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ख़ालिद जावेद के उपन्यास 'नेमत ख़ाना' पर यतीश कुमार की समीक्षा

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  लेखक वही बेहतर माना जाता है, जो कल्पना लोक में विचरण करते हुए भी अपने पाठकों को यथार्थ का अवलोकन कराता है। वह यथार्थ को पाठक का बिल्कुल अपना है। यथार्थ का यह सेतु ही पाठक और लेखक को परस्पर जोड़ने का काम करता है। खालिद जावेद ऐसे ही लेखक हैं जो हवा को भी एक किरदार बना देते हैं।  खालिद जावेद के उपन्यास की समीक्षा करते हुए यतीश कुमार लिखते हैं : ' हर आदमी के साँस लेने का रिदम अलग है और आदमी का व्यक्तित्व भी, हवा यहाँ व्यक्तित्व का पहचान करवा रही है। दरअसल इस किताब की शुरुआत में हवा एक किरदार की तरह उपन्यास के आबोहवा  का परिचय देती नज़र आती है। यहाँ रह-रह कर हवा की शक्लें बदलती हैं, बदलती शख़्सियत और बदलते मौसम की तरह।' आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं ख़ालिद जावेद के उपन्यास   'नेमत ख़ाना'पर  यतीश कुमार की समीक्षा :रह रह कर बदलती हवा की शक्लें'। रह-रह कर  बदलती हवा की शक्लें  यतीश कुमार “बावर्चीखाना - एक ख़तरनाक जगह है।”  इस रहस्यमयी कथन के पहले लगा जैसे अब तक हवा से बाते कर रहे थे। हवा से बातें करने का मतलब असल में वो नहीं, जो आप समझ ...

ललन चतुर्वेदी का संस्मरण 'खाकी बाबा की याद में'

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  ललन चतुर्वेदी हमारा बचपन उन तमाम कथा, किंवदंतियों और सच्चाइयों से भरा होता था जो हमारे लिए मार्गदर्शक का काम किया करते थे। इन कथाओं में बाबा भी शामिल हुआ होते थे जिनका अभिप्राय गांव के आस पास अवस्थित मठों के सन्त लोगों से होता था। गांवों के फेरे लगाते हुए जोगी मिल जाते थे जो गोरख बानी गाते हुए अपने दिन बिताया करते थे। यह कहानियां ऐसी हैं जिसमें थोड़ी गप्प हुआ करती तो थोड़ी सच्चाई भी। खुद इनका जीवन ऐसा त्यागमय होता कि लोग बाग उसका अनुसरण किया करते।  यह सब हमारे मन मस्तिष्क में कुछ इस तरह रच बस जाता कि इसकी स्थाई स्मृति बनी रह जाती थी। कवि  ललन चतुर्वेदी आजकल संस्मरण लिख रहे हैं और इस क्रम में उन्होंने अपने पैतृक गांव  बैजलपुर जो  मुजफ्फरपुर (बिहार) जिले के  थाना पारू  में अवस्थित है, इसी गांव के निकटवर्ती गांव  कल्याणपुर में  एक सन्त खाकी बाबा हुआ करते थे। अपने संस्मरण में ललन चतुर्वेदी ने खाकी बाबा  को याद किया है। आज जब अक्सर सन्त महन्त लोगों के वैभव, विलास और व्यभिचार में डूबे होने की खबरें आम होती हैं तब वे सन्त हमारे सामने एक आदर्श...

उषा राय के कविता संग्रह की अवंतिका सिंह द्वारा की गई समीक्षा

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  जगहों से जुड़ी मनुष्य की तमाम स्मृतियां होती हैं। ये जगहें हमारी स्मृति में कुछ इस तरह रच बस जाती हैं कि इनके प्रति स्वाभाविक रूप से एक आदर भाव विकसित हो जाता है। भीमा कोरेगांव ऐसी ही एक जगह है जिसका अपना एक ऐतिहासिक सन्दर्भ है। उषा राय के 2023 में प्रकाशित कविता संग्रह 'भीमा कोरे गांव और अन्य कविताएं' की समीक्षा करते हुए  अवंतिका सिंह लिखती हैं - " 01 जनवरी, 1818 को हुए "भीमा कोरेगांव युद्ध" में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल दलित सैनिकों की टुकड़ी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस लड़ाई में विजय के बाद दलितों के बीच यह विश्वास बढ़ा कि वे सामाजिक और राजनीतिक रूप से उत्पीड़न से मुक्ति पा सकते हैं। भीमा कोरेगांव युद्ध में दलित सैनिकों की याद में बनाए गए ऐतिहासिक प्रतीक स्थल पर 01 जनवरी को प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में लोग श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं। हमारे देश में समाज की अन्यायपूर्ण जाति-वर्ण की व्यवस्था से जन्मी छुआछूत की क्रूर और अमानवीय बुराई के विरुद्ध 'भीमा कोरेगाँव' युद्ध को उषा राय जी 'अपने समय के सबसे बड़े सवाल का ज़वाब...

