सुप्रिया पाठक का आलेख 'इंटरसेक्शनालिटी का स्त्रीवादी पक्ष'

सुप्रिया पाठक दुनिया की आधी आबादी होने के बावजूद आज भी स्त्रियां भेदभाव का शिकार हैं। यह प्रवृत्ति वैश्विक है। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो भेदभाव की ये परतें इकहरी न हो कर बहुस्तरीय हैं। स्त्री समाज के अन्दर यह भेदभाव जाति, नस्ल और वर्गीय तौर पर देखा जा सकता है। इसके लिए इंटरसेक्शनालिटी’ शब्द का प्रयोग किया जाता है, जिसे हिन्दी में 'अंतरक्षेत्रीयता' या 'अंतर्विभाजकता' भी कहा जाता है। इसके अन्तर्गत संस्थागत नस्लवाद, वर्गवाद और लिंगवाद सहित भेदभाव के कई रूपों पर एक साथ विचार किया जाता है। इस सन्दर्भ में यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि अश्वेत स्त्री की मुक्ति के पश्चात ही संपूर्ण मानव समाज की मुक्ति संभव है। लिंग, वर्ग तथा नस्ल आधारित शोषण को सम्यक रूप से समझे बिना तथा उनके विरूद्ध एकजुट हुए बिना स्त्री मुक्ति संभव नहीं है। एलिस वाकर तथा अन्य वुमेनिस्ट विदुषियों ने इस बात पर ज़ोर दिया किया कि अश्वेत स्त्री के जीवनानुभव श्वेत, मध्यवर्गीय स्त्रियों की अपेक्षा न सिर्फ भिन्न हैं बल्कि उसके शोषण की परिस्थितियां भी अधिक जटिल हैं। सुप्रिया पाठक ...