सुप्रिया पाठक का आलेख “नायाब नामवर : शास्त्र के कौतुक से कौतुक के शास्त्र तक”
हमारा समाज आमतौर पर ऐसा समाज है जहां परंपरागत रूप से कविता या कहानी को ही प्राथमिकता प्रदान किया जाता है। आलोचना को गम्भीरता से देखे जाने की परम्परा प्रायः नदारद मिलती है। नामवर सिंह ने आलोचना की एक ऐसी पद्धति विकसित की जिसमें एक कौतुक होता था। सामाजिक मान्यताओं, प्रतिबद्धताओं और विचारों के माध्यम से ही वे ऐसी सटीक बातें कह देते जिसके सम्मोहन से बच पाना कठिन होता था। शास्त्र की दृष्टि से भी देखा जाए तो वे बहुपठित थे। संस्कृत के ग्रन्थ हों या फिर पाश्चात्य दार्शनिक परम्परा के ग्रन्थ, लोक का ज्ञान हो या फिर मार्क्सवाद सब पर उनकी गहरी पकड़ थी। यह उनकी बहुपठनीयता ही थी, जो उन्हें सर्वस्वीकार्य बनाती थी। सुप्रिया पाठक ने स्त्री विमर्श के हवाले से नामवर जी की आलोचना को समझने की कोशिश की है। सुप्रिया बिना कोई तल्खी दिखाए तार्किक तरीके से अपनी बात रख देती है जो पाठक को अपने में आबद्ध कर लेती है। “नायाब नामवर: शास्त्र के कौतुक से कौतुक के शास्त्र तक” सुप्रिया पाठक समीक्षा की समीक्षा या आलोचना की आलोचना एक कठिन काम है। यह काम और कठिन हो जाता है जब समीक्षा या आ...