वन्दना शुक्ला की कहानी 'माँ'
वन्दना शुक्ला |
इंसानी रिश्ते भी अजीब होते हैं। वे कब कहाँ किस
के साथ जुड़ जाएँ कहा नहीं जा सकता। ‘माँ’ इन रिश्तों की पड़ताल करती एक बेजोड़ कहानी
है। एक माँ जो अपने से बिछड़ गए बेटे को खोजने के लिए बावली रहती है और तरह-तरह के
जतन करती है। आखिर कार उसे तेरह वर्षों के पश्चात अपना बेटा मिल जाता है। वह अपने
बेटे को ले कर अपने गाँव आ जाती है। लेकिन बेटा एक पल भी वहाँ रुकने को तैयार नहीं
होता और फिर वहीँ वापस जाने के लिए कहता है, जहाँ के लिए अरसा पहले उसके पिता ने
एक दलाल के जरिये उसे बेच दिया था। कहानी में चीन की बहुचर्चित ‘एक संतान योजना’
की विसंगतियों और उसके कारण पैदा हुए भ्रष्टाचार और दुश्वारियों पर भी प्रहार करती
चलती है। कहानी की प्रवहमानता हमें अन्त तक कहानी से जोड़े रखती है। तो आइए पढ़ते
हैं वन्दना शुक्ला की कहानी ‘माँ’।
माँ
वन्दना शुक्ला
पूर्वी चीन के च्यांगसू प्रान्त में स्थित चाओ च्वांग गाँव
जो एतिहासिक सूचओ शहर से सिर्फ 35 किलो मीटर के
फांसले पर है, के चौराहे पर एक करीब चालीस साला औरत बदन पर चीथड़े लपेटे एक इश्तिहार
लेकर खड़ी थी जिसकी इबारत कपडे पर लिखी हुई थी। औरत का चेहरा पत्थर की तरह जड़ था लेकिन औरत
गूंगी नहीं थी। गुहार कुछ इस तरह थी.....
‘’कोई अज़ीज़ हम से अचानक बिछुड़ जाए तो हमारी ज़िंदगी नर्क बन
जाती है। हम जीने मरने का मतलब भूल जाते हैं। मैं मौजूदा
वक़्त में उसी दौर से गुज़र रही हूँ। ये चित्र मेरे बेटे वांग का है।..इसे चार
बरस की उम्र में बेच दिया गया था। ये अब चौदह बरस का है। शरीफ और
दयालु इंसानों, यदि किसी को उसके बारे में कोई जानकारी हो तो कृपया बताएं।‘’
त्येन शान झील की
और से आती ठंडी हवाएं औरत के उदास चेहरे को सहला रही थीं। उसके मलीन और
गोरे माथे पर बाल बिखरे बल्कि छितरे हुए थे। वो हर आने
जाने वाले को उम्मीद से देख रही थी। जिस जगह वो खड़ी थी वहां धूप की तपन बढ़ने लगी
थी अतः छांह के लिए पास के बस स्टॉप पर इश्तहार लेकर खडी हो गयी। दो
पुलिसकर्मी वहां से गुज़रे उन्होंने उस इश्तिहार को पढ़ा, पढ़ कर हँसे बिलकुल वैसी
हंसी जैसी सरकार के ‘’एक संतान क़ानून‘’ के बाद रोते चेहरों को देखकर उन्हें अक्सर
आ जाती थी। उन्होंने औरत से वहां से चले जाने को कहा और
एक भद्दी सी गाली भी दी। बिलकुल वैसे जैसे सरकारी कर्मचारी अपनी ड्यूटी मुस्तैदी से
निभाने के भ्रम में देते थे। औरत जगह बदल कर दूसरी जगह खडी हो गयी। पुलिस वालों
ने वहां से भी उसे भगा दिया। हार कर वो निकट के एक पार्क में चली गयी जहाँ
औरतें, आदमी, बच्चे अपनी खुशियों और सपनों के साथ आनंद में मशगूल थे। औरत ने अपने
कंधे पर लटका कपडे का वो मैला सा झोला जिसमे ब्रेड और मछली के दो भुने हुए टुकड़े
थे उतार कर पास में पडी लकड़ी की हरी पुती बेंच पर रख दिया और उस इश्तिहार को अपने
हाथों में झंडे की तरह थामे खड़ी हो गयी। कुछ लोग
अनदेखा कर निकल गए कुछ लोग उसकी दुर्दशा पर हँसे। किसी ने उसे
बटुए से निकाल कर कुछ फेंस दिए उसने सिर हिला कर इनकार कर दिया। धूप बढ़ रही
थी। पार्क
की रौनक घट रही थी। ‘’आज का दिन भी गया’’...उसने सोचा। उसे भूख लगने
लगी थी लेकिन उससे पहले औरत को कचरा बीनने भी जाना है जिसे घर जाते वक़्त वो कबाड़ी
को देती जायेगी। बदले में उसे कुछ युआन मिलेंगे जिससे वो अपने लिए कुछ खाने
की सामग्री खरीदेगी। अभी वो योजना बना ही रही थी कि तभी एक भारी बदन की बूढ़ी
औरत जिसने घुटनों तक ढीली ढाली फ्रोक और किरमिच के जूते पहने हुए थे छोटे सफ़ेद सन
जैसे बाल, चौड़ा चेहरा, सूजी सी छोटी ऑंखें ऊपर से एक बड़ा स्कार्फ अपने कन्धों पर डाल
रखा था, पार्क में आई। वो बुरी तरह थकी दिख रही थी। बूढ़ी, उसी
इश्तिहार वाली औरत के सामने की बेंच पर बैठ गयी। उसने अपने
