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शिरोमणि आर महतो की कविताएं

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  शिरोमणि आर महतो कवि परिचय जन्म तिथि : 29 जुलाई 1973 उपाधि : डाॅक्टरेट की मानद् उपाधि  प्रकाशन : कथादेश, हंस, कादम्बिनी, पाखी, नया ज्ञानोदय, वागर्थ, आजकल, परिकथा, तहलका, समकालीन भारतीय साहित्य, समावर्तन, युगवार्ता, दैनिक जागरण, दैनिक हिंदुस्तान एवं अन्य महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।       प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें : धूल में फूल (बाल कविता) 1993 पतझड़ का फूल (काव्य पुस्तक)  1996 उपेक्षिता (उपन्यास) 2000, कभी अकेले नहीं (कविता संग्रह) 2007 संकेत-3 (कविताओं पर केंद्रित पत्रिका) 2009 भात का भूगोल (कविता संग्रह) 2012 करमजला (उपन्यास) 2018 चाँद से पानी (कविता संग्रह) 2018 झारखण्ड की समकालीन कविता (संपादन) 2021,  समकाल की आवाज़ (चयनित कविताएँ) 2022 सभ्यता के गुणसूत्र (कविता-संग्रह) 2023 सम्मान :  नागार्जुन स्मृति राष्ट्रीय सम्मान, बिहार।  सव्यसाची सम्मान, इलाहाबाद। परिवर्तन लिटेरचर अचीवर्स अवार्ड,नई दिल्ली। जयशंकर प्रसाद स्मृति सम्मान, रांची।  स्पेनिन साहित्य गौरव सम्मान 2024       विशेष : कुछ भारतीय भाषाओं -...

इन्दु श्रीवास्तव की गजलें

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  इन्दु श्रीवास्तव परिचय  इन्दु श्रीवास्तव  चार ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित  1 आशियाने की बातें, 2008 2  उड़ना बेआवाज परिन्दें, 2012 3 बारिश में  जल रहे हैं खेत, 2017 4 कंदील जलाओ कोई गीत संग्रह-  1-भोर पनिहारन (अप्रकाशित) दोहा संग्रह  1-तू ही मेरा जोगिया (अप्रकाशित) आठ ग़ज़लों का एल्बम 'बादलों के रंग' रिलीज। पहल, हंस, साक्षात्कार, बया, वीणा, वागर्थ आदि सभी शीर्ष साहित्यिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।  एक कहानी संग्रह अप्रकाशित।  साथ ही आलोचनाएँ, संस्मरण, स्मृति लेखों पर काम। सम्मान- रज़ा सम्मान, स्पेनिन साहित्य गौरव सम्मान झारखण्ड, सुधेश सम्मान। राष्टीय स्तर के मंचों,आकाशवाणी, दूरदर्शन में काव्य पाठ। संप्रति-स्वतंत्र लेखन किसान को आमतौर पर अन्नदाता कहा जाता है लेकिन उसी का शोषण सबसे ज्यादा होता है। वह प्रकृति से तो अपनी लड़ाई लड़ता ही है, साथ साथ उसे उन सूदखोरों से भी जूझना पड़ता है जो उनके रक्त की एक एक बूंद चूस लेने को उद्यत रहते हैं। सामान्य किसान के लिए खेती अब घाटे का सौदा है। लेकिन अपनी जमीन का मोह कुछ इस प्रकार का है कि घाट...

विजय शर्मा का आलेख 'ऋत्विक घटक : मैं पॉलिटिकल सिनेमा बनाता हूँ'

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  ऋत्विक घटक  सिनेमा अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। दर्शकों पर लम्बे समय तक इसका प्रभाव बना रहता है। ऐसे में सिनेमा की भूमिका और महत्त्वपूर्ण हो जाती है। ऋत्विक घटक सिनेमा को इस ताकत को पहचानते थे। इसीलिए वे इसका इस्तेमाल सार्थक रूप से करना चाहते थे। सिनेमा के प्रति एक जुनून के साथ साथ उनमें वह प्रतिबद्धता भी थी जो आजकल दुर्लभ हो चला है। वे  ‘नई लहर’ सिनेमा के प्रवर्तक माने जाते हैं। उनके शिष्यों की एक लम्बी फेहरिस्त है जिनमें मणि कौल, कुमार साहनी और मलयाली निर्देशक जॉन अब्राहम के नाम अग्रणी हैं। मुक्तिबोध ने लिखा था 'पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?' ऋत्विक घटक ने खुले तौर पर कहा 'मैं पॉलिटिकल सिनेमा बनाता हूं।' उनका मूल्यांकन करते हुए विजय शर्मा लिखती हैं 'खुद को समाजशास्त्री न मानने वाले ऋत्विक घटक ने सत्यजित राय से पहले 1952 में अपनी पहली फ़िल्म ‘नागरिक’ बना ली थी। पहली फ़िल्म उनके सिनेमा बनाने के उद्देश्य को स्पष्ट कर देती है। फ़िल्म में शरणार्थियों की समस्या है। देश विभाजन ने रातों रात लोगों को बेघर-भिखारी बना दिया है। बेरोजगारी पर केंद्रित फ़िल्म आज भी समसा...

ओमप्रकाश वाल्मीकि की कहानी 'शवयात्रा'

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  ओम प्रकाश वाल्मीकि  भारत में प्रचलित तमाम प्रथाओं में जाति प्रथा सर्वाधिक विवादास्पद रही है। भले ही सामाजिक कार्यों को आपसी समन्वय से करने के लिए इस प्रथा को इजाद किया गया हो, इसने मनुष्य मनुष्य के बीच भेदभाव की वह खाई पैदा कर दी जो आज तक नहीं भर पाई है। जो प्रथा अमानवीयता को बढ़ावा दे उसे कतई तार्किक नहीं  ठहराया जा सकता। जाति व्यवस्था में हर जाति अपने से नीचे की कोई न कोई जाति खोज ही लेती है और इस तरह अपने को ऊंची जाति ठहराने का एक भ्रम जाल रच लेती है।  ओमप्रकाश वाल्मीकि की कहानी 'शवयात्रा' जाति प्रथा के भयावह दंश को उद्घाटित करती है। सुरजा की एकमात्र गलती यही है कि वह बल्हार जाति का है और इसी नाते उसे गांव में पक्का घर बनवाने का अधिकार नहीं है। जिस ग्राम प्रधान बलराम सिंह के लिए चुनाव के वक्त वह एक एक वोट जुटाने के लिए जी जान से जुट जाता है वही बलराम उसके पक्का घर बनवाने की बात पर आग बबूला हो जाता है। घर आ कर सुरजा के लड़के की लड़की सलोनी का इलाज करने से गांव का डॉक्टर तक मना कर देता है। यही नहीं जब अपने गांव के चमारों से वह सलोनी को शहर ले जाने के लिए बैलगाड़ी ...