विनोद दास के कविता संग्रह ‘पतझड़ में प्रेम’ की रीता दास राम द्वारा की गई समीक्षा -*
परिचय
डॉ. रीता दास राम
जन्म : 1968 नागपुर
वर्तमान आवास : मुंबई, महाराष्ट्र।
शिक्षा : एम. ए., एम. फिल., पी-एच. डी. (हिन्दी) मुंबई यूनिवर्सिटी।
कविता, कहानी, लघु कथा, संस्मरण, स्तंभ लेखन, साक्षात्कार, लेख, प्रपत्र, आदि विधाओं में लेखन द्वारा साहित्यिक योगदान।
प्रकाशित पुस्तक : “हिंदी उपन्यासों में मुंबई” 2023 (अनंग प्रकाशन, दिल्ली)
उपन्यास : “पच्चीकारियों के दरकते अक्स” 2023, (वैभव प्रकाशन, रायपुर)
कहानी संग्रह : “समय जो रुकता नहीं” 2021 (वैभव प्रकाशन, रायपुर)
कविता संग्रह : 1 “गीली मिट्टी के रूपाकार” 2016 (हिन्द युग्म प्रकाशन, दिल्ली)
2. “तृष्णा” 2012 (अनंग प्रकाशन, दिल्ली).
संपादित काव्य संग्रह : टूटती खामोशियाँ 2023 (विद्यापीठ प्रकाशन, मुंबई)
हंस, नया ज्ञानोदय, शुक्रवार, दस्तावेज़, पाखी, नवनीत, चिंतनदिशा, आजकल, लमही, कथा, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ मित्र के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, साझा काव्य संकलनों, वेब-पत्रिका, ई-मैगज़ीन, ब्लॉग, पोर्टल, में कविताएँ, कहानी, साक्षात्कार, लेख प्रकाशित।
मनुष्य के जीवन में प्रेम एक ऐसा कारक है जिसके बिना जीवन की संकल्पना तक नहीं की जा सकती। प्रेम नफरत पर हमेशा भारी पड़ता है। यह कभी पुराना नहीं पड़ता, बल्कि हमेशा नएपन से आप्लावित होता है। स्त्री इस प्रेम को एक स्वरूप प्रदान करती है। मां, बहन, पत्नी या फिर पुत्री के रूप में प्रेम के जरिए स्त्रियां प्रेम को उसका वास्तविक स्वरूप प्रदान करती हैं। रीता राम दास उचित ही लिखती हैं कि लहूलुहान होते पुरुष के प्रेम को कवच की तरह ही बचाता है एक स्त्री का प्रेम। कवि विनोद दास का एक नया कविता संग्रह 'पतझड़ में प्रेम' हाल ही में न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह की एक समीक्षा लिखी है कवयित्री रीता दास राम ने। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं विनोद दास के कविता संग्रह 'पतझड़ में प्रेम' पर रीता दास राम की लिखी गई समीक्षा 'प्रेम का रचनात्मक सन्दर्भ'।
“प्रेम का रचनात्मक संदर्भ”
रीता दास राम
कवि की अनुभूति, भावपूर्ण शब्दों के संयोजन, संवेदना में मिश्रित विचार दृष्टि जब काव्यात्मक अभिव्यक्ति करती है कलात्मकता का स्पर्श अद्भुत होता है। शब्दों का कल्पना के वितान रचना और कवि का नव निर्माण में खो जाना, स्पर्श करता है जो पाठकों को रचना कर्म के स्त्रोत बिंदु का सफर कराता है। ‘पतझड़ में प्रेम’ इसी साल आया चर्चित कवि विनोद दास जी का काव्य संग्रह, जीवन की प्रकृति में मानव मन का उत्सव है। कवि ने धीरज के साथ समय में खुशियों के अंकुरण का रास्ता निहारा और हरियाली के इंतजार में खोए रहे। जबकि प्रेम का साथ पतझड़ तक है और रहेगा, वे जानते है। कहा जा सकता है, कविता की पुस्तक को नहीं होती भूमिका की जरूरत, कविताएं कमी सोख लेती है। कवि मनभावन घरेलू परिदृश्यों पर कविता रचते हैं और देश, समाज, ढंग, दस्तूर, आदतें, आहटों के सिलसिलेवार ब्यौरे उससे जोड़ कर देखते हैं जिसे मन संपादित करता है। जो गुजरते हुए कविता से प्रिय की बातें कहते नहीं थकता। ये प्रेम कविताएं है जो पाठकों को सस्नेह अपने भीतरी परिदृश्यों तक ले जाती हैं जहाँ कवि अपने प्रेम को नैसर्गिक, आत्मिक, शारीरिक, सात्विक बनते देखते है।
