केट शॉपिन की कहानी 'डेजरे का बच्चा'

 

केट शॉपिन 


यह दुनिया विविधवर्णी है। लेकिन यह विविधता ही तब अभिशप्त हो जाती है जब हम इसे अपनी नस्ल, रंग, जाति, बोली, भाषा के नजरिए से इसे देखने लगते हैं। दुनिया के सामने आज भी यह एक बड़ी समस्या है। अपने को सभ्य और सुसंस्कृत कहने वाले यूरोपीय श्वेत लोग काले लोगों को हेय नजरिए से देखते रहे हैं। अमरीका और यूरोप में रंगभेद सम्बन्धी हिंसा आज भी प्रायः होती रहती है। अफ्रीकी, एशियाई देशों पर कब्जा कर श्वेत लोगों ने इनका बेइंतहा आर्थिक शोषण तो किया ही, अपने को तथाकथित तौर पर सभ्य और सुसंस्कृत दिखाए रखने के लिए इन देशों ने 'व्हाइट मैंस बर्डन' का एक मनमाना टर्म गढ़ लिया। केट शॉपिन ने 1893 में एक कहानी लिखी 'डेजरे का बच्चा'। रंगभेद की समस्या को शिद्दत से उभारती शॉपिन की यह कहानी महत्त्वपूर्ण है। एक अनुवादक के रूप में श्रीविलास सिंह की नजर दुनिया के उस साहित्य पर रहती है जो महत्त्वपूर्ण होने के बावजूद उपेक्षित रहता आया है। वे ऐसी रचनाओं के अनुवाद करते हैं  जिससे हिन्दी जगत प्रायः अपरिचित है लेकिन जो आज भी समसामयिक और महत्त्वपूर्ण है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं केट शॉपिन की कहानी 'डेजरे का बच्चा'। कहानी का अनुवाद किया है श्रीविलास सिंह ने।



डेजरे का बच्चा


केट शॉपिन



चूँकि दिन बहुत खुशगवार था, श्रीमती वाल्मोन्दे डेजरे और उसके बच्चे को देखने के लिए कार ले कर ला'अब्री की ओर चल पड़ीं।


डेजरे और उसके बच्चे की सोच कर उन्हें हँसी आ गयी। क्यों, यह बस अभी कल की ही बात लग रही थी जब डेजरे स्वयं एक बच्चे से थोड़ी बड़ी थी; जब वाल्मोन्दे के बंगले के मुख्यद्वार से प्रवेश करते हुए उनके पति ने उसे पत्थर के विशाल खम्भे की छाँव में सोता पड़े हुए पाया था।


नन्ही बच्ची उनकी बांहों में जाग गयी और "दादा" के लिए रोने लगी थी। वह केवल इतना ही कर अथवा कह सकती थी। चूँकि वह घुटनों के बल चलने की उम्र की थी, इसलिए कुछ लोगों ने सोचा कि वह अपनी मर्जी से भटकती हुई यहाँ आ गयी हो सकती थी। लेकिन अधिकांश का विश्वास था कि वह टेक्सान के एक समूह द्वारा जानबूझ कर वहाँ छोड़ दी गयी थी,  जिनकी कैनवास से ढकी गाड़ी, देर दोपहर, उस फेरी से आगे की ओर जाती देखी गयी थी जो कॉटन माइस ने बना रखी हुई थी, ठीक बगीचे के आगे नीचे की ओर। थोड़े समय में ही, श्रीमती वाल्मान्दे ने सारी बहस को दरकिनार करते हुए मान लिया कि डेजरे किसी शुभकारी शक्ति द्वारा उनके स्नेह का पात्र बनने हेतु, यह देखते हुए कि उनकी स्वयं की कोई संतान नहीं थी, भेजी गयी थी। बच्ची बड़ी हो कर सुन्दर और विनम्र हुई – स्नेह करने वाली और जिम्मेदार – श्रीमती वालमोन्दे की प्रतिमूर्ति।


