अरुणाभ सौरभ की कविता पर विपिन नामदेव का आलेख 'जन चिन्तन की प्रयोगशाला से निकलती कविता'
अरुणाभ सौरभ |
अरुणाभ सौरभ ऐसे युवा कवि हैं जिन्होंने हिन्दी के साथ साथ अपनी मातृ भाषा मैथिली में भी समान अधिकार से कविताएँ लिखी हैं। अरुणाभ भले ही दिल्ली, भोपाल जैसी जगहों पर रहे हों, बिहार उनकी धडकनों में गुंजित होता रहता है। 'साला बिहारी' उनकी ऐसी ही कविता है जिसमें वे बिहारीपन के तल्ख अनुभवों को सहजता से काव्य रूप में ढालते हैं। इस कवि की कविताओं में मैथिली लोक के शब्द, संस्कृतनिष्ठ शब्द भी अक्सर दिख जाते हैं। लेकिन कविता की प्रवहमानता इससे अवरोधित नहीं होती बल्कि और अधिक बढ़ जाती है। अरुणाभ की कविताओं पर विपिन नामदेव ने एक आलेख लिखा है। विपिन एक शोध छात्र है लेकिन उनकी भाषा सधी हुई है। आज पहली बार पर प्रस्तुत है अरुणाभ सौरभ की कविता पर विपिन नामदेव का आलेख 'जन चिन्तन की प्रयोगशाला से निकलती कविता'।
जन चिंतन की प्रयोगशाला से निकलती कविता
विपिन नामदेव
मिथिला के चैनपुर, सहरसा में जन्मे डॉ.अरुणाभ सौरभ को आज देश विदेश में संजीदगी के साथ पढ़ा जाता है। भारतीय ज्ञानपीठ के ‘नवलेखन पुरस्कार’ से ले कर साहित्य अकादमी के ‘युवा पुरुस्कार’ एवं हिन्दी जगत के कई सम्मानों से नवाजे गए हैं। आपने मैथिली और हिन्दी में समान रूप से लेखन किया है। वर्तमान में क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान एन. सी. ई. आर. टी., भोपाल में सहायक प्राध्यापक हैं। एक शिक्षाविद के रूप में शिक्षार्थियों के ज्ञान-विस्तार के साथ साथ आपकी लेखनी सतत साहित्य जगत को लाभान्वित कर रही है।
अरुणाभ सौरभ की कविता ऐतिहासिक, राजनैतिक, आंचलिक भौगोलिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक संवादों को देश के विभिन्न पहलुओं के साथ आम जन जीवन को भी साथ ले कर चलती है।
आधुनिक व क्षेत्रीय समस्याओं को सार्थक स्वरूपों के साथ पाठकों से संवाद कर के उनके विवेक को विकसित करती है। उन समस्याओं को जिन्हे आम जन के मत्थे छोड़ दिया है तथाकथित सामाजिक पहरेदारों ने, जो धर्म, संस्कृति और राज-सत्ता के सहारे नोच रहे हैं आम जन मानस के माँस को। अरुणाभ सौरभ की कविताओं में मिथकों के और प्रतीकों के अद्भुत उदाहरण हैं। कवि के पास सत्य के उद्घाटन की शिल्पकारी देखने मिलती है वह बारीकी से कविताओं का समग्र संदेश प्रस्तुत करती है। जीवन के उत्कृष्ट दृष्टिकोणों को उद्घाटित कर जिजीविषा में वृद्धि करती है। जिससे सार्थक जीवन जीने हेतु शक्ति बोध विकसित होता है। ‘राग यमन’ से लेकर ‘चंद्र गन्धर्व की अप्सरा’ या ‘लौह गीत’ से ले कर ‘गाँव की उदासी का गीत’ प्रत्येक कविता कविता जीवन के विभिन्न रंगों, जीवन की विभिन्न चेष्टाओं के अलग अलग आस्वाद के साथ पाठकों को संवेदित कर संवेदना तन्तु को झकझोर देती है। जिम्मेदारी एवं कर्तव्य बोध के साथ हमें रचनात्मक जैव्य द्रव्य का पान कराती है।
अरुणाभ जी की कविताओं में, समाज के यथार्थ का निरूपण है, जीवन जगत का बोध है, मानवीय मूल्यों की खोज है और भारतीय समाज मे स्त्री की वास्तविक दशा का चिंतन है, जिसे हम 'धरती माता भारत माता' कविता में देख सकते हैं और कविता 'मामी कविता' में कवि ने भारतीय परिवार में स्त्री की यथार्थ, दयनीय और विडंबनापूर्ण स्थिति को जितनी आत्मीयता और सहजता एवं स्नेह और श्रद्धा की बेड़ियों में कस कर बंधे रहने को दिखाया है वह अद्भुत है। जैसे -
"मधुरता इतनी की कह दूँ कि
शहद की पूरी शीशी होती है - मामी
मा.... मी
महसागर की तरह स्त्री जीवन
यंत्रणाओं में परिवार की गाड़ी खींचती
कभी रोती कभी सुबकती कभी रूठती
जाने क्यों कभी कभी पिट जाती मामी ??
