प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'किष्किन्धाकाण्ड'
सोशल मीडिया ने आज दुनिया को काफी बदल दिया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, थ्रेड्स, यू ट्यूब रील्स, एक्स (ट्विटर) आदि से आज शायद ही कोई व्यक्ति अछूता हो। यह एक आभासी संसार है। आप इस तिलिस्मी संसार पर यह कहते हुए गर्व कर सकते हैं कि हमारे इतने मित्र हैं, इतने फॉलोवर्स हैं। कुछ तो बाकायदा लाइक्स और कमेंट्स भी गिन गिन कर मित्रों को बताते फिरते हैं। इस सोशल मीडिया के आलोक में प्रचण्ड प्रवीर ने पुरातन मिथकों को नए तरह से देखने का एक साहसिक प्रयास किया है। इस कहानी में व्यंग्य तो मूलतः है ही, इसके गहरे निहितार्थ भी हैं। 'कल की बात' शृंखला के क्रम में प्रवीर की यह २७५वीं प्रस्तुति है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'किष्किन्धाकाण्ड'।
कल की बात - २७५
'किष्किन्धाकाण्ड'
प्रचण्ड प्रवीर
कल की बात है। जैसे ही मैं साहसी वीर अरण्य में चरण रख कर चौकन्ना हुआ, देखा कि हर ओर असुर मस्त हो कर क्रीड़ा कर रहे थे। मेरे अनन्य मित्रों को कहना है कि तुम भले ही कायर हो, लेकिन साहसी वीर की पदवी लगा लोगे तो शेर ही समझे जाओगे अतः स्वयं के लिए 'मैं साहसी वीर' सर्वनाम-विशेषण ही प्रयोग करना। ',डर के आगे जीत है' का भोगवादी मूलमन्त्र याद कर के वीर तुम बढ़े चलो। याद रखना कि अरण्य में तुम्हारा शर-चाप काम नहीं करेगा। अगर गलती से कटार निकालोगे तो अविलम्ब गरदन रेत दी जाएगी। जङ्गल का कानून बदल गया है। आज के समय में वध करने के लिए छुरे-पिस्तौल की आवश्यकता नहीं है। केवल अरण्य में बसे असुर आपके बारे में कुछ बातें फैला देंगे और फिर सम्पूर्ण समाज आपका बहिष्कार कर देगा। आजीविका छीन जाएगी। लोग-बाग थू-थू करेंगे।
जुर्म आदम ने किया और नस्ल-ए आदम को सज़ा
काटा हूँ जिन्दगी भर मैंने जो बोया नहीं वाला हाल होगा।1
पर मैं साहसी वीर कब इन बातों से डर रहा था। सत्य की राह धर रहा था। निडर विचरण कर रहा था। मैं साहसी वीर आसन्न सङ्कटों के लिए प्रस्तुत था। जानता था कि असुर आएँगे और अरण्य-कानन में चप्पे-चप्पे पर चौकन्ने पोस्ट लगाएँगे जिस पर लिखा यह होगा कि वीरों का प्रवेश वर्जित है। गुरुओं के आशीर्वाद से मुझ साहसी वीर के पास अदृश्य होने का मन्त्र था। अदृश्य दो तरह हो सकते हैं कि पहली विधि है अणिमा, दूसरी विधि है महिमा। अणु जितने छोटे हो जाओगे तो दिखोगे नहीं या इतने बड़े हो जाओ कि असुर चरण-कमल से ऊपर दृष्टिपात ही न कर सकें। सो हम अणिमा विधि से लुकते-छुपते विचरण कर रहे थे। विचरण करते समय किसी शूर्पणखा ने मुझे भँवरे के रूप में पहचान लिया और कस कर डाँटा, "ये क्या बात है। अणिमा सिद्धि का फायदा न उठाओ। खुले में सामने आओ हम तुम पर प्रणय-बाण चलाएँगे। शूर्पणखा ने मुझ साहसी वीर को ललकारा था, इसलिए मैंने भी फैसला किया कि अब सिद्धि के बिना ही अरण्य पार किया जाए। किन्तु हमारी समस्याओं का समय ऐसा है कि यदि कोई स्त्री दोषी भी हो और उसे दण्ड देना उचित भी हो तो वह उस स्त्री पर नहीं अपितु पूरे स्त्री समाज पर प्रतिशोध समझा जाएगा और पोस्ट लगा दी जाएगी कि स्त्रीद्वेषी आ गया। चप्पे-चप्पे पर पोस्ट लगाए जाएँगे कि 'स्त्रीद्वेषी का नाश हो, पितृसत्ता का नाश हो।' इसलिए मैं साहसी वीर मौका देख कर शूर्पणखा से बच कर भाग निकला। शूर्पणखा चिल्लाती रही कि हे स्त्रीद्वेषी, तुम्हारी पितृसत्ता का नाश हो।"
