प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'पेशेवर चटोर'


प्रचण्ड प्रवीर 


आज का समय आपाधापी का समय है। किसी के पास समय ही नहीं कि थम कर कोई काम कर सके या उसके बारे में सोच भी सके। ऐसे में कई एक परंपराएं, हुनर लुप्त होते जा रहे हैं। यह लुप्त शब्द आज हमारी वास्तविकता बन चुकी है। रोज न जाने कितनी कीड़े मकोड़ों, चिड़ियों और जीवों की प्रजातियां लुप्त होती जा रही हैं। रोज न जाने कितनी बोलियां, भाषाएं और लिपियां लुप्त होती जा रही हैं। ऐसे दौर में प्रवीर ने अपनी कहानी पेशेवर चटोर में स्वाद के खोते जाने की बात की है, जिसकी चर्चा आमतौर पर नहीं होती। प्रवीर लिखते हैं 'मोहन का जोश खतम नहीँ हुआ था, वह कहने लगा, “आज के दिन कोई रेस्तराँ मेँ खाने जायेगा और फरमाइश करेगा कि येल्लो दाल दीजिये, ब्लैक दाल दीजिये। किसी को मूंग, मसूर, अरहर पता नहीँ है। उड़द और चना दाल के स्वाद का अन्तर भी नहीँ पता है। ऐसे पढ़े-लिखे लोग पर जितना हँसा जाय कम है। आज इन सबको गाइड करने के लिये गूर्मे अर्थात् पेशेवर चटोर की जरूरत है।' आज यह बात भले ही हास्यास्पद लगे लेकिन यह हमारे समय का यथार्थ है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं कल की बात के अन्तर्गत प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'पेशेवर चटोर'।



कल की बात – २८०

'पेशेवर चटोर'


प्रचण्ड प्रवीर 


कल की बात है। जैसे ही मैँने घर से बाहर, गली मेँ कदम रखा, मोहन प्यारे मेरी प्रतीक्षा मेँ सामने की दीवार पर लदा मिल गया। मोहन ने उत्साह से कहा, “अभी का समय एकदम सही है। हम लोग दोपहर बारह बजते-बजते लौट आयेँगे।” मैँने उदासी से कहा, “तुम वापस चले आना। मुझे पता नहीँ कितना समय लग जाय। आज सुबह ही मेरा मोबाइल गिर गया। डिस्पले खराब हुआ ही और साथ ही माइक भी काम नहीँ कर रहा है। बेरोजगारी चल रही है इसलिये नया फोन लेना मेरी हैसियत से बाहर है। कहीँ कुछ मरम्मत हो जाय, तभी काम बनेगा। दुर्गा पूजा समाप्त हुए कुछ दिन ही बीतेँ हैँ। आज सोमवार है, इसलिये पता नहीँ बाज़ार खुला होगा या नहीँ।

            

मोहन प्यारे ने बड़ी मासूमियत से कहा, “सोमवार को बड़े व्यापारी दुकान बन्द कर के आराम फरमाते हैँ लेकिन चाट वाले-ठेले वाले खुले होँगे। यही मौका है।” मैँने कोफ्त से कहा, “बीवी से इतना क्या डरते हो? दशहरे के मेले मेँ बीवी-बेटे दोनोँ को चाट खिला देते। खुद भी खा लेते।” मैँने मोहन की दुखती रग पर हाथ रखा दिया था इसलिये वह फट पड़ा, “मेरी बीवी अपने आपको किसी खानसामे से कम समझती है क्या? एक-दो बार हमने उसे प्रकाश चाट भण्डार की चाट खिलाया। मेरा शुक्रिया अदा करने के बजाय कहने लगी कि कितना बेकार बना है। छोला अच्छा नहीँ है। इमली ज्यादा पड़ गया है। पूड़ी कड़क नहीँ है। हम उससे क्या कहते कि तुम भले ठीक-ठाक खाना बना लेती हो पर स्वाद के मामले मेँ मेरे बड़ा शायद ही हिन्दुस्तान मेँ कोई होगा। तुम्हेँ तो कुछ आता-जाता नहीँ है। इन सबके बाद हम उसका स्वाद ले सकते हैँ जो वह नहीँ कर सकती। हमेँ देखो, हम जब सब्जी चखते हैँ तब फौरन बता देते हैँ कि इसमेँ हल्दी कम है या ज्यादा, आलू कम भूना गया है ज्यादा, तेल कम पड़ा है या ज्यादा, प्याज-अदरक-मिर्च सब की मात्रा कितनी है — क्या तुम ये सब बता सकते हो?” मैँने ना मेँ सिर हिलाया और साथ चल पड़ा।

            