काले रंग के बैग जिस पर लाल डायनोसोरस का चित्र बना था मे से एक पानी की बोतल
निकाली और पानी पीया। बोतल का ढक्कन बंद करके उसने वापिस बैग में
रख लिया। वो अब भी हांफ रही थी। बूढ़ी ने
चश्मे को ठीक किया। उसके ढीले फ्रेम को दाहिने हाथ की उँगलियों से एहतियात से
पकड़ा और औरत के हाथ में थमे इश्तिहार को गौर से पढने लगी।
ओह दुखद ..उसने एक लम्बी सास खींच कर कहा। तुम्हारे
दुःख को मैं समझ सकती हूँ मोहतरमा .. । यहाँ इस देश
में यही हमारी नियति है।
लेकिन मैं ये कह कर खुद को नहीं बहला सकती। ...कैसे
भुला दूं अपने उस इकलौते बेटे को जो मेरे सपनों से गढ़ा था। पेट में उसकी
हलचल से ले कर जिसकी हर मुस्कान, इच्छा, अदा और जिद्द का मेरी हर सांस पर हक था। ग्यारह बरस से लापता है। .. नहीं भूल सकती मैं उसे। ...
बूढ़ी औरत कुछ देर मौन रही।
ठीक कहती हो ...दुःख दुःख होता है। हरेक को अपना
दुःख पृथ्वी से भारी लगता है।.....मेरा नाम जुआन है। कुछ खाओगी? बूढ़ी
ने कुछ रुक कर कहा।
औरत ने नज़रें झुका लीं जो पानी से भरी हुई थीं।
लो ..अभी खरीदा है दस युआन का। ...घर ही जा
रही थी।
...थोडा खाओ...बूढ़ी ने उस रेशमी झोले से वुफ्फा निकला और उसे खाने को दिया।
औरत ने वो कपडे का इश्तिहार बेंच से टिका कर रख दिया और
बूढ़ी के हाथ से मिठाई का पेकेट ले लिया।
इंसान के पास जब आसपास की समस्त परिस्थितियां उससे
नकारात्मक हो जाती हैं और उसे सिर्फ और सिर्फ मौत दिखाई देती है तब जानती हो क्या
काम आता है?
औरत ने वुफ्फा खाते हुए उसकी तरफ देखा।
उसकी आत्मा की आवाज और उसकी निर्भयता।...मोहतरमा, फिर
भी तुम मुझ जैसी बदनसीब नहीं? बूढ़ी ने बुझी मुस्कराहट से कहा।
औरत ने बूढ़ी की तरफ फिर देखा।
क्यूँ कि तुम एक आशा लिए जी रही हो इस इश्तिहार के रूप में ,मेरे
पास तो वो भी नहीं। मैं भी तुम जैसी ही हूँ सिर्फ मेरे दुःख का रंग अलग है। मेरे पति एक
इमानदार और सह्रदय इंसान थे। पेशे से डॉक्टर और मैं गृहणी। ‘’सिर्फ एक
संतान‘’ के सरकारी फरमान के मुताबिक़ हमारा एक बेटा था बहुत ख़ूबसूरत चंचल और होनहार। संयोगवश
मैंने दुबारा गर्भधारण कर लिया और वो गैरकानूनी संतान एक बेटी की शक्ल में मेरे
गर्भ में पलने लगी जिसे मैं और मेरे पति चाह कर भी ख़त्म नहीं कर पाए। जैसे-जैसे
गर्भ में वो बढ़ रही थी हमारा प्रेम उससे बढ़ता जा रहा था। लेकिन उससे
भी ज्यादा खौफ बढ़ रहा था जो अबोध गर्भस्थ बच्ची नहीं जानती थी। वो जीने की
आस लिए मेरी कोख में पलती रही। सरकार के कड़े नियम हम जानते थे। अवैध दूसरी
संतान की हमारी सज़ा से अपने तीन वर्षीय बेटे को हम परेशानी में नहीं डालना चाहते
थे। अतः
मैंने और मेरे पति ने पुलिस के भय से उस नव शिशु को पैदा होते ही इन्हीं हाथों से
मार डाला था। बदकिस्मती से कुछ वर्षों बाद वो इकलौता बेटा
भी किसी रहस्यमयी बीमारी से मर गया। और हम दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या के
अभिशाप को भोगते इस मुल्क के लाखों अकेले और बेसहारा बूढों की कतार में खड़े हो गए। मोहतरमा ...तुम
अभी जवान हो और अपने इस मैले कुचैलेपन के भीतर शायद ख़ूबसूरत भी। तुम नहीं
जानती होगी कि यहाँ अब बूढा होना भी अभिशाप है? लेकिन मांगे से न मौत मिलती ना
ज़िंदगी। इस
लिहाज से मेरे पति भाग्यशाली रहे वो इस दुःख का बोझ सहन नहीं कर पाए और उन्होंने हमेशा के लिए आँखें मूंद लीं। शायद यही
उनका इस निष्ठुर व्यवस्था के प्रति प्रतिशोध था। इस मुल्क के
करोड़ों बच्चे जिनकी साँसों को उनके माँ बापों के भय हरा चुके हैं, जिनके पैदा
होने से पहले ही इस क्रूर सरकार के आदेश कोख में ही उन्हें ख़त्म करने के हैं। उन अज़न्मे
शिशुओं की आत्मा हमारी ये दुर्दशा देख कर ज़रूर कहीं न कहीं तडपती होगी जैसे हमारी
आत्मा उन बेक़सूर मासूमों की हत्या करते हुई तडपी थी। खैर...
