सुधीर कुमार सोनी की कविताएँ
सुधीर कुमार सोनी - 26.05. 1960
देश के सभी प्रमुख समाचार पत्रों में कविताये प्रकाशित
लघु पत्रिकाओं व अन्य पत्रिकाओं मे कवितायें प्रकाशित
कादम्बिनी साहित्य महोत्सव में कविता पुरस्कृत
विश्व हिंदी सचिवालय मारीशस से कविता को प्रथम पुरस्कार
स्थानीय नाटकों का गीत लेखन
एक पाण्डुलिपि प्रकाशन की प्रक्रिया में
कादम्बिनी साहित्य महोत्सव में कविता पुरस्कृत
विश्व हिंदी सचिवालय मारीशस से कविता को प्रथम पुरस्कार
स्थानीय नाटकों का गीत लेखन
एक पाण्डुलिपि प्रकाशन की प्रक्रिया में
शब्द जिन्हें हम मामूली समझ लेते हैं, दरअसल बहुत प्रभावी होते हैं. एक रचनाकार शब्दों की शक्ति और महत्ता को भलीभांति जानता-पहचानता है. कबीरदास भी अपने समय में इसकी महत्ता को रेखांकित करते हुए कह उठे थे - 'बानी ऐसी बोलिए मन का आपा खोय. औरन को शीतल करे आपहुं शीतल होय'. हमारे आज के कवि सुधीर कुमार सोनी शब्द की इस महिमा से भलीभांति अवगत हैं. आज ऐसे ही कवि सुधीर कुमार सोनी की कविताओं से हम आपको रु-ब-रू करा रहे हैं. तो आइए पढ़ते हैं सुधीर की कुछ नयी कविताएँ।
शब्द
प्रेम की भाषा से
दो शब्द
कहे गए
और संतुष्ट हो गया वह
शब्दों की
बौछारों के साथ
वार्ता शुरू हुई
भाषा तीखी थी
सारा खुलासा हो गया
पर
किसी को सन्तुष्टि नहीं मिली
सवाल वहीँ के वहीँ थे
कुछ शब्द
अपमानजनक भाषा में कहे गये
दूरियाँ बढ़ी
सीमा विवाद हुआ
तोंपों /बारुदों के साथ
जंग हुई
लाशों के ढेर लग गये
शहर खण्डहर में तब्दील हो गया
इतने विनाशकारी तत्व भी
शामिल हैं
भाषा तुम्हारे शब्दों में
ढल चला दिन
तिरछी होती गयी परछाईंयां
सूरज की किरणें सिमटने लगी
पंछी झुण्ड में उड़ चले
घोंसले में लौटने को
उधर चरवाहे ने
पशुओं को इकठ्ठे किया
बिछ गई पहाड़ों की पीठ पर
धुंधली स्याह सी चादर
लौट चला है दिन
अब कुछ नहीं उसके लिए
प्रतिदिन का यह क्रम
पर
ढलते दिन के अंतिम क्षणों को
रोक लेती
चित्रकार की तूलिका
याद उसको क्यों रहे
कि किस झोपडी के कवेलू से
आज धुंआ उठा नहीं
क्यों नहीं हांडी चढ़ी
आज चूल्हे में
प्रेम की भाषा से
दो शब्द
कहे गए
और संतुष्ट हो गया वह
शब्दों की
बौछारों के साथ
वार्ता शुरू हुई
भाषा तीखी थी
सारा खुलासा हो गया
पर
किसी को सन्तुष्टि नहीं मिली
सवाल वहीँ के वहीँ थे
कुछ शब्द
अपमानजनक भाषा में कहे गये
दूरियाँ बढ़ी
सीमा विवाद हुआ
तोंपों /बारुदों के साथ
जंग हुई
लाशों के ढेर लग गये
शहर खण्डहर में तब्दील हो गया
इतने विनाशकारी तत्व भी
शामिल हैं
भाषा तुम्हारे शब्दों में
ढल चला दिन
तिरछी होती गयी परछाईंयां
सूरज की किरणें सिमटने लगी
पंछी झुण्ड में उड़ चले