मोहन प्यारे आगे कहने लगा, “तुम्हेँ साथ लेने का कारण इतना ही है कि बीवी को शक ना हो। तीन टाइम खाना बना कर खिलाती और बाकी समय चाय-बिस्कुट-नमकीन देती रहती है। उसे पसन्द नहीँ कि हम बाहर का खाना खायेँ। सच्चाई दरअसल वही होती है जो कही ना सके। जो सबको मालूम हो, उसे सामान्य ज्ञान कहते हैँ सच्चाई नहीँ। सच्चाई उस घटना का नाम है जो रहस्य की तरह खुले। हम कह रहे थे कि सच्चाई यह है कि बीवी ठीक-ठाक खाना बनाती है पर जो स्वाद ठेले की चाट मेँ है वह उसके पौष्टिक खाने मेँ कहाँ? बताओ, केवल पौष्टिकता के लिये खाना खाया जाता है या स्वाद के लिये भी? केवल पौष्टिकता के लिये खाना है तो दही भात, जीरा-सत्तू, दही चूड़ा भकोस लो, स्वस्थ भी रहोगे और लाल भी। तुम्हारा मन नहीँ होता है गुपचुप-चाट खाने का?

           

“होता है लेकिन मेरे साथ दूसरी किस्म की समस्याएँ है।” मेरी मायूसी जारी थी तब मोहन मुझे प्रश्नवाचक निगाहोँ से पूछने लगा। मैँने आगे बताया, “गोलगप्पे की दुकान पर आमतौर पर लड़कियाँ खड़ी रहती हैँ और आराम-आराम से देर तक गुपचुप खाती रहती हैँ। या फिर कुछ छोटे बच्चे होते हैँ। उन सबकी भीड़ मेँ मैँ भी दोना ले कर गुपचुप के लिये लाइन लगाऊँ, अजीब-सा लगता है। दूसरी बात यह है कि प्रकाश चाट भण्डार के बगल मेँ अपने दोस्त चन्दन की दुकान है। वह हमेँ चाट खाते देखेगा और दाँत निकाल कर हम लोग को बच्चा समझ कर मुस्कुरायेगा। उसे साथ आ कर चाट खाने का निमन्त्रण भी देँ तो वह आयेगा भी नहीँ, बल्कि वहीँ से हँसता रहेगा। ऐसा एक-दो बार हो चुका है, इसलिये प्रकाश चाट भण्डार जाना मैँने छोड़ ही दिया है। प्रकाश चाट भण्डार के अलावा और कहीँ चाट कोई अच्छा बनाता तो हमेँ मालूम नहीँ।"          





मोहन प्यारे ने सोचते हुए कहा, “चन्दन को हम नहीँ जानते। तुम हमारे साथ चलो तो। अव्वल तो यह होगा कि सोमवार होने के कारण दुकान बन्द होगी। मान लो उसकी दुकान खुली भी हो, तो मेरा नाम ले लेना। चलो भी।”             


मुफलिसी के इन दिनोँ मेँ मोहन प्यारे और हम जब तक चौक बाज़ार मेँ छोटी-सी जगह मेँ बनी प्रकाश चाट भण्डार की दुकान पर पहुँचे, तभी किसी ने मुझे आवाज़ दी। मैँने पलट कर देखा और फिर मोहन प्यारे से कहा, “यही चन्दन है।“ फिर चन्दन के पास जा कर उसके कुछ कहने से पहले मैँने कहा, “यार चन्दन, मेरा मोबाइल गिर कर खराब हो गया है। कोई भरोसे का मरम्मत करने वाला है क्या?            


चन्दन ने एक क्षण सोच कर कहा, “वीरू से बात करके देखो। वह बतायेगा। जबसे मालदीव से लौटा है, तब से हर तरह के खुराफात मेँ उसकी दिलचस्पी रहती है।” मैँने शुक्रिया कहा और आगे बढ़ गया। मोहन ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, “यहाँ चाट बिक रहा है।” मैँने  झिड़क कर कहा,  “नहीँ भाई, चन्दन अभी मुस्कायेगा और बाद मेँ चार लोग के बीच मेरा मजाक उड़ायेगा। कहीँ और चलते हैँ।

           

थोड़ा आगे जाते ही सड़क पर उधर से चहलकदमी करता हुआ वीरू मिल गया। उसने मुझसे सवाल किया, “भाई, कहाँ-किधर?” मैँने उसे भी मोबाइल की परेशानी बतायी। वीरू ने कहा, “मोबाइल ठीक होता रहेगा। चलो, बगल मेँ प्रकाश चाट भण्डार है। वहाँ तुम्हेँ चाट खिलाते हैँ। वहाँ के चाट बनाने वाले को मैँने चाट बनाने की नयी-नयी ट्रेनिङ् दी है।” सुनते ही मोहन प्यारे की बाँछे खिल गयी। मैँने वीरू का परिचय कराते हुए मोहन से कहा, “ये मेरा दोस्त वीरू है, जो पहले मालदीव मेँ होटल मेँ पकवान बनाया करता था। एक बार उसने मोबाइल पर रील मेँ गाना सुना, “घर आ जा परदेसी तेरा देस बुलाये रे”। बस उसी दिन अपना बोरिया-बिस्तर बाँध कर वापस अपने देश लौट आया। ये बहुत अच्छा खाना बनाता है।” मोहन ने तैश मेँ कहा, “मेरा भी परिचय कराओ। तुम क्या कराओगे हम बताते हैँ। हम हुए बेरोजगार ‘गूर्मे’। गूर्मे एक फ्रेञ्च शब्द है, जिसका मतलब होता है वैसा भोजनप्रेमी जो खाना चख कर उसकी अच्छाई-बुराई बता दे।




