विजेंद्र
विजेंद्र जी हमारे समय के न केवल एक बड़े कवि हैं अपितु वे एक बेहतर चित्रकार एवं विचारक भी हैं. हम सब ‘कृति ओर’ में उनके सम्पादकीय आलेख पहले से ही पढ़ते आ रहे हैं जो हमेशा एक नए तरीके से सोचने के लिए हमें बाध्य करते हैं. प्रस्तुत आलेख में मार्क्सवाद की विवेचना करते हुए विजेंद्र जी ने यह साबित किया है कि आज 21 वी सदी में मार्क्सवाद ही एक मात्र ऐसा रास्ता बचा है जो हमें सामंती पूँजीवादी नारकीय जीवन से उबार सकता है। तो आईये पढ़ते हैं विजेंद्र जी का यह चिंतनपरक आलेख इक्कीसवी सदी और कार्ल मार्क्स समाजवादी सोवियत संघ के दुर्भाग्यपूर्ण पतन के बाद दो तरह के लोगों को खुशी हुई होगी। एक तो पथभ्रष्ट- मौकापरस्त-मार्क्सवादी-दुनियादार लोग। उन्हें यह कहने का मौका मिला कि वे दूरदृष्टि संपन्न हैं। अतः समाजवादी ढाँचे के खसकने से पहले ही उन्होंने मार्क्सवाद से अपने हाथ धो लिये। हिंदी में सत्तर के आस पास मार्क्सवादी कहे जाने बाले प्रमुख आलोचक नामवर सिंह ने मार्क्सवाद त्याग कर ‘ अमरीकी नई समीक्षा ‘ का रूपवाद अपना लिया था। यह एक प्रकार से एक तथाकथित मार्क्सवादी द्व...