चन्द्र किशोर जायसवाल की कहानी 'के बोल कान्ह गोआला रे!'
विद्यापति के मैथिली गीतों से जो नहीं गुजरा, उसने जीवन को वास्तविक रूप में जिया ही नहीं। विद्यापति उस निश्छल प्रेम के कवि हैं जो हर इंसान के मन में स्वाभाविक रूप से पलता रहता है और अवसर आने पर पुष्पित पल्लवित भी होता है। प्यार की पहली अनुभूति जीवन की अनन्यतम अनुभूति होती है जिसे विद्यापति ने सहज ही अपने गीतों में उकेरा है। विद्यापति आज भी अपने इन गीतों में जिन्दा हैं। केवल मिथिला क्षेत्र में ही नहीं अपितु समूचे साहित्यिक क्षेत्र में। इन्हीं विद्यापति के गीतों को केन्द्र में रख कर चन्द्र किशोर जायसवाल ने एक कहानी लिखी 'के बोल कान्ह गोआला रे!' वाकई अद्भुत कहानी है यह। मन मस्तिष्क में रच बस जाने वाली कहानी। प्रेम तो अपनी बनावट में प्रेम ही होता है। वह कभी जाति पांति या धर्म के बन्धन को स्वीकार नहीं करता। चंद्रकिशोर जी को श्रीलाल शुक्ल इफको सम्मान देने की घोषणा की गई है। इस समय बहुत कम रचनाकार ऐसे हैं जिनको ले कर साहित्यिक समाज में एक सर्व सम्मति जैसी है। चन्द्र किशोर जायसवाल का नाम उनमें से एक है। शोरोगुल से दूर वे चुपचाप अपना लेखन नियमित रूप से करते रहे हैं। कहानीकार चन्द्र किश...