लेकिन सरकार को कुछ धन देकर आप अपनी संतान को ज़िंदा भी तो
रख सकती थीं जैसा कि इस देश का नियम है? औरत ने कहा
हाँ ... लेकिन उतना धन नहीं था हमारे पास। रईस लोग चार
चार संतानें पैदा करके करोड़ों का जुर्माना भर के बेख़ौफ़ रह रहे हैं।.....काश
,ईश्वर ने सिर्फ अमीर औरतों को ही माँ का ह्रदय दिया होता। सुनो औरत, तुम्हारे
आंसू अभी सूखे नहीं हैं। ..इन्हें संभाल कर रखो मित्र। ..आंसूरहित
आँखें बहुत डरावनी लगती हैं..बूढ़ी की फीकी और झुर्रीदार आँखों में एक अगाध पीड़ा थी।
औरत ने अपने स्कार्फ से ऑंखें पोंछीं।
हाँ अब बताओ अपनी कहानी बूढ़ी ने अपनी छडी बेंच के सहारे
टिकाते हुए कहा।
औरत ने अपनी व्यथा यूँ शुरू की।
मेरा नाम जिन्जियु है। मैं तब च्यांगसू प्रांत के शानहाई
शहर में रहती थी अपने पति और
बेटे वांग के साथ। खुशहाल था हमारा परिवार। मेरे पति चेंग, चंग च्वांग में एक होटल मालिक
थे। वो
रोज़ शानहाई शहर से यहाँ आते थे शराब और खाने पीने के बेहद
शौक़ीन एक बिंदास पर कुछ रहस्यमयी इंसान। हमारी शादी
हमारे घरवालों द्वारा धूमधाम से की गयी थी। हम दौनों एक
दूसरे से बेइंतिहा प्रेम करते थे। हमारी गिनती शहर के छोटे मोटे रईसों व्
रसूखदार नागरिकों में होती थी। मैं वहीं शान्शाई शहर में एक बेकरी की मालकिन
थी। एक
सुखी दंपत्ति होते हुए भी बच्चे के मसले पर हम दौनों में मतभेद था। मेरे पति को
लडकी पसंद थी और मुझे लड़का। मेरी पसंद यहाँ के बहुत व्यवहारिक रिवाजों व्
संवैधानिक नियमों पर आधारित थी। बच्चा कानूनन एक ही होना था जिसका एक सत्य ये
भी था कि लडकी शादी के बाद चली जायेंगी लेकिन लड़कों को कानूनी नियम के अनुसार भी माता
पिता की देखभाल करनी पड़ेगी। मैं अपने आसपास हजारों बूढ़े अशक्त और अकेले
दम्पत्तियों की दुर्दशा देख चुकी थी। भाग्य से मेरे लड़का पैदा हुआ। मुझमे और
मेरे पति में यहीं से दरार शुरू हुई। हम दौनों में वैचारिक मतभेद ज़रूर थे लेकिन हम
किसी भी कीमत पर अलग होना नहीं चाहते थे। मेरे पति ने
मुझ पर बेटे को किसी ज़रूरतमंद जोड़े को देश या विदेश में गोद देने का प्रस्ताव रखा
जिसे मैंने खारिज कर दिया। हम दौनों में अब बेटे को लेकर बेहद तनाव रहने
लगा। मैं
नहीं समझ पा रही थी कि आखिर अपने ही वो भी इकलौते बच्चे को कोई बाप किसी को गोद
देने के बारे में सोच भी कैसे सकता है? लेकिन जब तनाव के दुष्परिणाम बढ़कर गली
मुहल्ले तक फैलने लगे और उसका असर मेरे व्यवसाय और बेटे पर पड़ने लगा तो अंततः
मैंने उन्हें इसकी अनुमति दे दी। इस शर्त पर कि बेटा हमारे पास के किसी शहर
में गोद दिया जाएगा और उसके मिलने के लिए हम चाहे जब जा सकेंगे। लेकिन एक
दिन मेरे पति ने मुझे बताये बिना बेटे को पैसे के लालच में कहीं बेच दिया वो अपना
कारोबार बढ़ाना चाहते थे। मुझसे कहा कि अब हम स्वतंत्र हैं दूसरा बच्चा पैदा करने के
लिए। तब
मुझे पति की नियत का पता चला और मैं दुःख के गहरे सागर में डूब गयी। मैं बच्चे के
