आनंद गुप्ता की समीक्षा 'स्मृति, संबंध और समय के बीच : गौरव पाण्डेय की कविताओं का मार्मिक संसार'
कविता अन्य विधाओं से इसलिए अलहदा दिखाई पड़ती है कि वह दिल से लिखी जाती है। उसे लिखने में जब कभी दिमाग का इस्तेमाल किया जाता है वह निबन्ध का शक्ल अख्तियार कर लेती है। युवा कवि गौरव पाण्डेय ऐसे ही कवि हैं जिनकी कविताओं में घनीभूत संवेदना दिखाई पड़ती है। वे कविता लिखने के लिए अतिरिक्त प्रयास नहीं करते बल्कि कविता उनके पास आ कर खुद को लिखवा लेती है। यही किसी भी कवि का हासिल होता है। गौरव का हाल ही में एक कविता संग्रह आया है 'स्मृतियों के बीच घिरी है पृथ्वी'। इस संग्रह की समीक्षा लिखते हुए आनन्द गुप्ता उचित ही लिखते हैं 'गौरव पाण्डेय की कविताएँ पाठक से बौद्धिक मुद्रा में संवाद नहीं करतीं। वे पाठक को आमंत्रित करती हैं—जैसे कोई पुराना दोस्त देर रात साथ बैठ कर चुपचाप कुछ साझा कर रहा हो। उनकी शैली सहज, आत्मीय और विचारोत्तेजक है। वे सीधे मुद्दे पर आते हैं और अपनी बात को स्पष्टता से रखते हैं। उनकी शैली में कहीं भी बनावटीपन या दिखावा नहीं है। कविताओं में एक प्रकार का सीधापन और ईमानदारी है; चाहे वह बेरोजगारी का दर्द हो या माँ की आकांक्षाएँ, कवि अपने भावों को बिना किसी लाग-लपेट के व्यक्त करते हैं। उनकी शैली में एक गहरी संवेदनात्मकता है, जहाँ वे मानवीय भावनाओं की सूक्ष्म परतों को छूते हैं और उन्हें पाठक तक पहुंचाते हैं।' आज गौरव का जन्मदिन है। उन्हें जन्मदिन की बधाई एवम शुभकामनाएं देते हुए आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं आनन्द गुप्ता द्वारा उनके संग्रह 'स्मृतियों के बीच घिरी है पृथ्वी' पर लिखी गई समीक्षा 'स्मृति, संबंध और समय के बीच : गौरव पाण्डेय की कविताओं का मार्मिक संसार'।
'स्मृति, संबंध और समय के बीच : गौरव पाण्डेय की कविताओं का मार्मिक संसार'
आनंद गुप्ता
हमारा वर्तमान एक विचित्र उथल-पुथल का दौर है, जहाँ संबंधों के नाम पर आत्मवंचना है और संवादों की जगह सतही प्रतिक्रियाओं का शोर। हम खुद से भागते हुए, दूसरों में कुछ तलाशने की अधीरता में जी रहे हैं। ऐसे समय में कुछ कविताएँ आती हैं जैसे पुराने घर की दीवारों से उठती सोंधी गंध... परिचित, आत्मीय, और लगभग खो चुकी सी...। ये कविताएँ मन के उस कोने को छूती हैं जहाँ अभी भी शुद्धता, संवेदनशीलता और मानवीयता के बीज अंकुरित होते हैं। गौरव पाण्डेय का कविता संग्रह 'स्मृतियों के बीच घिरी है पृथ्वी' ऐसी ही कविताओं का एक अनूठा संसार रचता है। यह संग्रह सिर्फ कविताओं का संकलन नहीं, बल्कि स्मृतियों की उस पृथ्वी पर ले जाने वाली एक आत्मीय यात्रा है जहाँ संबंधों की गंध अब भी ताज़ा है, जहाँ अकेलापन भी आत्मीयता से भरपूर है और जहाँ भटकी हुई पीढ़ी की बेचैनी एक गहरे अनुभव में ढल जाती है। ये कविताएँ हमें उन भावनाओं की ओर ले जाती हैं जो अकसर अनुभव में तो आती हैं, पर शब्दों में कही नहीं जातीं।
गौरव पाण्डेय मूलतः प्रेम और मनुष्यता के पक्षधर कवि के रूप में पहचाने जाते हैं। उनकी कविताओं का सबसे मजबूत पक्ष उनके गहन मानवीय और सामाजिक सरोकार हैं, जो अपनी विविधता में भी एक गहरे भावनात्मक सूत्र में बँधे हुए दिखाई देते हैं। संग्रह में शामिल 'अपने बेटों से एक माँ की चाह' कविता में एक माँ की गहरी ममता और उसके बच्चों के लिए नेक इंसान के रूप में विकसित होने की प्रबल इच्छा मुखर होती है। यह कविता केवल बेटों को ही नहीं, बल्कि हर व्यक्ति को एक संवेदनशील, सच्चा और सम्मानजनक नागरिक बनने का संदेश देती है। इसमें प्रेम की पवित्रता, ईमानदारी और दूसरों के प्रति सहानुभूति रखने का आग्रह है, जहाँ माँ दिखावे, छल और स्वार्थ से दूर रहने की प्रेरणा देती है।
"और सुनो
अन्त में सबसे ज़रूरी बात
कि जीवन में गर्व करने के अवसर भले न आएँ
लेकिन मत करना कोई ऐसा काम
कि मेरा शीश शर्म से झुक जाए..."