यह कोई आश्चर्य नहीं था, एक दिन जब वह उसी पत्थर के खम्भे के सहारे खड़ी थी, जिसकी छाया में वह, अठारह वर्ष पूर्व, सोती हुई छोड़ दी गयी थी, अरमांड ऑबिगने उसके प्रेम में पड़ गया था, मानो किसी पिस्तौल की गोली से घायल हो गया हो। आश्चर्य यह था कि उसे उससे पहले प्यार नहीं हुआ था जबकि वह उसे तब से जानता था जब से उसे उसके पिता पेरिस से वापस घर ले आये थे, उसकी माँ की वहाँ मृत्यु हो जाने के पश्चात्, जब वह मात्र आठ वर्ष का बालक था। उसमें उस दिन, जब उसने डेजरे को दरवाजे पर देखा था, जो आवेग जागा था, उसने हिमस्खलन की भांति, अथवा प्रेरीज के घास के मैदानों में लगी आग की भांति, अथवा अन्य किसी चीज की भांति जो सभी बाधाओं से परे ले जाती है, उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया।


श्रीमान वाल्मोंडे दुनियादार थे और वे चीजों के बारे में ठीक से विचार करना चाहते थे; लड़की के अज्ञात जन्म के संबंध में। अरमांड ने उसकी आँखों में देखा और किसी बात की परवाह न की। उसे याद दिलाया गया कि उसके पीछे कोई नाम न था, इसका क्या महत्व था जब वह इसे लुसियाना का एक सबसे पुराना और गर्व भरा नाम दे सकता था। उसने पेरिस से उपहारों की टोकरी मँगवायी और उसके आने तक स्वयं पर धीरज रखा; फिर उनका विवाह हो गया।


श्रीमती वाल्मोंडे ने डेजरे और बच्चे को चार हफ़्ते तक नहीं देखा था। जब वे ला’अब्री पहुँची, वे पहली नज़र में सिहर गयीं, जैसा कि वे सदैव किया करती थी। यह एक उदास दिखने वाली जगह थी, जो बहुत वर्षों तक एक विनम्र महिला की उपस्थिति से अनभिज्ञ रही थी। ज्येष्ठ ऑबिग्ने महोदय ने अपना विवाह और फिर अपनी पत्नी की अंत्येष्टि फ़्रांस में ही की थी। उनकी पत्नी अपने देश से इतना प्रेम करती थी कि उसे कभी न छोड़ पायीं। मकान की छत तेज ढलान वाली थी और कोयल की भाँति काली और चौड़े गलियारे को, जो पीले प्लास्टर वाले मकान को चारों ओर से घेरे हुए थे, बाहर तक ढँके थी। शाहबलूत के विशाल और घने वृक्ष इसके आसपास खड़े थे और उनकी घनी पत्तियों वाली, दूर तक जाती शाखाओं ने उसे किसी आवरण की भाँति ढँक रखा था। युवा ऑबिग्ने का शासन सख़्त था और उसके अन्तर्गत उसके नीग्रो ग़ुलाम खुश रहना भूल चुके थे जैसा कि वे पुराने मालिक की मस्तमौला और ऐशोआराम वाली जीवन शैली के दौरान थे।


युवा माँ धीरे धीरे स्वास्थ्य लाभ कर रही थी, और अपने श्वेत मलमल और फ़ीतों वाले कोमल बिस्तर पर सीधे लेटी हुई थी। बच्चा उसकी बग़ल में, उसकी बाँह पर, उसका दूध पीता हुआ सो गया था। पीले रंग वाली नर्स खिड़की के पास बैठी स्वयं को पंखा झल रही थी।


श्रीमती वाल्मोंडी अपना स्थूल शरीर लिए डेजरे पर झुक गयीं और उन्होंने थोड़ी देर के लिए उसे कोमलता से अपनी बाँहों में भर कर  उसका चुम्बन लिया। फिर वे बच्चे की ओर मुड़ीं।


“यह तो बच्चा नहीं है!” उन्होंने बौखलाई आवाज में विस्मय से कहा। वाल्मोंडे परिवार में उस समय फ़्रेंच भाषा बोली जाती थी। 


“मैं जानती थी आप भौंचक्की रह जायेंगी,” डेजरे ने हँसते हुए कहा, “जिस तरह से वह बड़ा हुआ है। नन्हा ‘कोचों दे लाए’ ! उसके पाँव देखो, मम्मा, उसके हाथ और नाखून, — वास्तविक नाखून, ज़ैंड्रिन ने उन्हें इसी सुबह काटा है, क्या यह सच नहीं है ज़ैंड्रिन?”


