व्लदीमिर मयकोवस्की की कविता 'मेरुदण्ड बांसुरी', मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह

VLADIMIROVICH  MAYAKOVSKY (1893 - 1930)



व्लदीमिर मयकोव्स्की (1893-1930) बीसवी शताब्दी के विश्व के महानतम कवियों में से एक हैं। कवि होने के साथ-साथ वे नाटककार, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक, अभिनेता, कलाकार भी थे। मयकोव्स्की ने विवाह तो नहीं किया लेकिन उनके विवाहेत्तर सम्बन्ध रहे। 'मेरुदण्ड बाँसुरी' मयकोव्स्की की कविता का मूल रूसी से हिन्दी अनुवाद है जिसे प्रख्यात अनुवादक वरयाम सिंह ने किया है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं व्लदीमिर मयकोव्स्की की कविता 'मेरुदण्ड बाँसुरी'



मेरुदण्ड बाँसुरी



व्लदीमिर मयकोवस्की की कविता 
 मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह



(प्राक्कथन)


कविताओं से भरी खोपड़ी
जाम की तरह उठाता हूँ मैं
तुम सबकी सेहत के लिए
जो मुझे पसन्द रहे और आज भी हैं
जिन्हें अपने हृदय की गुफ़ाओं में
देव प्रतिमाओं की तरह सजाए रखा है मैंने।



अक्सर सोचता हूँ मैं
अच्छा नहीं होगा क्‍या
अपने अन्त में लगाना गोलियों का पूर्ण विराम।
कुछ भी हो
आज दे रहा हूँ मैं
अपने संगीत का कार्यक्रम आख़िरी बार।



इकट्ठी करो दिमाग़ के सभागार में,
प्रियजनों की अन्तहीन कतारें।
हँसियों के ठहाके उँडेलो आँखों से आँखों में,
शाही शादियों से सजाओ
इस रात को,
ख़ुशियों से भरो जिस्मों को
भूले न कोई यह रात,
आज मैं बजाऊँगा बाँसुरी -
अपनी रीढ़ की हड्डी।




(1)


पाँवों के पंखों से लाँघता कोसों लम्बी सड़कें
कहाँ जाऊँगा मैं यह नरक छोड़ कर।
किस दिव्य हॉफ़्मान की
अभि‍शप्त तुम आईं कल्पनाओं में?



तंग पड़ गई हैं सड़कें
ख़ुशियों के तूफ़ानों को,
नज़र नहीं आता अन्त कहीं
सजे-धजे लोगों के त्योहार का।
सोचने लगता हूँ जब
बीमार और तपे हुए ख़ून के लोंदों की तरह
टपकने लगते हैं विचार खोपड़ी से।



त्योहारों का रचयिता मैं
किसी का भी ढूँढ नहीं पाता साथ
त्योहारों में शामिल होने के लिए।
गिर पड़ूँगा इसी पल धड़ाम से पीठ के बल,
फोड़ दूँगा सिर निवा की चट्टानों पर।
हाँ, मैंने ही नकारा था ख़ुदा को,
कहा था ख़ुदा है नहीं।
पर ख़ुदा नारकीय गहराइयों से
निकाल लाया बाहर उसे
थरथराने लगते हैं पहाड़ भी जिसके सामने।
और हुक़्म दिया मुझे --
ले, कर प्यार अब इसे।



सन्तुष्ट है ख़ुदा।
आसमान के नीचे ढलान पर



पागलों की तरह चिल्लाता रहा दुखी इन्सान।
ख़ुदा पोंछता है हथेलियाँ।
सोचता है वह -
'
ठहर तू, व्लदीमिर!'



उसे ही तो आया था ख़याल
तुम्हारे लिए पति ढूँढ़ निकालने का।
अब यदि चुपके से पहुँच जाऊँ
तुम्हारे शयन-कक्ष में
महकने लगेंगे ऊनी कम्बल
धुआँ उठने लगेगा शैतान के माँस का।
ऐसा नहीं किया मैंने
बल्कि थरथराता रहा गुस्से में सुबह तक
कि तुम्‍हें ले गए प्यार करने के लिए
मैं बस खरोंचता रह गया चीख़ें कविताओं में।
ख़राब होने लगा मेरा दिमाग़।
क्यों न खेली जाए ताश
क्यों न शराब में सहलाई जाए
मरे हुए दिल की गर्दन।



मुझे ज़रूरत नहीं अब तेरी।
कुछ फ़र्क नहीं पड़ने का,
मालूम है मुझे
दम तोड़ दूँगा कुछ ही क्षणों में।



ओ ख़ुदा,
सचमुच है तू अगर
तूने ही बुना है अगर तारों का आकाश
तूने ही भेजी है अगर
मुझे परखने कि लिए
दिन-ब-दिन बढ़ती यह तकलीफ़
तो पहन न्यायाधीशों का पहरावा।
मेरे आने का तू इन्तज़ार करना!
मैं आ जाऊँगा ठीक वक़्त पर
एक भी दिन की देर किए बिना।
सुनो, ओ उच्चतम अन्वेषणाधिकारी
बन्द कर लूँगा मुँह।
कटे होठों से निकलने न दूँगा एक भी चीख़।
बाँध दो मुझे घोड़े की पूँछ की तरह पुच्छल तारे से,
और निकाल फेंकों
अपनी दाँतों की तरह।
या
जब मेरी आत्मा छोड़ दे यह शरीर
और हाज़िर हो जाए तुम्हारे दरबार में,
नाराज़ तुम
फाँसी के फन्दे की तरह
झुलाना आकाश-गंगा
और झकझोर डालना
मुझ अपराधी को।



चाहो तो टुकड़े-टुकड़े कर डालना मेरे
ओ ख़ुदा,
मैं स्वयं पोंछूँगा तेरे हा‍थ।
सुन इतनी-सी बात
ले जा मेरे पास से इस औरत को
बनाया है जिसे तूने मेरी प्रेमिका?



पाँव के पंखों से लाँघता कोसों लम्बी सड़कें
कहाँ जा पाऊँगा मैं यह नरक छोड़!
किस दिव्य हाफ्मान की
अभिशप्त तुम आई कल्पनाओं में?


मास्को में मयकोव्स्की संग्रहालय



(2)


और आसमान
धुएँ के बीच भूल गया अपना रंग,
और बादल हैं जैसे फटीचर शरणार्थी
मैं उदित हूँगा अपने अन्तिम प्यार में चमकता हुआ
क्षय रोगी के गालों की लाली की तरह।
ढँक दूँगा खुशियों से
उन लोगों की भीड़ के शोर को
जो भूल गए हैं स्वाद अपने घर और आराम का।




सुनो, लोगो,
निकल आओ खाइयों से बाहर।
लड़ लेना बाद में।
अगर वि‍वेकहीन लड़ाई हो भी रही हो
खौलते ख़ून में
बाख़ुस की तरह
क्षीण नहीं पड़ेंगे प्रेम के शब्‍द।
प्रिय जर्मन लोगों,
मुझे मालूम है - तुम्हारे होठों पर




ग्रेटखन है गोयटे की
संगीन पर मुस्कराते हुए
मरता है फ़्राँसीसी।



मुस्कान खिली रहती है
घायल बेहोश यान-चालक के होठों पर।
ओ त्रावियाता
याद आता है चुम्बन में डूबा तुम्हारा चेहरा।
मुझे मतलब नहीं उस गुलाबी गोश्त से
नोंचती आ रही हैं जिसे शताब्दियाँ।
आज लेट जाओ नए पाँवों के पास।
ओ सुर्ख़ी किए लाल गालों वाली
गा रहा हूँ मैं आज तुम्हें।



सम्भव है जब दाढ़ी पर सफ़ेद रंग फेरेंगी शताब्दियाँ
संगीन की धार की तरह
बाक़ी बचोगी
तुम
और एक शहर से दूसरे शहर भगाया जाता हुआ
मैं।
ले जाएँगे समुद्र पार तुम्हें
रात की खोह में छुपी होगी तुम।
लन्दन की धुन्ध चीरते हुए
तुम्हें भेजे हुए मेरे चुम्बन
स्पर्श करेंगे मशालों के होठों का
मरुस्थलों की लौ में
फैलाऊँगा मैं कारवाँ
जहाँ पहरा दे रहे होंगे शेर,
तुम्हारे लिए
हवाओं द्वारा त्रस्त धूल के नीचे
सहारा की तरह
रख दूँगा अपने दहकते गाल।


होठों पर बिठाए मुस्कान
तुम देखती हो
कितना हैं सुन्दर वृषयोद्धा।
और मैं ईर्ष्या को बैल की आँख की तरह
निकाल फेंक दूँगा दर्शक-दीर्घा पर।



घसीट लाओगी पुल तक अपने भुलक्कड़ कदम।
सोचोगी
कितना अच्छा है नीचे।
यह मैं दूँगा सीन की तरह
पुल के नीचे बहता हुआ।
पुकारूँगा, हँस दूँगा, सड़े दाँत दिखाते हुए।
दुलत्ती चलते घोड़े पर बैठी
किसी दूसरे के साथ
तुम लगा दोगी आग
स्‍त्रेल्का या स्कोलिनिकी में
नग्न और प्रतीक्षारत
यह मैं हूँगा चाँद की तरह तरसाता हुआ।



उन्‍हें ज़रूरत पड़ेगी
मुझ ताक़तवर की।
आदेश मिलेगा :
जा, मार आ अपने को युद्ध में,
तेरा नाम होगा
बम से टुकड़ा-टुकड़ा हुए अन्तिम होठों पर।



मैं मिट जाऊँगा मुकुट
या साध्वी हेलेन की तरह।
ज़िन्दगी के तूफ़ान पर लगाम लगाए
मैं हूँ बराबरी का उम्मीदवार
क़ैद के लिए या ब्रह्माण्ड के सम्राट पद के लिए।
सम्राट होना
लिखा है मेरे भाग्य में
मैं हुक़्म दूँगा प्रजा को
सोने के सिक्कों पर तुम्हारा मुखड़ा कुरेदने का।
और वहाँ
जहाँ टूण्ड्रा की तरह फीकी पड़ जाती है दुनिया,
जहाँ उत्तरी हवाओं से
चलता है नदियों का व्‍यापार
हाथों पर खरोंचूँगा लिली का नाम
और चूमूँगा उन्हें कारागार के अन्धकार में।




सुनों लोगो,
तुम जो भूल गए हो आकाश का नीला रंग,
तुम जो बिदक गए हो ढोरों की तरह,
सम्भव है यह
क्षय रोगी के गालों की सुर्खी की तरह
चमक उठा हो इस दुनिया में अन्तिम प्यार।


आत्महत्या के पश्चात मयकोव्स्की


(3)

भूल जाऊँगा मैं - साल, दिन, तारीख़,
बन्द कर दूँगा स्‍वयं को अकेला काग़ज़ के पन्ने के साथ,
दिखाओ अपने करिश्मे, ओ अमानवीय जादू,
यातनाओं से आलोकित शब्दों के।




आज प्रवेश ही किया था मैंने
कि महसूस हुआ
सब कुछ ठीक नहीं है इस घर में।
तुम कुछ छिपा रही थी अपने रेशमी वस्त्रों में,
फैल रही थी ख़ुशबू हवा में धूप की।




'
ख़ुश हो क्या?'
उत्तर में ठण्डा 'बहुत'



'
भय






ने तोड़ दी है वि‍वेक की बाड़।
दहकता हुआ बुखार में
मैं लगा रहा हूँ निराशाओं के ढेर।
सुनो, तुम छिपा नहीं सकोगी यह लाश,
ज्वालामुखी के सिर पर ये भयानक शब्द।
कुछ भी हो
तुम्हारी हर माँसपेशी
भोंपू की तरह दे रही है आवाज़
मर गई, मर गई, मर गई।
नहीं, जवाब दो!
झूठ मत बोलो!




कैसे जाऊँगा मैं वापिस इस तरह?
दो क़ब्रों के गडढ़ों की तरह
खुद आई हैं आँखें तुम्हारे चेहरे पर।
गहरी होती जा रही है क़ब्रें।
दिखाई नहीं देता कोई तला।
लगता है



गिर पडूँगा दिनों के फाँसी के तख़्ते से
रस्सियों की तरह टाँग दिया है मैंने अपना हृदय,
मैं झूल रहा हूँ उन पर
शब्दों के करतब दिखाता।




मालूम है मुझे
प्यार ने घिसा दिया है उसे।
सैकड़ों लक्षणों के आधार पर
लगा सकता हूँ मैं ऊब का अनुमान।
मेरे हृदय में
प्राप्त करो अपना यौवन!
शरीर के उत्सव से
परिचय कराओ अपने हृदय का।
मालूम है मुझे
हर कोई चुकाता है औरत की क़ीमत।
कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा
अगर पेरिस के फ़ैशनेबल कपड़ों के बजाए
तुम्हें पहनाऊँ मैं धुआँ तम्बाकू का।



प्राचीन पैगम्बर की तरह
हज़ारों राहों से ले जाऊॅंगा अपना प्यार।
जिस मुकुट को बनने में लगे हैं हज़ारों वर्ष
इन्द्रधनुष की तरह अंकित है उसमें मेरी पीड़ा के शब्द।
जिस तरह वज़न उठाने के खेल में
पिर की जीत हासिल की हाथियों ने,
प्रतिभाशाली व्यक्ति की तरह
मैंने क़दम-ताल किया है तुम्हारे दिमाग़ों पर।
लेकिन व्यर्थ है यह सब
तुम्हें तो तोड़ नहीं पाऊॅंगा मैं।
ख़ुश हो लो,
हाँ, ख़ुश हो लो,
तुमने कर डाला है अन्त।
अब दुख हो रहा है इतना
कि बस जा सकूँ अगर नहर तक
पूरा सिर दे डालूँगा पानी में।
तुमने दिए होंठ।
कितने भद्दे ढंग से पेश आती हो तुम अपने होंठों से
छुआ नहीं उन्हें कि ठण्डा पड़ जाता हूँ मैं
जैसे कि तुम्हें नहीं
चूम रहा होऊँ मंदिर की ठण्डी चट्टानों को।




खड़ाक खुले किवाड़।
उसने किया प्रवेश,
सड़कों की ख़ुशी से भीगा हुआ मैं
विलाप में टूट गया दो हिस्सों में।




मैं चिल्लाया उस पर।
'
ठीक है चला जाऊँगा।
तेरी जीत हुई,
चीथड़े पहना उसे!
कोमल पंखों जैसे जिस्म पर भर गई है रेशम की चर्बी।
सावधान, कहीं उड़ न जाए तेरी बीवी
बाँध दे उसके गले में हीरों के हार।'
उफ यह रात।
स्वयं ही कसता गया और अधिक निराशाओं को।
थरथराने लगा है कमरे का थोबड़ा
मेरे हँसने और रोने से।




और पिशाच की तरह
तुम से दूर ले जाया गया चेहरा उठा।
उसके गालों पर आँखों की तरह चमक उठीं तुम।
किसी नये ब्यालिक की कल्पनाओं में
आई हो जैसे यहूदी सिओना-साम्राज्ञी।




टेक दिए घुटने यातनाओं के आगे।
सम्राट अल्बेर्त
सारा शहर भेंट कर
उपहारों से लदे जन्म-दिन की तरह खड़ा है मेरे साथ।



सोना हो जाओ धूप, फूल और घास में
बहार हो जाओ, ओ सब तत्त्वों के जीवन।
मैं चाहता हूँ एक ही नशा
कविताओं को पीते रहने का।



ओ प्रिये,
तुम तो चुरा चुकी हो हृदय
हर चीज़ से वंचित कर उसे,
बहुत दुख दे रही हो तुम मुझे।
स्वीकार करो मेरा उपहार।




(इस पोस्ट की सभी तस्वीरें https://srcaltufevo.ru/hi/vladimir-mayakovskii-biografiya-kratko-mayakovskii-vladimir.html  से साभार ली गयी हैं। 
  


वरयाम सिंह

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