प्रवीण शेखर का आलेख 'शारदा सिन्हा अब संज्ञा नहीं विशेषण हैं'
शारदा सिन्हा शारदा सिन्हा भोजपुरी की लता मंगेशकर थीं। अपने गायन से उन्होंने भोजपुरी क्षेत्र ही नहीं, बल्कि एक व्यापक समुदाय के दिलो दिमाग में अपनी एक सुरक्षित जगह बनाई थीं। जो लोग भोजपुरी गायन के अश्लील होने की बात करते हैं उन्हें एक बार शारदा सिन्हा का गायन गौर से सुनना चाहिए। शारदा जी ने अपने गायन के जरिए भोजपुरी मूल्यों की रक्षा करने का कार्य किया। सुरों की साधना उनके गायन में स्पष्ट झलकती है। शारदा जी के गीत आज भी अगर गांव गांव में गूंजते हैं तो यह शारदा सिन्हा के प्रति भोजपुरी जनता का अपार प्रेम और स्नेह ही है। उनके गीत हम घर परिवार के साथ बैठ कर सहज रूप से सुन सकते हैं। बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में आजकल छठ पर्व की धूम है। छठ पर्व शारदा सिन्हा के गायन के बिना पूरा नहीं होता। यह लोक से शारदा सिन्हा का वह जुड़ाव है जो बिरले कला साधकों को प्राप्त होता है। कल रात वह अन्तिम प्रयाण कर गईं। भोजपुरी लोकगीतों का हरा भरा आंगन जैसे सूना पड़ गया। छठ पर्व मनेगा लेकिन इस बार शायद उस छटा के साथ नहीं, जिसके लिए वह ख्यात है। चर्चित रंगकर्मी, महत्वपूर्ण नाट्य संस्था 'बैकस्टेज