मालिक का पता ठिकाना बताने के लिए उनसे बहुत गिडगिड़ाई लेकिन उन्होंने नहीं बताया। अब वो और भी
ऐयाश और क्रूर हो गए। मैंने उसी वक़्त अपना घर छोड़ दिया और अपने बेटे को ढूँढने
निकल पडी। तब से दर दर भटक रही हूँ बारह वर्ष हो गए मुझे उसे ढूंढते
हुए। अपना
सब खो चुकी हूँ घर, रिश्ते, नौकरी, परिवार, मित्र सब।
तुमने पुलिस कार्यवाही नहीं की? बूढ़ी ने पूछा।
बहुत की। लेकिन पुलिस ने कहा यहाँ बच्चों के इतने
अपहरण होते हैं कि उनको खोजने के लिए ही फुर्सत नहीं है। फिर इसे तो
अपहरण भी नहीं माना जा सकता खुद तुम्हारे पति ने ही अपने बेटे को बेचा है। ...लेकिन एक
दयालु अफसर ने मेरी रिपोर्ट लिख ली और कार्यवाही करने का आश्वासन दिया है। लेकिन उसको
भी दो बरस हो गए और उस अफसर का तबादला भी फंगह्वांग कसबे में हो गया|
लेकिन तुम्हे लगता है कि इतने बड़े देश में जहाँ हर रोज़
हज़ारों बच्चे लापता हो रहे हैं उसे कहाँ बेचा गया होगा पता लगाना आसान है। तब जब कि
पुलिस फ़ाइल में भी तुम्हारी इस गुहार को अब तक एक ‘’क्लोज्ड चेप्टर’’ मान लिया गया
होगा?
जानती हूँ। ...लेकिन जब तक जिंदा हूँ मैं अपने बेटे को
खोजना जारी रखूंगी।
शुभकामनाएं। ..अब चलती हूँ बूढ़ी औरत अपने घुटनों पर हाथ
रख उठ खडी हुई।
‘’मेरा मकान यहाँ से दूसरी ही गली में है। मेरा नाम
लेकर पूछ सकती हो। ...नाम याद है न! ..जुआन ...मैं भी यहाँ अकेली रहतीं हूँ। ..खुदा
हाफ़िज़। ..और
बूढ़ी घसीटती हुई सी चली गयी।
औरत जिनजीयु वहां से उठी और अपने घर की और चल दी .. । अब उसे कुछ
दूर चलने में हांफनी भरती है, कभी-कभी मुँह से खून के कुछ कतरे भी निकलते हैं। उस दिन
दिखाया था गरीबों के लिए बने खैराती अस्पताल में। डॉक्टर ने
एक्स रे करवाने को कहा था। लेकिन यदि वहां जाती तो एक दिन चूक जाता क्या
पता ये वही दिन होता जब उसके बच्चे का पता ठिकाना मिलने वाला था?
इन्ही में से एक दिन जब वो भरी दोपहरी में उस दूकान के आगे
इश्तिहार ले कर भूख प्यास से बेहाल खडी थी, उसे सामने के चौराहे पर वही पुलिस अफसर
दिखाई दिया जिसने दस बरस पहले उसके बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखी थी। वो बाईक रोक कर
खड़ा था, देह पर कुछ चर्बी उतर आई थी और चेहरा पहले से ज्यादा परिपक्व दिखने लगा था। उसने पुलिस
की वर्दी पहनी हुई थी और आँखों पर धूप का चश्मा चढ़ा था। पहले वो
सुन्न सी उसे देखती रही फिर रास्ते से गुजरती गाड़ियों लोगों को पार करती हुई भाग कर
उस पुलिस अफसर के पास पहुँची लेकिन वो अब वहां नहीं था। उसने चारों
और देखा कुछ लोगों से पूछा। किसी ने बताया कि वो रास्ता ‘साफ़’ होते ही चला
गया है। जिनजीयु
के आंसू आ गए उस दिन वो और खडी न रह सकी वहां और घर चली आई। भूख और थकान
से बेहाल उसने चीनी मिट्टी के उस प्याले से कुछ योहान निकाले। सोचा एक
ब्रेड खरीद लाये लेकिन थकान भूख पर हावी हो गयी और वो लस्त होकर वहीं लुडक गयी। सो कर उठी तो
शाम का धुंधलका था ... । वो एक बार फिर उसी चौराहे की तरफ गयी जहाँ
