ताहिर आज़मी की गज़लें
ताहिर आज़मी मूल रूप से आजमगढ़ निवासी ताहिर छत्तीसगढ़ के सुदूर उत्तर में स्थित पिछड़े आदिवासी जनपद कोरिया के छोटे से नगर बैकुण्ठपुर के निवासी हैं। स्वभाव से संकोची व बोहेमियन प्रवित्ति के शायर ताहिर छपने-छपाने को लेकर कभी उत्सुक व आतुर नहीं रहे। यदि ऐसा कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति न होगी कि अदब और सुख़न उनकी रगों में है और वे उसे जीते हैं, वो ऐसे शायर हैं जो अपने कहे को जीते हैं और जिए को कहते हैं। वे हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में ग़ज़लें लिखते हैं, जो उनकी भाषिक क्षमता को दर्शाती हैं। पेशे से उर्दू शिक्षक ताहिर हिन्दी और उर्दू दोनों ही भाषाओं पर बराबर पकड़ रखते हैं। वह सरलतम से लेकर अत्यंत क्लिष्ट भाषा में एक समान संप्रेषणीयता के साथ रचना कर सकते हैं। ताहिर की ग़ज़लों में भाषा, छंद , लय तथा भावनात्मक प्रभाव सभी का पर्याप्त साम्य है। ये ग़ज़लें प्रेम, स्वतंत्रता, सामाजिक मुद्दों और जीवन की चुनौतियों जैसे विषयों पर केंद्रित हैं तथा समकालीन या नई ग़ज़ल के मानकों को पूरा करती हैं। ताहिर ग़ज़लों में छंद का अधिकारपूर्वक उपयोग करते है जो उन्हें आकर्षक बनाता है पर गाहे-बगाहे, वह रूढ़ि से साया