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ताहिर आज़मी की गज़लें

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  ताहिर आज़मी मूल रूप से आजमगढ़ निवासी ताहिर छत्तीसगढ़ के सुदूर उत्तर में स्थित पिछड़े आदिवासी जनपद कोरिया के छोटे से नगर बैकुण्ठपुर के निवासी हैं। स्वभाव से संकोची व बोहेमियन प्रवित्ति के शायर ताहिर छपने-छपाने को लेकर कभी उत्सुक व आतुर नहीं रहे। यदि ऐसा कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति न होगी कि अदब और सुख़न उनकी रगों में है और वे उसे जीते हैं, वो ऐसे शायर हैं जो अपने कहे को जीते हैं और जिए को कहते हैं। वे हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में ग़ज़लें लिखते हैं, जो उनकी भाषिक क्षमता को दर्शाती हैं। पेशे से उर्दू शिक्षक ताहिर हिन्दी और उर्दू दोनों ही भाषाओं पर बराबर पकड़ रखते हैं। वह सरलतम से लेकर अत्यंत क्लिष्ट भाषा में एक समान संप्रेषणीयता के साथ रचना कर सकते हैं। ताहिर की ग़ज़लों में भाषा, छंद , लय तथा भावनात्मक प्रभाव सभी का पर्याप्त साम्य है। ये ग़ज़लें प्रेम, स्वतंत्रता, सामाजिक मुद्दों और जीवन की चुनौतियों जैसे विषयों पर केंद्रित हैं तथा समकालीन या नई ग़ज़ल के मानकों को पूरा करती हैं। ताहिर ग़ज़लों में छंद का अधिकारपूर्वक उपयोग करते है जो उन्हें आकर्षक बनाता है पर गाहे-बगाहे, वह रूढ़ि से साया

नंदलाल 'कैदी' की कविताएं

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      नंदलाल 'कैदी'  नंदलाल 'कैदी'       जीवन परिचय कवि स्व. नंदलाल 'कैदी' का जन्म उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद के खागा तहसील में भोगलपुर गाँव में एक छोटे किसान परिवार में 26 जनवरी सन् 1946 को हुआ था। उनके पिता का नाम सूर्यदीन एवं माता का नाम कौशल्या देवी था। चार भाइयों एवं दो बहनों में वह सबसे छोटे थे। कैदी जी जब कक्षा 8 में पढ़ते थे, तभी उनका विवाह श्रीमती राजरानी देवी के साथ हो गया था। वह तीन पुत्र और तीन पुत्रियां के पिता हुए। कैदी जी को अपने दो जवान पुत्रों का मृत्यु शोक भी भोगना पड़ा था।                 बचपन से कुशाग्र बुद्धि के कैदी जी की प्राइमरी शिक्षा गाँव में ही हुई। हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की पढ़ाई क्रमशः श्री सुखदेव हायर सेकेंडरी स्कूल खागा एवं ए. एस इंटर कॉलेज फतेहपुर से किया। महात्मा गांधी डिग्री कॉलेज से बी. ए. तथा एम. ए. एल. टी. डी. ए. वी. कालेज कानपुर  से करने के बाद श्री सुखदेव इंटर कॉलेज  खागा में सन् 1967 में एलटी ग्रेड में सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त हुए। 8 अप्रैल 2019 को नंदलाल 'कैदी' इस संसार को अलविदा कह गए।       स्व. नंदलाल

बली सिंह का आलेख 'ओमप्रकाश बाल्मीकि : व्यापक सामाजिकता के पक्षधर'

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ओमप्रकाश बाल्मीकि        दलित लेखन की जब भी बात आती है ओमप्रकाश वाल्मिकी का नाम आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। वे ऐसे रचनाकार थे जिन्होंने अपने लेखन में दलित वर्ग की व्यथाओं को मुखरित हो कर प्रस्तुत किया। उनकी आत्मकथा 'जूठन' को पाठकों का अपार प्यार मिला। अपनी बातें उन्होंने स्पष्ट रूप से कहीं, बिना इसकी परवाह करते हुए कि इस पर कोई और क्या सोचेगा या कोई हो-हल्ला मचेगा। ओमप्रकाश वाल्मीकि के लेखन पर सूक्ष्म दृष्टि डाली है बली सिंह ने। बली सिंह अपने आलेख में उचित ही लिखते हैं कि ‘नार्मलिटी’ के भीतर छिपी ‘एब-नार्मलिटी’ का उदघाटन जिन साहित्यकारों ने किया है उनमें ओमप्रकाश बाल्मीकि प्रमुख हैं। उनकी सबसे बड़ी चिंता का विषय यही है कि दलित-समुदाय के लोगों के साथ मनुष्यों जैसा व्यवहार क्यों नहीं किया जाता? यानी उनको मनुष्यों की श्रेणी में ही नहीं गिना जाता। आज उनकी पुण्य तिथि पर हम उनकी स्मृति को नमन करते हैं। बली सिंह का यह आलेख अरसा पहले हमें कवि मित्र शंभू यादव ने उपलब्ध कराया था जो तब किसी वजह से प्रकाशित नहीं हो पाया था। तब से यह आलेख ब्लॉग के ड्राफ्ट में ही सुरक्षित था। आइए आज पह

पंकज मोहन का आलेख 'समाज मे हाशिए पर जी रहे बेबस लोगों के दुःख दर्द की कथा'

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हान कांग जिन संकल्पनाओं का मनुष्य को आधुनिक बनाने का श्रेय है उनमें मानवाधिकार का स्थान अग्रणी है। बेहतर साहित्यकार वही होता है जो मानवाधिकारों का  पक्षधर होता है। वैसे मानवाधिकारों की राह आसान नहीं होती, बल्कि कांटों से भरी होती है। ऐसे साहित्यकार अपने देश की सरकारों के रडार पर रहते हैं। उन्हें अक्सर प्रताड़नाओं का शिकार होना पड़ता है। लेकिन सच्चा साहित्यकार निडर होता है और अपनी राह चलता रहता है। वर्ष 2024 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार दक्षिण कोरिया की लेखिका हान कांग को दिया गया है। हान कांग यह पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली एशियाई महिला हैं। पंकज मोहन ने उनकी किताब "लड़का आ रहा है" (अंग्रेजी अनुवाद "The Human Acts") पर विचार करते हुए इस लेखिका के बारे में लिखा है - 'हान कांग ने ग्वांगजू के नागरिकों की गहरी पीडा और आधुनिक कोरियाई इतिहास के दर्द, जिसे कोरियाई भाषा में 'हान' कहा जाता है, की आधारशिला पर अद्भुत साहित्यिक कृति की रचना की है, जिसकी कलात्मक प्रभा से कोरिया ही नहीं बल्कि लोकतंत्रिक मूल्यों और मानव अधिकार के लिये संघर्ष कर रहे  "ग्लोबल साउ