यह संग्रह पति-पत्नी के वर्तमान परिदृश्य में रिश्तों की उलझन, सुलझाव, समझौते, अपने तरीकों, बदलाव, संभवताओं के इंतजार का दस्तावेज है। इस दौर के साँचे में ढलते इंसान, उनकी परेशानियाँ, रुसवाइयाँ, मनुहार, तनाव, फलसफ़े, जज़्बातों की रंजिश, उनके जद्दोजहद को घरेलू कैनवास में देखा गया है जिसमें परिवार, संबंधियों, मेहमानों, दोस्तों, परिचितों, पड़ोसियों का हस्तक्षेप नज़र आता है। जिनके बिना पूरी नहीं होती इस तस्वीर के मुख्य पात्रों की अपनी लयात्मक, काव्यात्मक गतिविधियाँ है जिसे कवि पूरे मन, प्रेम, आस्था और साथ से लिखते हैं। जिसमें खुशबू है तो रंग भी है, बादल और बारिश भी है। यह सिर्फ भावुकता से भरा पद्य ना हो कर यथार्थ घटनाओं पर दृष्टि रखता, समय की नब्ज़ पर मानव संबंधों को टटोलता काव्य संग्रह है जो कवि के सोच की परिपक्वता का अपना अक्स है।
कविताओं में कवि मन की बात रखते हैं, तन और मन की ‘गाँठ’ जब रिश्ते की गाँठे नहीं उलझाती तब हर गाँठों को संभालता प्रेम मरहम बन जाता है। जो दर्द भी बराबर बाँटना चाहता है दुख को कम करता हुआ। तकलीफों में, स्मृतियों में, दिल की बीमारी में भी, मृत्यु के डर में काम करता है प्रेम, बीच की खालिस बेचैनी को भरता हुआ। कवि कविता ही नहीं रचते बल्कि एक आम जीवन को खास बनाते हैं। ‘ईर्ष्या’ को भी सहेजते गीली मिट्टी में जिसमें बनता हुआ प्रेम स्नेह पनपाता है। कवि प्रेम के जोड़े को ‘जुड़वां शिशु’ की संज्ञा देते है जो एक रिश्ते में कई रंग को देखने की चाहत सहेजता है। इसमें कई जीवन की कामना है। कई सपनों का मखमली वैभव है। कई रातें निहारते कवि कविता को दे पाते हैं खालिस शब्द जिसे प्यार कहा जाता है।
कई कविता पंक्तियाँ अद्भुत वितान रचती है, ‘सौत’ एक प्यारी सी कविता है जो प्रेमी के आँसू से प्यास बुझाने कहती प्रेमिका के दर्द को आँसुओं से तोलती है। कवि इंसानों के बीच रुके प्यार की व्याख्या करते है जिसमें सर्वसामान्य के लिए जीवन का संदेश है। उन लोगों के लिए जो तकलीफों में घिरे हैं, जिन्हें सुख और दुख की चर्चा करने की फुरसत नहीं। जो सिर्फ जीते हुए मर जाना चाहते हैं जानते हुए कि अपनी जिंदगी की कहीं कोई चर्चा नहीं होगी। भरोसे के पीछे छिपा निश्छल प्यार सारे जीवन की पूँजी है जिसने शक के लिए जीने की जगह नहीं छोड़ी। कवि अंधाधुंध भरोसे के लिए उसके तई चिंतित है जिसकी नींव को प्रेम ने सींचा है।
