प्रज्ञा रावत की कविताएं
प्रज्ञा रावत दुनिया के बदलने के साथ साथ लोगों का बर्ताव भी लगातार बदलता चला गया है। लोग अक्सर यह कहते सुने जाते हैं कि अब पहले वाले लोग नहीं रहे। इसके बावजूद आज भी ऐसे लोग हैं जो निष्कपट और निःस्वार्थ भाव से अपना काम करने में लगातार जुटे रहते हैं। विशेषकर स्त्रियां (जिसमें समूची दुनिया की स्त्रियां शामिल हैं) इस दुनिया को सजाने संवारने में आज भी लगी रहती हैं। वे कई बार धोखा खाती हैं। कई बार ठगी जाती हैं। लेकिन कबीर की तर्ज पर कहा जाए तो 'कबीरा आप ठगाइए और न ठगिए कोय' का अनुसरण करती हैं। प्रज्ञा रावत इस स्त्री मन को रेखांकित करते हुए लिखती हैं 'चाहती है ऐसा ही निष्कपट संसार/ जहाँ विश्वास और अपनत्व की बची-खुची/ आस फिर जी उठे/ जी उठे आदमी का मन आदमी के लिए।' जिस समय अविश्वसनीयता अपने चरम पर हो, उस समय ये स्त्रियां जीवन पर विश्वास करती हैं और दुनिया की उम्मीद को अपने इस विश्वास के बूते जिलाए रखती हैं। प्रज्ञा की पक्षधरता उन आम लोगों के प्रति है जिनके पक्ष में आमतौर पर कोई नहीं होता। जो प्रायः उपेक्षित रहते हैं। अपनी कविता 'ईद मुबारक' में वे लिखती हैं 'जिन्हें...