यादवेन्द्र का आलेख 'ऐसे अनेक कुत्तों से घिरे हुए हैं हम'

मनोज कुमार पाण्डेय आजकल अक्सर यह चिंताजनक खबर आम तौर पर देखने को मिलती है कि कुत्तों के झुण्ड द्वारा किसी आदमी पर अचानक हमला कर नोच नोच कर मार डाला गया। कुत्तों द्वारा अप्रत्याशित रूप से हमला अच्छे खासे निडर व्यक्ति को डरा देती है। कुत्तों को हमने पालतू तो बना लिया लेकिन उनके आक्रामक व्यवहार को आज तक हम कहां नियंत्रित कर पाए? इस सन्दर्भ में अपने कॉलम के अन्तर्गत यादवेन्द्र जी ने मनोज कुमार पाण्डेय की कहानी 'उसी के पास जाओ, जिसके कुत्ते हैं' का जिक्र किया है। इस कहानी में मनोज कुत्तों के हवाले से उस पूरी व्यवस्था की आक्रामकता का जिक्र करते हैं, जिनको निर्बल आम आदमी को राहत देने के लिए बनाया गया था। पुलिस प्रशासन से हारा हुआ आम आदमी इस क्रम में अदालत जाता है लेकिन जान बचाने की गुहार लगाते आदमी को कोर्ट यह आदेश देती है कि 'वह पहले कुत्तों के मालिक का पता करे। इसके बाद थ्रू प्रॉपर चैनल आए। वह तत्काल अदालत से जाए और कोर्ट का कीमती वक्त जाया मत करे।' वह आम आदमी पाता है कि वह चारो तरफ से उन आक्रामक कुत्तों से घिरा हुआ है जो उसे नोच खाने पर आमादा हैं। यह कहानी उस व्यवस्था पर...