कवि कहते हैं, परती पड़ती जिंदगी जीते हुए मनुष्य ‘आभूषण’ का मोह चला जाना देखता है। देखता है चश्में की जरूरत और स्त्री का उपयोग करता पुरुष विषाक्त धुएं को निकलने में मदद लेता है। सवाल पूछते जीवन के कुहराम नींद को खत्म कर रहे हैं। जीवन की शाम के दुखों को दम साधे जीने को प्रस्तुत इंसान प्रेम की अहमियत आँकता है। जैसे ‘रसोई’ में दिखाई देती है सिर्फ माँ, जीवन के अंत तक पूरे देश के लिए बनाती रोटियाँ। औरतें जिसकी पात्रता बदलनी चाहिए, कवि की पंक्ति सच रचती है। बदलते पात्रता के मीठे संगीत को कवि ‘रोटी’ में परोसते है। ‘स्मृतियाँ’ भी संबंध सहेजने की जिम्मेदारी उठाती तीक्ष्ण हो जाती है कि उसमें दुनिया की तस्वीर देखता है कवि। संसार रचता है कवि। सरलता और सरसता की खातिर छूट रहे संगीत के टुकड़े स्वर, प्रेमी पूरा करते हैं। ‘अपमान’ की चुभन से भी सहेजते प्रेम को कौन ध्वस्त कर सकता है समय भी खड़ा हो जाता है मुँह फेर कर। बहुत महीन वैचारिक दृष्टि अच्छी लगती है। लहूलुहान होते पुरुष के प्रेम को कवच की तरह ही बचाता है एक स्त्री का प्रेम। सुंदर कविता से गुजरना अच्छा लगता है। कभी नजर भरते, कभी नज़र चुराते, कभी छिपाते हुए और भी बचा रह जाता है बहुत कुछ पुरुष स्त्री की इस पुरजोर कोशिश से हमेशा लिखते हुए इतिहास, इसे पीढ़ियाँ देखती है। ‘देहगन्ध’ में बसता प्रेम विछोह में विकल होते प्रेमी की परीक्षा तय करता है, कवि ऐसी विकलता को शब्द देते प्रेम के रूप की चर्चा में सहभागी होते हैं। जहाँ सुंदरता पर मान, ईर्ष्या और आत्म मुग्धता का राज है। सौन्दर्य देखिए, प्रेम नहीं बुढ़ाता, बूढ़ा जाता है शरीर गवाही देती है झुर्रियां। याद रखने के तरीके, शरीर का बदलना और अहित की संभावना का इंतजार, गंतव्य है। इनसे गुजरना जीवन की मूलभूत प्रक्रिया है। ऐसे ही जैसे एकांत के सान्निध्य में नाम लेने का मतलब बहुत कुछ होता है जिसमें शामिल होता है प्यार, वास, प्यास, तृप्ति, अधिकार, चेतना में बसने का एहसास, मनुहार और बहुत कुछ जिसे कहा ना गया है फिर भी कवि की दृष्टि जाती है।
कवि स्त्री संसार में विशेषता से भरे कई स्थान देखते है। ‘आग’ से झुलसती दुनिया और आग का बेहतर इस्तेमाल करते स्त्री को दाग धब्बों के साथ देख कवि स्त्री के धैर्य, सहनशीलता, कर्मठ स्वाभाविक व्यक्तित्व की व्याख्या करते है जिसने समाज की गति में अपने साथ से सहयोग किया है। यह अंजाना प्राकृतिक भार स्त्री पूरे मन से, निष्ठा से अदा करती है। कवि कहते हैं, स्त्री ‘तुम ब्रेल में लिखी इबारत हो’ तुम्हें छू कर पढ़ना अच्छा लगता है। बहुत सौम्यता बसी इस कविता में कवि का आत्मिक प्रेम दिखता है।
विनोद दास |
प्रेम में लिखी कविताएं दृश्यों की विविधाताएं सँजोती है। कविता को पढ़ कर कहा जा सकता है रसिक नहीं होते ‘चूहे’ उनके लिए सुविधानुसार उपलब्धता जरूरी है और यह सब बेध्यानी में हमारे द्वारा ही परोसा जाता है। प्रेम के कई पहलुओं पर कवि की दृष्टि दिखाई देती है। वे कहते हैं जबरन हक जताना नहीं होता प्रेम। सामाजिक दायरे भी कवि का क्षेत्र विस्तार है। पैतृक घर से होना ‘बेदखल’ दरअसल व्यवस्था का कड़वा सच है जिसे कवि घूँट-घूँट पीते कविता में उतरते है। कवि की कविता सच का परचम नहीं, भावना का संदेह नहीं, कोमलता का व्याख्यान है जिसने हर हाल में जीने की चाह सँजोई है।