उसे वो पुलिस अफसर मिला था। लेकिन अब वहां वो नहीं था जिन वापस लौट आई।
एक बार उसका मन हुआ कि शहर जा कर फिर से रिपोर्ट लिखवाये। लेकिन जाने का
पूरा किराया भी तो नहीं था। और फिर वहां भी पुलिस वाले रिश्वत लिए बिना
कोई काम कहाँ करते हैं? मन में ये भी आया कि वो अपने पति से साधिकार पैसे मांगे। आखिर उनका
तलाक भी तो नहीं हुआ है?’ लेकिन जिन को याद आया कि अब उसका पति किसी दूसरी औरत के
साथ रहता होगा बल्कि तीसरी या चौथी। वो जानती है उसके साथ कैसा सलूक किया जाएगा
..। अब वो उसकी पत्नी जिन नहीं बल्कि दर दर भटक चुकी एक भिखारिन
है। उसने
अपना इरादा बदल दिया।
उस दिन रोज़ की तरह जब जिन इश्तिहार ले कर अपने उस गंदे
मुहल्ले जहाँ सूअर व् मुर्गे मुर्गियां गली में भागते फिरते थे और बेहद गरीब, मैले
कुचैले और आवारा लोग लड़ते या फब्तियां कसते दिखाई देते थे। छोटे कपडे
पहने लडकियां अश्लील रूप से हंसती और लड़कों को फंसाती गली के नुक्कड़ या गलियों में
घूमती फिरती थीं। उस नर्क को पार कर जब वो मुख्य सडक तक आई तब वो सडक वाहनों
व् लोगों से भरी हुई थी। जिन उसके खाली होने की प्रतीक्षा करने लगी और
उसने इश्तिहार के दौनों बांसों को अपनी हथेलियों में कस कर पकड रखा था। तभी उसके पास
एक बाईक आकर रुकी उसकी आँखों के सामने जैसे अँधेरा छा गया। वो वही दयालु
पुलिस अफसर वांग लिजुन था।
सर ...उसने आवाज़ दी लेकिन वाहनों के शोर में अफसर को सुनाई
नहीं दिया ‘’सर’’ जिन ने कुछ पास में जाकर आवाज़ दी।
अफसर ने चौंक कर देखा।
सर, आप पहचाने मुझे? आपने मेरे बेटे के गुमशुदगी की रिपोर्ट
लिखी थी बारह बरस पहले।
अफसर ने अपना चश्मा निकाला और ध्यान से देखने लगा।
हाँ तो? उसने रुखाई से कहा।
सर, अब तक नहीं मिला है बेटा... ।
लेकिन अब क्या हो सकता है इतने बरस बाद, अब तो वो फ़ाइल भी
बंद हो चुकी होगी?
सर प्लीज़ कोशिश कीजिये ... । उसे खोजने
में मैं बर्बाद हो चुकी हूँ .. । यकीन कीजिये मेरा।
नहीं अब कुछ नहीं हो सकता .. । तुम वही हो न
जिसके पति ने बेच दिया था अपने बेटे को?
हाँ सर, बिलकुल सही पहचाना ..मैं वही बदनसीब हूँ।
ठीक है कल पुलिस चौकी आना। देखते हैं
कहकर वो चला गया।
उस दिन औरत ने अपने में कई परिवर्तन महसूस किये। उसने खुद को
छू कर देखा कि जीवन के चिन्ह वाकई बचे हैं अब तक या नहीं। उसने आधे
टूटे आईने में अपनी शक्ल देखी बरसों बाद ... । क्या ये वही
औरत है जो एक बेकरी कोर्नर की बेहद फुर्तीली और खुशमिजाज़ मालकिन हुआ करती थी कभी?
अपने गोल मटोल बेटे को बच्चा-गाड़ी में बिठा कर पार्क में घुमाने ले जाती थी , उसके
थोडा बड़ा होने पर उसके साथ पार्क में दौड़ती थी, उसे कंधे पर बिठा पार्क में बने उस
विशाल मिकी माउस के कद के बराबर होने पर बेटे की खुशी को अपनी रगों में भरना चाहती
थी? क्या ये वही औरत है जिसने दुनियां में सबसे प्यारे बेटे से अपने पति को
दुनियां में सबसे ज्यादा नफरत करते देखा था। और जिसके कारण
वो और उसका बेटा दो एक बार पिटे भी थे?
