 

 

इसका एक और कारण यह था किकैपिटलसमेत उनका अधिकांश लेखन अपूर्ण था। 1881 में जब उनसे कार्ल काउत्सकी ने पूछा कि आपकी सम्पूर्ण रचनाओं को छापने का समय गया है या नहीं तो उन्होंने व्यंग्य से जवाब दिया किपहले तो उन्हें लिखा जाना होगा

 

 

Karl Kautsky

 

हालांकि मार्क्स अपने विचारों के विश्वव्यापी प्रसार को देखने के लिए तो जिंदा नहीं रहे लेकिन जीवन के आखिरी सालों के दौरान यूरोप के अनेक हिस्सों में उनके सिद्धांतों, खासकर उनके महान ग्रंथ में रुचि अधिकाधिक बढ़ती गई। इसके चलते परस्पर विरोधी प्रतिक्रियाओं का जन्म हुआ। 1881 के उत्तरार्ध में कभी एंगेल्स ने एडुआर्ड बर्नस्टाइन (1850-1932) को लिखा किमार्क्स से ईर्ष्याने भी सिर उठा लिया है। उदाहरण के लिए सोशलिस्ट वर्कर्सपार्टी फ़ेडरेशन आफ़ फ़्रांस (FPTSF) के भीतर ही दो धाराओं का टकराव चल रहा था। इस टकराव में एक ओर पूर्व अराजकतावादी पाल ब्रूस (1844-1912) के नेतृत्व मेंसम्भववादीथे तो दूसरी ओर जूल्स गुदे (1845-1922) के नेतृत्व में मार्क्स के विचारों का एक समर्थक समूह था। विभाजन अनिवार्य था जिसके चलते दो नई पार्टियां अस्तित्व में आईं। एक, सुधारवादी सोशलिस्ट वर्कर्सफ़ेडरेशन आफ़ फ़्रांस (FTSF) और दूसरी, फ़्रेंच वर्कर्स पार्टी (POF) जो फ़्रांस की पहलीमार्क्सवादी पार्टी थी। लेकिन इस विभाजन से पहले अंदर ही दोनों समूहों के बीच तीखी वैचारिक लड़ाई होती रही थी। कुछ समय बाद मार्क्स को भी इसमें खींच लिया गया और जून 1880 में गुदे और पाल लाफ़ार्ग के साथ मिल कर उन्होंने फ़्रांस के वाम राजनीतिक मंच, फ़्रेंच वर्कर्स पार्टी का चुनावी कार्यक्रम भी लिखा।

 

EDWARD BERNSTEIN (1850-1932)

 

 

ऐसे माहौल में ब्रूस और कम्यून के योद्धा तथा समाजवादी लेखक बेनोइत मालों (1841-1893) ने मार्क्स के सिद्धांतों को बदनाम करने के लिए हरेक साधन का सहारा लिया। उनका कड़ा जवाब देते हुए एंगेल्स ने खासकर मालों पर आरोप लगाया जो उनके मुताबिकमार्क्स की खोजों का जनक साबित करने के लिए तमाम (लासाल, शाफ़्ले और असल में पाएपे!) अन्य पूर्वजों को खोजने या थोपने का परिश्रम कर रहे हैं इसके बाद उन्होंने प्रोलेतारियन नामक साप्ताहिक के संपादकों की खबर ली जिन्होंने गुदे और लाफ़ार्ग पर मार्क्स काभोंपूबजाने औरबिस्मार्क के हाथ फ़्रांसिसी मजदूरों को बेचने की चाहतका आरोप लगाया था। मालों और ब्रूस की शत्रुता को एंगेल्स ने अंध राष्ट्रवाद का लक्षण माना।

 