प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'किष्किन्धाकाण्ड'

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  सोशल मीडिया ने आज दुनिया को काफी बदल दिया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, थ्रेड्स, यू ट्यूब रील्स, एक्स (ट्विटर) आदि से आज शायद ही कोई व्यक्ति अछूता हो। यह एक आभासी संसार है। आप इस तिलिस्मी संसार पर यह कहते हुए गर्व कर सकते हैं कि हमारे इतने मित्र हैं, इतने फॉलोवर्स हैं। कुछ तो बाकायदा लाइक्स और कमेंट्स भी गिन गिन कर मित्रों को बताते फिरते हैं। इस सोशल मीडिया के आलोक में प्रचण्ड प्रवीर ने पुरातन मिथकों को नए तरह से देखने का एक साहसिक प्रयास किया है। इस कहानी में व्यंग्य तो मूलतः है ही, इसके गहरे निहितार्थ भी हैं। 'कल की बात' शृंखला के क्रम में प्रवीर की यह २७५वीं प्रस्तुति है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'किष्किन्धाकाण्ड'। कल की बात - २७५ 'किष्किन्धाकाण्ड' प्रचण्ड प्रवीर कल की बात है। जैसे ही मैं साहसी वीर अरण्य में चरण रख कर चौकन्ना हुआ, देखा कि हर ओर असुर मस्त हो कर क्रीड़ा कर रहे थे। मेरे अनन्य मित्रों को कहना है कि तुम भले ही कायर हो, लेकिन साहसी वीर की पदवी लगा लोगे तो शेर ही समझे जाओगे अतः स्वयं के लिए 'मैं साहसी वीर' सर्व...

चंद्रशेखर की जेल डायरी पर हरिवंश का आलेख

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  चंद्रशेखर 10 नवंबर 1990 और 21 जून 1991 के बीच भारत का प्रधान मंत्री एक ऐसा व्यक्ति बना जो एक सामान्य कृषक परिवार का था। यह व्यक्ति थे चंद्रशेखर जी। वे अखिल भारतीय कांग्रेस के सम्मानित सदस्य थे। हरिवंश के अनुसार कांग्रेस में चंद्रशेखर अकेले ऐसे व्यक्ति थे, जो पार्टी की सबसे महत्वपूर्ण व निर्णायक समिति (कांग्रेस वर्किंग कमिटी) के चुने गए सदस्य थे। आपात काल का विरोध करने के कारण उन्हें जेल में डाल दिया गया। जेल में रहते हुए ही उन्होंने जो जेल डायरी लिखी वह आपात काल को जानने के लिए एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। चंद्रशेखर की यह डायरी उनकी वैचारिक दृढ़ता का आईना है। चंद्रशेखर ऐसे दुर्लभ प्रधानमंत्रियों में से एक थे जो साहित्यिक सरोकारों से भी गहरे तौर पर जुड़े हुए थे। उनकी डायरी से ही पता चलता है कि उन्होंने कामू की अनेक किताबें पढ़ी। ‘प्लेग’, ‘अ सर्टेन डेथ’। पर, एक किताब का जिक्र बार-बार आया है, वह है, ‘रिबेल’ (विद्रोही)। 'रिबेल' में उनकी दिलचस्पी इस हद तक थी कि निर्मल वर्मा के एक लेख में उसका एक उद्धरण देख कर उन्होंने उनका पूरा लेख पढ़ डाला और फिर उस पर अपनी स्पष्ट प्रतिक्रिया भी ...

भैरव प्रसाद गुप्त की कहानी 'खलनायक'

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  भैरव प्रसाद गुप्त  एक स्त्री का जीवन तमाम विडंबनाओं से भरा होता है। हमारे इस समाज में आज भी तमाम किस्म के ऐसे भेड़िए हैं जिनके लिए स्त्रियां सिर्फ उपभोग की वस्तु हैं। पूंजीवादी मानसिकता, बाजार, विज्ञापन और फूहड़ फिल्मों ने स्त्री की तस्वीर को विकृत करने का ही कार्य किया है। भैरव प्रसाद गुप्त की कहानी 'खलनायक' स्त्री के सन्दर्भ में पुरुष मानसिकता के रेशे को खोलती है। कहानी की मुख्य पात्र  रश्मी इस मानसिकता से भलीभांति अवगत है। और वह इस बात से परिचित है कि उसके इर्द गिर्द आज जो जमावड़ा है उसमें उसके यौवन की विशेष भूमिका है। तभी तो बातचीत के दौरान कमल से वह कहती है ' अब तो मैंने तय कर लिया है, कि जब तक जवानी है, मैं जीऊंगी, और उसके बाद आत्म-हत्या कर लूंगी।’’ कह कर, वह एक भयंकर अट्टहास कर उठी।'  रश्मी स्वर्णाभूषणों से लदी हुई है। वह देव को खुद इसे दिखाते हुए कहती है 'ये सोने की चूड़ियां देखिए! यह मोतियों का हार देखिए! ये हीरे के टाप्स देखिए!’’ एक-एक चीज को हाथ से छू-छू कर दिखाते हुए, वह बोलती गयी- ‘‘ये सब चीजें उन्हीं लोगों को दी हुई हैं, जो समाज में शरीफ बने फिरते...