रोहित ठाकुर की कविताएं


रोहित ठाकुर


एक सवाल कवि के मन में भी अक्सर उठता रहता है कि कवि के मायने क्या होते हैं? एक कवि को किस तरह परिभाषित किया जा सकता है। इसी क्रम में 'कवि' को ले कर दुनिया भर के कवियों ने कई कविताएँ लिखी हैं। युवा कवि रोहित ठाकुर भी इस सवाल से जूझते हैं और कवि शीर्षक से कविताएँ लिखते हैं। इस क्रम में उनका मानना है कि कवि तो वही जो पहले एक बेहतर इंसान हो। वे लिखते हैं '
आकाश को निहारते हुए चिड़िया हो जाना/ धरती को निहारते हुए फूल/ मनुष्य को निहारते हुए अनाज का दाना/ भाषा को नहीं दुःख को समझना/ बहस में नहीं प्रेम में शामिल होना/'।  
 
आज की पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि चित्रकार प्रयाग शुक्ल की हैं। प्रयाग जी की पेंटिंग्स जैसे उनकी कविताओं का ही एक प्रतिरूप हैं। कविता से पेंटिंग और पेंटिंग से कविता में ये आवाजाही उनके यहाँ निरन्तर मिलती है। सहज, सरल और संवेदना से भरी हुई ये पेंटिंग्स जैसे हमारे आस पास के जीवन, हमारे मनोभावों को सहजता से उकेरती हैं।
 
आज पहली बार पर प्रस्तुत है रोहित ठाकुर की कविताएँ। 
 
 




रोहित ठाकुर की कविताएं





बहन  


जीवन में स्वयं के पराजय का दुःख 
उतना कभी नहीं रहा 
जितना कभी बहन के उदास चेहरे को देखने भर से हुआ 
मैं उन सभी आन्दोलनों में शामिल हुआ 
जो ला सकती थी बहन के चेहरे पर खुशी 
कई बार बहन के घर से लौटते समय 
बहन के साथ उसकी बेटी भी रोईं 
बहन जिस नाम से पुकारती है मुझे 
उसी नाम से उसकी बेटी अब पुकारती है 
उसी नाम से दोनों रोते हुए 
रोकते हैं हर बार 
मैं चाहता तो पेड़ की तरह वहीं खड़ा रहता 
पर मनुष्य की तरह दौड़ता रहा 
बहन के आँसुओं ने उन स्थानों को नम किया 
थक कर जहाँ मैं खड़ा हुआ 
 
 

 
 
घर - 1

 
हम चार मित्र थे 
पटना में साथ रहते थे 
हम घर जाते थे 
लौटते समय 
साथ लाते थे 
खाने की कुछ चीजें
हम खाते 
और 
कल्पना करते थे 
एक - दूसरे के घर की 
घर से दूर 
हम प्रवेश करते थे कई घरों में

 
 
 
 
घर  - 2

 
कई लोग 
चींटियों की तरह 
प्रयत्नशील होते हैं 
यत्न करते हैं 
मधुमक्खियों की तरह 
चमकते हैं 
जुगनूओं की तरह 
रेल बदलते हैं 
बस पर सवार होते हैं 
चलते हैं कुछ दूर पैदल 
गिलहरीयों की तरह दौड़ते हैं 
घर पहुँचने के लिए 
 
 
 
 

प्रकाश वर्ष की दूरी तय कर आया हूँ  
 
 

कितने प्रकाश वर्ष की दूरी
तय कर आया हूँ 
अनगिनत तारों से मिला 
पर बित्ते भर की छाँव नहीं थी कहीं  
बैठ नहीं सका 
आधे रास्ते एक चिड़िया
आकर बैठी काँधे पर 
गाने लगी पेड़ों के गीत 
मैंने याद किया अपने घर को 
उस पेड़ को याद किया 
घर छोड़ कर जाने के बाद 
माँ को दिलासा देने के लिए 
जो वहीं खड़ा रहा  
 
 
 
 

घर की भीत पर निशान छोड़ जाएगा पानी


इस साल पानी घर की भीत पर 
निशान छोड़ जाएगा 
महुआ का पेड़ झुक गया है 
घर के दरवाजे पर 
बारिश होती रही दिन - रात 
कुल बारह दिन 
माँ  दीवार पर रेखाएँ खींच देती है
घर के लोग गिन कर सिहर उठते हैं 
हमारी स्मृतियों में 
नाव उलटने के कई किस्से हैं 
कोई न कोई बह जाता था आस - पड़ोस का
बारिश की आवाज कितनी भी तेज हो 
सुन ही लेते थे रोने की आवाज 
पानी में गर्दन तक डूबा एक आदमी 
आवाज दे रहा है 
हम उस आदमी को बचा नहीं पाए 
उसकी आवाज कभी-कभी 
हमारे पैरों में लिपट जाती है 
हम डूबने लगते हैं पानी में 
 
 

 
 
कवि  
 

आकाश को निहारते हुए चिड़िया हो जाना 
धरती को निहारते हुए फूल 
मनुष्य को निहारते हुए अनाज का दाना 
भाषा को नहीं दुःख को समझना 
बहस में नहीं प्रेम में शामिल होना 
और 
हो सके तो हो जाना कवि 
 
 

सम्पर्क
 
रोहित ठाकुर 

मोबाइल नम्बर - 6200439764

मेल  : rrtpatna1@gmail.com
 
 
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिग्स कवि चित्रकार प्रयाग शुक्ल की हैं।) 



प्रयाग शुक्ल



प्रयाग शुक्ल
 
प्रयाग शुक्ल (जन्म १९४०) हिन्दी के कवि, कला-समीक्षक, अनुवादक एवं कहानीकार हैं। उनके द्वारा बनाईं गई पेंटिंग अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति में जीवंत और विलक्षण हैं ।
 

कार्यक्षेत्र-

 
देश-विदेश की विभिन्न कला-प्रदर्शनियों के बारे में लेखन और प्राय: सभी प्रमुख भारतीय कलाकारों से भेंटवार्ताएँ, फ़िल्म और नाट्य समीक्षाएँ प्रकाशित। १९६३-६४ में 'कल्पना' (हैदराबाद) के सम्पादक मंडल में रहे और जनवरी १९६९ से मार्च १९८३ तक 'दिनमान' के सम्पादकीय विभाग में, इसके बाद दैनिक 'नवभारत टाइम्स' के सम्पादकीय विभाग में। ललित कलाअकादमी की हिन्दी पत्रिका 'समकालीन कला' के अतिथि सम्पादक रहे। संप्रति वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली की पत्रिका रंग प्रसंग के संपादक हैं।

 

प्रमुख कृतियाँ-

 
कविता संभव (१९७६), यह एक दिन है (१९८०), रात का पेड़, अधूरी चीज़ें तमाम (१९८७), यह जो हरा है (१९९०)।

 

सम्मान व पुरस्कार-

 
उन्हें साहित्य अकादमी के अनुवाद पुरस्कार, शरद जोशी सम्मान एवं द्विजदेव सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है।


टिप्पणियाँ

  1. सभी कविताएँ हृदयस्पर्शी हैं पर 'बहन' कविता ने मन को झकझोर दिया...

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  2. वाह! बहुत सुन्दर रचना सब बिल्कुल कवि शिल्पकार की तरह।

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