महिला ने अपना पगड़ी युक्त सिर राजसी तरीक़े से झुकाया, “मैसे सी, मैडम।”


“और जिस तरह वह रोता है,” डेजरे ने कहना जारी रखा, “वह कानों को बहरा कर देता है। अरमांड ने उसे पिछले दिन दूर ला ब्लांचे के केबिन में से सुन लिया था।”


श्रीमती वाल्मोंडे ने एक क्षण को भी अपनी निगाह बच्चे पर से नहीं हटाई। उन्होंने उसे उठाया और उसे लिए सबसे पास की खिड़की तक गयीं। उन्होंने बच्चे को ऊपर से नीचे तक ध्यान से देखा, फिर खोजपूर्ण निगाह से ज़ैंड्रिन की ओर देखा जिसका चेहरा खेतों के आरपार देखने को मुड़ा हुआ था।


हाँ, बच्चा बड़ा हो गया है, परिवर्तित हो गया है;” श्रीमती वाल्मोंडे ने धीरे से, उसे उसकी माँ के बगल में रखते हुए कहा। "आर्मंड क्या कहता है?"


डेजरे का चेहरा एक ऐसी चमक से भर गया जो अपने आप में प्रसन्नता  थी।


“ओह, अरमांड पैरिश (इलाके) में सबसे गौरवान्वित पिता है, मेरा विश्वास है, ख़ासकर इसलिए कि यह एक लड़का है, उसका नाम बढ़ाएगा; हालाँकि वह ऐसा नहीं कहता – यदि यह लड़की होती तब भी उसे अच्छा लगता। लेकिन मैं जानती हूँ कि यह सच नहीं है, मैं जानती हूँ कि वह मुझे खुश करने के लिए ऐसा कहता है। और मम्मा,'' उसने श्रीमती वाल्मोंडे का सिर अपनी ओर झुकाते  हुए और फुसफुसाते हुए कहा, ''जब से इस बच्चे का जन्म हुआ है तब से उसने उनमें से एक को भी सज़ा नहीं दी है - उनमें से एक को भी नहीं। यहाँ तक कि नेग्रिलॉन पर, जिसने अपना पैर जलने का नाटक किया था ताकि वह काम से मुक्त हो आराम कर सके - वह केवल हँसा, और उसने बस इतना कहा कि नेग्रिलॉन बहुत बड़ा बदमाश था। ओह, माँ, मैं इतनी खुश हूँ कि यह सब मुझे डरा देता है।”





डेजरे ने जो कहा वह सच था। विवाह, और बाद में उनके बेटे के जन्म ने अरमांड ऑबिग्ने के दबंग और अपने काम में कोई ढील न देने वाले स्वभाव को काफी हद तक नरम कर दिया था। यही वह बात थी जिसने कोमल हृदय डेजरे को बहुत ख़ुशी दी थी, क्योंकि वह उससे बेहद प्यार करती थी। जब वह भौंहें सिकोड़ता था, वह कांप उठती थी, लेकिन वह उससे प्यार करती थी। जब वह मुस्कुराता, तो वह सोचती उसने ईश्वर से इससे बड़ा कोई आशीष  नहीं मांगा था। जिस दिन से अरमांड को उससे प्यार हुआ, उस दिन के बाद से उसका श्याम, सुंदर चेहरा अक्सर भौंहें सिकोड़ने के कारण विकृत नहीं हुआ था।


जब बच्चा लगभग तीन महीने का था, डेजरे एक दिन इस विश्वास  के साथ जागी कि हवा में कुछ था जो उसकी शांति को खतरे में डाल सकता था। प्रारंभ में वह समझ में आने हेतु बहुत सूक्ष्म था। यह मात्र एक परेशान करने वाला संकेत था; अश्वेतों के बीच रहस्य का वातावरण; दूर-दराज के पड़ोसियों का अप्रत्याशित आगमन, जो अपने आने को मुश्किल से न्यायोचित सिद्ध कर पाते थे। उसी समय उसके पति के तौर-तरीकों में एक विचित्र, भयोत्पादक बदलाव आया, जिसके बारे में जानने के लिए उसने उससे पूछने का साहस नहीं किया। जब उसने उससे बात की तो उसने आँखें दूसरी ओर फेर रखी थी, जिनमें से पुराने प्रेम की ज्योति मानो बुझ गई थी। वह घर से अनुपस्थित रहने लगा था; और जब वहाँ होता, तो बिना किसी बहाने के उसकी और उसके बच्चे की उपस्थिति से दूर दूर रहता था। और दासों के साथ उसके व्यवहार में ऐसा परिवर्तन हुआ था मानों अचानक उसे शैतान की आत्मा ने जकड़ लिया हो। डेजरे मर जाने भर के लिए पर्याप्त दुखी थी।


एक गर्म दोपहर में वह अपने कमरे में, स्नान के वस्त्रों में, बैठी थी, और बेचैनी से अपने लंबे, रेशमी भूरे बालों, जो उसके कंधों पर लटक रहे थे, की लटों में अपनी उँगलियाँ फिरा रही थी। बच्चा, अर्द्धनग्न,  आबनूस के अपने बड़े से बेड पर सोया हुआ था, जो एक भव्य सिंहासन की भाँति था, जिसमें साटन के किनारे वाला अर्द्ध छत्र था। ला’ब्लांचे के नन्हें वर्णसंकर बच्चों में से एक बच्चा - वह भी अर्द्ध नग्न - मोर पंखों से बने पंखे से धीरे-धीरे डेजरे के बच्चे को हवा कर रहा था। डेजरे की ख़ालीपन और उदासी से भरी आँखें अपने बच्चे पर टिकी हुई थीं,  वह उस खतरनाक कुहासे को भेदने का प्रयास कर रही थी जिससे वह अपने को घिरता हुआ महसूस कर रही थी। उसने अपने बच्चे को फिर उस बच्चे को, जो उसके बग़ल में खड़ा हुआ था, बारंबार देखा, "आह!" वह उनमें से एक था।


एक विलाप था, जिसे वह होठों पर आने से नहीं रोक सकी; जिसके सम्बंध में  उसे होश ही नहीं था। रक्त उसकी धमनियों में बर्फ में बदल गया और उसके चेहरे पर चिपचिपी नमी इकट्ठी हो गई।


उसने उस नन्हे वर्णसंकर बच्चे से बात करने की कोशिश की; किंतु पहले तो कोई आवाज़ ही नहीं निकली। और जब उसने अपना नाम लिया जाते सुना, तो ऊपर की ओर देखा, उसकी मालकिन दरवाजे की ओर संकेत कर रही थी। उसने बड़ा, नरम पंखा एक ओर रख दिया और आज्ञाकारी ढंग से, अपने नंगे पंजों के बल, पॉलिश किए हुए फर्श पर चलता दूर चला गया।


वह अपने बच्चे पर निगाहें टिकाये निश्चल खड़ी थी और उसका चेहरा भय की तस्वीर बना हुआ था। इसी समय उसका पति कमरे में प्रविष्ट हुआ और उस पर ध्यान दिए बिना एक मेज़ के पास चला गया और कोई कागज़ात ढूँढ़ने लगा जो उस मेज़ पर फैले हुए थे।


"आर्मंड," डेजरे ने उसे ऐसी आवाज में बुलाया, जिसने उसे, यदि वह मनुष्य था तो, निश्चय ही घायल कर दिया होगा। लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया. "आर्मंड," उसने फिर कहा। फिर वह उठी और लड़खड़ाते हुए उसकी ओर बढ़ी। "आर्मंड," उसने एक बार फिर उसकी बांह पकड़ते हुए कहा, "हमारे बच्चे की ओर देखो। इस सब का मतलब क्या है? मुझे बताओ।"