            

वीरू ने कहा,  “पता है भाई। इसी बिजनेस मेँ हम बहुत काम किये हैँ।” हमने कहा, “मोहन प्यारे, गूर्मे शब्द का अनुवाद केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय ने ‘पेशेवर चटोर’ किया है। वैसे आज पता चल जाये वीरू बढ़िया खाना बनाता है या तुम अपने शौक मेँ माहिर हो या नहीँ।

            

चुनाँचे वीरू, मोहन प्यारे और हम वापस ‘प्रकाश चाट भण्डार’ मेँ आ कर बैठ गये। चन्दन वहीँ दूर से खड़ा हो कर हम सबको देख कर दाँत निकाल कर मुस्कुराने लगा, जैसे कह रहा हो कि बच्चू हमसे छुप रहे थे। यह देख कर मैँने नज़रेँ चुरायीँ पर वीरू ने डपट कर चन्दन को बुला लिया।

            

जब चाट बन कर आया, सबसे पहले मोहन ने भोग लगाया। मोहन प्यारे ने सबको सुनाया, “प्याज और पड़ना चाहिए। सेव थोड़ा-सा और। दही कम दिया गया है। मिर्च ठीक है लेकिन नमक के बजाय काला नमक डालना चाहिये था। बीच मेँ जो वाड़ा डाला है, वह रिफाइण्ड तेल मेँ भूना गया है। पूड़ी आज सुबह का बनाया हुआ है। काबुली मटर अच्छे किस्म का नहीँ है। लाल आलू का टुकड़ा चाट के लिये ठीक नहीँ। इसमेँ सफेद आलू होना चाहिये था। इमली के बजाय नीम्बू-धनिया की खटाई डालने का विचार बहुत ही बेतुका है।”  वीरू हतप्रभ हो कर सुनने लगा। मोहन प्यारे ने हमे सुनाते हुए कहा, “देखो, हम चाट की कमी बता दे रहे हैँ इसका मतलब यह नहीँ है कि हम इसका आनन्द नहीँ ले रहे हैँ। यही तो मेरी कला है। हम बहुत आनन्द ले रहे हैँ किन्तु सवाल हमारी प्रतिभा परीक्षा आ गया है इसलिये कहना पड़ रहा है।

            

वीरू ने मोहन प्यारे को टोक कर कहा, “एक मिनट-एक मिनट। हमेँ ये मोबाइल मेँ रिकॉर्ड करने दो।” जब वीरू ने यह मोबाइल निकाला तब कुछ और लोग मोहन की बात सुन कर अपने मोबाइल से उसका वक्तव्य रेकॉर्ड करने लगे। मोहन का जोश खतम नहीँ हुआ था, वह कहने लगा, “आज के दिन कोई रेस्तराँ मेँ खाने जायेगा और फरमाइश करेगा कि येल्लो दाल दीजिये, ब्लैक दाल दीजिये। किसी को मूंग, मसूर, अरहर पता नहीँ है। उड़द और चना दाल के स्वाद का अन्तर भी नहीँ पता है। ऐसे पढ़े-लिखे लोग पर जितना हँसा जाय कम है। आज इन सबको गाइड करने के लिये गूर्मे अर्थात् पेशेवर चटोर की जरूरत है। इसके लिये हम जल्दी ही अपना यूट्यूब चैनल बनायेँगे।

            

मोबाइल बना नहीँ और फिर जब चाट खा कर हम लौट रहे थे, तब मोहन प्यारे के घर के बाहर उसकी बीवी खड़ी मिली। उसने पूछा, “कहाँ गये थे जी?” मोहन प्यारे ने कहा, “कविराज का मोबाइल खराब हो गया था। उसी के साथ जरा मार्केट गया था।“ उसकी बीवी ने तेज आवाज मेँ हाथ नचा कर बोली, “आ हा हा। झूठ बोलते शरम नहीँ आती? चाट खा कर लौट रहे हैँ। चले हैँ पेशेवर चटोर बनने!” मोहन प्यारे ने हतप्रभ हो कर कहा,  “तुमसे किसने कह दिया?” उसकी बीवी ने कहा, “शहर के यूट्यूब चैनल पर आ रहा था, हमारे शहर की नयी प्रतिभा। पेशेवर चटोर। देखिये मोबाइल पर। वायरल हो रहा है। मेरे सहेली ने भेजा है। कविराज, आप ही इनको उल्टा-सुल्टा खिला के बिगाड़ रहे हैँ?”             


ये समझो और समझाओ, थोड़ी में मौज मनाओ १

दाल-रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ।


            ये थी कल की बात!



सन्दर्भ:   

 

१. गीतकार – राजेन्द्र कृष्ण, चित्रपट – ज्वार भाटा (१९७३)



(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)

टिप्पणियाँ

  1. उपदेशात्मकत कहानी न होते हुए भी बहुत कुछ सीख देती है

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