दीपक सपरा का आलेख 'फुटबॉल विश्व कप के मानवीय पल : एक टेपेस्ट्री जो खेल की ही तरह सुंदर है'
वर्ष 2022 की महत्त्वपूर्ण घटनाओं में कतर का विश्व कप फुटबाल भी था। कतर में आयोजित फुटबाल के महाकुम्भ का नया सरताज अर्जेंटीना बना। इस विश्व कप में कई नए पुराने सितारे दुनिया भर में चर्चा में रहे। लेकिन कुछ ऐसे भी सितारे थे जिन्होंने इस विश्व कप को सुचारू रूप से सम्पन्न कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें कोई दो राय नहीं कि फुटबाल दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल है। इस खेल के दौरान जो जुनून दिखाई पड़ता है, वह दुर्लभ है। भले ही विश्व कप में चुनिंदा देश खेल रहे हों, इससे दुनिया भर के देशों के लोगों की भावनाएं, संवेदनाएं एवम मानवीयताएं जुड़ी होती हैं। विजय के पश्चात अर्जेंटीना के स्टार खिलाड़ी लियोनेल मेस्सी ने अपने परिवार के साथ जिस तरह जश्न मनाया वह इस खेल के मानवीय पक्ष को ही दर्शाता है। इस पहलू को अपने उम्दा आलेख में दर्ज किया है दीपक सपरा ने। मूल अंग्रेजी आलेख का हिन्दी अनुवाद किया है हंस राज ने। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं दीपक सपरा का आलेख 'फुटबॉल विश्व कप के मानवीय पल : एक टेपेस्ट्री जो खेल की ही तरह सुंदर है।'
'फुटबॉल विश्व कप के मानवीय पल : एक टेपेस्ट्री जो खेल की ही तरह सुंदर है'
दीपक सपरा
सीईओ-एपीआई एंड सर्विसेज, डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज लिमिटेड
अनीश अधिकारी काठमांडू, नेपाल के रहने वाले हैं। वह फुटबॉल विश्व कप-2022 से पहले तकरीबन 33 महीनों के लिए कतर में निर्माण श्रमिक थे। उनका कार्यस्थल भव्य लुसैल स्टेडियम था, जिसने 18 दिसंबर को अर्जेंटीना और फ्रांस के बीच हुए फाइनल की मेजबानी की थी।
अनीश ने कतर जाने के लिए एजेंट भर्ती शुल्क भरने हेतु 900 डॉलर का ऋण लिया। तमाम जद्दोजहद के बाद कतर पहुंचे अनीश ने वहां बहुत कम मजदूरी पर अप्रत्याशित, अमानवीय कामकाजी परिस्थितियों में काम किया। कतर जाने से पूर्व उन्होंने जो सपना देखा था, वह चकनाचूर हो गया था। उसे लगभग $165 डॉलर प्रति माह का वेतन मिला, जो उनसे वादा किए गए रकम का महज दो-तिहाई था। कम मजदूरी के कारण उन्हें अपना भर्ती शुल्क वापस पाने में ही लगभग छह महीने लग गए।
नेपाल लौटने के बाद और काम की तलाश में जुटे अनीश का खेल के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ। वह फुटबॉल विश्व कप-2022 के मैचों को देखने का एक तरीका खोजना चाहते थे। फुटबॉल विश्व कप के कई मैच तो उसी स्टेडियम में आयोजित किए जा रहे थे जिसे बनाने में उन्होंने मदद की थी। लेकिन मैच देखने के लिए न तो उसके पास टी वी या वाईफाई की सुविधा थी और ना ही सेल फोन पर डेटा शुल्क भर पाने का सामर्थ्य।
विश्व कप खेल शुरू होने के बाद, मैंने देखा कि अनीश की तरह कई और लोगों की कहानियां सामने आ रही हैं। यही नहीं जीवन के विभिन्न क्षेत्रों और फुटबॉल मैदान के भीतर और बाहर कई लोग ऐसी कहानियों में शामिल थे।
नेमार ने सर्बिया के खिलाफ अपने पहले गेम के लिए मैदान पर ब्राजील का नेतृत्व किया। ब्राजील ही नहीं बल्कि पूरा भारत भी ब्राजील के समर्थन में जश्न मना रहा था। दुनिया के दूसरे हिस्सों की तरह ब्राजील को भारत में घरेलू टीम की तरह ही समर्थन प्राप्त है, इसके बाद अर्जेंटीना का स्थान है। साओ पाउलो या रियो डी जनेरियो की तरह कलकत्ता, केरल, गोवा के कई हिस्सों को ब्राजील के रंगों में सजाया गया था। मैं ब्राजील और कलकत्ता में रहा हूं और फुटबॉल के प्रति जुनून में मैंने जो अनुभव किया है, दोनों स्थानों में कोई खास अंतर नहीं है। मैच से पूर्व जब ब्राजील की टीम के खिलाड़ी स्कूली बच्चों का हाथ पकड़े मैदान पर उतर रही थी, तब नेमार ने जोश सिंह नामक छोटे सिख स्कूली लड़के का हाथ थामा हुआ था। जब ब्राजील का राष्ट्रगान बज रहा था तब नेमार का हाथ जोश सिंह के कंधों पर था। फीफा विश्व कप में भारत की घरेलू टीम के सबसे प्रतिष्ठित खिलाड़ी के साथ होने के कारण, जोश सिंह संभवतः भारतीय मूल के पहले व्यक्ति बन गए, जो ब्राजील की टीम के साथ फुटबॉल विश्व कप में मैदान में उतरे।