दूसरे दिन उसने स्नान किया। धुले कपडे
पहने बालों का जूडा बनाया। और बिना इश्तिहार लिए अपने पर्स में कुछ
फेंस डाल वो पैदल पुलिस स्टेशन पहुँची जो काफी दूर था। लेकिन वो धन
खर्च करना नहीं चाहती थी।
‘’सर हैं क्या? उसने बाहर खड़े सिपाही से पूछा।
नाम बताओ .. ।
नाम नहीं पता लेकिन शक्ल से पहचान सकती हूँ।
अंदर देख लो ..सिपाही ने कहा।
जिन अन्दर गयी। सामने एक कमरा था जिस पर पर्दा पड़ा था और
उसके बाहर पुलिस प्रमुख वांग लिजुग
की
नेमप्लेट लगी थी। उसने परदे की संध से झांक कर देखा वही अफसर
बैठा किसी को फोन कर रहा था। जिन ने पर्दा थोडा खिसका कर उसका अभिवादन
किया। अफसर
ने इशारे से उसे भीतर आने को कहा। वो कमरे के अन्दर जाकर खडी हो गयी सकुचाई सी।
बैठो ...अफसर ने इशारे से कहा .. । वो अब भी फोन
कर रहा था।
जिन बैठ गयी और आसपास की दीवारों मेज़ आदि की और देखने लगी। उसने अपनी
तरफ की बांयी दीवार पर देखा जहाँ करींब पचास साठ बच्चों की तस्वीरें थीं। जिनके ऊपर
लिखा था गुमशुदा बच्चे .. । उसका दिल कांप गया। वो आँखें गड़ा
कर अपने बच्चे वांग को उनमे ढूँढने लगी। लेकिन वो
गुमशुदा कहाँ है? उसे तो बेचा गया है उस हैवान द्वारा जो उसका पति था .उसने वहां
से नज़रें फेर लीं।
हाँ ...तो तुम्हारा बेटा अभी तक नहीं मिला।
जी ...उसका अभी तक कोई पता नहीं चला।
पति से क्यूँ नहीं पूछतीं उसी ने तो बेचा है न? पुलिस अफसर
ने कहा।
अब कहाँ है मेरा पति मैं नहीं जानती। शुरू में
पूछा था तो उसने कहा था कि उसने बच्चा किसी दलाल को बेचा था और अब दलाल कहीं जा
चुका है।
अफसर ने किसी कारिंदे से कह कर करीब बारह वर्ष पुरानी फ़ाइल
निकलवाई जो ‘’अनिर्णीत प्रकरणों‘’ के रैक में जा चुकी थी। अफसर ने उस
फ़ाइल को खोला जिसके पन्ने आपस में चिपक से गए थे। उसमे तीन बरस
के वांग का गोल मटोल हँसता हुआ ज़र्ज़र हो चुका चित्र निकाला और फिर पीले पन्नों पर
लिखी कुछ इबारत। एक पारिवारिक तस्वीर जिन के पति चेंग, जिन और
वांग की भी थी।
ठीक है ..मेरा ट्रांसफर अब फिर इसी कसबे में हो गया है
देखते हैं अफसर ने कहा। अपना फोन नंबर दो मुझे।
मेरे पास फोन नहीं हैं, लेकिन पास की उस बेकरी का फोन नंबर
है जहाँ मैं अक्सर ब्रेड खरीदने जाती हूँ।..ये लीजिये वहां
का नंबर।
उस दिन से जिन ने इश्तिहार को लपेट कर तांड पर रख दिया। अब उसका
ज़िंदगी में यकीन बढ़ रहा था। हताशा धीरे धीरे घट रही थी। एक नई
स्फूर्ति और जिजीविषा से वो पुनः अपनी उर्जा प्राप्त कर रही थी। जिन ने अपने
प्रयासों से उसी बेकरी में नौकरी प्राप्त कर ली थी जहाँ वो रोज़ अपने लिए ब्रेड या
बत्तख के अंडे खरीदने जाया करती थी। एक माह बीत गया। बेकरी का
मालिक बूढा और दयालु आदमी था। जिन रोज़ सुबह वहां जाती और पुलिस अफसर के फोन
का इंतज़ार करती।
एक दिन अफसर का फोन आ गया।
तुम्हारे बेटे का पता चल गया है ..वो यी
फुजहाऊ शहर में हैं।
जिन को लगा जैसे उसकी साँसें थम रही हैं। शब्द खो
गए हैं ...।
दो बजे तक यहाँ चौकी में आ जाओ। अफसर ने कहा
और फोन बंद हो गया। जिन की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने बेकरी
के मालिक से कहा कि अब वो बेकरी छोड़ देगी और अपने पुराने घर सूचाओ शहर में वापस
चली जायेगी ...। अब उसमे दुगुनी ताकत आ गयी है। और अपने उस
पुश्तैनी घर को अपने पति के चंगुल से छुड़ाकर रहेगी।
क्यूँ ..क्या बेटे का पता चल गया ?बेकरी मालिक ने कहा।
हाँ ...।
तुम खुशनसीब हो जिन। नहीं तो
यहाँ बरसों से पुलिस रिपोर्ट्स पडी हैं बच्चे नहीं मिलते या दूसरे देशों में भेज
दिए जाते हैं। उनकी तस्करी की जाती है।
फिर वहां क्या करोगी? बूढ़े ने पूछा।
सूचओ शहर में मेरी अपनी बेकरी है जो बंद पडी है। लेकिन मेरा रिश्ते
का भाई उसकी देखरेख कर रहा है। अब वही शुरू करूंगी .. । अब तो बेटा
भी सोलह बरस का हो गया है। मेरा हाथ बटायेगा .. । उसके चेहरे
पर एक नया गर्व था।
बेशक ...बेकरी मालिक ने कहा .. । तुम अद्भुत
माँ हो ... । तुमने अपनी ज़िंदगी के तेरह बरस इस दरिद्री और
गंदे माहौल में बिता दिए । और आखिरकार अपने बेटे को पा लिया .. । लो ..ये
तुम्हारी पगार ...बेकरी मालिक ने कहा।
शुक्रिया और अलविदा
..जिन ने कहा और अपना हाथ आगे बढ़ा दिया ..। आपको कभी
नहीं भूल पाउंगी आपने मुश्किल वक़्त में मेरा साथ दिया।
शुभकामनायें ..बेकरी मालिक ने उससे हाथ मिलाते हुए कहा।
वहां से जिन सीधी उस पुलिस अफसर
के पास गयी जिसने उसे एक रेस्तरां में बुलाया था। अब
वो दौनों वहां कोफी पी रहे थे।
‘’मुबारक हो जिन तुम्हारा बेटा मिल गया।
आपकी मेहरबानी से सर ...किन शब्दों में आपका
शुक्रिया अदा करूँ। लेकिन अब मैं अपने बेटे से कब मिल सकती हूँ?
