पंखुरी सिन्हा द्वारा कुछ बल्गेरियाई कवियों की अनूदित कविताएं
पंखुरी सिन्हा न केवल एक बेहतर कवयित्री हैं बल्कि उम्दा अनुवादक भी हैं। कई एक महत्त्वपूर्ण विदेशी कवियों के कविताओं का सहज अनुवाद उन्होंने पहले भी किया है जिसे हम पहली बार पर पूर्व में भी प्रस्तुत कर चुके हैं। इस बार उन्होंने कुछ चर्चित बल्गेरियाई कवियों इवान हृसतोव, कवयित्री क्रिस्टीन दिमित्रोवा, कवि पेतर चूखोव और टॉम फिलिप्स की कविताओं का हिन्दी अनुवाद किया है। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं पंखुरी सिन्हा द्वारा कुछ बल्गेरियाई कवियों की अनूदित कविताएं।
पंखुरी सिन्हा द्वारा कुछ बल्गेरियाई कवियों की अनूदित कविताएं
इवान हृसतोव की कविताएं
रिक्टर स्केल पर
(व्लादिमीर लेवचेव के लिए)
और हम बैठे थे
वहाँ कहीं
अपने छोटे से देश में
छोटे से पड़ोस में अपने
अपनी अपार्टमेंट बिल्डिंग में
हम बैठे थे चुपचाप
और पी रहे थे!
और फिर हमने बातें की!
हमने बातें की
एलेन गिंसबर्ग
और चार्ल्स बुकोवस्की के
बारे में, और बारे में
जैक केरौआक के
और विलियम बरोज़ के
बारे में भी! हमने बातें की
साठ के दशक के बारे में
अपने अपने प्यार
और अपने अपने
अमेरिका के बारे में!
और अचानक
धरती हमारे नीचे की
हिल गई!
क्योंकि हमने दुबारा
नए अंदाज़ में
सजा दिये थे
दुनिया भर के प्रायद्वीप
मूल से बहुत भिन्न बना कर!
व्लादो! और इसलिए
भगवान ने सजा दी हमें!
स्नीकर्स
स्नीकर्स से मेरी मुलाकात
मिनसोटा के एक घर के
मुख्य दरवाजे के बाहर हुई!
(दरअसल, अमेरिका में
लगभग सभी कुत्तों का नाम
स्नीकर्स रख दिया जाता है
इसलिए आप के लिए कठिन होगा
इसकी ठीक ठीक कल्पना
कर पाना! लेकिन फिलहाल
वह सबसे ज़रूरी बात नहीं है!)
जाड़ों की हल्की धूप से
गर्माया, वह मेरे लिए ले आया
एक छोटा सा रबर बॉल!
मैने बॉल को फेंका और
स्नीकर्स उसे वापस ले आया!
एक बार, दो बार, कई कई बार!
थोड़ी दूर, फिर और दूर!
अचानक मैने देखा
वह रुक गया, एक बिन्दु पर
और नहीं गया उससे आगे
उससे दूर, ले आने को बॉल!
डगलस ने बताया मुझे
कि वहाँ मौजूद थी
एक इलेक्ट्रिक फेंस
स्नीकर्स को बचाने के लिए
पास के हाई वे से!
वह करीब महसूस हुआ मुझे
मेरा दोस्त
अपने अदृश्य जेल में!
क्रिस्टीन दिमित्रोवा |
कवयित्री क्रिस्टीन दिमित्रोवा की कविताएं
कभी फिर साथ
अपने भीतर लिये चलती हूँ मैं
दिन ऐसे, जिनमें अस्तित्वहीन
हो जाती हैं, मेजे, कुर्सियां
और रोशनी जो निकल चुकी है
इस दुनिया से बाहर
अरसा पहले!
वहां मैं दोपहर का भोजन
करती हूँ, अपने प्रिय जनों के साथ!
पकड़ाती हूँ मैं अपनी माँ को
नमक का डब्बा, नमक नहीं
मुझे चाहिए थी, काली गोल मिर्च
धन्यवाद!
बहुत उड़ेल दिया है तुमने
कुछ ले लो वापस!
ज़रूरत नहीं, ठीक है
पिता मेरे, जब तुम जाओगे
मत करना जल्दबाजी
कोई हड़बडाहट नहीं
इन्तज़ार करते हैं तुम्हारी
दादी का, वैसे कब जा रहे हैं
आप? क्या पहले जायेंगे आप?
वे सब आराम से हैं
सहज, बिना बहुत प्रयत्न किए
करो कुछ हरकतें!
बार बार, वे नाचते हैं
वह नाच! जो नाचा जा
चुका है, पहले भी
और मैं भी हूँ शामिल!
नाच रही हूँ मैं भी
और मैं, और मैं
मुझे भूलना मत!
तुम और मैं
लोग दाखिल हो जाते हैं
तुम्हारे दिमाग के भीतर
और परेशान करते हैं तुम्हें
तुमने बताया था मुझे
हाथों के वाजिब, अनुकूल
इशारों के साथ!
अपनी तर्जनी से
छूते हुए अपना माथा!
आँखो से जैसे थामे
अपनी सारी बुद्धि!
और मैंने सोचा
कितनी आक्रोश भरी है
वह दुनिया, जिसमें तुम
रहते हो! लड़ते हुए
समुद्री राक्षसों
सांपों और आदमी जैसे
बनाए मशीनों से
जिनकी है अदभुत कौतूहल
भरी फितरत और गले मिलने
को आतुर हैं जिनके धड़!
