ख़ान मोहम्मद सिंध की अफगान कहानी 'तमाशा'

रोजमर्रा का काम करने वाले लोगों की अपनी मुश्किलें होती हैं। ऐसा आदमी रोज अपने लिए और अपने घर परिवार के लिए जद्दोजहद करता है। लेकिन उसकी मुश्किलें कम नहीं होतीं। नौकरशाही की संवेदनशून्यता इन मुश्किलों को और भी पेचीदा बना देती है। वैसे भी नौकरशाही का चेहरा काफी कुछ उस पूंजीवाद से मिलता जुलता होता है जिसके यहां संवेदना के लिए कोई जगह नहीं होती। अफगानिस्तान आज भी कबीलाई मानसिकता वाला देश है। गरीबी और जहालत यहां की जैसे पहचान है। इस देश को समूची स्थिति ही मार्मिक है । ख़ान मोहम्मद सिंध ने अपनी इस कहानी के माध्यम से उस गरीब के जीवन को उकेरने का प्रयास किया है जो रोज ही कुंआ खोदने और पानी पीने के लिए अभिशप्त है। मूल रूप से पश्तो में लिखी गई इस कहानी का अंग्रेज़ी अनुवाद एंडर्स विंडमार्क ने किया है, जिसका हिंदी अनुवाद चर्चित अनुवादक और रचनाकार श्रीविलास सिंह ने किया है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं ख़ान मोहम्मद सिंध की अफगान कहानी 'तमाशा'। 'तमाशा' ख़ान मोहम्मद सिंध पश्तो से अंग्रेज़ी अनुवाद: एंडर्स विंडमार्क हिंदी अनुवाद : श्रीविलास सिंह तब साँझ हुए देर ह...