यह कविता आज के समाज में आवश्यक नैतिक शिक्षा का एक सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करती है।
इस संग्रह में मौजूद 'प्रतीक्षा' शीर्षक कविता मानवीय स्वभाव में निहित आशा और धैर्य के शाश्वत भाव को दर्शाती है। गौरव पाण्डेय प्रतीक्षा को 'समय के माथे पर खिला कोई जंगली फूल', 'एक अदेह चुम्बन' और 'एक झरना' जैसे सजीव बिम्बों से चित्रित करते हैं, जो इसकी बहुआयामी प्रकृति को उजागर करते हैं। यह कविता दिखाती है कि प्रतीक्षा केवल निष्क्रिय इंतजार नहीं है, बल्कि यह उम्मीद, आंतरिक शक्ति और निरंतर विकास का प्रतीक है। ऐसे समय में जब अधीरता हावी है, यह कविता धैर्य के सकारात्मक और रचनात्मक पक्ष पर गहराई से प्रकाश डालती है।
इस संग्रह का शीर्षक स्वयं कवि के स्मृति प्रेम और उसकी केंद्रीयता को दर्शाता है, और 'स्मृतियों के बीच घिरी है पृथ्वी' , 'पिता की स्मृति में डूबी स्त्री के लिए ' तथा 'माँ की स्मृति' जैसी कविताएँ स्मृति और अतीत के महत्व को मार्मिक ढंग से रेखांकित करती हैं। ये कविताएँ बताती हैं कि हमारी जड़ें हमारे अनुभवों, यादों और उन व्यक्तियों में निहित हैं जिन्होंने हमें आकार दिया है। माँ की स्मृति को नदी और ऋतु के रूप में देखना उसके शाश्वत प्रभाव को दर्शाता है, जो समय के साथ कभी नहीं मिटता। गौरव पांडेय के शब्दों में -
"अमरबेल हैं स्मृतियाँ...
और स्मृतियों की जड़ें बहुत गहरी हैं
जैसे दुख की।"
ये कविताएँ रिश्तों की गहराई और हमारी पहचान के निर्माण में स्मृतियों की भूमिका पर ज़ोर देती हैं, हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहने और अपने अनुभवों से सीखने की प्रेरणा देती हैं।
'एक बेरोज़गार आदमी की डायरी के कुछ नोट्स' सीधे तौर पर सामाजिक और आर्थिक विडंबनाओं पर एक करारा प्रहार है। यह कविता बेरोजगारी के दंश, उससे उपजी निराशा और एक शिक्षित व्यक्ति के सामने आने वाली चुनौतियों को अत्यंत यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत करती है। यह बताती है कि कैसे शिक्षा का महत्व केवल कागजी बन कर रह गया है और डिग्री मात्र एक निरर्थक पत्र के समान प्रतीत होती है।
"बेरोज़गार आदमी के सामने ख़ाली पड़ी रहती पूरी पृथ्वी
लेकिन उसके लिए कोई जगह नहीं होती है।"
यह सामाजिक उपेक्षा और सफलता की संकीर्ण परिभाषा पर तीखे सवाल उठाती है, जो वर्तमान समाज में व्याप्त एक गंभीर समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करती है। 'न्यूनतम मनुष्य बने रहने के लिए' कविता मानवीय मूल्यों को बनाए रखने और अपने संघर्षों तथा उन लोगों को न भूलने की सलाह देती है जिन्होंने कठिन समय में साथ दिया। यह कविता भौतिक सफलता प्राप्त करने के बाद भी विनम्रता, कृतज्ञता और अपने मूल से जुड़े रहने की बात करती है, जहाँ मानवीय रिश्तों और नैतिकता को प्राथमिकता देने का संदेश दिया जाता है।
"लेकिन मेरे दोस्त! कभी मत भूलना
उन खेत की पगडण्डियों को जिन पर तुमने चलना और सँभलना सीखा
मत भूलना गाँव जाती उस राह को जिस पर चलते हुए
तुम यहाँ पहुँचे
अपने कन्धों पर गिरे अपनों के आँसुओं को