स्त्रियों की सामाजिक स्थिति, व्यवस्था में स्त्रियों की सहभागिता, समाज में उनकी भूमिका देश की संरचना प्रदर्शित करती है। कवि विवाह व्यवस्था में परिवर्तन का भविष्य आँकते हैं। शादी के बाद खत्म होते औरत के नाम की भूमिका रचते कवि स्त्री की धूमिल होती पहचान पर रेत की तरह मिट्टी नहीं डालते बल्कि नई पीढ़ी पर विश्वास जताते है जो बदलाव को सिरे से स्वीकारती है। युवाओं पर भरोसा जताते कवि यहाँ भविष्य के प्रति आशावाद से जुडते हैं। स्त्री और प्रेम की व्याख्या करते कवि लिखते हैं, स्त्री मन का गीला होना प्यार की चादर से नहीं सूखता जिसमें प्यार किश्तों की तरह लिखा जाता है। प्यार तो आपस में बतियाता अपनी जमीन पाता है। कवि प्रेम के हर लमहें को टुकड़ा टुकड़ा शब्द देते है।
‘मौन’ की प्राचीन भाषा में स्त्री कवि और पुरुष को सीखाती रहेगी स्त्री के कहन का अर्थ, जिसे शब्दों का विस्तार नहीं मिल पाता। ‘घड़ी’ की टिक-टिक और घर में गर नहीं बसता प्रेम तो उसे ढूँढने अरण्य में जाना होगा। कवि का टूटा मन और टूटती उम्मीद स्त्री के सुई धागों के मजबूत जोड़ से भी धैर्य पा लेते है। वहीं पुरुष का अपूर्ण होना ढूँढ लेते है स्त्री के साज-संभाल और आवाज के पुरसुकून कोने जिसके लिए अब किसी भी कल की फिक्र करने की जरूरत नहीं। लेकिन स्त्री के व्यथा पेटी से अंजान है पुरुष उस का ना ‘ताला’ खोज पाता है ना ‘चाबी’। स्त्री के दुख से अंजान पुरुष उसके तह तक जाना चाहता है। घर के कैनवास में फूल, संगीत सा अंत:राग रंग भरती स्त्री घर में जीवन सा प्राण फूँक देती है। यह प्रेम पतझड़ में भी सुरक्षित रहता है। यह पतझड़ का प्रेम है जो बीते दिनों की याद, वासना की तृप्ति के बाद भी अतृप्ति सँजोता दिलों में धड़कता है।
असहिष्णुता और सहिष्णुता का स्पर्श जीवन में धड़कता समय का दस्तावेज है। खरदुरी एड़ियों का स्पर्श भी अलगाता नहीं बल्कि कवि को समय से पीछे ले जाता है कोमल भावनाओं को सहेजते जहाँ स्मृति में महावर लगी कोल्हापुरी चप्पलों में सुंदर लाल एडियां बसती हैं। गृहस्थी के संदर्भ में स्त्री से पुरुष के विचारों का अलग होना कवि को खिन्न करता है। सफाई में गढ़ी-मढ़ी स्त्रियों की निगाह और आर्थिक जरूरत पूरी करने की एकलौती पुरुष की जिम्मेदारी अब पुरानी पड़ती विचारों की फेहरिस्त है, बावजूद इसके घर स्त्री-पुरुष का साझा प्रयास है। समाज की बरसों पुरानी व्यवस्था बदलाव की आशा जनती भविष्य को तकती है।
शब्दों के बीच की खाली जगह जिसे विचारों ने नैतिकता के लिए रिक्त छोड़ा है। ‘प्यार की कमी’ आत्मीयों से बिछोह को याद करती है और क्रूर और हिंसक के लिए बेहिसाब प्यार की आकांक्षा करती है। कवि अकेलेपन का ‘पुकार’ शब्द से परिचय कराते है और बताते हैं, पुकार कर पूरा होना होता है स्त्री-पुरुष को। महीन खुशियों की खुशबू, मन की सौम्यता रिश्तों को जीवित रखती हैं।
कवि, स्त्री को उसकी घरेलू ड्यूटी से मुक्त करना चाहते है कि बोझिल हो अस्पताल तक जाने के स्थिति दर्द देती है। स्त्री की ‘मुस्कुराहट’ में बसे दुनियावी बोझ, दर्द, अकेलेपन और खामोशी के तिलिस्म को कवि चहकती मुस्कुराहट में तब्दील करना चाहते है। कवि स्त्री के भीतर खुशियाँ भरना चाहते हैं। ‘मोबाइल’ पर ढेरों मौजूद नंबर के बावजूद एक स्त्री अपनी उदासी में देती है दस्तक अपनेपन के दरवाजे पर बारंबार पूरी आशा के साथ के नहीं जाना पड़ेगा यहाँ से खाली हाथ। रिश्तों की आत्मीयता खुद को जिंदा रखने का पुरसुकून सच है। अनुपस्थित होने की कमी को पूरी करती कवि के कविता की पंक्ति में स्मृति की अभिव्यक्ति की कल्पना अच्छी लगती है। होती है वर्तमान में जैसे अतीत की अभिव्यक्ति जो स्मृतियों को दोहरा जाती है। पत्नी के भीतर देखते कई स्त्रियाँ, कई रूप, कई हावभाव, कई मूड और कई रंग कवि पति सराबोर है, कवि की पंक्तियाँ पति का तृप्त होना रचती है।