घोंसले में लौटने को
उधर चरवाहे ने
पशुओं को इकठ्ठे किया
बिछ गई पहाड़ों की पीठ पर
धुंधली स्याह सी चादर
लौट चला है दिन
अब कुछ नहीं उसके लिए
प्रतिदिन का यह क्रम
पर
ढलते दिन के अंतिम क्षणों को
रोक लेती
चित्रकार की तूलिका
याद उसको क्यों रहे
कि किस झोपडी के कवेलू से
आज धुंआ उठा नहीं
क्यों नहीं हांडी चढ़ी
आज चूल्हे में
हवा और पतंग
एक उडती पतंग से पूछती है
हवा
जहाँ तक मैं बह चलूँ
वहाँ तक तुम जा सकते हो
इतनी है डोर तुम्हारे पास डोर
पतंग कहती है
जितनी डोर मेरे पास है
ठीक वही जा कर तुम रुक सकते हो
तुमसे प्रेम
तुम्हारा
यह असीम /अटूट प्रेम
मुझसे किसलिए
आखिर मैं ही क्यों
तुम्हारे प्रेम के केंद्र बिंदु में
उसने कहा
मैंने कहा
प्रेम तो मुझे
न दिखने वाले ईश्वर से भी है
इस मूक पहाड़ /जंगल /नदी से भी
प्रेम है
लगाव है
लेकिन
मुझे देख
जिसके कदम-ताल में
नदी की लहरों सी चंचलता आ जाती है
इसलिए तुमसे
मुझे देख
जिसके बोल
गीत बन जाते हैं
इसलिए तुमसे
मुझे देख
जिसकी आँखे
आकाश हो जाती हैं
इसलिए तुमसे
मुझे देख
जिसका मुख
कभी गुलाब
कभी गुलमोहर हो जाता है
इसलिए तुमसे
तुमसे प्रेम
परिभाषा से परे हैं
सही /गलत जानकारी
आपकी सही जानकारी
आपको
सही रास्ता नहीं दिखा सकती
सीधी-सीधी
सही जानकारी दे कर
आप अपना राशन-कार्ड नहीं बनवा सकते
अपना निवास प्रमाण-पत्र नहीं बनवा सकते
अपनी जिस जाति के हैं
उसका प्रमाण-पत्र नहीं बनवा सकते
सही जानकारी देकर
आप विद्यालय में प्रवेश नहीं पा सकते
लेकिन गलत जानकारी देकर
गलत रास्ते से
आप महाविद्यालय की प्रावीण्य-सूचि में
शामिल हो सकते हैं
आप जहाँ के हैं
वहीं के हैं
आपकी सही जानकारी
आपका जन्म प्रमाण-पत्र नहीं बनवा सकती
लेकिन
एक अदना सा कागज
आपको मृत घोषित कर सकता है
अन्तरिक्ष
दूर
किसी गाँव में
एक बच्चा
हरे पत्ते को गोल मोड़ कर
बजाता है सिटी
और
धरती की धूरी को सूचित कर
उसकी मधुर आवाज
अंतरिक्ष के कक्ष में जाकर ठहरती है
जैसे
किसी विज्ञान शोध केंद्र के वैज्ञानिक
किसी उपग्रह को
अंतरिक्ष के कक्ष में स्थापित करते हैं
सम्पर्क -
अंकिता लिटिल क्राफ्ट,
सत्ती बाजार रायपुर
[छत्तीसगढ़ ]
ब्लॉग - srishtiekkalpna.blogspot.com
ई मेल - ankitalittlecraft@gmail.com
मोबाईल - 09826174067
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स विजेंद्र जी की हैं.)
बढ़िया और सार्थक कविताएं !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी कवितायें है, सुधीर सोनी का अभी मूल्यांकन होना बाकी है , सुधीर की कविताये नयी होते हुए भी दुर्बोध नहीं है, यही खासियत है
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