नीलोत्पल की कविताएँ
नीलोत्पल |
जीवन के लिए जो जरुरी है वह प्रायः दिखायी नहीं पड़ता. हवा-पानी अपनी अदृश्यता के बावजूद इस अमूल्य-अतुल्य जीवन को बचाने के लिए हर क्षण सन्नद्ध रहते हैं. एक संवेदनशील रचनाकर ही इस अदृश्यता को उभारने का काम बखूबी कर सकता है. वैसे भी हमारा समय त्रासद समय है. इस त्रासद समय में कवि अपने आसपास की प्रकृति, जीवन और परिवेश से दो-चार होता है और उन मूल्यों को बचाने की कोशिश करता है. नीलोत्पल का नाम युवा कवियों में जाना-पहचाना है. नीलोत्पल की कविताओं में इस अदृश्यता को पहचानने की बानगी सहज ही देखि और महसूस की जा सकती है. तो आइए पहली बार पर हम पढ़ते हैं आज नीलोत्पल की कविताओं को.
नीलोत्पल की कविताएँ
जमीन के नीचे पानी अदृश्य है
ज़िंदगी को ऐसे देखो
जैसे प्याले में भरा जाम
तुम किसी को गले लगाते हो
और भीतर से अनेक तितलियाँ उड़ जाती हैं
कभी चुभते रहना
मन को अपूर्ण करता है
स्वांग शब्द का हो या ख़ाली समय का
सारी रोशनीयां एक रंग में सिमट आएंगी
धोखा तुम्हारी उँगलियों में हैं
और प्रेम तुम्हारे धोखा देह के भीतर भी
आसानी से जगह बना लेता है
तालाब एक बारीक तस्वीर है
जो समुद्र से ज़्यादा शांत और उत्तेजित रहती है
सारी ख़ूबसूरत सीढ़ियाँ नीचे की ओर जाती हैं
पुराने दिनों की जमा लकड़ियाँ ही अंतिम सहारा हैं
जमीन के नीचे पानी अदृश्य है
और भीतर से आदमी
तुम जिस जगह को खोद रहे हो
उसे आँसू और प्रायश्चित से भर दो
पुरानी चीज़ें
पुरानी चीज़ें संगीत को विराम देती है
एक रुकी घड़ी अंत की ओर बढ़ती है अनिश्चितता से भरी
हम उसे निकाल नहीं सकते
जीवन से बाहर बंद घड़ियाँ ही हैं
वे जो बारिश के इंतज़ार में है
घर नहीं लौटते
उनकी प्रतीक्षा बनी रहती है
काँच का मर्तबान गिरते ही
ढेर छवियों में बादल जाता हैं
अंतिम छवि साफ़ दिखती है
हम उसे छू नहीं पाते
जीवन की शुरुआत
नहीं लौटने से होती है
एक साधारण जीवन इस तसल्ली में
निकल जाता है
कि हम उसे दोहरा नहीं रहे
कई बार पार करने पर भी
दरवाज़ा पार नहीं होता
परछाइयाँ दहलीज़ पर बनी रहती हैं
और कुछ प्रतीक्षाएँ भी
चीज़ें भरसक थीं
उन चीज़ों ने हमें अधिक भरमाया
जिन्हें हटाते हुए
हम आदर्शों की भोंडी नक़ल कर रहे थे
चीज़ें परिणाम नहीं थीं
अधिकतर हम वही करते हैं
जो बीते कल की स्मृति है
थके हुए दिन के अंत में
थके हुए दिन के अंत में
पेड़ों से उतार ली गई नींदें
ख़ाली आकाश
दिन भर की अधूरी ख़्वाहिशों से भरा
तारे जिन्हें हम नहीं जानते
पूरी रात घरों की छतों पर
बिखर जाते हैं
समय अपनी संपन्नता में
नई कहानियाँ लिखता हैं
जिसे पता नहीं वह भी शामिल है
लिखे जाने तक शब्द प्रतीक्षा करते है
सड़कें अचानक मुड़ जाती है
कई मोड़ अबूझ है
हम उन्हें नाम नहीं दे सकते
एक ख़ारिज़ विचार
कई विचारों की ओर ले जाता है
समुद्र एक कल्पना है
हम उस कल्पना की धातु
संघर्ष के वक़्त
हम ही हैं जो लौटना जानते हैं
हमारी थकी रातें
जीवन की नयी सुबहें हैं
अंतिम बार
अंतिम बार
सत्य नहीं, प्रेम नहीं
अंतिम बार
विदा नहीं, धोखा नहीं
अंतिम बार
द्वार नहीं, दस्तक नहीं
अंतिम बार
सिर्फ़ मैं खो दूँगा अपने को
जिसे मैं अब तक नहीं जानता
जीवन का द्रव
कई चीज़ें समय को छोड़ देती है
कई रिश्ते अधूरे छूट जाते हैं
कोई है जो पत्थरों को
अधिक सख़्त बनाता है
कोई है जो अंत तलक नज़र नहीं आता
कोई गीत अनसुना रह जाता है
सदियों की प्रतीक्षा उसे
गीली जगहों पर रोप देती हैं
किसी चिट्ठी में क़ैद
वह आवारा प्यार
प्यानों के ऊँचे टीले पर गाता है
अंतिम मिठास कानों में घुली रह जाती है
ख़ाली वक़्त उन चीज़ों के लिए
जो अपनी ज़ेबों में जीवन का द्रव ले गए
कोई है जो ज़रूरतों के बाहर
वहाँ क़रीब जाने की कोशिश करता है
जीवन एक बच्चे का गुम खिलौना
जो अंत तक नहीं मिलता
कविता का एक अर्थ घिर जाना भी है
कविता तुम्हारी आज़ादी नहीं....
