मधुमिता की कविताएँ

हरेक पितृसत्तात्मक समाज की एक बड़ी दिक्कत यह होती है कि वह अपने समाज में स्त्रियों को उतनी स्वतन्त्रता नहीं दे पाता जिसकी वे हकदार होती हैं। पुरुष समाज उन पर इतने प्रतिबन्ध आरोपित कर देता है कि वे उससे उबर नहीं पातीं। ऐसे समाज में स्त्रियों की स्थिति प्रायः दोयम दर्जे की होती है। इस स्थिति से उबरने के लिए स्त्रियों को खुद संघर्ष करना होता है। यानी कि अपनी लडाई खुद लड़नी होती है। यह सुखद है कि आज के साहित्यिक जगत में स्त्रियाँ अपनी बातों, परेशानियों और तकलीफों को खुल कर अपनी रचनाओं में व्यक्त कर रही हैं। साहित्य में आज जितनी स्त्री उपस्थिति पहले कभी नहीं थी। कविता की दुनिया में अभी बिल्कुल नयी मधुमिता की रचनाओं में स्त्री स्वर मुखर रूप में दिखायी पड़ता है। मधुमिता लिखती हैं – “नियम अपने साथ/ एक नहीं/ दो नहीं/ तीन भी नहीं/ कई नियमों को समेटे रहता है/ और बात अगर लड़की की हो/ तो फिर नियम भीतर नियम।” आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं मधुमिता की कविताएँ। मधुमिता की कविताएँ मशीनी मानुष कितना सार्थक आज यह विकास जिसमें ...