चूँकि मुझ साहसी वीर को दण्ड देने की उत्कट अभिलाषा थी, इसलिए शूर्पणखा पितृसत्ता के विध्वंसक माननीय खर और बहुसम्मानित दूषण के पास जा कर अपने वैर के बारे में बताया। पितृसत्ता का नाश करने को कटिबद्ध खर और दूषण जैसे पराक्रमी असुरों ने अपनी ट्रॉल आर्मी भेजी। मैं अरण्य से बच-बच निकल जाना चाहता था क्योंकि दुनिया जङ्गल बन चुकी है और मैं साहसी वीर दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ। 2 होनी को कौन टाल सका है और असुर आर्मी ने शब्दभेदी पोस्ट लगाने शुरू कर दिए। उन्होंने कहना शुरू किया कि हेलीकॉप्टर से उतर कर कोई घुसपैठिया हमारे कानन में आ पहुँचा। पितृसत्ता का पोषक, समता का विरोधी, अन्यायी और अत्याचारी को नष्ट करने हेतु हम सब बिगुल बजाएँगे। सारी रात झिंगा-लाला की धुन पर दारू पी के नाचेंगे। चप्पे-चप्पे पर पोस्ट लगा कर हम साबित कर देंगे हमसे भिड़ना कितना महँगा पड़ता है। हमारा आरोप ही प्रमाण है तथा उसका दण्ड भी हम स्वयं तय करेंगे। मैंने भी पोस्टभेदी शब्द लिखा कि जलचरों में मकर हूँ, नदियों में गङ्गा हूँ पवित्र करने वालों में वायु हूँ और शस्त्रधारियों में मैं राम हूँ। बस फिर क्या था मैं साहसी वीर धड़ाधड़ ब्लॉकास्त्र चलाने लगा।ब्लॉकास्त्र चलने से चप्पे-चप्पे पर लगे पोस्ट के ऊपर के लैम्प का बल्ब फूट गया और पोस्ट पर अन्धेरा छा गया।
मैं साहसी वीर आगे बढ़ता जा रहा था। ब्लॉकास्त्र से छाए अन्धेरे से कुण्ठित हो कर असुर आर्मी गम गलत करने के लिए मदिरापान करने लगी और आपस में एक दूसरे को लक्षित करके अपशब्दयुक्त पोस्ट लगाने लगे। पर मुझ साहसी वीर के सामने आ गए खर और दूषण। खर के 4,989 मित्र थे वहीं दूषण के 4,990 मित्र थे। खर के इक्कीस हज़ार अनुयायी थे और वहीँ दूषण के बाईस हज़ार अनुयायी थे। मित्रों और अनुयायियों की सहायता से खर और दूषण मुझ साहसी वीर पर शब्द-बाण चलाने लगे। उन्हें आशा थी कि उनके शब्द बाण से मेरा वध होगा और साथ ही पितृसत्ता नष्ट हो जाएगी, इतना ही नहीं मातृसत्ता स्थापित हो जाएगी, ताकि वे भी बाकी असुरों के साथ मदिरा पी कर अरण्य में अग्नि प्रज्वलित कर उसके चारों ओर झिंगा-लाला करें। मैं साहसी वीर खर-दूषण से क्या डरता। इस बार मुझ साहसी वीर को संयत हो कर नोटिसास्त्र चलाना पड़ा। नोटिसास्त्र चलते ही पहले खर-दूषण को गुदगुदी हुई फिर वे दोनों नोटिसास्त्र के भयङ्कर विष की जलन से भाग खड़े हुए। उनके भागने में खर के 4,989 और दूषण के 4,990 मित्रों ने कुछ न कहा।
मुझ साहसी वीर के अरण्य काण्ड वाले चर्चे खोई प्रतिष्ठा वाले सुग्रीव के कानों में पड़ी। उसने दूत भेज कर मुझ साहसी वीर से अपने बलशाली शत्रु वालि का वध करने को कहा। वालि अरण्य से बाहर किष्किन्धा नाम का फाउण्डेशन चलाता था। फाउण्डेशन वालों की अकूत शक्ति होती है। वे जब चाहे खर-दूषण से कहीं बड़ी ट्रॉल आर्मी चला सकते हैं। वालि के कुछ डेढ़ सौ ही मित्र थे लेकिन उसके एक लाख अनुयायी थे। सुग्रीव ने मुझ साहसी वीर से कहा कि फाउण्डेशन वालों से सीधे लड़ने जाओगे तो वे तुम्हारी आधी शक्ति खा जाएँगे, नौकरी-वौकरी से निकलवा कर झूठा केस चला देंगे। इसलिए अगर वालि जैसे प्रतापी फाउण्डेशन से लड़ना है तो छुप कर वार करना होगा। मैंने सुग्रीव के गले की तारीफ करते हुए कहा कि यदि तुम इस सुन्दर गले से मुझ साहसी वीर की प्रशंसा के गीत गाओगे तो वालि स्वयं तुम्हें मारने को उद्धत हो जाएगा क्योंकि कोई भी फाउण्डेशन किसी और की प्रशंसा या प्रतिष्ठा नहीं सह सकता। तुम मेरे कहे अनुसार मेरे गीत गाओ और मैं पेड़ की ओट से तुम्हारी मदद करूँगा। सुग्रीव खुले आकाश के नीचे मुझ साहसी वीर की शौर्यगाथा अपने सुन्दर गले से गाने लगा। यह सुन कर वालि से रहा नहीं गया क्योंकि जैसा कि बताया गया है कि फाउण्डेशन वाले किसी प्रतिष्ठा सह नहीं सकते।