मैं बेहद उत्साहित हूँ श्रीमान ... । ईश्वर पर मेरा भरोसा बढ़ गया
है और इस देश में आप जैसे दयालु लोग भी हैं ये राहत मिली है ..जिन मुस्कुरा रही थी।
आप सिर्फ मिलेंगी नहीं बल्कि अपने बेटे को
लेकर भी जा सकती हैं। अपने साथ ...क्यूँ की जिसने उसे खरीदा था उन
वृद्ध की मौत हो चुकी है और बाकी घरवालों के पास उससे सम्बंधित ज़रूरी कागज़ात नहीं
हैं। आपकी वो तस्वीर जो आपने ऍफ़ आई आर के वक़्त दी थी वो एक
पुख्ता सबूत है पुलिस के पास।
शुक्रिया ..जिन की खुशी मानों दिल में से फूट
कर बाहर निकलना चाहती थी।
मुझे दुःख है कि मैं आपको इसका मूल्य नहीं दे
पाउंगी। लेकिन मेरा यकीन कीजिये कुछ दिनों बाद जब मैं अपनी बेकरी
का काम दुबारा शुरू कर दूंगी तब आपको आपकी पूरी फीस लौटा दूंगी।
जिन ....मैं यकीन नहीं कर पा रहा हूँ कि तुम
वही औरत हो मैली कुचैली कचरे का झोला कंधे पर डाले जो उस दिन भरे बाज़ार में मुझसे
बातें कर रही थी। आज तुम अपने वास्तविक रूप में हो और सुन्दर
लग रही हो ..और अफसर ने जिन का हाथ चूम लिया।
शुक्रिया ...जिन ने हिचकते हुए ज़वाब दिया।
चलो अब चलते हैं।
आओ मेरे साथ .. । अफसर ने कहा। वो
उसके कहेनुसार उसकी बाईक पर बैठ गयी। अफसर उसे गलियों से होते हुए एक मकान के
सामने ले गया जो बंद था।
भीतर आओ उसने जिन से कहा।
लेकिन ....हमें तो फुन्ग्फाऊ शहर जाना था ना।
हाँ जाना था लेकिन खुशी सेलीब्रेट नहीं
करोगी?
जिन इस वक़्त जीवन में सबसे अधिक विवशता महसूस
कर रही थी। पिछले तेरह वर्षों में उस बदनाम बस्ती में उसने
अपनी देह को कैसे कैसे महफूज़ रखा था वही जानती है, लेकिन अब ...वो उसके पीछे पीछे
आ गयी।
अफसर ने उसे बैठने को कहा और शराब का गिलास
और कुछ नमकीन क्रेब खाने को दिए।
शराब मुझे पसंद नहीं सर।
सुहागरात पर तो पी ही होगी न ..। वो
तो रस्म ही है यहाँ।
हां लेकिन।
पियो पियो ....ये जश्न का मौक़ा है खुलकर जश्न
मनायेगे हम।
और फिर जिन का निर्बल शरीर ही नहीं आत्मा तक
लहूलुहान हो चुकी थी।
चलो अब चलते हैं तुम्हारे बेटे से मिलने अफसर
ने कहा। वो दौनों फुंगफाऊ शहर गए। वो
एक आलीशान कोठी थी और उस घर में रहने वाले चार लोग थे जो बहुत सभ्य और मितभाषी थे। उन्होंने
जिन और पुलिस अफसर का स्वागत किया। वो पहले से जानते थे कि वेंग की असल माँ उसे
लेने आने वाली हैं और उन्होंने वेंग को भेजने की तैयारी कर रखी थी।
जब वेंग सामने आ कर खड़ा हुआ बाप की तरह लम्बा
चौड़ा और माँ जिन की तरह खूबसूरत तो पुलिस अफसर और खुद जिन उसे देखती रह गयी। जिन
को अपने कपडे और शरीर बेटे के सामने बहुत मैले कुचैले लग रहे थे।
‘’ये तुम्हारी माँ हैं ..। तुम्हे
इसके साथ जाना है। उस घर के एक बुजुर्ग सदस्य ने कहा और लड़का
वेंग कुछ औपचारिकता के बाद जिन के साथ चवंग च्वांग गाँव में आ गया। पुलिस
अफसर उन दौनों माँ बेटे को जिन के घर तक छोड़ कर चला गया।
जिन वास्तव में ये विश्वास ही नहीं कर पा रही
थी कि सामने ये जो लम्बा चौड़ा युवक खड़ा है ये उसका वहीं बेटा है जिसको पीठ पर बैठा
वो घूमती रहती थी।