अधिकांश फ़्रांसिसी समाजवादियों के लिए यह अभिशाप है कि जिस देश ने दुनिया भर को फ़्रांसिसी विचारों का वरदान दिया उसे----और ज्ञानोदय के केंद्र पेरिस को अब अचानक अपने समाजवादी विचार एक जर्मन व्यक्ति, मार्क्स से तैयारशुदा शक्ल में आयातित करने होंगे। लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता और इससे भी आगे मार्क्स की प्रतिभा, उनके जबर्दस्त वैज्ञानिक परिश्रम और उनके अविश्वसनीय पांडित्य ने उन्हें हम सबसे इतना आगे पहुंचा दिया है कि जो कोई भी उनकी खोजों की आलोचना करने की कोशिश करेगा उसकी उंगली ही सबसे पहले झुलस जाएगी। इस काम को थोड़ा और विकसित युग के लिए छोड़ देना होगा।

 

एंगेल्स समझ नहीं सके किकोई प्रतिभा से कैसे ईर्ष्याकर सकता है इसलिए आगे कहा:  लेकिन छोटे दिमाग वाले छिद्रान्वेषी, जिनका अन्यथा कोई माने मतलब नहीं फिर भी खुद को बेहद महत्वपूर्ण लगाते हैं, उन्हें खासकर इस बात पर गुस्सा आता है कि अपनी सैद्धांतिक और व्यावहारिक उपलब्धियों के चलते मार्क्स को विभिन्न देशों के समस्त मजदूर आंदोलन के सर्वोत्तम लोगों का सच्चा भरोसा हासिल है। संकट की किसी भी स्थिति में वे उनसे ही सलाह मांगते हैं और आम तौर पर उनकी सलाह सर्वोत्तम साबित होती है। उनको यह भरोसा छोटे छोटे देशों की तो जाने दीजिए, जर्मनी में, फ़्रांस में और रूस तक में हासिल है। इसलिए मार्क्स उन पर अपनी राय, मर्जी का तो सवाल ही नहीं, थोपते नहीं हैं, बजाय इसके ये लोग ही उनके पास स्वेच्छा से आते हैं। और ठीक इसी अर्थ में उनका प्रभाव पड़ता है, आंदोलन के लिए इस प्रभाव का महत्व सबसे अधिक होता है।

 

Fridrih Engels

 

 

 

ब्रूस और उनके समर्थक जैसा समझते थे उसके विपरीत मार्क्स के मन में उनके प्रति कोई खास दुराव नहीं था। एंगेल्स ने स्पष्ट किया किफ़्रांसीसियों के प्रति मार्क्स का वही रुख (था) जो अन्य देशों के आंदोलनों के प्रतिथा जिनके साथ उनकानिरंतर सम्पर्क थाउस हद तक जिस हद तक उसका कोई मूल्य महत्व होता और जिस हद तक अवसर उपलब्ध होताथा। निष्कर्ष के रूप में एंगेल्स ने जोर दिया किलोगों की इच्छा के विपरीत उन्हें प्रभावित करने की चेष्टा से हमें नुकसान (ही) होगा (और) इंटरनेशनल के दिनों से कायम पुराना भरोसा टूटेगा

 

गुदे और लाफ़ार्ग से स्वतंत्र भी अनेक फ़्रांसिसी लड़ाकू मार्क्स के सम्पर्क में थे। 1881 के शुरू में उन्होंने अपने दामाद चार्ल्स लांग्वे (1839-1903) को सूचित किया कि उनसे एक समाजवादी योद्धा और प्रकाशक एडुआर्ड फ़ोर्तिन (1854-1947) ने सम्पर्क किया है।

 