यह एक अद्भुत सच्चा काल्पनिक विस्तार है कि घर में जब कोई स्थान नहीं पूजाघर का तो मन में ‘ईश्वर’ को खोजा जाना लाज़मी है। यह ऐसी कल्पना है जो खुद के भीतर ईश्वर को देखने का उपाय सुझाती, मन मोह लेती है। कवि अपने प्रिय के ‘केश’ से जुड़ी पुरानी बातों के बहाने कुछ पल जी लेने का लुत्फ उठाते हैं। प्रेम बेपरवाह है पतझड़ से, बुढ़ापे से, समय से जिसके गुजरते जाने के बाद भी बची हुईं है परवाह दो प्रेमियों को जिलाये रखने की एक दूसरे के लिए। असहमति में जीवित बचती आशा अपने प्रेम की तरफ कवि की मासूमियत है जो किसी भी हद में प्रेम के करीब है। ‘चालीस साल’ में बीता-बिताया, जीया-जिलाया, प्रेम में देखा गया लावण्य, वासना, जानना, थकना, गुफ्तगू, खर्राटे, अपूर्णताएं, पछतावा, टूटन, झुर्रियां, चाँदी के बाल, दाँतों की खोखल, खोजना, बचना, वजूद, निराशाएं, प्रतिस्पर्धाएं, आशाएं, प्रेम और प्रार्थनाएँ सुख की कामनाओं में बारिश से बरसते रहे। कवि के कहने को बयान करती रही।
‘पतझड़ में प्रेम’ चर्चित कवि विनोद दास जी का नया काव्य संग्रह है जो पत्नी विनीता को समर्पित है। यह संग्रह ‘न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन’ से इसी वर्ष 2024 में प्रकाशित हुआ कवि का चौथा काव्य संग्रह है। जिसमें भावों की प्रामाणिकता और विषय की पारदर्शिता संग्रह के मूल भाव प्रेम को उत्कर्ष पर ले जाती है जिसमें स्वाभाविकता सहज गुण है। सरलता से पाठक कवि के भावानुवाद को उनके शब्दों में स्पर्श करते है। कविताएं रिश्तों के तारतम्य को प्रस्तुत करती सुगमता से लक्ष्य का सफर तय करती है। ईमानदारी और सूक्ष्मता के अपने मायनों को कवि स्थान देते हैं। विचार, अनुभूति, संयोग, संजोग काव्यात्मक सुलभता है जो कवि के आत्म को प्रस्तुत कर काव्य में पारदर्शिता का एहसास कराते है। संग्रह की सौ पृष्ठों में समाहित बावन कविताएं पति-पत्नी रिश्तों की गूढ़ता, आत्मिक-संबंध, अंतर्दृष्टि, अंतर्जाल को पाठकों के सम्मुख रखती प्रेम की पैरवी करती है। जिसमें भाव, शब्दों, कल्पना, सच, समय, लगाव की अपनी सहभागिता है जो पाठकों तक कवि मन की बात आसानी से पहुँचाती है। भाषा की सरलता कविताओं को दुरूहता से मुक्त करती है। रिश्तों में निहित अंतर्भाव परत-दर-परत कवि की व्यक्तिगत एवं स्वाभाविक अभिव्यक्ति को रचते, अद्भुत है। यह कवि के प्रेम का रचनात्मक संदर्भ है जो काव्यात्मक विस्तार पाता पति-पत्नी संबंधों की अलहदा व्याख्या करता है।
रीता राम दास |
सम्पर्क
रीता दास राम
34/603, एच पी नगर, पूर्व
वासीनाका, चेंबूर, मुंबई – 400074.
मो.- 9619209272.
ई मेल – reeta.r.ram@gmail.com
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