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बंधु कुशावर्ती का आलेख "अमृत लाल नागर के निवास की साक्षी हवेली 'कोठी साहजी'"

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  यह एक तीखा सच है कि हम अपने साहित्यिक सांस्कृतिक विरासतों के प्रति हमेशा उदासीन या लापरवाह रहते हैं। कई एक देश इन विरासतों को संभालने सहेजने के लिए तत्पर रहते हैं लेकिन हमारे यहां इस तरह की कोई परम्परा ही नहीं पनपने पाई। प्रख्यात रचनाकार अमृत लाल नागर लखनऊ में जिस हवेली में रहे उसे संरक्षित करने का कोई भी प्रयास नहीं किया गया। इसी तरह का हश्र अन्य रचनाकारों के निवास स्थलों का भी हुआ। केदार नाथ अग्रवाल, दूधनाथ सिंह, रवीन्द्र कालिया, लाल बहादुर वर्मा के  निवास स्थलों को बेच दिया गया। राज्य की तरफ से संरक्षित किए जाने की उम्मीद करना बेमानी ही है। बंधु  कुशावर्ती ने अपने इस आलेख में उन प्रयासों को रेखांकित करने का प्रयास किया है जो नागर जी के निवास की साक्षी हवेली कोठी साह जी को संरक्षित कराने के लिए किए गए। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  बंधु कुशावर्ती का आलेख "अमृत लाल नागर के निवास की साक्षी हवेली 'कोठी साहजी'"। "अमृत लाल नागर के निवास की साक्षी हवेली 'कोठी साहजी'" बंधु कुशावर्ती विख्यात हिन्दी लेखक अमृत लाल नागर का लगभग 33 बरसों तक निवास रही चौक,...

सन्तोष कुमार चतुर्वेदी की कविताएं

  कविता लिख कर कविता लिखने का कोई पाठ्यक्रम नहीं  कविताई की कोई कक्षा नही कोई अध्यापक तक नहीं बता पाता  कैसे लिखी जाए  कि बन जाए कविता  यहाँ तक कि कोई तय मानक तक नहीं कविता लिखने का कविता लिख कर आप एक मनुष्य तो बन सकते हैं लेकिन आजीविका नहीं चला सकते हाँ, कविता लिखने के जुर्म में आपको देशद्रोही जरूर ठहराया जा सकता है जेल हो सकती है देश निकाला हो सकता है फांसी पर झूलना पड़ सकता है फिर भी दुनिया भर में तमाम लोग लिखते रहते हैं आज भी कविताएँ डर के ख़िलाफ़ कविता डंट कर खड़ी हो जाती है दुनिया भर में कहीं भी अलग अन्दाज़ की वजह से ही कविता के लिए तयशुदा जैसा कुछ भी नहीं यह अनगढ़पन कविता की ज़िद है कविता किसी भी कवि को ज़िंदा रखने की एक आदत जैसी है। बातें आपस में बातें करने की कला  आदमी को इंसान बनाती है  जब तक बने रहते हैं बातों के पुल आवाजाही बनी रहती है  मनुष्यता की सड़क जाम होने का अंदेशा नहीं रहता कभी-कभी ऐसा कुछ होता है  कि एक दिन हम किसी कारणवश अचानक  आपस में बातें करना बन्द कर देते हैं  और जब भी ऐसा होता है  अपने ही बारे में कमियों से ह...