और उन हाथों को कभी मत भूलना
जो संघर्ष के दिनों में
साथ थे।"
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गौरव पाण्डेय |
इस संग्रह से 'मच्छर' शीर्षक कविता सामाजिक बुराइयों और सत्ता के दुरुपयोग पर सीधा और सशक्त व्यंग्य करती है। 'मच्छर' कविता में समाज के उन शोषक तत्वों को दर्शाया गया है जो आम आदमी का खून चूसते हैं, चाहे वह आर्थिक रूप से हो, शिक्षा के नाम पर, धर्म के भय से, या सांस्कृतिक उत्कर्ष के झूठे वादों से। यह शोषण के विभिन्न रूपों और आम आदमी की लाचारी को उजागर करती है। कवि पूछता है
"वे जो खून का व्यापार कर रहे हैं?
वे जो आधी रात हमारी फ़सलों पर
अपने विष बुझे दन्त चुभा देते हैं
छीन लेते हैं फलियों से हरीतिमा
चूस लेते हैं गन्ने से रस
गेहूँ से दूध
कौन हैं वे?"
वहीं, 'उन्माद' कविता सत्ता, धर्म, युद्ध और विकास के नाम पर होने वाले अतिरेक और पागलपन की आलोचना करती है, जो अंततः विनाशकारी होता है। यह कविता हमें विवेक और संतुलन बनाए रखने की सीख देती है, यह दर्शाती है कि प्रेम का उन्माद भी एक रोग है।
"कुछ लोग युद्ध के उन्माद में हैं
तो कुछ विकास के
कुछ धर्म के
उन्माद में राजा सैनिकों की बलि दे सकता है
उन्माद में राजा चरण धो सकता है
उन्माद में राजा नंगा हो सकता है
कहते हुए कि नंगई जरूरी है
राष्ट्रहित में"
कवि गौरव पाण्डेय ने भाषा की सहजता और बिम्बों के प्रभावी प्रयोग पर विशेष ध्यान दिया है। उनकी भाषा सरल, सुबोध और हृदय को सीधे छूने वाली है। अनावश्यक क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से बचा गया है, जिससे कविताएँ अधिक सुलभ और पठनीय बन गई हैं। कवि का बिम्ब-विधान अत्यंत समृद्ध और सजीव है, जो पाठक के मन में एक स्पष्ट चित्र निर्मित करता है।'प्रतीक्षा समय के माथे पर खिला कोई जंगली फूल है', 'माँ एक नदी थी जो अब हमारी देह में बहती है', 'स्मृतियों की जड़ें बहुत गहरी हैं जैसे दुख की', और 'शब्द आत्मा के वस्त्र होते हैं' जैसे प्रयोग भाषा को अद्भुत गहराई प्रदान करते हैं। उपमाओं और रूपकों का भी कुशल प्रयोग इस संग्रह की कविताओं में किया गया है। 'अपने बेटों से एक माँ की चाह' जैसी कविताओं में संवाद शैली का प्रयोग हुआ है, जो सीधे पाठक से जुड़ती है और एक आत्मीय संबंध स्थापित करती है।
गौरव पांडेय की यह विशेषता है कि वह साधारण बोलचाल के शब्दों में भी गहरा अर्थ और भाव भर देते हैं, जैसा कि 'झुठ्ठा' कविता में 'शब्द आत्मा के वस्त्र होते हैं' कह कर झूठ बोलने के नैतिक पतन को बहुत ही सशक्त ढंग से व्यक्त किया गया है।
"शब्द आत्मा के वस्त्र होते हैं
और आप जितनी बार झूठ बोलते हैं
यह वस्त्र उतनी बार
उतरते हैं
आपने इतने-इतने-इतने झूठ बोले हैं कि
मंच पर फूहड़ अभिनय करते हुए
जनता के बीच आप
नंगे खड़े हैं।"