उसने कोमलता से लेकिन ठंडेपन से उसकी उंगलियों को अपनी बांह से ढीला कर दिया और उसके हाथ को अपने से दूर कर दिया। "मुझे बताओ इसका क्या मतलब है!" वह निराशा से रोने लगी।


“इसका मतलब है,” उसने धीरे से उत्तर दिया, “कि यह बच्चा श्वेत नहीं है; इसका मतलब है कि तुम श्वेत नहीं हो।”


इस सारे आरोप का उसके लिए क्या मतलब था? उसकी एक त्वरित धारणा ने उसे इसे नकारने के लिए अयाचित् साहस प्रदान कर दिया "यह झूठ है; यह सच नहीं है, मैं श्वेत हूँ! मेरे बालों को देखो, वे भूरे हैं; और मेरी आँखें भूरी हैं, आर्मंड, तुम्हें पता है कि वे भूरी हैं। और मेरी त्वचा श्वेत है,'' उसने उसकी कलाई पकड़ते हुए कहा, “मेरे हाथ को देखो; तुम से भी ज़्यादा श्वेत हैं, आर्मंड,'' वह ज़ोर से पागलों सी हँसी।


"ला’ब्लांचे की तरह सफ़ेद," उसने क्रूरता से जवाब दिया; और उसे अपने बच्चे के साथ अकेला छोड़ कर वहाँ से चला गया।


जब वह कलम हाथों में पकड़ पाने में सक्षम हुई, तो उसने श्रीमती वाल्मोंडे को एक निराशाजनक पत्र भेजा।


“मेरी माँ, वे मुझसे कहते हैं कि मैं श्वेत नहीं हूँ। आर्मंड ने मुझे बताया है कि मैं श्वेत नहीं हूँ। ईश्वर के लिए उन्हें बताएं कि यह सच नहीं है। आपको ज्ञात ही होगा कि यह सच नहीं है। मैं मर जाऊँगी। मुझे मर ही जाना चाहिए। मैं इतनी दुखी हो कर  जीवित नहीं रह सकती।”





जो उत्तर आया वह संक्षिप्त था:


“मेरी अपनी डेजरे: वाल्मोंडे में घर आ जाओ; वापस अपनी माँ के पास जो तुम्हें प्यार करती है। अपने बच्चे के साथ आ जाओ।”


जब पत्र डेजरे के पास पहुंचा तो वह उसे ले कर अपने पति के अध्ययन कक्ष में गई और उसे उस डेस्क पर खोल कर रख दिया जिसके सामने वह बैठा हुआ था। जब उसने वह पत्र वहाँ रखा, वह एक पत्थर की मूर्ति की भाँति हो रही थी: मौन, सफेद, निश्चेष्ट।


सन्नाटा, उसने लिखे हुए शब्दों पर अपनी ठंडी आँखें फिराईं। उसने कुछ नहीं कहा। "क्या मैं जाऊं, आर्मंड?" उसने व्यथित दुविधा के साथ तीव्र स्वर में पूछा।


"हाँ जाओ।"


"क्या तुम चाहते हो कि मैं चली जाऊं?"


"हाँ, मैं चाहता हूँ कि तुम चली जाओ।"


उसने सोचा कि सर्वशक्तिमान ईश्वर ने उसके साथ क्रूरता और अन्याय का व्यवहार किया है; और कुछ ऐसा महसूस किया कि जब उसने अपनी पत्नी की आत्मा पर वार किया तो वह ईश्वर का बदला चुका रहा था। जो भी था, वह अब उससे प्यार नहीं करता था, क्योंकि डेजरे ने उसके घर और उसके नाम पर अनचाही चोट पहुंचाई थी। वह स्तब्ध सी एक झटके में उससे दूर हो गई और धीरे-धीरे दरवाजे की ओर चल पड़ी, इस आशा के साथ कि वह उसे वापस बुला लेगा।