जब सुग्रीव और वालि का मल्ल युद्ध हो रहा था तब मुझ साहसी वीर से बाण चलाया ही नहीं जा सका क्योंकि सुग्रीव और वालि का चेहरा और वेश-भूषा एक दूसरे से बहुत मिलता था। इस तरह वालि ने सुग्रीव की कुटम्मस कर दी। सुग्रीव पिट-पिटा के मेरे पास आया और बोला, हे साहसी वीर। आपने मुझे खूब पिटवाया। मुझ साहसी वीर ने इस पर खेद प्रकट करने के बजाय उसे बताया कि मैंने उसकी पिटाई का विडियो रिकॉर्ड कर लिया है। इस विडियो को तुम अरण्य में वायरसों के सहारे वायरल कर दो। वालि अपने आप तड़प कर मर जाएगा।
सुग्रीव के ऐसा करते ही वायरल विडियो का वायरस कोविड की तरह असर करना शुरू कर दिया। वालि बेचारा वहीं जमीन पर गिर कर छटपटाने लगा। तब मैं साहसी वीर उसके पास पहुँचा। उसने मुझे धिक्कारा, "हे साहसी वीर। तुमने छल से मुझे वायरल रूप से बीमार कर के मारा है। तुमने बड़ा पाप किया है। इसका बदला मेरा मित्र दशानन लेगा, जो खुद भी एक फाउण्डेशन चलाता है। तुम्हें पता नहीं कि खर-दूषण उसके ही आदमी थे। दशानन के 4,999 प्रकट मित्र हैं और पाँच लाख अनुयायी भी हैं। उसकी बहती मदिरा से और उसके प्रायोजित यात्राओं से उसके असुर तुमसे भयङ्कर बदला लेंगे। इतना ही नहीं दशानन का एक काइयाँ भाई भी है कुम्भकर्ण। वह छह महीने सोता है। ऐसे मौके पर उसे उठाया जाएगा। उसका पुत्र मेघनाद भी बहुत बलशाली है। उसने बहुतों से सिंहासन छीन लिया है। जिनसे उसने सिंहासन छीना वे सब उसके भृत्य बन चुके हैं। मेरा प्रतिशोध सभी तुमसे लेंगे। तुमने केवल मेरा वध ही नहीं किया बल्कि कृतघ्नता ही दिखाई है। तुम हेलीकॉप्टर से इस अरण्य में आए थे। यदि हम चाहते तो तुम्हारे हेलीकॉप्टर को क्रैश करा देते। तुमने इसका जरा भी अहसान नहीं माना। तुम भूले जा रहे हो कि सत्य, धर्म और शुचिता आज के समय में हीन मूल्य हैं। सबसे बड़ा मूल्य है कृतज्ञता। सुग्रीव फाउण्डेशन की शरण में नहीं आया इसलिए उसे सजा मिली। मेरा बदला दशानन लेगा।"
मुझ साहसी वीर ने वालि से कहा, 'हम किसी फाउण्डेशन की अधीनता नहीं मानते। यह तो तुम जानते ही हो कि हम ब्रह्मा के नियमों को भी नहीं मानते। अतः तुम जैसों को वायरल पोस्ट से मारने में कुछ पाप नहीं लगेगा। फल विचार कर की गयी सहायता अधम होती है। यदि वह इसका प्रतिकार चाहती हो और वह भी अधर्म शिष्यत्व, उस स्थिति में कृतज्ञता से उऋण होने को उपयुक्त अवसर के लिए टाल देना ही नीति है। हमारे समय में अनुयायी बनाना ही अधर्म है। अधर्म इसलिए है कि वह सत्य की ओर ले जाने के बजाय द्वेष की ओर ले जाता है। कृतज्ञता का अर्थ वहीं समझ सकते हैं जो कृतज्ञ हो कर भी स्वावलम्बी हैं। दशानन के पाँच लाख अनुयायी हों या पचास लाख, सत्य की एक किरण पूरे अन्धकार पर भारी पड़ती है। दशानन की शक्ति इतनी भर है कि हर समस्या को एक नवीन सञ्ज्ञा दे देना और उस सञ्ज्ञा के व्याज से असुरों को अरण्य में भ्रमित करना। भ्रम का यह स्थिति है कि सारे न्याय करने को उद्धत हैं किन्तु न्याय करने हेतु कोमल व कठोर हृदय किसी के पास नहीं।"
ये थी कल की बात!
दिनाङ्क:
08/07/2025
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग कवि विजेन्द्र जी की है।)
सन्दर्भः
१. मुनीर नियाज़ी (1928-2006) की गज़ल से
२. अकबर इलाहाबादी (1846-1921) की गज़ल से
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें