भास्कर चौधुरी की कविताएँ
विवेकानन्द ने किसी सन्दर्भ में यह कहा था कि 'श्रेष्ठतम सत्य दुनिया की सबसे
सीधी बातें हैं। इतनी सीधी और आसान जितना कि तुम्हारा होना।' रचना भी वही श्रेष्ठ मानी जाती है
जो आसान तरीके से कठिन
बातों को भी सामने रख दे। भास्कर चौधुरी हमारे समय के ऐसे महत्वपूर्ण कवि हैं जो चुपचाप अपना
काम कर रहे हैं। वे अपनी कविताओं में हमारे समय के सच, हमारे समय की विडम्बनाओं को आसान
तरीके से सामने रख देते हैं। वैसे आसान होना इतना आसान भी नहीं। इसके लिए
साधना की जरूरत पड़ती है। भास्कर की कविताओं को पढ़ कर हम कह सकते हैं कि
उन्होंने इस आसानी को अपनी कविता में साध लिया है। उनकी कविता में भयावह त्रासदी
के बावजूद सीरिया के बच्चों की हँसी है तो चटखने का संगीत भी है। पलाश है
तो दंगों के बीच किशोर है। आइए आज पहली बार पढ़ते हैं भास्कर चौधुरी की कुछ
नई कविताएँ।
भास्कर
चौधुरी की कविताएँ
सीरिया
सीरिया में
बच्चों को हँसना
सिखा रहे
हैं पिता
इधर फूटता
है बम
उधर हँसता
है बच्चा
बच्चों का
हँसना
एक सामान्य
क्रिया है
जो हर किसी
को आकर्षित करता है
अनगिनत
कवियों ने अनगिनत बार कविताओं में
कहा है कि
बच्चों का
हँसना जैसे
फूलों का
खिलना
मेमने की
छुवन
जैसे
तितलियाँ रस खींचती है फूलों से...
क्या अब
लिखेंगे
कविगण
बच्चे की
हँसी पर कविता
कि जब बम
फूटता है तो
बच्चा हँसता
है..
मध्यवर्ग का नौ मिनट
मध्यवर्ग ने
नौ मिनट
लम्बी गहरी सांस ली
नौ मिनट
कपाल भारती किया
नौ मिनट
अनुलोम विलोम
नौ मिनट में
उत्तानपादासन, पवनमुक्तासन, वज्रासन
नौ मिनट
शवासन
नौ मिनट
बत्तीसी दिखा दिखा कर ठहाके लगाया...
मध्यवर्ग ने
नौ मिनट तक टीवी पर
लाखों लोगों
को बच्चों को गोद या कंधे में उठाए और
सर पर
गठरियाँ लादे
शहर से बाहर
सड़क पर पैदल चलते देखा
ये वे थे जो
महानगरों में दिहाड़ी कर अपना और
परिवार का
पेट पेट पाल रहे थे
जो दरअसल
मध्यवर्ग और उच्च मध्यवर्ग के ऐशोआराम का ज़रिया थे
वे सैकड़ों
किलोमीटर दूर अपने गाँव पैदल जा रहे थे
वे भूखे थे
और उन्हें पता नहीं था
कि मंज़िल तक
कब पहुँचेंगे या पहुँचेंगे की भी नहीं
मध्यवर्ग नौ
मिनट तक टीवी पर
यह सब देखते
रहे और मुंह से च्चच्.. च्चच्.. करते रहे
कुछ की
आँखें भी भर आई
ठीक वैसे ही
जैसे -
प्रधानमंत्री
का भाषण सुनते ही भर आती है और
भरी ही रहती
है नौ मिनट तक..
मध्यवर्ग ने
नौ मिनट ताली थाली-घंटे-घड़ियाल बजाए पटाखे फोड़े
नौ मिनट
घरों की बत्तियाँ बुझाई
घी और तेल
के दीये जलाए
और उनके
आलोक में दीप्त
दूर दूर से
एक-दूसरे का चेहरा देखा
साड़ियाँ
देखी, सूट देखे
कुर्ते-पैजामे
सलवार देखे
चुपके से
लिपस्टिक का रंग देखा
मध्यवर्ग के
गाल गुलाबी हो गए और आँखें चमक उठी
ठीक वैसे ही
जैसे-
प्रधानमंत्री
का भाषण सुनते-सुनते
चमकती है
मध्यवर्ग की आँखें और गाल गुलाबी हो जाते हैं..
मध्यवर्ग ने
नौ बज कर नौ मिनट पर नौ मिनट तक कविता लिखी
नौ मिनट के
गीत तैयार किए और
नौ मिनट तक
गाया भी
नौ मिनट तक
उल्लसित होते रहे
वंदेमातरम
कहा भारतमाता की जै बोले
नौ मिनट तक
देशभक्ति की धारा में बहते रहे..
शुतुरमुर्ग
मैंने बंद
कर ली आँखें
और सोचा
शुतुर्मुर्ग की तरह
कि अंधी है
दुनिया
जम्हाई ली
मैंने
और सोचा
चिड़ियाघर में
कैदी शेर की
तरह
उबासियाँ ले
रही है सारी दुनिया
चुप हो गया
मैं
और सोचा शीत-निद्रा
में पड़े
ध्रुवी भालू
की तरह
कि इन दिनों
ऐसी ही है दुनिया...!!
दाँत
मच्छर के
त्वचा पर बैठते ही
या काटते ही
चींटी के
हमारे हाथ
खुद-ब-खुद
उठ जाते हैं
मच्छर या
चींटी को मसलने को उतावले
कॉक्रोच
देखते ही
बेकाबू हो
जाते हैं हमारे पाँव
अगर चूहा
दिखाई पड़ जाए तो
बिजली की फूर्ति
से
उठा लेते
हैं हाथों में चप्पल
और हमारे
होठों के बीच
फसीं सी कोई
गाली
रोकने की
कोशिशों के बावज़ूद
निकल ही आती
है बाहर..
पर उनका
क्या
उन आदमियों
के अदृश्य दाँतों का
जो रोज़ घायल
कर जाते हैं
थोड़ा-थोड़ा
छोड़ जाते
हैं अपना ज़हर
हम
थोड़ा-थोड़ा मर रहे होते हैं
रोज़-ब-रोज़
फिर भी ...!
चटकने का संगीत
तेज़ है हवा
और
बर्फ़िली भी
गहरी है
आग बुझाने
की साजिश
ऐसे में यह
जो गुस्सा है
भीतर
तुम्हारे
आग की शक्ल
में
बुझने न दो
सही है कि
गीली है
लकड़ियाँ
पर यह भी
सही है
कि आग में
जलने से
गीली
लकड़ियों के
सुनाई पड़ती
है
चटकने का
संगीत
तुम सुनो तो
सही
ग़ौर से!!
पलाश
दिनों बाद
निकला सूरज
मोहल्ले के
बच्चों ने
मोहल्ले की
सड़क पर लगाई दौड़
किलकते हुए
बच्चों को सड़क किनारे मिले दो झंडे
एक बच्चे ने
उठाया पंजा
कहा ज़ोर से
इस बार पंजाछाप पंजाछाप
दूसरे ने
उठाया दूसरा झंडा
चिल्लाया
ज़ोर से
देखना कमल
जीतेगा कमल
मेरे पिता जी
कहते हैं
इस बार भी
कमल खिलेगा कमल
कमल पंजा, पंजा कमल चीखते चिल्लाते
बच्चों ने
लगाई दौड़
पंजे की जीत
हुई
और हारा कमल
या इसके उलट..
शोर में गुम
हो गया सब कुछ
धूप कुछ और
खिल गई
मैंने देखा
चुनाव के दुश्वार मौसम में
मोहल्ले के
आखिरी छोर में खड़ा पेड़
दहकते हुए
लाल फूलों से भरा पड़ा था
थोड़ी देर से
समझ आया मुझे
बच्चों के
लिए यह चुनाव का मौसम नहीं
पलाश के
खिलने का मौसम है।
वे तो जैसे मिट्टी थे
मुट्ठी भर
लोगों ने
नफरत के बीज
बोए
खरपतवार और
पेस्ट की
तरह मारे गए
दोनों तरफ
के लोग
वे भी मरे
जो न
खरपतवार थे
न पेस्ट
वे तो जैसे
मिट्टी थे
सिर्फ और
सिर्फ मिट्टी।
दंगों में किशोर
एक
अभी कुछ
दिनों पहले
बच्चे ही तो
थे ये किशोर
माँ-बाबा की
उंगलियाँ थामें
सड़क पार
करते थे
अभी अभी तो
इनके होठों के ऊपर
पतली काली
रेखा जैसी दिखाई पड़नी शुरू हुई है
अब ये चेहरा
छुपाये
आँखें फैलाए
सड़कों पर
हाथ झुलाए घूम रहे हैं
जैसे शिकार
खोज रहे हैं
बड़ों!
ये तुमने
कौन सा ज़हर घोल दिया है
कि इनके
हाथों में किताबों की जगह
ईंट-पत्थर
और बंदूके हैं
कि किसी की
जान लेने पर आमादा ये
जान चली जाए
इसका भी ख़ौफ़ नहीं
कि ये चेहरा
छुपाने का हुनर सीख रहे हैं...।
दो
जाने कहाँ
से निकल कर
इकट्ठा हो
जाती है इतनी घृणा
कि मिनटों
में इमारतें ख़ाक में मिल जाती हैं
दूकानें जल कर
राख हो जाती हैं
कई
ज़िंदगियाँ आखिरी साँस लेती हैं
जाने कहाँ
से निकल कर आती है इतनी घृणा
प्रेम को तो
ऐसे बहते देखा नहीं कभी..
दंगों के बाद बच्चे
मैं देख रहा
हूँ
दंगों के
बाद
बच्चे
न खिलखिला
रहे हैं
न दौड़ रहे
हैं
न खेल रहे
हैं
न लड़-झगड़
रहे हैं
न गलबहियाँ
कर रहे हैं
न बतिया रहे
हैं
बच्चे रेंग
रहे हैं..
सुनो बड़ों
सुनो
कान खोल कर सुनो
-
बड़ों की
दुनिया में
बेहद ख़तरनाक
है
बच्चों का
रेंगना..
राजा
राजा कभी-कभार
दिखाई पड़ता था
महल के बाहर
पहाड़ वाले
मंदिर पर या
पाताल में
महरानी के
साथ पूजा अर्चना करते हुए
राजा
लाव-लश्कर के साथ
आखेट पर
जाता
किसी उत्सव
में नाच-गाने के मौक़े पर
मल्ल-युद्ध
देखता राजा
सिंहासन पर
बैठे पाँव पर पाँव धरे
इठलाता
मुट्ठीभर
लोग - राजा के मंत्री सिपहसालार
'फलाना' महाराज की - कहते
बदले में
जनता भूखी-नंगी
जयकारा
लगाती
आज राजा
दिखाई देता है
घर भीतर और
बाहर भी
चौबीसों
घंटे
टीवी के
परदे पर
बड़े-बड़े होर्डिंग्स
में
मोबाइलों
में अखबारों और किताबों में
अलग-अलग वेषभूषा
में
अलग-अलग
मुद्राओं में ...
राजा आज
सचमुच सर्वव्यापी है
तब राजा
जनता की पंहुच से सहस्त्रों योजन दूर था
और आज
मंगल ग्रह
का निवासी है।।
अमरीका
अमरीका का
मुंह बड़ा है
व्हेल की
तरह
शार्क की
तरह
तेज हैं
उसके दांत
अमरीका कई
छोटी बड़ी मछलियाँ
एक बार में
ही गड़प कर जाता है
और जब अपच
होने लगती है तो
कै कर देता
है कुछ क्षत विक्षत मछलियाँ -
मछलियाँ
जैसे -
सीरिया
इराक
अफगानिस्तान...
कभी-कभार
फंसी रह
जाती है
अमरीका के
दांतों के बीच
भारत जैसी
मछली
जिसे वह
मनमाफ़िक कुरेदता रहता है..
काली लड़की
(बारहंवी की छात्रा प्रियंका के
लिए)
उस काली
लड़की को घेर कर
यह जो
लड़कियाँ खड़ी हैं
सब के सब
गोरी हैं
न तो काली
लड़की के बाल
घुंघराले
हैं किसी ब्राजिलियन
फुटबॉल
खिलाड़ी की तरह
न अमरीका के
डब्ल्यु डब्ल्यु ई लड़ाके की तरह मजबूत
उसके
बाइसेप्स हैं
वह कोई
कमांडो भी नहीं है
जिसने बचाया
है किसी गोरी लड़की को
बदमिज़ाज़ और
बददिमाग़ लड़कों की भीड़ से
काली लड़की
जब बात करती है
तो उसके
दांत मोतियों से चमकते हों
वह कोलगेट
पेस्ट इस्तेमाल करती हो
ऐसा कुछ भी
नहीं है
पर यह सच है
उस काली
लड़की को घेर कर
यह जो
लड़कियाँ खड़ी हैं
सब के सब
गोरी हैं...
गोरी
लड़कियों के साथ-साथ
काली लड़की
की भी
बारहवीं
कक्षा का परिणाम आया है
काली लड़की
जिसके घर का अर्थतंत्र
आज भी
गड़बड़ाया है
अर्थशास्त्र
में उसने सौ में से सौ अंक अर्जित किए हैं...
स्लो मोशन
स्लो मोशन
में हो रही है बारिश
हमारे कंधे
झुके हुए हैं
बाजुएं लटकी
हुईं हैं
सर झुका
निकली हुई
तोंद
सर पर छाता
ताने हम
स्लो मोशन
में चल रहे हैं
थोड़े थोड़े
अंतराल के बाद
ज़रा सा
गर्दन हिला
इधर-उधर देख
लेते हैं
नीचे फिसलती
पेंट को
ऊपर खींच
लेते हैं
इत्मिनान कर
लेते हैं
कहीं नंगें
तो नहीं हो गए हम?
हम स्लो
मोशन में चल रहे हैं
कहीं दूर से
बलत्कृत
लड़की की चीखें सुनाई पड़ते ही
आँखें आधी
मूंद लेते हैं
दायें कान
में ब्लूटूथ से चलने वाला
स्पीकर लगा
लेते हैं
कोई भजन या
स्लो मोशन
में चलने वाला
संगीत लगा
लेते हैं..
हम स्लो
मोशन में चल रहे हैं
और कल्पना
में
ओलिंपिक के
मैदान में
देश के
तिरंगे को
हिमा दास के
हाथों में
तैरता हुआ
देख रहे हैं...
प्रार्थना
वे
प्रार्थना करते हैं कि उन्हें
धनधान्य की
प्राप्ति हो
उनका
व्यापार बढ़े
वे प्रार्थना
करते हैं कि उनके बच्चे
फूले फले
कक्षाओं में
अव्वल आएं
प्रतियोगी
परीक्षाएं पास कर लें
बड़े-बड़े
पैकेजों में नौकरी पाएं
वे
प्रार्थना करते हैं कि
उनके
बुजुर्ग
जो लम्बे
समय से बिस्तर पर हैं
जो उन पर
बोझ बन चुके हैं
जल्द से
जल्द मर जाएँ
उनके
बुजुर्गों को मोक्ष मिले
उन्हें मिले
पुण्य
वे ऐसी ही
प्रार्थनाएं करते हैं
वे पार्थना
के लिए प्रार्थना करते हैं
वे
प्रार्थनाओं पर प्रार्थना करते रहते हैं
उनकी
प्रार्थनाएँ -
अनगिनत और
अनन्त काल तक चलने वाली होती हैं ...
वे
प्रार्थनाएं करते हैं
उनकी
प्रार्थनाएं सुनी जाती हैं
इसलिए वे और
प्रार्थनाएं करते हैं
वे
प्रार्थनाएं करते हैं और
झूठ और फरेब
से कमाए पैसों का
एक छोटा सा
हिस्सा
मंदिरों
मस्जिदों गुरुद्वारों में दान करते हैं और
दानवीरों और
नामदारों की लिस्ट में
अपना नाम
जुड़वा लेते हैं
वे
पंडो-पुरोहितों को घूस दे कर
दर्शनाभिलाषियों
की
किलोमीटर से
लम्बी लाइन में लगे बगैर
सीधे दर्शन
पा लेते हैं
इस तरह वे
पुण्य के भागी बनने वालों में भी
अव्वल रहते
हैं..
वे हाथ
जोड़ते हैं
आँखें बंद
करने का ढोंग करते हैं और
प्रार्थनाएं
करते हैं
उनकी
प्रार्थनाएं सुनी जाती है
इसलिए वे और
प्रार्थनाएं करते हैं..
वे भी हाथ
जोड़ते हैं
जो मेहनतकश
हैं
जो भूखे हैं
जिनके पास
तन ढकने को एक ही कपड़ा है
जिनके
बच्चों के सिर बड़े हैं
हाथ पतले और
पेट फूले हैं
जिनके
बुजुर्ग उन पर बोझ नहीं है
वे हाथ
जोड़ते हैं
उनकी
प्रार्थनाओं में शब्द या तो होते ही नहीं
या बहुत कम
होते हैं जैसे-
भात दे या
रोटी दे..
पर उनकी
प्रार्थनाएँ न आदमी सुनते हैं और न
तैंतीस करोड़
देवी-देवता...
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि
विजेन्द्र जी की हैं।)
सम्पर्क
मोबाईल : 8319273093
सभी कविताएँ गहन संवेदना लिये हुए.... कथ्य और शिल्प में उत्तम .... कवि को बधाईयाँ ....
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया भाई आपने कविताएँ पढ़ीं और उस पर प्रतिक्रिया दी। हार्दिक आभार।
हटाएंबहुत सुंदर कविताओं का संग्रह।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंस्थितियों से साक्षात्कार कराती कमाल की कविताएं
जवाब देंहटाएंबधाई
बहुत बहुत धन्यवाद कविताओं पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए।
हटाएंबहुत ही सुंदर कविताएँ।मर्म और विचार कहीं भी अदृश्य नहीं।हर शब्द औ पंक्ति सार्थक।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया परिहार जी।
हटाएंकाली लड़की और स्लो मोशन दोनों अच्छी कविताएं हैं हो सकता है ऐसी ही कविताएं मुझे अच्छी लगती है साधुवाद
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया भैया।
हटाएंयहाँ प्रस्तुत भास्कर चौधुरी की सभी कविताएँ अपने समय से संवाद करती है ! यह कविताएँ भास्कर चौधुरी के कवि को और आगे ले जाती हैं ! भास्कर का काव्य फलक निरन्तर विस्तृत होते जा रहा है ,यह स्पष्ट होता है ! इस प्रस्तुति के लिए "पहली बार" को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद भाई रजत सारगर्भित और आत्मीय टिप्पणी के लिए।
हटाएंबहुत ही बेहतरीन कवितायें सर जी।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कृष्ण कुमार चंद्रा जी।
हटाएंयह मेरा प्रिय ब्लॉग है। कुछ व्यस्तता के चलते इधर महीनों बाद आना हो सका। संतोष भाई जी, इन कविताओं के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंयह कविताएँ हमारे समय की पड़ताल करती हुई सार्थक हस्तक्षेप करती हैं। भास्कर चौधरी जी को इधर जब भी पढ़ा, और पढ़ने की इच्छा हुई। उन्हें और आपको खूब शुभकामनाएँ...
-कमल जीत चौधरी
बहुत शुक्रिया भाई कमलजीत जी इस आत्मीय प्रतिक्रिया के लिए।
हटाएंमित्र सूर्य प्रकाश जीनगर की प्रतिक्रिया...
जवाब देंहटाएंनमस्कार भाई साहब।पहली बर ब्लाग पर आपकी ताज़ा कविताएं पढ़ी । बहुत सुंदर कविताएं। वैश्विक परिदृश्य ,समाज और जीवन की तमाम विडंबनाओं के साथ सच को सामने लाने का साहस अद्भुत लगा। सीरिया ,काली लड़की , शतुरमुर्ग और सभी कविताओं का कहन , शिल्प सौंदर्य बेजोड़ बन पड़ा है। विवेकानंद के विचार से शुरू करते हुए लेख में जो बात कही गई है सटीक कही गई है। आपकी विश्व दृष्टि , रचनात्मक कौशल एवं श्रम भावना को मेरा सलाम। मेरी शुभकामनाएं ।
सूर्य भाई का आभार।