वेंग बैठो ... । जिन
ने एकमात्र पुरानी कुरसी की और इशारा करते हुए कहा। वेंग
ने एक बार अपने कपड़ों और फिर कुर्सी को देखा। वो
अनमना सा उस पर बैठ गया और कमरे में चारों और देखने लगा। .खिड़की
पर जूट का पर्दा, मैली कुचैली दीवारें और बिस्तर ..एक छोटा चूल्हा और चीनी मिट्टी
और एल्युमीनियम के कुछ बर्तन।
जिन कपडे से मेज़ साफ़ कर रही थी जिस पर वो
बेटे के खाने का इंतज़ाम करने वाली थी। अभी वो वेंग के ‘’उस‘’ घर की आलीशान डाइनिंग
टेबल देख कर आई थी।
बहुत स्वादिस्ट सूप लाइ हूँ तुम्हारे लिए,
भोजन से पहले पियोगे?
नहीं
अभी मन नहीं ...वेंग ने धीरे से कहा।
मैंने तुम्हारे लिए एग का कोरमा बनाया है।
तुम्हे याद होगा वो तुम्हे बेहद पसंद था ...। जिन
ने चेरी को पेकेट से निकालकर प्लेट में रखते हुए कहा।
कुछ ख़ास याद नहीं ...वेंग ने निर्भाव कहा।
हां बहुत दिन हो गए न। तेरह
बरस कम नहीं होते बेटा। लेकिन अब हम साथ रहेगे। अब
हम सूचाओ शहर के अपने उस पुराने घर में चलेंगे और वहां सुखपूर्वक अपनी ज़िंदगी
गुजारेंगे। अब मुझे किसी चीज़ का न भय है न अभाव। तुम्हे
हल्की ही सही याद तो होगी उस घर की? जिन ने मुस्कराते हुए पूछा
मॉम ...एक बात कहूँ मुझे उम्मीद है आप बुरा
नहीं मानेंगी।
अरे कहो न ..मैं क्यूँ बुरा मानूंगी।
मैं वहीं अपने पुराने घर और लोगों के साथ
रहना चाहता हूँ। यहाँ नहीं।
वेंग का अनुरोध सुन कर जिन ठगी सी खडी रह गयी
..। कुछ पल के लिए उसे लगा जैसे वो गूंगी बहरी हो
गई है।
क्या तुम ये महसूस करते हो कि उस घर में तुम
ज्यादा सुखी और संपन्न हो? वहां तुम्हारा भविष्य बेहतर है?
हाँ ..यही समझ सकती हो ..वेंग ने सर झुक कर
कहा।
ठीक है लेकिन अभी तो हम आये ही हैं ..। कल
चले जाना मैं छोड़ आउंगी।
नहीं मॉम इस जगह मैं सचमुच रात नहीं गुज़ार
पाउँगा प्लीज़ ..। आपको मेरे साथ जाने की भी ज़रुरत नहीं।
मैं इतना बड़ा हूँ कि खुद बस में जा सकूँ। शहर
ज्यादा दूर भी तो नहीं ...।
ठीक है ..। जिन
ने अपने भीतर के तूफ़ान को छिपाते हुए सहजता से कहा। चलो
तुम्हे बस स्टेंड तक छोड़ आती हूँ ..अपना सामान ले लो।
बस खिसकने लगी थी।
जिन और वेंग एक दूसरे को हाथ हिला रहे थे।
दूसरे दिन।
अब छोड़ने की ज़रुरत नहीं ..। और
ना ही बेटे को खोजने की ...। मैं
खुश हूँ। ..जिन
ने मुस्कुराते हुए कहा, अपनी ड्रेस बदली एप्रिन पहना और ब्रेड बनाने में जुट गयी।
Man is not made for defeat .A man can be destroyed but
not defeated -- Ernest Hemingway (The
Old Man and the Sea )
सम्पर्क-
ई-मेल : shuklavandana46@gmail.com
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.)
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.)
इस कहा.नी की कथाभूमि नयी है.यह कहा.नी हमे मर्माहत कर देती है.व्यवस्थायें कितनी मारक होती है.यह हमें इस कथा से पता चलता है..जीवन की विड्म्बनायें..हमसे बड़ी कीमत वसूल करती है.बंदना जी कहा.नी यादगार कहा-नी है.
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