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चंद्रेश्वर का आलेख 'सनातन पर बहस क्यों?'

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  चन्द्रेश्वर  आजकल पूरे भारत में सनातन शब्द चर्चा में बना हुआ है। सनातन का सामान्य अर्थ सातत्य होता है लेकिन इसे उस हिन्दू धर्म, संस्कृति एवम परम्परा से लिया जाता है जो अपनी सातत्यता में आज भी प्रवहमान है। लेकिन समय सतत परिवर्तनशील होता है। सवाल यह है कि समय के साथ जो खुद को न बदल पाए उसे हम कैसे व्याख्यायित कर सकते हैं। सनातन धर्म में वर्ण और जाति व्यवस्था की जो व्यवस्थाएं की गईं उसने अन्ततः समाज में असमानता को बढ़ावा दिया। अस्पृश्यता और छुआछूत जैसी अमानवीय और घृणित परंपराएं इस सनातन के अन्तर्गत ही विकसित हुईं जिस मानसिकता से हम आज तक अपना पीछा नहीं छुड़ा पाए हैं। सनातन को देखने का एक पहलू यह भी हो सकता है कि इसे उस समाज के नजरिए से भी देखा परखा जाए जो दलित, दमित और शोषित रहा है। कवि आलोचक चंद्रेश्वर ने सनातन के विविध आयामों को ध्यान में रखते हुए एक आलेख लिखा है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  चंद्रेश्वर का आलेख 'सनातन पर बहस क्यों?' 'सनातन पर बहस क्यों?'                          चंद्रेश्वर...

प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'पितृ दोष'

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  प्रचण्ड प्रवीर  हर धर्म का आधार उसके धर्मशास्त्र होते हैं। ये धर्म अपने इन धर्म शास्त्रों द्वारा संचालित होते हैं। धर्म भीरू लोग इन शास्त्रों में लिखी हर बात को अकाट्य मानते हैं। ऐसे लोगों के लिए इस बात का कोई मतलब ही नहीं कि इन शास्त्रों का प्रणयन कब हुआ? किन परिस्थितियों में और क्यों हुआ? लेकिन एक धारा ऐसी भी रही जो तर्क के बिना किसी भी बात को स्वीकार नहीं करती। ऐसे लोगों के लिए तर्क ही सर्वोपरि होता था। आज भी एक बड़ा तबका किसी घटना के लिए शास्त्र विहित पितृ दोष, कालसर्प दोष, भद्रा आदि आदि को ही जिम्मेदार ठहराता है। प्रचण्ड प्रवीर ने अपनी कहानी पितृ दोष के माध्यम से उस मानसिकता को उद्घाटित करने का प्रयास किया है जो शास्त्रों की बात को अकाट्य मानते रहे हैं। कहानी के एक पात्र के माध्यम से कहानीकार कहते हैं 'मैँ शास्त्र वचनोँ को अन्तिम सत्य नहीँ मानता। मुझे लगता है शास्त्र हमारी समझ को बढ़ाने के लिए लिखे हैँ। बिना अहसमति और बिना अपने विचार के शास्त्र का कोई मतलब नहीँ।' पहली बार पर प्रस्तुत है कल की बात के अंतर्गत प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'पितृ दोष'। कल की बात – २६३ ...

प्रेम साहिल की कविताएं

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  प्रेम साहिल  प्रेम साहिल जी मूलतः पंजाब के हैं। इनका जन्म 11 जुलाई 1953 को मोदीनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ। शिक्षा होशियारपुर में हुई। वे पंजाबी के वरिष्ठ कवि-लेखक हैं। हिन्दी के ग़ज़लकार और कवि भी हैं। इनकी रचनाएँ पंजाबी की सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। वे राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज से प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त हैं। शिक्षा विभाग में आने से पहले वे सी. आई. एस. एफ. में सब इंस्पेक्टर भी रहे हैं। इन दिनों देहरादून (उत्तराखंड) में निवास कर रहे हैं।  पंजाबी में इनके पाँच कविता संग्रह, एक ग़ज़ल संग्रह और एक गद्य की पुस्तक प्रकाशित है। इसके अलावा हिन्दी में भी पाँच ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हुए हैं। पंजाबी साहित्य में दीर्घकालिक कार्य के लिए इन्हें 'उत्तराखंड साहित्य गौरव पुरस्कार' प्राप्त हुआ है।  "इधर प्रेम साहिल जी की अनूदित कविताएँ पढ़ीं, फिर उनसे संवाद हुआ, जो काफी प्रीतिकर रहा। अनुवाद और मूल पर बातें हुईं। उन्होंने कहा : 'मैं जब हिन्दी में लिखता हूँ तो उसे अनुवाद ही मानता हूँ क्योंकि मैं सोचता पंजाबी में हूँ।' उसके बाद मुझे इनकी और कविताएँ मिलीं। पढ़ कर ...

यादवेन्द्र का आलेख 'आज़ादी का स्वाद एकदम अनूठा है''।

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  मानव समाज में श्रम विभाजन की प्रारम्भिक अवस्था में एक तरफ जहां पुरुषों के जिम्मे शिकार करना, लड़ाई करना और बाहरी व्यवस्थाएं करना आया, वहीं दूसरी तरफ महिलाओं के हिस्से में बच्चों की देखभाल एवम पालन पोषण करना, खाना बनाना एवम गृहस्थी चलाने की जिम्मेदारी आई। तब से आज तक यही व्यवस्था चली आ रही है जिसमें खाना बनाने और खिलाने का कार्य महिलाओं के ऊपर होता है। यह कार्य आजीवन चलता रहता है। लेकिन काम की एकरूपता से महिलाएं ऊबती भी हैं, पुरुष यह सोच भी नहीं पाते। जीवन की एकरसता को तोड़ने के लिए वे अपना रूटीन तोड़ कर उस होटल में जाती हैं जहां स्वादिष्ट खाना मिलता है। ' उन्हें लगता है कम से कम एक दिन तो ऐसा मिले जब उन्हें परिवार के लिए खाना न बनाना पड़े - खाना न बनाना उनकी आज़ादी का एक पहलू है लेकिन उतना ही महत्वपूर्ण या शायद उससे ज्यादा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि खाते समय उन्हें परिवार वालों की नज़रों की निगरानी में न रहना पड़े। ' एक नई विषयवस्तु को अपने कहानी का विषय बनाया है  तमिल और अंग्रेजी में लिखने  वाली  लक्ष्मी कन्नन ने।  विचारक यादवेन्द्र जी पहली बार पर सिलसिलेवार ढं...