दीपावली पर हिन्दी कविताएं 

 


 

 

दीपावली पर हिन्दी कविताएं 



महादेवी वर्मा




महादेवी वर्मा 


सब बुझे दीपक जला लूं ! 


सब बुझे दीपक जला लूं ! 

घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूं !


क्षितिज-कारा तोड़कर अब 

गा उठी उन्मत्त आंधी,

अब घटाओं में न रुकती

लास-तन्मय तड़ित बांधी,

धूलि की इस वीणा पर मैं तार हर तृण का मिला लूं !



भीत तारक मूंदते दृग

भ्रांत मारुत पथ न पाता,

छोड़ उल्का अंक नभ में

ध्वंस आता हरहराता

उंगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूं !



लय बनी मृदु वर्तिका 

उर स्वर जला बन लौ सजीली,

फैलती आलोक-सी 

झंकार मेरी स्नेह-गीली, 

इस मरण के पर्व को मैं आज दीपाली बना लूं !!



देखकर कोमल व्यथा को

आंसुओं के सजल रथ में,

मोम-सी साधें बिछा दी

थीं इसी अंगार-पथ में, 

स्वर्ण हैं वे मत कहो अब क्षार में उनको सुला लूं !



अब तरी पतवार ला कर 

तुम दिखा मत पार देना, 

आज गर्जन में मुझे बस 

एक बार पुकार लेना!

ज्वार को तरणी बना मैं 

इस प्रलय को पार पा लूं

आज दीपक राग गा लूं !


सोहन लाल द्विवेदी



सोहन लाल द्विवेदी


जगमग


हर घर, हर दर, बाहर, भीतर, 

नीचे ऊपर, हर जगह सुघर, 

कैसी उजियाली है पग-पग, 

जगमग जगमग जगमग जगमग !


छज्जों में, छत में, आले में, 

तुलसी के नन्हें थाले में, 

यह कौन रहा है दृग को ठग ? 

जगमग जगमग जगमग जगमग !


पर्वत में, नदियों, नहरों में, 

प्यारी प्यारी सी लहरों में, 

तैरते दीप कैसे भग-भग! 

जगमग जगमग जगमग जगमग!


राजा के घर, कंगले के घर

हैं वही दीप सुंदर सुंदर! 

दीवाली की श्री है पग-पग,

जगमग जगमग जगमग जगमग !


त्रिलोचन



त्रिलोचन


दीप जलाओ


इस जीवन में रह न जाए मल 

द्वेष, दंभ, अन्याय, घृणा, छल 

चरण चरण चल गृह कर उज्ज्वल 

गृह गृह की लक्ष्मी मुसकाओ


आज मुक्त कर मन के बंधन 

करो ज्योति का जय का वंदन 

स्नेह अतुल धन, धन्य यह भुवन 

बन कर स्नेह गीत लहराओ


कर्मयोग कल तक के भूलो 

जीवन-सुमन सुरभि पर फूलो 

छवि छवि छू लो, सुख से झूलो

'जीवन की नव छवि बरसाओ


यो अनंत के लघु लघु तारे 

दुर्बल अपनी ज्योति पसारे 

अंधकार से कभी न हारे 

प्रतिमन वही लगन सरसाओ


नादिर शाहजहांपुरी



नादिर शाहजहांपुरी


मांगना काम मुझ सवाली का


मांगना काम मुझ सवाली का 

बख्शना तेरी जात ए आली का 

क्यूं गिराया है अपनी नजरों से 

हुक्म कर दे मिरी बहाली का 

तू ही फूल है जो है महबूब 

पत्ते पत्ते का डाली डाली का


'बात जो भी कहो वो साफ कहो 

काम किया फज्ल-ए एहतिमाली का 

जल बुझंगा भड़क के दम भर में 

मैं हूं गोया दीया दिवाली का

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