"अलविदा, आर्मंड," वह कराह उठी।


उसने उसे कोई उत्तर नहीं दिया। वह भाग्य पर उनका अंतिम वार था।


डेजरे अपने बच्चे की तलाश में निकली। ज़ैंड्रिन उदासी भरे गलियारे में घूम रही थी। उसने बिना कुछ कहे नर्स की गोद से बच्चे को ले लिया और सीढ़ियाँ उतर कर शाहबलूत की जीवंत शाखाओं के नीचे होती हुई चली गई।


वह अक्टूबर का अपराह्न था; सूरज बस डूबने ही वाला था। स्थिर खड़े खेतों में नीग्रो कपास चुन रहे थे।


डेजरे ने न तो वह पतला सफ़ेद परिधान बदला था और न ही वह जूती जो उसने पहनी हुई थी। उसके बाल खुले थे और सूरज की किरणें उनको बाँधने की भूरी जालियों से हो कर सुनहरी चमक उत्पन्न कर रही थीं। उसने वह चौड़ी, घिसी-पिटी सड़क नहीं पकड़ी जो वाल्मोंडे के दूर-दराज के बागान तक जाती थी। वह एक सुनसान पड़े खेत से हो कर चल दी, जहाँ फसलों की ठूँठ ने उसके नाजुक पैरों को, जिनमें बहुत नाजुक जूतियाँ थी, घायल कर दिया और उसके पतले गाउन को तार-तार कर दिया।


वह नरकट और विलो के बीच, जो गहरी, सुस्त खाड़ी के किनारों पर और भी घने हो गए थे; ग़ायब हो गई और पुनः वापस नहीं आई।

…  …    …   …    …


कुछ सप्ताह बाद ला’अब्री में एक विलक्षण दृश्य प्रस्तुत था। सुचारु रूप से साफ किए गए पिछवाड़े के आँगन में एक बड़ा अलाव जल रहा था। आर्मांड ऑबिग्ने उस चौड़े दालान में बैठा था जहाँ से वह चमत्कारपूर्ण दृश्य दिखाई दे रहा था; और यह वही था जिसने आधा दर्जन नीग्रोज को वह सामग्री बांटी थी जिसने वह आग जलाये रखी थी।


विलो का एक सुंदर पालना, अपने शानदार साज-सज्जा के साथ, चिता पर रखा हुआ था, जिसे पहले से ही एक अनमोल बिछावन से सजाया गया था। फिर वहाँ रेशम के गाउन थे, और उनमें मखमल और साटन भी शामिल थे; लेस, और कढ़ाई वाले परिधान भी; टोपियाँ और दस्ताने; टोकरी के लिए जो अत्यंत दुर्लभ गुणवत्ता वाली थी।


जाने वाली अंतिम चीज पत्रों का एक छोटा बंडल था; मासूम नन्ही लिखावटें, जो डेजरे ने अपने प्रेम के सहजीवन के दौरान उसे भेजे थे। उस दराज में एक पत्र पीछे बचा रह गया था जहाँ से उसने उन पत्रों को उठाया था। लेकिन वह डेजरे का पत्र नहीं था; यह उसकी माँ द्वारा उसके पिता को लिखे एक पुराने पत्र का हिस्सा था। उसने उसे पढ़ा। वह ईश्वर को अपने पति के प्यार का आशीष प्रदान करने के लिए धन्यवाद दे रही थी:-


"लेकिन, सब बातों से ऊपर," उसने लिखा था, "मैं अच्छे ईश्वर को दिन-रात धन्यवाद देती हूं कि उन्होंने हमारे जीवन को इस तरह व्यवस्थित किया कि हमारे प्यारे आर्मांड को कभी भी पता नहीं चलेगा कि उसकी माँ, जो उससे बहुत प्यार करती है, उस जाति से संबंधित है जो  गुलामी के शाप से लांछित है।”

***


(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)






सम्पर्क

मोबाइल : 8851054620









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