संदेश

अगस्त, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चन्द्र किशोर जायसवाल की कहानी 'के बोल कान्ह गोआला रे!'

चित्र
  विद्यापति के मैथिली गीतों से जो नहीं गुजरा, उसने जीवन को वास्तविक रूप में जिया ही नहीं। विद्यापति उस निश्छल प्रेम के कवि हैं जो हर इंसान के मन में स्वाभाविक रूप से पलता रहता है और अवसर आने पर पुष्पित पल्लवित भी होता है। प्यार की पहली अनुभूति जीवन की अनन्यतम अनुभूति होती है जिसे विद्यापति ने सहज ही अपने गीतों में उकेरा है। विद्यापति आज भी अपने इन गीतों में जिन्दा हैं। केवल मिथिला क्षेत्र में ही नहीं अपितु समूचे साहित्यिक क्षेत्र में। इन्हीं विद्यापति के गीतों को केन्द्र में रख कर चन्द्र किशोर जायसवाल ने एक कहानी लिखी 'के बोल कान्ह गोआला रे!' वाकई अद्भुत कहानी है यह। मन मस्तिष्क में रच बस जाने वाली कहानी। प्रेम तो अपनी बनावट में प्रेम ही होता है। वह कभी जाति पांति या धर्म के बन्धन को स्वीकार नहीं करता। चंद्रकिशोर जी को श्रीलाल शुक्ल इफको सम्मान देने की घोषणा की गई है। इस समय बहुत कम रचनाकार ऐसे हैं जिनको ले कर साहित्यिक समाज में एक सर्व सम्मति जैसी है। चन्द्र किशोर जायसवाल का नाम उनमें से एक है। शोरोगुल से दूर वे चुपचाप अपना लेखन नियमित रूप से करते रहे हैं। कहानीकार चन्द्र किश...

राजेन्द्र यादव की कहानी 'सम्बन्ध'

चित्र
  राजेन्द्र यादव  मौत हमेशा दुखदाई होती है। परिजनों का कष्ट स्वाभाविक रूप से समझा जा सकता है। वातावरण भी बोझिल सा हो जाता है। लेकिन यह मौत तब और त्रासदी में बदल जाती है जब पोस्टमार्टम हाउस के कर्मचारियों की गलती से कोई और शव किसी और के परिजनों के पास पहुंच जाता है। बाद में डॉक्टर जब आ कर बताता है कि गलती से लाश बदल गई थी और वह लाश हटा कर वास्तविक लाश लाई जाती है तो परिजनों का रोना धोना फिर नए सिरे से शुरू हो जाता है। तो क्या दुःख भी सापेक्ष होता है। अस्पताल के कर्मियों का यंत्रवत ढंग से पेश आना कहानी के परिप्रेक्ष्य को एक दार्शनिक अंदाज प्रदान करता है, यह सवाल उठाते हुए कि क्या किसी मौत पर इस तरह भी वीतराग हुआ जा सकता है?  आज राजेन्द्र यादव का जन्मदिन है। उनकी स्मृति को नमन करते हुए आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं उन्हीं की एक कहानी। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  राजेन्द्र यादव की कहानी 'सम्बन्ध'। 'सम्बन्ध' राजेन्द्र यादव  शायद मरते वक़्त वह खिलखिला कर हँसा था, मन में पहला विचार यही आया। बाक़ी खोपड़ी कुछ इस तरह से जल कर काली पड़ गई थी, और आस-पास की ख...