पटरियों पर घना कोहरा दूर तक छितरा
ढँक लेता है
उँगलियों का फैलाव
ढलाने घिर जाती असमय की झाड़ियों से
गीले पत्थर दूर से चमकते हैं
एक पूरा जीवन
जिसे हम भूल जाते हैं
बारिश उन्हें फिर से नया कर देती है
धूल रास्तों के नज़दीक सिमट जाती है
सारे नए रास्ते बंद पड़े हैं तुम्हारे वास्ते
सभी वही तक पहुँचते हैं
जहाँ तक बताया गया
जैसे उन अनंत सवालों से
जो होते रहेंगे
और आज़ादी नज़दीक से गुज़रती रहेंगी
हाथ में आने के ठीक पहले तक
जिनके अपने सफ़र चुने हुए नहीं
वे भी एक क़िस्म की दक्षता रखते हैं
कविता का एक अर्थ घिर जाना भी है
शब्दों पर छायी परछाइयाँ दिखती नहीं
जो ख़त्म हो चुका परिवर्तनशील है
इतिहास और वर्तमान का संबंध
दो बारीक आँख देखती हैं
हत्या का लंबा घटनाक्रम है
जो हर आईने के साथ
सूरत बदलती है
जिसे गेट पर रोक दिया गया
वह धीरे-धीरे आता है
धीमी प्रक्रिया अंत तक बनी रहती है
शब्दों पर छायी परछाइयाँ दिखती नहीं
हवा बह जाती है
किनारे अपने ख़ाली घाटों पर
स्मृतियाँ बिनते हैं
खंडित मूर्तियाँ सफ़ेद परतों में छिप जाती है
मूर्तियों का भूरापन ठहरा समय है
मूर्तिकार अंत तक विदा नहीं ले पाता
जो चल रहा है
हम उसे नहीं जानते
जो नष्ट हो चुका उसकी तस्वीर रहती है
एक बचा अर्थ
अपना परिणाम छोड़ जाता है
लिखना बोले जाने से अलग है
लिखना बोले जाने से अलग है
जैसे-जैसे हवाएँ पहाड़ों को पार करती हैं
दूर जंगलों में शोर छाया रहता है
किसी चीज़ का अंत लिखना
उसकी शुरुआत को याद करना है
समय एक बार में अनंत कहानियाँ रचता है
हम जल्दबाज़ी में पायदान चढ़ते हैं
यह कहना मुश्किल है
हम कहाँ से आरंभ करते हैं कहाँ ख़त्म
गीली आँख का संबंध
ओस के क़तरे से अलग है
जो घास पर विदा गीत लिखती है
निभाए जाने के लिए कुछ नहीं
मिट्टी के ढलुएं चाक पर रखे जाने से पहले
अवसाद छोड़ते है
पानी में बुलबुले उठाती मिट्टी
अंतिम यात्रा से अलग है
तबाही देखे जाने से अलग है
सूचना आख़िर तक नहीं पहुँचती
हम अपना अंतिम समय नहीं चुन सकते
सम्पर्क
मोबाईल- 09424850594(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.)
Bahut shaandaar kavitain....Vaah!
जवाब देंहटाएंNeelotpal jee haardik badhai...Aabhaar Santosh bhai...
- kamal Jeet Choudhry
शुक्रिया कमल जी...
हटाएंजीवन भी रहे और दर्शन भी ..दोनों को निभाते हुए चलती कविताएँ . नीलोत्पल की कविताओं के लिए पहली बार का आभार .
जवाब देंहटाएंअपर्णा जी आभारी आपकी इस बहुमूल्य टिप्पणी और विश्वास के लिए...
हटाएंआभार, शुक्रिया संतोष भाई
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