और जो अन्ततः चाहते हैं
तुम्हारे साथ मैत्री!
और कितनी बंधी सिमटी है
वह दुनिया, जिसमें मैं
रहती हूँ, खुली फिर भी बन्द
परागों से भरी, जिन्हें बिखेरा
जा सकता है, पंखो से भरी
जिन्हें चुना जा सकता है!
अंतहीन शब्दोँ, चिट्ठियों वाली
जिनमें शुरु हो रही होती हैं
अनेकों खुशियों से भरी
बैठकें!
तुम्हारे बिना मैं हवा हूँ
गुब्बारे की! एक मुँह बिना
जीभ का, एक जीभ बिना
घंटी की, एक अक्षर बिना
भाषा का! फेफड़ा बिना
हवा का! और साथ मिल कर
हम मचाते हैं, ढ़ेर सारा शोर!
पेतर चूखोव की कविताएं
चुनाव
मैं खड़ा होना चाहता हूँ कैमरे
के दाहिनी तरफ!
ऐसी चीज़ो पर निर्भर है
उसके चेहरे का धूप में
होना, दरअसल, आने वाले
बीस सालों के लिए!
और ऐसी ही चीजों पर
निर्भर है, कि उसकी मुस्कुराहट
उड़ेगी या नहीं, हवा में!
जो हर वक्त खेलती है
उसकी स्कर्ट के साथ!
और निर्भर है कि वह
मुस्कुराहट रहेगी या नहीं
गर्माहट में भीगी हुई
घरेलू बिल्ली की तरह
जो हमेशा होती है
हाथ भर की दूरी पर!
ऐसी बातों पर निर्भर है
उसका वह अंदाज़
जिससे संवारती है
वह अपने बाल
जो गिरते हैं उस किताब से
जिसे पढ़ रहा होता हूँ मैं
शाम को सोने से पहले!
या कभी जब मेरी आँखें
थक कर जवाब दे चुकी होंगी
आउट ऑफ़ चार्ज बैट्री की तरह
मैं सोचूंगा, मैं सोचूंगा
ईश्वर के बारे में
जो देखता है मुझे
इतना खूबसूरत!
छह हाइकु
1
सुबह की धुँध
कोई नहीं देखता
एक गिरता हुआ पत्ता
2
लावारिस खिलौना
कब्र के पत्थर की बगल में
शरद की शाम
3
ट्रेन बजाती है सीटी देख कर चाँद को
पानी के जमाव में
उठतीं हैं लहरें !
4
रात का तूफान
मैं सोच रहा हूँ
आल्मारी की गुडियों के बारे में
5
ठंडी हवा
फलों की कटोरी के तल में
एक पत्थर!
6
गिरता पत्ता
मैं उकेरता हूँ
परिवार का एक वृक्ष!
टॉम फिलिप्स (चर्चित ब्रिटिश- बल्गेरियाई कवि) की कविताएं
बाल्कन में एक सितंबर
ट्रकों बसों की कतारें
आती हुई, लिये
जख्मी लोगों को!
एक ड्रेसिंग स्टेशन
स्मौल मैसेडोनिया में!
बार-बार दिखाई पड़ते हैं
जले हुए जंगल, लैंडस्केप
और हम पार कर रहे हैं
एक बार फिर, विवादित इलाका
जहाँ से बहुत दूर नहीं
शवों के ढ़ेर भेजे जा
रहे थे घर, और होना था
मुआयना उनका
उस युद्ध में
जिसे सब युद्धों को
खत्म करने वाला युद्ध
साबित होना था!
मरीजों के जख्मों की अथक
शिनाख्त, इलाज के लिए!
देख लेने पर एक बार शायद
यह पैलेट बन जाता है
अपरिहार्य!
धुँधले काले, पीले भूरे पहाड़
हटते हैं जैसे पीछे
किसी जीत की संभावना की ओर!
परेडो और झंडों से
कहीं ज़्यादा कुछ लगा
उस संभावना के ज़िंदा
रहने के लिए!
ऐसा नहीं था कि बन्द दीवारों के
पीछे के गूलर के पेड़
बता रहे थे बहुत कुछ
एक ऐसे दृश्य का हिस्सा होते
जो हमें ले चलता है
ठीक, उतना पीछे
उस आस्था से
जो बना सकती है
चीज़ों को समझने लायक
कम से कम, सतही तौर पर!
सड़क किनारे एक दुकान पर
वो बात कर रहे हैं फिर से
नक्काशियों और झगड़ों की!
या फिर यही अनुमान लगा रहे हैं हम! उतने ही अपरिचित हैं
हम भी, जितने तुम थे
कीचड़ और गर्मी में
बन्दूकों की बेरहमी से घिरे हुए!
प्रतिध्वनियां जिसकी
प्रतिध्वनियां जिसकी सुनाई
देती हैं, छिटपुट लड़ाईयों की
खबरों में, सरहद से
बहुत ज़्यादा दूर नहीं!
दखल देती बीच की ज़मीन
चटकती और छिटकती है
उड़ती, बिखरती है
खराब हो गए रंग की तरह
एक सतह फफोलों से
भरी हुई!
कुछ और है, ढूँढ लेने लायक
इस वातावरण में दृष्टिगोचर
इसकी हम ज़रूर कर सकते हैं
आशा! पँक्तियों और कतारों के बीच
ग्रह सरकते हैं
शाम के धुंधलके में--हमारी तरह!
जबकि यह व्यक्ति चमकता है
और चमकाता भी, अपनी मशाल
हमारे पासपोर्ट के आर पार!
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