स्टेडियम के बाहर मायमी असगरी भी थीं। वह 24 साल की हैं और ईरानी मूल की है। वह एक हेडस्कार्फ पहनती है। हर रात, फुटबॉल विश्व कप मैचों से पहले और बाद में वह राहगीरों के लिए फुटबॉल के करतब दिखाती थीं। मायमी एक फ़ुटबॉल फ़्रीस्टाइल है जो इस खेल से बेइंतहा प्यार करती है। लोग जब उनसे उनके हेडस्कार्फ और फुटबॉल ट्रिक्स के बारे में पूछते हैं तो उसका जवाब आता है- "मैं एक मुस्लिम हूं, महिला हूं इसलिए हिजाब पहनती हूं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं फुटबॉल नहीं खेल सकती। मैं ठीक वही काम कर सकती हूं जो कोई और कर सकता है।" अपने उत्कृष्ट गेंद नियंत्रण और ड्रिब्लिंग कौशल के साथ, उनका लक्ष्य हिजाब पहनने वाले फुटबॉलरों की अवधारणा को सामान्य बनाना है, और हेडस्कार्फ के बजाय खेल पर ध्यान केंद्रित करना है।
डेरिच फखरेद्दीन मोरक्को से हैं। वह विश्व कप में सुरक्षा गार्ड थे और उनका काम प्रशंसकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था। काम के अनुरूप उन्हें हमेशा दर्शकों की ओर देखना चाहिए और उसकी पीठ फुटबॉल पिच की ओर होनी चाहिए। इस तरह वह स्टेडियम में सभी के लिए सुरक्षा और स्टेडियम की सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित कर रहे थे। पीछे मुड़ कर खेल देखने के प्रलोभन से बचते हुए उन्होंने मोरक्को और स्पेन के बीच पूरे मैच में पूरी लगन और प्रतिबद्धता के साथ अपना सारा काम किया। खेल के 120 मिनट और मोरक्को के चौथे पेनल्टी किक तक, उन्होंने अद्भुत परिश्रम और संयम के साथ ऐसा किया। जब मोरक्को के फुटबॉलर अशरफ हकीमी ने पेनल्टी शूटआउट में किक मारा तब डेरिच ने पीछे मुड़ कर देखा। पेनल्टी किक के गोल में बदलने के बाद वह खुशी से झूम उठा और उसकी आंखों में आंसू थे। उन कुछ सेकंडों में, डेरोइच एक सुरक्षा गार्ड होने के अलावा एक प्रशंसक भी था और पहली बार विश्व कप के क्वार्टर फाइनल में अपनी टीम के पहुंचने का जश्न मना रहा था।
स्टेडियम के दर्शक दीर्घा में सईदा मौह भी मौजूद हैं। वह हसन हकीमी की पत्नी हैं। दोनों स्पेन में मोरक्को के अप्रवासी हैं। सईदा ने मैड्रिड में घरों की सफाई की, जबकि हसन एक स्ट्रीट वेंडर था और इसी राह से दोनों की मुलाकात भी हुई। उनके बेटे, अशरफ हकीमी द्वारा पेनल्टी शूटआउट में किए गोल ने मोरक्को को अपने पहले विश्व कप क्वार्टरफाइनल में पहुंचा दिया था। वह भी स्पेन को हरा कर, जो संयोग से अशरफ हकीमी का जन्म स्थान भी है। जैसे ही पेनल्टी किक गोल में तब्दील हुआ अशरफ हकीमी स्टैंड्स में बैठी अपनी मां सईदा की ओर बढ़ता है। अशरफ को तमाम प्रशंसा मिल रही थी लेकिन कोई भी शब्द या सराहना माँ सईदा की ममतामयी चुंबन से ज्यादा मायने नहीं रखेगा। यह दुनिया का सबसे उत्कृष्ट उपहार है।
विन्सेंट अबू बकर ने 92 वें मिनट में कैमरून के लिए ऐतिहासिक गोल कर कैमरून को ब्राजील पर अभूतपूर्व जीत दिलाई। वह खुशी से झूम उठा। उन्होंने अपनी शर्ट उतारी और अपनी टीम के साथ जश्न मनाने में मशगूल हो गए। गोल के उत्साह में वह भूल गए कि मैच में पहले से ही उन्हें येलो कार्ड मिला हुआ है और जश्न मनाने का यह तरीका उन्हें एक और येलो कार्ड दिला देगा। एक मैच में दो येलो कार्ड स्वत: रेड कार्ड में परिवर्तित हो जाता है। जश्न पूरा होने के बाद, विन्सेंट वापस पिच पर जाते हैं। मोरक्को में जन्में अमेरिकन रेफरी इस्माइल अलफात ब्राजील बनाम कैमरून लीग मैच के लिए रेफरी थे। रेफरी इस्माइल, जश्न में डूबे विन्सेंट अबू बकर के मैदान पर लौटने का इंतज़ार कर रहे थे। विन्सेंट और कैमरून के लिए इस गोल की अहमियत को समझते हुए अबू बकर और उनकी टीम के जश्न मनाने तक रेफरी इस्माइल ने इंतजार किया; फिर अपना दायित्व निभाया। उन्होंने विंसेंट के मैदान में वापस लौटने पर पहले उनसे हाथ मिलाया, पीठ थपथपा कर उनके गोल की सराहना की और फिर रेड कार्ड दिखाते हैं। रेड कार्ड के पीछे के कारण से पूरी तरह वाकिफ विन्सेंट मुस्कुराते हुए मैदान से बाहर निकलता है। इस खुमार में डूबे हुए कि उन्होंने अपनी टीम को दुनिया की नंबर-1 राष्ट्रीय टीम पर अविश्वसनीय जीत दिलाई है। कैमरून 1-0 से मैच जीता और रेफरी इस्माइल अलफात के व्यवहार ने करोड़ों फैन्स का दिल। विंसेंट अपनी मुस्कान से दिल जीत लेते हैं। यह एक यादगार क्षण है - एक ऐसा क्षण जो दिखाता है कि अपना कर्तव्य निभाना संभव है, और इसे सहानुभूतिपूर्ण और मानवीय तरीके से भी निभाया जा सकता है।
लुइस वैन गाल 71 साल के हैं। वह नीदरलैंड टीम के कोच हैं। उन्हें प्रोस्टेट कैंसर के आक्रामक रूप का पता चला था। उन्होंने विश्व कप से पहले अपना ध्यान बनाए रखने में मदद करने के लिए इस तथ्य को अपने खिलाड़ियों से छुपाया। नीदरलैंड्स के विश्व कप क्वालिफिकेशन अभियान में सक्रिय रहते हुए उन्होंने 25 रेडिएशन थैरेपी करवाया। उस अवधि के दौरान, वह किसी खिलाड़ी या टीम के सदस्यों को अपनी स्थिति से अवगत करवाए बिना पिछले दरवाजे से अस्पताल में प्रवेश करते और बाहर निकलते। अक्सर, उन्होंने अपने ट्रैकसूट के नीचे एक कोलोस्टॉमी बैग और एक कैथेटर छिपा कर प्रशिक्षण का जिम्मा संभाला। जब उन्होंने आखिरकार अपनी स्थिति का खुलासा किया, तो इसने उनके खिलाड़ियों को अतिरिक्त ऊर्जा के साथ खेलने के लिए प्रेरित किया। अस्पताल के पिछले दरवाजे से कीमोथेरेपी सत्र से बाहर निकलने से ले कर अर्जेंटीना के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में डच टीम के साथ चलने तक, यह एक अविश्वसनीय यात्रा थी। भले ही नीदरलैंड एक कांटे की टक्कर वाले मुकाबले में हार गया, लेकिन वैन गाल ने वहां पहुंचने के लिए जो यात्रा की थी, वह अद्भुत था।
अंत में, अर्जेंटीना और लियोनेल मेसी के लिए। वर्ल्ड कप जीतने के कुछ देर बाद ही उनकी मां मैदान पर आती हैं और उन्हें गले लगा लेती हैं। थोड़ी देर बाद, मेस्सी अपने बच्चों को मैदान पर बुलाने के लिए इशारा करते हुए दिखते हैं। जब उसके बच्चे और पत्नी आते हैं तब वह एक संतुष्ट व्यक्ति के रूप में दिखाई देता है और अपने करियर के सबसे गौरवशाली क्षण को सबसे करीबी लोगों के साथ साझा करने की खुशी चेहरे पर साफ झलकती है।
फुटबॉल की कहानियां सिर्फ मैचों, खिलाड़ियों और गोल के बारे में नहीं होती हैं। वे माताओं, बेटों, रेफरी, प्रशंसकों, निर्माण श्रमिकों, स्कूली बच्चों, सुरक्षा गार्डों के बारे में भी हैं। विश्व कप से पहले अनीश के योगदान से ले कर विश्व कप के बाद मेसी की भावनाओं तक की प्रत्येक कहानी, मानवीय पक्षों के उस विशाल आकाश को दर्शाता है जो फुटबॉल जैसा सार्वभौमिक खेल प्रदान करता है। अनीश का दर्द, रूढ़िवादिता को तोड़ने के लिए मायमी का साहस, डेरिच फखरेद्दीन की परिश्रम और कर्तव्य की भावना, उनकी भावनाओं की एक मार्मिक अभिव्यक्ति, मां सईदा का प्यार और गर्व, इस्माइल की सहानुभूति, वैन गाल की प्रेरक कैंसर लड़ाई और सबसे बड़े निजी उपलब्धि के समय लियोनेल मेस्सी का अपने परिवार के लिए प्यार, यही वह वजहें हैं जो फुटबॉल को सुंदर खेल बनाता है और मेरे लिए यह किसी जुनून से कम नहीं है।
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