(उन्होंने) मुझे ढेर सारे पत्रमेरे प्यारे स्वामीसंबोधन के साथ लिखे हैं। उनकी मांग बेहदसाधारणहै। उनका प्रस्ताव है किपूंजीको पढ़ते हुए वे उसका मासिक सार तैयार करेंगे और जिसे अत्यंत उदारता के साथ उन्होंने मुझे हरेक महीने भेजने का वादा किया है। वे यह भी चाहते हैं कि मैं मासिक दर से उन्हें सुधार दूं ताकि अगर किसी विंदु को उन्होंने गलत समझा हो तो वह स्पष्ट हो जाए। इस चुप्पा तरीके से जब वे आखिरी मासिक किस्त भेज दें और मैं सुधार कर वापस भेज दूं तो उनके पास प्रकाशन योग्य ऐसी पांडुलिपि होगी जिससे, उनके मुताबिक, फ़्रांस प्रकाशवर्षा से नहा उठेगा।

 

चूंकि वे कुछ और महत्वपूर्ण मामलों में व्यस्त थे इसलिए मार्क्स ने फ़ोर्तिन को सूचित किया कि उनके अनुरोध को स्वीकार करना फिलहाल असम्भव है। लेकिन इस सम्पर्क के चलते एक अन्य बेहतर काम हो गया जब बाद में फ़ोर्तिन नेलुई बोनापार्त की अठारहवीं ब्रूमेरका फ़्रांसिसी अनुवाद किया और इसे 1891 में छपवाया।

 

1881 मेंपूंजीका एक लोकप्रिय सारांश डच भाषा में प्रकाशित हुआ। 1873 में जोहान मोस्ट (1846-1906) और 1879 में कार्लो काफ़िरो (1846-1892) वाले सारांशों के छपने के बाद यह तीसरा इस किस्म का प्रकाशन था। इसे लिखने वाले फ़र्दिनांद न्यूवेनहुइस ने परिशिष्ट जोड़ालेखक इस कृति को अत्यंत विनीत श्रद्धा के प्रतीक के रूप में कार्ल मार्क्स को समर्पित करता है जो गहन चिंतक और मजदूरों के अधिकारों के प्रबल योद्धा हैं उन्होंने प्रशंसा के भाव से मार्क्स के काम को मान्यता दी जिसका प्रसार अनेक यूरोपीय देशों में शुरू हो चुका था।     

 

फ़रवरी 1881 में आगामी दूसरे संस्करण को ध्यान में रखते हुए मार्क्स ने न्यूवेनहुइस से कहा कि उनकी निगाह में काम बेहतरीन हुआ है और अब वे अपने कुछ सुझाव देना चाहते हैंजिन भी संशोधनों को मैं जरूरी समझ रहा हूं उनका रिश्ता विवरणों से है, प्रमुख चीज, काम की भावना इसमें गई है इसी पत्र में उन्होंने अपनी एक ऐसी जीवनी का जिक्र किया जो एक उदारपंथी डच पत्रकार आर्नोल्डस केर्दिक (1846-1905) नेमानेन वान बेटीकेनिस’ (हमारे समय के महत्वपूर्ण लोग) नामक एक पुस्तक श्रृंखला के तहत 1879 में छपाई थी। इसके प्रकाशक निकोलस बालसेम (1835-1884) ने उनके जीवन के बारे में सामग्री प्राप्त करने के लिए मार्क्स से सम्पर्क किया था और कहा था कि उनके विचारों से सहमत होने के बावजूद उनके महत्व को समझता है। मार्क्सऐसे अनुरोधों को आदतन खारिज कर देते थेऔर बाद में छपे हुए पाठ को पढ़ कर गुस्सा हुए कि उनकोजान बूझ कर गलत उद्धृत किया गयाहै। उन्होंने न्यूवेनहुइस को लिखा:

 

एक डच पत्रिका ने अपना कालम मेरे (उत्तर के) लिए खोलने का प्रस्ताव किया लेकिन सिद्धांतत: मैं इस तरह के खोद विनोद का जवाब नहीं देता। लंदन में भी कभी मैंने इस तरह की साहित्यिक बकवास पर कभी तनिक भी ध्यान नहीं दिया। कोई भी दूसरा रास्ता अपनाने का मतलब होता कैलिफ़ोर्निया से ले कर मास्को तक हर जगह सुधार संशोधन करने में अपने जीवन का बेहतरीन हिस्सा गंवा देना। जवानी के दिनों में कभी कभी कुछ डंडे चलाए लेकिन उम्र के साथ समझदारी आई कि कम से कम शक्ति का व्यर्थ अपव्यय नहीं करना चाहिए।

