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मदन कश्यप की कविताएँ

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  मदन कश्यप प्रेम मनुष्यता की आधारभूमि है। सम्बन्धों की पृष्ठभूमि बनाने और सम्बन्धों के आयाम को विस्तृत करने में इस प्रेम की भूमिका विशिष्ट रही है। इसीलिए प्रेम कवियों के लिए लोकप्रिय विषय रहा है। दुनिया का कौन सा ऐसा कवि होगा जिसने प्रेम पर कविताएं न लिखी हों। मदन कश्यप हमारे समय के जरूरी कवियों में से हैं। प्रेम उनकी अधिकांश कविताओं के मूल में रहता आया है। कल मदन कश्यप का जन्मदिन था।  प्रिय कवि को जन्मदिन की विलंबित बधाई और शुभकामनाएँ देते हुए आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं उनकी कुछ कविताएँ।   मदन कश्यप की कविताएँ  चालाक लोग  चालाक लोग इसका पूरा हिसाब रखते हैं  कि क्या क्या बचाया  लेकिन यह कभी नहीं जान पाते हैं  क्या क्या गँवाया वे पाँव गंवाकर जूते बचा लेते हैं  और शान से दुनिया को दिखाते हैं !  अभी भी बचे हैं अभी भी बचे हैं कुछ आख़िरी बेचैन शब्द जिनसे शुरू की जा सकती है कविता बची हुई हैं कुछ उष्ण साँसे जहाँ से सम्भव हो सकता है जीवन गर्म राख कुरेदो तो मिल जाएगी वह अंतिम चिंगारी जिससे सुलगाई जा सकती है फिर से आग एक दिन स्त्रियाँ बैंक हो...

शंकरानंद की कविताएं

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  शंकरानंद शंकरानंद परिचय जन्म- 8 अक्टूबर 1983 को खगडिया जिले के एक गाँव हरिपुर में। शिक्षा -एम. ए. (हिन्दी), बी. एड. प्रकाशन- कथादेश, आजकल, आलोचना, हंस, वाक्, पाखी, वागर्थ, वसुधा, नया ज्ञानोदय, सरस्वती, कथाक्रम, परिकथा, पक्षधर, वर्तमान साहित्य, कथन, उद्भावना,  बया, नया पथ, लमही, सदानीरा, साखी, समकालीन भारतीय साहित्य, मधुमती, इंदप्रस्थ भारती, पूर्वग्रह, मगध, कविता विहान, नई धारा, आउटलुक, दोआबा, बहुवचन, अहा जिन्दगी, बहुमत, बनास जन, निकट, जनसत्ता, विश्वरंग कविता विशेषांक, पुस्तकनामा साहित्य वार्षिकी, स्वाधीनता शारदीय विशेषांक, आज की जनधारा वार्षिकी, कथारंग वार्षिकी, सब लोग, संडे नवजीवन, दैनिक जागरण, नई दुनिया, दैनिक भास्कर, जनसंदेश टाइम्स, जनतंत्र, हरिभूमि, प्रभात खबर दीपावली विशेषांक, शुभम सन्देश, नवभारत आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित। कुछ में कहानियां भी। पिता, बच्चे, किसान और कोरोना काल की कविताओं सहित कई महत्वपूर्ण और चर्चित संकलनों के साथ 'छठा युवा द्वादश' और 'समकालीन कविता' में कविताएं शामिल। हिन्दवी, समालोचन, इन्द्रधनुष, अनुनाद, समकालीन जनमत, हिंदीसमय, समत...

सूरज पालीवाल का आलेख 'नेहरू जी राजनीति में संत, कवि और दृष्टा थे'

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जवाहर लाल नेहरू केवल भारत के पहले प्रधान मंत्री ही नहीं थे बल्कि उनके अन्दर एक साहित्यकार इतिहासकार का हृदय भी था। राजनीति उनका पैतृक व्यवसाय नहीं था बल्कि इसे उन्होंने अपने अनुभवों से सीखा और जाना था। भारत की बहुवर्णी संस्कृति और परम्परा को देखते हुए उन्होंने तय किया कि आजादी के बाद का भारत धर्मनिरपेक्ष भारत होगा। बंटवारा होने के पश्चात धर्म की राह पर चलना उनके लिए सुविधाजनक था। लेकिन धर्मनिरपेक्षता की राह पर चलने का उनका यह निर्णय आसान नहीं बल्कि आग के दरिया पर चलने जैसा था। सूरज पालीवाल ने सही लिखा है कि धर्मनिरपेक्षता को कदम कदम पर संघर्ष करना पड़ता है। आज जब भारत का सत्ताधारी दल धर्म की राह पर चल पड़ा है और पानी पी पी कर जवाहर लाल को कोसा जा रहा है ऐसे में तब के मुश्किल दौर में उनका यह निर्णय कम साहसिक नहीं था। आज जवाहर लाल नेहरू की पुण्य तिथि पर उनकी स्मृति को नमन करते हुए पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं सूरज पालीवाल का आलेख  'नेहरू जी राजनीति में संत, कवि और दृष्टा थे'। यह आलेख उदभावना के हाल में ही प्रकाशित नेहरू विशेषांक से साभार लिया गया है। 'नेहरू जी राजनीति म...

समकालीन गुजराती कविताओं का अनुवाद

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  रजनीकांत एस शाह हर कविता की अपनी अलग भाव-भूमि होती है। भाषा उसकी अभिव्यक्ति का मुख्य माध्यम होती है। हर कवि अपनी तरह से भाषा को समृद्ध करने का कार्य करता है। इन अर्थों में देखा जाए तो गुजराती भाषा एक समृद्ध भाषा है जिसमें अनेक रचनाकारों ने अपनी रचनाओं का सृजन किया है। रजनीकांत एस. शाह ने गुजराती की बेहतरीन रचनाओं को सामने लाने का महत्त्वपूर्ण प्रयास किया है। इस क्रम में उन्होंने गुजराती के कुछ उन कवियों को अनुवादित और रेखांकित किया है जिन्होंने बेहतर लेखन किया है। अनिल चावडा, प्रफुल्ल रावल, रमेश पारेख, कुंदनिका कापडिया और रमेश शाह की कविताओं के अनुवाद उन्होंने पहली बार को उपलब्ध कराए हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं कुछ समकालीन गुजराती कविताओं का हिन्दी अनुवाद। अनुवादक हैं रजनीकांत एस. शाह।   समकालीन गुजराती कविताओं का अनुवाद  सभी कविताओं के अनुवादक : डॉ. रजनीकान्त एस. शाह अनिल चावडा  1.पुत्री की विदाई कवि : अनिल चावडा इतने बरस जिसने घर को रखा उष्मित मेंहदी रचा कर चला आज घर का वह उजास बिटिया के जाने से ऐसा लगता  गया ताक से दीया नहीं जुड़ेगा अब ...