गौरव पाण्डेय की कविताएँ पाठक से बौद्धिक मुद्रा में संवाद नहीं करतीं। वे पाठक को आमंत्रित करती हैं—जैसे कोई पुराना दोस्त देर रात साथ बैठ कर चुपचाप कुछ साझा कर रहा हो। उनकी शैली सहज, आत्मीय और विचारोत्तेजक है। वे सीधे मुद्दे पर आते हैं और अपनी बात को स्पष्टता से रखते हैं। उनकी शैली में कहीं भी बनावटीपन या दिखावा नहीं है। कविताओं में एक प्रकार का सीधापन और ईमानदारी है; चाहे वह बेरोजगारी का दर्द हो या माँ की आकांक्षाएँ, कवि अपने भावों को बिना किसी लाग-लपेट के व्यक्त करते हैं। उनकी शैली में एक गहरी संवेदनात्मकता है, जहाँ वे मानवीय भावनाओं की सूक्ष्म परतों को छूते हैं और उन्हें पाठक तक पहुंचाते हैं। अनेक कविताएँ संक्षिप्त हैं, लेकिन अपने छोटे कलेवर में भी वे गहरा प्रभाव छोड़ती हैं, यह कवि की भाषा पर पकड़ और भावनाओं को संक्षेप में व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता को दर्शाता है। 'तुम्हारे बारे में सोचना' और 'दिन में एक बार' जैसी कविताएँ प्रेम और रिश्ते की संवेदनशीलता को दर्शाती हैं। कई कविताओं में एक चिंतनशील स्वर है, जैसे 'एक मृत्यु' में जीवन और मृत्यु के गहरे दर्शन पर विचार किया गया है। यह कविता बताती है कि कैसे एक छोटे से बीज की मृत्यु भी एक बड़े वृक्ष के अंत का कारण बन सकती है, और एक स्वप्न के मरने से भले ही जीवन खत्म न हो, लेकिन वह एक खालीपन छोड़ जाता है। यहां 'एक मृत्यु' शीर्षक कविता की ये पंक्तियां देखिए-
"एक बीज की मृत्यु से एक वृक्ष मरता है
एक बच्चे की मृत्यु से एक
परिवार
एक चिड़िया की मृत्यु से
उजड़ता है एक
घोंसला
कविता कहती है एक स्वप्न की मृत्यु से
नहीं मरता जीवन, न उम्मीद
न संघर्ष
लेकिन एक सत्य जिसे कोई नहीं कहता
कि रिक्त कोटर हो जाती है देह
जिसमें कोई सुग्गा
नहीं रहता।"
गौरव की कविता में 'बचपन' कोई बीता हुआ समय नहीं, बल्कि एक जीवित स्मृति है। उनका 'प्रेम' कोई विमर्श नहीं, बल्कि मौन, आकुल प्रतीक्षा और टूटे हुए स्पर्शों की अभिव्यक्ति है। 'पिता' उनकी कविता में कोई संस्था नहीं, एक ऐसी उपस्थिति हैं जो जितनी सघन है, उतनी ही मौन भी। 'पिता को देख कर', 'टूटते हुए आदमी के पक्ष में', 'प्रेम में होना' जैसी कविताओं में वे जीवन की उन परतों को स्पर्श करते हैं जहाँ दर्द और कोमलता साथ-साथ चलते हैं।
कुल मिला कर, गौरव पाण्डेय का काव्यपी संग्रह 'स्मृतियों के बीच घिरी है पृथ्वी' केवल एक काव्य-संग्रह नहीं, वह एक आत्मीय यात्रा है समय, संबंध और स्मृति के बीच। ये कविताएँ आधुनिक हिंदी कविता में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। ये कविताएँ न केवल मानवीय संबंधों की जटिलताओं को उजागर करती हैं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक यथार्थों पर भी मुखर टिप्पणी करती हैं। कवि ने अपनी सरल और प्रवाहमयी भाषा, सशक्त बिम्ब-विधान और गहरी संवेदनशीलता के साथ एक ऐसी काव्य-सृष्टि का निर्माण किया है जो पाठक को सोचने पर मजबूर करती है और उसे जीवन के विभिन्न पहलुओं से जोड़ती है। यह संग्रह पाठकों के बीच असर छोड़ने में पूरी तरह कामयाब होगा।
समीक्षित पुस्तक:
स्मृतियों के बीच घिरी है पृथ्वी
कवि - गौरव पांडेय
सेतु प्रकाशन, प्रथम संस्करण - 2023
मूल्य - रू. 180
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आनन्द गुप्ता |
सम्पर्क
मोबाइल : 7003046699
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