 

कुछ साल पहले मार्क्स ने यह उपरोक्त नतीजा निकाला था। 5 जनवरी 1879 को शिकागो ट्रिब्यून में छपे एक साक्षात्कार में उन्होंने चुटकी ली थीमेरे बारे में जो कुछ कहा और लिखा गया है उन सबका खंडन करना हो तो मुझे बीसियों सचिवों की जरूरत होगी उनके इस कड़े रुख से एंगेल्स भी पूरी तरह सहमत थे। जब मार्क्स ने न्यूवेनहुइस को यह लिखा उसके कुछ ही पहले काउत्सकी को लिखे एक पत्र में एंगेल्स ने मार्क्स के लेखन के सिलसिले में जर्मन अर्थशास्त्री अल्बर्ट शाफ़्ले (1831-1903) और अन्यबैठे ठालेसमाजवादियों द्वारा प्रदर्शित अनगिनत भूलों और गलतियों का जिक्र किया:

 

उदाहरण के लिए अकेले शाफ़्ले ने अपनी मोटी मोटी किताबों में जो भयंकर बकवाद एकत्र कर रखा है उसका खंडन मेरी नजर में समय की बरबादी है। इन सज्जन ने उद्धरण चिन्हों के भीतर पूंजी को ही जितने गलत तरीके से उद्धृत किया है उसे ही सही करने की कोशिश में एक ठीक ठाक किताब तैयार हो जाएगी।

 

अंत में दबंग तरीके से लिखा किअपने सवालों का जवाब मांगने से पहले उन्हें पढ़ना और नकल करना सीखना होगा।

 

दुर्व्याख्या और गलत उद्धरण के अतिरिक्त और उनके साथ ही राजनीतिक बहिष्कार की कोशिश के तहत मार्क्स के लेखन को वास्तविक विध्वंस का भी सामना करना पड़ा। फ़रवरी में निकोलाई डेनिएल्सन काहमारे सुधारोत्तर सामाजिक अर्थतंत्र का खाकाशीर्षकसच्चे अर्थों में मौलिकलेख पढ़कर मार्क्स ने उन्हें पत्र लिखा इसमें उन्होंने बताया : अगर आप चालू चिंतन के जंजाल को तोड़ देते हैं तो सबसे पहले तय है कि आपकाबहिष्कारकिया जाएगा। असल में ढर्रे पर चलने वालों का यही एकमात्र सुरक्षा उपकरण है जिसका इस्तेमाल किंकर्तव्यविमूढ़ होने पर वे करना जानते हैं। सालों साल जर्मनी में मेराबहिष्कारहुआ और इंग्लैंड में अब भी हो रहा है। समय समय पर मेरे विरुद्ध इतना बेतुका और बेवकूफी भरा हमला बिना किसी रूपभेद के होता है कि उस पर सार्वजनिक तौर पर ध्यान देते भी लज्जा आती है।

 


 

 

बहरहाल जर्मनी में उनके इस विराट ग्रंथ की धीरे धीरे बिक्री हो रही थी। अक्टूबर 1881 में दूसरे संस्करण की प्रतियों के खत्म होने पर प्रकाशक ओट्टो माइजनेर (1819-1902) ने मार्क्स से कहा कि तीसरे संस्करण की तैयारी के लिए जरूरी संशोधन और काट छांट कर दें। दो महीने बाद मार्क्स ने अपने मित्र फ़्रेडरिक जोर्गे (1828-1906) से स्वीकार किया कियही सबसे सही मौका है’, कुछ ही समय पहले पुत्री जेनी को लिखा था कि