'विविध संवाद' के मधुरेश पर केन्द्रित विशेष अंक के लोकार्पण की एक रपट

 
बरेली से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'विविध संवाद' का सौंवा अंक हाल ही में प्रकाशित हुआ है। यह अंक इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसे वरिष्ठ समालोचक मधुरेश जी पर केंद्रित किया गया है। इसका सम्पादन किया है हमारे मित्र और लेखक रणजीत पांचाले ने। इसी अंक का विगत 16 नवम्बर को विमोचन और लोकार्पण किया गया। प्रस्तुत है इस विमोचन समारोह की एक रपट। 

हिन्दी आलोचना गुटों और गिरोहों में सिमट रही है: मधुरेश 
                              

गत 16  नवंबर को भारतीय पत्रकारिता संस्थान और मानव सेवा क्लब द्वारा रोटरी भवन में आयोजित एक समारोह में हिन्दी के सुप्रसिद्ध समालोचक मधुरेश का अभिनन्दन किया गया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथियों ने संस्थान की पत्रिका 'विविध संवाद' के मधुरेश पर केंद्रित 100 वें अंक का विमोचन किया। इस अंक के अतिथि संपादक लेखक रणजीत पांचाले हैं। 

      अपने सम्बोधन में  मुख्य अतिथि मधुरेश ने हिंदी की आलोचना के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मूल्य, निष्ठा, ईमानदारी जैसे शब्द आलोचना के दायरे से खदेड़ कर  बाहर कर दिए गए हैं। विश्वसनीयता आलोचना की पहली और मूलभूत शर्त है। वर्तमान समय में आलोचना गुटों और गिरोहों में सिमटती जा रही है। सच्चाई के बजाय वह कृतज्ञता और ऋणशोध की अभिव्यक्ति का माध्यम बन गई है।

      उन्होंने कहा कि आलोचना स्वेच्छाचारी ढंग से आलोचक को चीज़ों को तोड़-मरोड़ कर आधे-अधूरे रूप में प्रस्तुत करने की छूट नहीं देती है। अच्छी आलोचना शैतान को भी उसका बाजिव हक़ दिलाने के लिए संघर्ष करती है। आलोचना को आभा और गमक नीति से मिलती है, रणनीति से नहीं। अच्छा और बुरा, सच और झूठ, लोक और सत्ता के द्वन्द्व में आलोचना को अपना पक्ष चुनना ही होगा।

  
       हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाओं के पक्षपातपूर्ण रवैये की कड़ी आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि आज पत्रिकाएं बेहिसाब हैं। लेकिन वे संपादकों की अपनी पत्रिकाएं हैं। आलोचना के लिए पुस्तकों का चयन वहां संपादकों के आग्रहों और रुचियों से तय होता है। तात्कालिक ज़रूरतों की भी इसमें एक नियामक भूमिका होती है। सब जगह संपादकों के अपने समीक्षक और आलोचक हैं। कोई भी ईमानदार आलोचक अपने सारे काम और साख के बावजूद इस स्थिति को साक्षी-भाव से देखते रहने के लिए विवश है। इसी बिंदु पर आकर आलोचना का संकट आलोचक का भी संकट बन जाता है।

      वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अमीर चन्द वैश्य ने कहा कि मधुरेश जी की आलोचना में निरंतरता, तुलनात्मकता, वस्तुनिष्ठता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता है। गंभीर अध्ययन-मनन के बाद ही वे मूल्यांकनपरक टिप्पणी  करते हैं। उनकी आलोचना आजकल की लेन-देन की प्रवृत्ति से कोसों दूर है।  
      शिक्षाविद डॉ एन एल शर्मा ने कहा कि मधुरेश की भाषा में खासी सम्प्रेषणीयता  है और वह सभी तरह के उलझाव से मुक्त है।  उनकी आलोचना में सघन पड़ताल और प्रतिबद्ध पैनापन होता है।

      डॉ सरोज पाण्डेय ने कहा की मधुरेश जी की आलोचना में निरंतरता उनकी वैचारिक निष्ठा का प्रत्यक्ष प्रमाण है।  

      लेखक और पत्रिका के इस विशेषांक के सम्पादक रणजीत पांचाले ने कहा कि मधुरेश ने आलोचना को प्रतिष्ठित करने के लिए  आधी शताब्दी साधना की है। उनका कृति-मूल्यांकन संतुलन और सजगता से भरपूर होता है, इसीलिये उनका 'जजमेंट'  बहुमूल्य माना जाता है।

       कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार राधे मोहन राय ने की तथा उनकी दो पुस्तकों 'मन बुढ़ाता नहीं' और 'उर्दू साहित्य में हिन्दू साहित्यकारों का योगदान' (दो खण्डों में) का भी लोकार्पण हुआ।
 
        इस अवसर पर मानव सेवा क्लब के महासचिव तथा भारतीय पत्रकारिता संस्थान के निदेशक सुरेन्द्र बीनू सिन्हा, राजेन विद्यार्थी, डॉ विपिन सिन्हा, राकेश विद्यार्थी, भारत भूषण शील,  डॉ इंद्रदेव त्रिवेदी, अजय शर्मा, सुधीर चन्दन, आशुतोष गुप्ता, गुडविन मसीह आदि साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।

रणजीत पांचाले



सम्पर्क-

रणजीत  पांचाले
मोबाईल- 09927318111   

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