चंद्रेश्वर का आलेख 'सनातन पर बहस क्यों?'
चन्द्रेश्वर आजकल पूरे भारत में सनातन शब्द चर्चा में बना हुआ है। सनातन का सामान्य अर्थ सातत्य होता है लेकिन इसे उस हिन्दू धर्म, संस्कृति एवम परम्परा से लिया जाता है जो अपनी सातत्यता में आज भी प्रवहमान है। लेकिन समय सतत परिवर्तनशील होता है। सवाल यह है कि समय के साथ जो खुद को न बदल पाए उसे हम कैसे व्याख्यायित कर सकते हैं। सनातन धर्म में वर्ण और जाति व्यवस्था की जो व्यवस्थाएं की गईं उसने अन्ततः समाज में असमानता को बढ़ावा दिया। अस्पृश्यता और छुआछूत जैसी अमानवीय और घृणित परंपराएं इस सनातन के अन्तर्गत ही विकसित हुईं जिस मानसिकता से हम आज तक अपना पीछा नहीं छुड़ा पाए हैं। सनातन को देखने का एक पहलू यह भी हो सकता है कि इसे उस समाज के नजरिए से भी देखा परखा जाए जो दलित, दमित और शोषित रहा है। कवि आलोचक चंद्रेश्वर ने सनातन के विविध आयामों को ध्यान में रखते हुए एक आलेख लिखा है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं चंद्रेश्वर का आलेख 'सनातन पर बहस क्यों?' 'सनातन पर बहस क्यों?' चंद्रेश्वर...