छूटे संबंधों को जोड़ने वाली पुल होती है- मामी
.....
और अपनी पहचान के लिए हमेशा तरसती है मा.... मी......
इतना जमीनी सहज चित्रांकन मन मोहने के साथ ही हृदय के एक कोने में ही सुबक सुबक कर रोने को भी मजबूर करता है।
जिस प्रकार ‘आत्म गियान’ कविता में आज के समय में ज्ञान रूपी शस्त्र का प्रयोग सत्ता हथियाने हेतु मात्र किया जाता है, का चित्रण भी रोचक ढंग से किया है जहां कविता खत्म होने के साथ ही पाठक के दिलों-दिमाग पर सवालों का अंबार लगा देती है जिनके जवाब भी उन्ही पंक्तियों के माध्यम से मिल सकते हैं। इस प्रकार के सृजन के नमूने आपको अरुणाभ सौरभ की कविताओं में सहज देखने को मिल जाएँगे।
भारत की ग्रामीण संस्कृति के दर्शन जितने सुंदर ढंग से श्री रेणु जी कराते हैं, जिस कदर श्रीलाल शुक्ल जी आंचलिक प्रतिमानों को लेकर व्यंग्यात्मक ग्रामीण जीवन की समस्याओं से परिचय कराते हैं ठीक उसी प्रकार शुक्ल जी के व्यंगात्मक भाषा और रेणु जी जैसी बारीकी से अरुणाभ सौरभ ने इस कविता संग्रह में अपनी बात को पाठक तक रखा है जिसका नमूना आपको ‘गाँव की उदासी का गीत’ देखने पर मिलेगा जहां एक ओर गाँव में पसरी उदासी से पाठक स्वयं को जोड़ता है, वह उदासी पेड़, मधुमक्खी से ले कर लोक कथाओं तक को अपने में समेटे हैं, बावजूद इसके भी लोग प्रेम में लिप्त हैं, जहां प्रेम महान है, या प्रेम की शक्ति का, या महत्व का बखान न करते हुए उसे पाठक के हृदय हेतु स्वतंत्र रखा है।
वहीं देश प्रेम, की बात की जाए तो देश, राष्ट्र और भारतमाता को आवाहन करते हुए हर कण में विराजमान माना है जहां वे आवाहन करते हैं –
‘धरती माता अब आ ही जाओ
कवि कलाकार चिंतक मारे जा रहे हैं
कलाहीन हो कर अंतर्नाद करती हुई
लुटी-पिटी-बिखरी
धरती माता, मेरी माँ आओ
अंत में जो भवविभोर कर आश्रुपूरित पुकार की गई वो देश की वर्तमान परिस्थितियों, समस्याओं और अव्यवस्थाओं के चंगुल से बचाने हेतु आवाहन कर रहे हैं
“आ ही जाओ माता
कि हत्या और आत्महत्या से पहले
बेरोजगारों के घर
उम्मीदों के दिए जलाने हैं”
इस प्रकार की जमीनी कविता रचने हेतु उदार और जमीनी हृदय और व्यवहार भी इनकी प्रमुख विशेषता है जहाँ मानव मात्र का बखान होता हो, जहाँ मानव मात्र की सुख शांति समृद्धि की मांग कविता के माध्यम से की गई है, ऐसी ही अनमोल कविताओं का संग्रह है अरुणाभ सौरभ की ‘किसी और बहाने से’।
सम्पर्क
विपिन नामदेव
13, कीर्ति निकेतन छात्रावास,
क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, एन सी ई आर टी, भोपाल
मो. 9685537059
ईमेल- namdevvip@gmail.com
बहुत ही सुन्दर आलेख.... पहली बार में पहली बार पर कमाल कर दिया!
जवाब देंहटाएं🙏🙏 सादर धन्यवाद
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